विषय-प्रवेश
24 फरवरी 2022 को, रूस ने दोनों राष्ट्रों की सीमाओं पर महीनों तक सैन्य जमावड़ा बढ़ाने के बाद यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया. रूसी नेतृत्व की निगाह में, यह निर्णायक कार्रवाई घटनाओं के उस सिलसिले का नतीजा थी जो 1990 में जर्मनी के पुन: एकीकरण तक जाता है. इस मुद्दे के मूल में नेटो का पूर्वी यूरोप में विस्तार था, जिसका रूस ने विरोध किया. पश्चिमी नेताओं ने भूतपूर्व सोवियत नेतृत्व को भरोसा दिलाया था कि जर्मनी के पुन: एकीकरण के बाद नेटो पूर्व की ओर विस्तार नहीं करेगा. इसके बावजूद, 2004 तक, नेटो रूस की सीमा तक आ गया था. जॉर्जिया और यूक्रेन के प्रति रूस की आक्रामक नीति के निर्धारण में, उनकी सीमाओं पर नेटो के सैनिकों व हथियारों की तैनाती की संभावना को देखते हुए, रूस द्वारा महसूस किया जाने वाला ख़तरा निर्णायक भूमिका में था. 2022 के यूक्रेनी संघर्ष पर विचार करते हुए, 2008 का रूस-जॉर्जिया युद्ध विश्लेषण के लिए एक फ्रेमवर्क उपलब्ध कराता है, भले ही पूर्ववर्ती घटनाओं के लिहाज़ से वह ज्यों का त्यों न रहा हो. इस तरह विश्लेषण करने पर यूक्रेनी संघर्ष एक प्रत्याशित नतीजा नज़र आता है और इसलिए शायद यह टाला जा सकता था.
पश्चिमी नेताओं ने भूतपूर्व सोवियत नेतृत्व को भरोसा दिलाया था कि जर्मनी के पुन: एकीकरण के बाद नेटो पूर्व की ओर विस्तार नहीं करेगा. इसके बावजूद, 2004 तक, नेटो रूस की सीमा तक आ गया था.
वॉरसा संधि का समापन
‘वॉरसा संधि’ सोवियत संघ की अगुवाई वाला एक सैन्य गुट (मिलिट्री ब्लॉक) था, जो नेटो से मुक़ाबले के लिए 1955 में बना. यह पश्चिमी जर्मनी के औपचारिक रूप से गठबंधन (नेटो) में शामिल होने के ठीक बाद सामने आया. कई दशक बाद, 1989 में, बर्लिन की दीवार ढह गयी, जिसके बाद अक्टूबर 1990 में पश्चिमी और पूर्वी जर्मनी एक हो गये. चूंकि पूर्वी जर्मनी को पश्चिमी जर्मनी (जो एक नेटो सदस्य था) में समाहित किया गया था, इसलिए पूर्वी जर्मनी वॉरसा संधि से बाहर हो गया. इसका नतीजा आख़िरकार संधि के समापन के रूप में सामने आया. इस एकीकरण को सोवियत संघ की मंज़ूरी तभी मिल पायी जब पश्चिमी नेताओं द्वारा राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव को यह भरोसा दिलाया गया कि नेटो पूर्व की ओर विस्तार नहीं करेगा. उस वक़्त, गोर्बाचेव ढेर सारे घरेलू मसलों से रूबरू थे, साथ ही यह समझ बनी थी कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दोनों गुट टकराव से दूर हट रहे हैं, जिसके चलते क्रेमलिन ने लिखित दस्तावेज के लिए ज़ोर दिये बिना, मौखिक आश्वासन स्वीकार कर लिया. तब भी, सोवियत संघ का रुख़ साफ़ था- वह अपनी सीमाओं पर नेटो की मौजूदगी स्वीकार करने वाला नहीं था.
पश्चिम ने लिखित आश्वासन के अभाव को अपने फ़ायदे की बात बना ली और उसी दशक के अंदर ही नेटो का विस्तार शुरू किया. 1999 में, वॉरसा संधि के सदस्य रहे देश- चेक गणराज्य, हंगरी और पोलैंड – गठबंधन में शामिल हो गये
पश्चिम ने लिखित आश्वासन के अभाव को अपने फ़ायदे की बात बना ली और उसी दशक के अंदर ही नेटो का विस्तार शुरू किया. 1999 में, वॉरसा संधि के सदस्य रहे देश- चेक गणराज्य, हंगरी और पोलैंड – गठबंधन में शामिल हो गये. 2004 में इस्तांबुल शिखर सम्मेलन के बाद, सात देशों – बुल्गारिया, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, एस्तोनिया, लातविया और लिथुआनिया को गठबंधन में जगह दी गयी. एस्तोनिया, लातविया और लिथुआनिया – केवल यही तीन पूर्व सोवियत गणराज्य हैं जो गठबंधन में शामिल हुए हैं. चार साल बाद, गठबंधन का बुखारेस्ट शिखर सम्मेलन जॉर्जिया और यूक्रेन की नेटो सदस्यता की राह खोलता लगा.
2008 का रूस-जॉर्जिया युद्ध : नेटो का रूस की सीमाओं की ओर बढ़ना
दूसरे पूर्व सोवियत गणराज्यों की तरह, जॉर्जिया ने 1991 में अपनी आज़ादी का ऐलान कर दिया था, और यही वह समय था जब उन दो प्रांतों के आत्मसातीकरण को लेकर मसले शुरू हुए, जिन्हें वह अपने सबसे उत्तरी प्रांत मानता था. हालांकि, दक्षिण ओसेतिया और अबख़ाज़िया मानते थे कि वे जॉर्जिया और रूस दोनों से सांस्कृतिक रूप से भिन्न हैं, और उन्होंने आज़ादी की मांग की. इन तनावों ने जॉर्जिया को एक गृहयुद्ध में धकेल दिया, जो 1994 में एक संघर्षविराम समझौते के साथ ख़त्म हुआ. मार्च 2008 में, जब नेटो ने कोसोवो को मान्यता दी, तो ये अलगाववादी भावनाएं दक्षिण ओसेतिया और अबख़ाज़िया में फिर से उठ खड़ी हुईं. दोनों इलाक़ों ने मान्यता के लिए क्रेमलिन के पास दरख़्वास्त दी. इस बीच, आसन्न नेटो सदस्यता की संभावना से हिम्मत पाकर, जॉर्जिया ने सैनिकों को दक्षिण ओसेतिया की राजधानी की ओर रवाना किया.
रूस ने इन प्रांतों की रक्षा के लिए अपनी सेना भेजी, जिन्हें वह युद्ध के अंत के बाद अंतत: स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में मान्यता देने वाला था. पांच दिनों के अंदर, रूसी सेना ने जॉर्जियाई कोशिशों को कुचल डाला और उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया. रूसी सेना ने जॉर्जिया की राजधानी तिब्लिसी की ओर बढ़ना शुरू किया. जॉर्जियाई राष्ट्रपति मिखाइल साकाशविली रूस के साथ संघर्षविराम पर बातचीत के लिए झटपट राज़ी हो गये, जिसने रूसी सेना का राजधानी तिब्लिसी की ओर बढ़ना रोका. इस समझौते के लिए तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी ने मध्यस्थता की थी. अबख़ाज़िया और दक्षिण ओसेतिया में स्थापित सैन्य अड्डों ने जॉर्जिया और रूस के बीच एक बफर ज़ोन निर्मित किया. रूस ने जॉर्जिया की नेटो महत्वाकांक्षाओं को भी सफलतापूर्वक कुचल दिया. रूस-जॉर्जिया युद्ध के बाद 11 सालों में इस दिशा में कुछ ख़ास घटित नहीं हुआ है. रूस के साथ युद्ध के परिणाम से सावधान नेटो ने जॉर्जिया को सदस्यता देने से परहेज़ करना चुना, क्योंकि अगर जॉर्जिया सदस्य होता, तो आर्टिकल 5 के प्रावधान के अनुरूप नेटो को इसमें कूदना पड़ता.
.रूस-जॉर्जिया युद्ध के बाद 11 सालों में इस दिशा में कुछ ख़ास घटित नहीं हुआ है. रूस के साथ युद्ध के परिणाम से सावधान नेटो ने जॉर्जिया को सदस्यता देने से परहेज़ करना चुना, क्योंकि अगर जॉर्जिया सदस्य होता, तो आर्टिकल 5 के प्रावधान के अनुरूप नेटो को इसमें कूदना पड़ता.
यूरो मैदान से क्राइमिया तक फैलीं यूक्रेन युद्ध की जड़ें
नवंबर 2013 में, यूक्रेन सरकार यूरोपीय संघ (ईयू) के ‘फ्री ट्रेड एंड एसोसिएशन एग्रीमेंट्स’ का एक पक्ष बनने पर सैद्धांतिक रूप से सहमत हुई थी. यह यूरोप के साथ मुक्त व्यापार, साथ ही आर्थिक विकास कार्यक्रमों के लिए ईयू से ठीकठाक वित्तपोषण और अंतत: यूरोपीय संघ की सदस्यता तक ले जाता. इस समझौते पर यूक्रेन का दस्तख़त करना उसे ईयू की ‘कॉमन सिक्योरिटी एंड डिफेंस पॉलिसी’ का भी एक पक्ष बनाता. रूस-नेटो के तनावपूर्ण संबंधों के संदर्भ में, इसे एक बार फिर मॉस्को ने रूसी सुरक्षा के लिए ख़तरे के रूप में देखा. अहम बात यह थी कि यूक्रेन और ईयू के बीच यह सहयोग समझौता रूस और यूक्रेन के बीच आर्थिक और व्यापारिक रिश्तों को काफ़ी सीमित कर देता. साझा प्रवासी आबादी और क़रीबी व्यापारिक रिश्तों के अलावा, यूक्रेन रूस के लिए सैन्य उपकरणों, मुख्यतया जहाज़ों के लिए टर्बाइन्स, और सेवस्तोपोल के पट्टे पर लिये गये सैन्य अड्डे का स्रोत था. ईयू की चालों के जवाब में, रूसी सरकार ने व्यापार प्रतिबंधों की धमकी दी और 3 अरब अमेरिकी डॉलर के क़र्ज़ की पेशकश की, जिसे कीव ने स्वीकार कर लिया.
यूक्रेनी शासन द्वारा ईयू के साथ बातचीत निलंबित किये जाने से भड़के तक़रीबन 10 लाख लोगों ने इस नीतिगत यू-टर्न के ख़िलाफ़ यूक्रेन भर में प्रदर्शन किया. महीनों तक चले विरोध प्रदर्शनों के बाद, कुछ ईयू विदेश मंत्रियों की मध्यस्थता से, फरवरी 2014 में यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच और संयुक्त यूक्रेनी विपक्ष ने एक समझौते पर दस्तख़त किये, जिसमें ज़ल्दी राष्ट्रपति चुनाव कराने और सरकार भंग करने की मांग की गयी थी. हालांकि, प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच हिंसा भड़क उठने (जिसे यूरोमैदान विद्रोह के नाम से जाता है) के चलते समझौता निष्फल हो गया और यानुकोविच कीव भाग गये.
यूक्रेन के पूरे इतिहास में, देश में क्षुद्र (फ्रिंज) धुर-दक्षिणपंथी राजनीतिक समूह मौजूद रहे हैं. यूरोमैदान विद्रोह के दौरान, इन समूहों ने अपने आकार के अनुपात से बढ़कर काम किया, और कुछ मौक़ों पर पुलिस और दूसरे प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ हिंसा उकसायी. विरोध प्रदर्शन आख़िरकार दंगे में बदल गये, और रूस ने इसका इस्तेमाल यूरोमैदान और नये शासन को नव-नाज़ी क्षुद्र समूहों से जोड़ने के लिए किया. रूस ने प्रदर्शनकारियों में शामिल बहुसंख्य को नव-नाज़ी बताया. इस तरह यह मॉस्को का नैरेटिव हो गया कि – एथनिक रूसियों को फासीवादियों, नाजी लाइन वाले यूक्रेनी राज्य से बचाना रूस की ज़िम्मेदारी है.
उसी महीने, रूस ने क्रीमिया पर क़ब्ज़ा कर लिया और एक संविधान संशोधन के ज़रिये उस क्षेत्र को रूसी फेडरेशन में शामिल कर लिया. इस बीच, कीव में सत्तासीन सरकार के ख़िलाफ़ यूक्रेन के दो पूर्वी क्षेत्रों में बग़ावत शुरू हो गयी. रूस के गुप्त समर्थन से दो क्षेत्रों – दोनेत्स्क और लुहांस्क में बाग़ी मज़बूत पकड़ बनाने में सफल रहे. क्राइमिया, दोनेत्स्क और लुहांस्क वो क्षेत्र हैं जहां यूक्रेन में एथनिक रूसी आबादी सबसे ज़्यादा है. नतीजतन, एथनिक रूसियों की हिफ़ाज़त के रूसी नैरेटिव के लिए ये महत्वपूर्ण स्थल हैं. नेटो में शामिल होने के यूक्रेन के लक्ष्य का हश्र, क्राइमिया पर क़ब्ज़े के बाद, जॉर्जिया जैसा ही हुआ.
2019 में, जब राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की सत्ता में आये, उन्हें प्रत्याशी के रूप में इस तरह पेश किया गया कि वह रूस के साथ शांति वार्ताओं की अगुवाई करेंगे. हालांकि, यूक्रेन के धुर-दक्षिणपंथियों ने संसदीय बहसों को बाधित कर और संसद में नये सदस्यों का शपथ-ग्रहण रोककर, इस प्रक्रिया को अटका दिया. रूस-यूक्रेन वार्ता की गतिरुद्धता के बाद, नेटो के साथ बातचीत दोबारा शुरू हुई. 2019 में यूक्रेनी संविधान में संशोधन किया गया. इसमें नेटो की सदस्यता को राज्य की प्राथमिक भूराजनीतिक महत्वाकांक्षा के रूप में प्रतिष्ठापित किया गया. एक बार फिर, रूस सीधे अपने सीमांतों पर पश्चिमी हथियारों और सेनाओं की तैनाती के बिल्कुल वास्तविक ख़तरे से रूबरू था.
अहम बात यह थी कि यूक्रेन और ईयू के बीच यह सहयोग समझौता रूस और यूक्रेन के बीच आर्थिक और व्यापारिक रिश्तों को काफ़ी सीमित कर देता. साझा प्रवासी आबादी और क़रीबी व्यापारिक रिश्तों के अलावा, यूक्रेन रूस के लिए सैन्य उपकरणों, मुख्यतया जहाज़ों के लिए टर्बाइन्स, और सेवस्तोपोल के पट्टे पर लिये गये सैन्य अड्डे का स्रोत था.
दशक के अंत में, यूक्रेन को अपने साथ शामिल करने की नेटो की इच्छा का पुनरुदय दिखायी पड़ा, जो क्राइमिया के नुक़सान से अप्रभावित लग रहा था. नवंबर 2021 में, मॉस्को को एक स्पष्ट संदेश भेजते हुए, अमेरिका और यूक्रेन ने रणनीतिक साझेदारी पर एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसे मॉस्को ने यूरोपीय सुरक्षा परिदृश्य को अपने फ़ायदे के लिए बदलने के वॉशिंगटन के इरादे के रूप में देखा. पिछले दशक के अनुभव को देखते हुए, नेटो के पास यह अंदाज़ा लगाने का काफ़ी सटीक पैमाना था कि रूस किस तरह की प्रतिक्रिया देगा. इस संदर्भ में, यूक्रेन में एक सैन्य अभियान का अनुमान लगाना तर्कसंगत रहा होता, ख़ासकर रूस-यूक्रेन सीमा पर बढ़ते सैन्य जमावड़े को देखते हुए. अपनी सीमाओं पर नेटो की मौजूदगी के प्रति मॉस्को के वैरभाव के स्पष्ट संकेतों के बावजूद, अमेरिका अपने रुख़ पर क़ायम रहा और यूरोप को परेशान कर रहे सुरक्षा मुद्दों पर रूस के साथ किसी गंभीर बातचीत से परहेज़ किया.
निष्कर्ष
नेटो के पूर्वी यूरोप में अडिग विस्तार को देखते हुए, इस तर्क को समझ पाना कठिन है कि गठबंधन को ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी. रूसी नेताओं द्वारा यह लाल लकीर पहले ही साफ़ कर दी गयी थी कि उनकी सीमाओं पर नेटो की मौजूदगी का प्रतिरोध किया जायेगा. 2022 के रूस-यूक्रेन युद्ध के नतीजतन, यूक्रेन में दसियों लाख लोग विस्थापित हुए हैं, और दसियों हज़ार ने अपनी ज़िंदगी गंवायी है, साथ ही देश के बुनियादी ढांचे का बड़ा हिस्सा बर्बादी के हाल में है. रूस को और फ़ायदा हुआ है, अब पूरे लुहांस्क क्षेत्र के साथ-साथ दोनेत्स्क के ज़्यादातर हिस्से पर उसका क़ब्ज़ा है.
इस तरह, जॉर्जिया को एक मॉडल के बतौर इस्तेमाल करते हुए, यह तर्क देना असंभव है कि पश्चिम अपनी कार्रवाइयों के नतीजों से नावाक़िफ़ था. अगर सार्थक बातचीत हुई होती और रूस की कुछ सुरक्षा चिंताओं का निवारण किया गया होता, तो रूस-यूक्रेन युद्ध से बचे जा सकने की संभावना थी. पश्चिम अगर मॉस्को के साथ सार्थक बातचीत में शामिल हो, तो इस युद्ध की भयावहता को अब भी कम किया जा सकता है.
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