चीन की सरकार, हॉन्गकॉन्ग में पूरी ताक़त से पारंपरिक और अपारंपरिक, दोनों ही तरह के सुरक्षा उपाय मज़बूत करने में जुटी है. हॉन्गकॉन्ग की जन प्रतिनिधियों वाली व्यवस्था में ‘लोकतंत्र समर्थकों’ का प्रभाव कम करने का इंतज़ाम करने के बाद, चीन अब राष्ट्रीय उत्सवों और चीनी पहचान का इस्तेमाल कर रहा है, जिससे कि हॉन्गकॉन्ग पर अपना शिकंजा कस सके और क्षेत्रीय व सांसारिक सीमाओं की हिफाज़त कर सके.
नई पीढ़ी को देशभक्तों में तब्दील करने का परिणाम
अब चूंकि हॉन्गकॉन्ग में किसी भी सार्वजनिक पद पर बैठने के लिए देशभक्त होना पहली शर्त बन चुका है, तो यहां के अधिकारी अपने नागरिकों को देशभक्त के रूप में परिवर्तित करने में जुट गए हैं. 15 अप्रैल को हॉन्गकॉन्ग के स्कूलों ने राष्ट्रीय सुरक्षा शिक्षा दिवस मनाया गया. इस दिन हथियारों की प्रदर्शनियां लगाने के साथ साथ राष्ट्रीय सुरक्षा की थीम पर आधारित प्रतियोगिताएं भी स्कूलों में आयोजित की गईं. हॉन्गकॉन्ग की पुलिस ने ब्रिटिश तौर तरीक़ों वाली वर्ज़िश करने की जगह अब चीन की मुख्य भूमि के पुलिसवालों की तरह हंस सरीखी चाल वाली परेड को अपना लिया है.
नए राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत ऐसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिन्हें चीन की कम्युनिस्ट पार्टी देशद्रोह, बग़ावत, आतंकवाद और विदेशी ताक़तों से साठ-गांठ कहती है.
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा हॉन्गकॉन्ग में राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने वाले अभियान के दो आयाम हैं. पहला तो ये कि चीन इसके माध्यम से अपने राष्ट्रीय सुरक्षा के कार्यालय को बेहतर बना रहा है. इसके लिए हॉन्गकॉन्ग में जनता की केंद्रीय सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा दुरुस्त करने के कार्यालय द्वारा दो होटलों के 600 कमरों को किराए पर लिया गया है. इस एजेंसी की स्थापना हॉन्गकॉन्ग में नए सुरक्षा क़ानून को लागू करने के बाद की गई थी. इस एजेंसी का काम इस बात की निगरानी करना है कि हॉन्गकॉन्ग की स्थानीय सरकार किस तरह से इस क़ानून को लागू करती है. नए राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत ऐसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिन्हें चीन की कम्युनिस्ट पार्टी देशद्रोह, बग़ावत, आतंकवाद और विदेशी ताक़तों से साठ-गांठ कहती है.
राष्ट्रीय सुरक्षा की हिफ़ाज़त करने वाली ये एजेंसी, विधान परिषद और मुख्य कार्यकारी के चुनाव में उतरने के आकांक्षी लोगों की उम्मीदवारी की भी पड़ताल करेगी. हॉन्गकॉन्ग के चुनाव क़ानूनों में पहले ही आमूल-चूल परिवर्तन किए जा चुके हैं. विवादों में घिरे हॉन्गकॉन्ग में सुरक्षा संबंधी नियमों का सख़्ती से पालन कराना एक पारंपरिक सुरक्षा उपाय है. लेकिन, इसके लिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ‘संपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा की परिकल्पना’ के अनुरूप अपारंपरिक तरीक़े भी अपना रही है.
इस परिकल्पना के तहत शी जिनपिंग ने, ‘विकास और सुरक्षा’ को बराबर की अहमियत देने की बात कही है. इसका मतलब ये है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ये महसूस करती है कि केवल आर्थिक फ़ायदे ही पर्याप्त नहीं हैं, और पार्टी को सुरक्षा के मसले को भी प्राथमिकता देनी होगी. दिसंबर 2020 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो का एक विशेष अधिवेशन आयोजित किया गया था, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा पर चर्चा के लिए बुलाया गया था. इस अधिवेशन में शी जिनपिंग ने कहा था कि, ‘जनता को राष्ट्रीय सुरक्षा का मूलभूत बल माना जाना चाहिए’ और देश की अंदरूनी सुरक्षा के लिए ‘अपने नागरिकों पर निर्भर’ होना चाहिए. शी जिनपिंग ने राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत बनाने के लिए अपारंपरिक उपाय अपनाने की उम्मीद भी जताई थी. चीन की नज़र में हॉन्गकॉन्ग एक कमज़ोर कड़ी है. उसका मानना है कि पश्चिमी ताक़तें हॉन्गकॉन्ग का इस्तेमाल चीन में ‘लोकतांत्रिक क्रांति’ भड़काने के लिए कर सकती हैं. इसीलिए शी जिनपिंग ये चाहते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा की हिफ़ाज़त के लिए आम नागरिकों को तैयार किया जाए.
इतिहास से छेड़छाड़
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी राष्ट्रीय सुरक्षा की हिफ़ाज़त की लड़ाई को अब कैम्पस और कक्षाओं तक ले आई है. एन वू सुक-चिंग हॉन्गकॉन्ग एक कारोबारी हैं. चाइनीज़ पीपल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कांफ्रेंस की स्टैंडिंग कमेटी की सदस्य भी हैं. उन्होंने हॉन्गकॉन्ग के शिक्षण संस्थानों में चीन का इतिहास पढ़ाने पर और ज़ोर देने की मांग की है. अप्रैल 2021 में हॉन्गकॉन्ग के अधिकारियों ने सेकेंडरी स्कूल के छात्रों की इतिहास की किताबों की समीक्षा की जिससे कि किताबों से वो हिस्से हटाए जा सकें, जिनमें उन्नीसवीं सदी में चीन और ब्रिटेन के बीच पहले अफ़ीम युद्ध की बातें हैं. इन स्कूली किताबों में ‘परिचर्चा के ऐसे विषय’ भी शामिल किए गए, जिसमें छात्रों से राय मांगी गई थी कि अगर चीन ने व्यापार और वाणिज्य को लेकर अधिक उदारवादी नीतियां अपनाई होतीं, तो क्या अफ़ीम युद्धों को टाला जा सकता था, और क्या चीन द्वारा अफ़ीम पर प्रतिबंध लगाना उचित था? उन्नीसवीं सदी के मध्य में ब्रिटेन ने चीन के ख़िलाफ़, तब युद्ध छेड़ दिया था, जब चीन ने अफ़ीम के व्यापार की इजाज़त देने से इंकार कर दिया था. उस समय चीन पर क़िंग राजवंश (1644-1911) का शासन था. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी, देश की मुख्य भूमि पर लोगों को ये बताती आई है कि तब ब्रिटेन ने चीन को कई असमान व्यापारिक समझौते करने पर मजबूर किया था, इसमें हॉन्गकॉन्ग पर अपना अधिकार छोड़ना भी शामिल था. अक्टूबर 2020 में हॉन्गकॉन्ग के शिक्षा ब्यूरो ने बड़ा कठोर क़दम उठाते हुए एक अध्यापक के पढ़ाने का लाइसेंस रद्द कर दिया था. ये कार्रवाई अध्यापक के किसी आपराधिक बर्ताव पर नहीं की गई थी. हॉन्गकॉन्ग की मुख्य कार्यकारी कैरी लैम ने अपने प्रशासन द्वारा अध्यापक का लाइसेंस रद्द करने की इस कार्रवाई का ये कहते हुए बचाव किया था कि वो, ‘हॉन्गकॉन्ग की आज़ादी के विचारों का प्रचार कर रहे थे.’ ऐतिहासिक घटनाओं का नए सिरे से मूल्यांकन करके चीन की कम्युनिस्ट पार्टी कोशिश ये कर रही है कि वो इतिहास का अपना नज़रिया और पहचान को हॉन्गकॉन्ग की सुरक्षा से जोड़ दे. कम्युनिस्ट पार्टी चाहती है कि वो अब उपनिवेशवाद का ऐसा नया ख़ाका बनाए जो चीन के हितों के अनुरूप हो. इसके अलावा, कम्युनिस्ट पार्टी ये भी कोशिश कर रही है कि ऐसे लोगों को कड़ा सबक़ सिखाया जाए, जो इस आधिकारिक नज़रिए से अलग रास्ता पकड़ते हैं.
ये विडंबना ही है कि 4 जून को तियानानमेन चौराहे पर जो कुछ भी हुआ था उसकी शुरुआत 15 अप्रैल 1989 को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के हुआ याओबैंग की मौत के साथ ही हुई थी.
शीत युद्ध के ख़ात्मे के समय, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सामने अपनी वैधानिकता का संकट खड़ा था. उस समय अधिक अधिकारों की मांग कर रहे छात्र सड़कों पर उतर रहे थे. इसकी परिणति हमने तियाननमेन चौराहे की घटना के रूप में देखा था. इसके बाद कम्युनिस्ट पार्टी ने देशभक्त शिक्षा देने का अभियान शुरू किया था, जिसमें राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार करके जनता को वफ़ादार बनाने की कोशिश की गई थी. उस अभियान का मुख्य लक्ष्य चीन के युवाओं को साम्राज्यवादी शासन के दौरान उनके देश के ‘अपमान’ के बारे में शिक्षित किया जाए. इसके साथ जापान और पश्चिमी देशों को खलनायक के रूप में पेश किया जाए. आज चीन में 15 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षा शिक्षा दिवस का आयोजन करके शी जिनपिंग, हॉन्गकॉन्ग को क़ाबू करने के लिए माओ के बाद वाले नेताओं की पीढ़ी का फॉर्मूला ही अपना रहे हैं. ये विडंबना ही है कि 4 जून को तियानानमेन चौराहे पर जो कुछ भी हुआ था उसकी शुरुआत 15 अप्रैल 1989 को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के हुआ याओबैंग की मौत के साथ ही हुई थी.
किसी भी तानाशाही देश में राजनीतिक नियंत्रण स्थापित करना बेहद महत्वपूर्ण होता है. हॉन्गकॉन्ग चीन के सामने एक चुनौती की नुमाइंदगी करता है. हॉन्गकॉन्ग की जनता ने हाल के वर्षों में कई बार अपने यहां के अधिकारियों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किए हैं. विरोध प्रदर्शन में शामिल होने वाले वहां के कई लोकतंत्र समर्थकों को क़ैद की सज़ाएं हुई हैं. चीन को शायद इस बात का एहसास है कि आगे चलकर ऐसे सख़्त क़दमों से कोई ख़ास फ़ायदा नहीं होने वाला है. हालांकि, कम्युनिस्ट पार्टी को लगता है कि समाज के कुछ वर्गों को स्कूलों और युवा संगठनों जैसे कुछ सामाजिक संगठनों के माध्यम से अपने साथ लाने से उसे अप्रत्यक्ष रूप से अपना एजेंडा चलाने के साथ साथ हॉन्गकॉन्ग पर नियंत्रण स्थापित करने में मदद मिलेगी.
हॉन्गकॉन्ग छोड़कर क्यों भाग रहे युवा
विरोध प्रदर्शनों के शिकार हॉन्गकॉन्ग को दबाने की चीन की कोशिशों का विपरीत असर हो रहा है. कुछ नागरिक संगठनों ने राष्ट्रीय सुरक्षा शिक्षा दिवस को छात्रों को ब्रेनवाश करने की कोशिश बताया है और छात्रों से अपील की है कि वो ऐसे साहित्य को सिरे से ख़ारिज कर दें, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर बांटा जा रहा है. अपनी शिक्षा व्यवस्था में मुख्य भूमि के बढ़ते दखल को देखते हुए बच्चों के मां-बाप अब उन्हें दूसरे देशों में भेजने के बारे में भी सोच रहे हैं. हॉन्गकॉन्ग के 35 हज़ार से अधिक लोगों ने ब्रिटेन की उस योजना के तहत अर्ज़ियां दी हैं, जिसे ब्रिटेन ने पिछले साल ही शुरू किया था. इस योजना के अंतर्गत हॉन्गकॉन्ग के नागरिकों को पांच साल तक ब्रिटेन में रहकर पढ़ने और रोज़गार हासिल करने के मौक़े दिए जा रहे हैं. अगर थोड़े-थोड़े लोगों का ये जाना आगे चलकर हॉन्गकॉन्ग से भगदड़ में तब्दील होता है, तो ये निश्चित रूप से विश्व स्तर पर चीन की छवि बिगाड़ने वाला होगा. 1980 के दशक में सोवियत संघ से भाग रहे लोगों ने वहां मानव अधिकारों के उल्लंघन की घटनाओं को उजागर किया था, जिसके बाद सोवियत संघ पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए गए थे.
हॉन्गकॉन्ग के 35 हज़ार से अधिक लोगों ने ब्रिटेन की उस योजना के तहत अर्ज़ियां दी हैं, जिसे ब्रिटेन ने पिछले साल ही शुरू किया था. इस योजना के अंतर्गत हॉन्गकॉन्ग के नागरिकों को पांच साल तक ब्रिटेन में रहकर पढ़ने और रोज़गार हासिल करने के मौक़े दिए जा रहे हैं.
शिंघुआ यूनिवर्सिटी की 110वीं वर्षगांठ से पहले 19 अप्रैल को शी जिनपिंग ने विश्वविद्यालय का दौरा किया था. तब उन्होंने विश्वविद्यालय की तारीफ़ की थी कि उसने ऐसे पेशेवर लोगों को तैयार किया, जो पूरी तरह से कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफ़ादार हैं. उन्होंने शिंघुआ यूनिवर्सिटी को अन्य विश्वविद्यालयों के लिए रोल मॉडल कहा था. इससे पहले शी जिनपिंग ने इस बात की ज़रूरत बताई थी कि विदेश में बसे छात्रों को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के लक्ष्यों का प्रचार करना चाहिए. पिछले कई वर्षों से चीन के छात्र उन विषयों पर खुलकर बोलने लगे हैं, जिन्हें कम्युनिस्ट पार्टी अपने मूल हित कहती है. 2017 में चीन के छात्रों ने कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी द्वारा तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा को आने का न्यौता देने के ख़िलाफ़ अभियान चलाया था. इस घटना के बाद चीन पर आरोप लगे थे कि वो छात्रों का इस्तेमाल अपनी ताक़त बढ़ाने के लिए कर रहा है. इसके बाद पश्चिमी देशों ने चीन के छात्रों को वीज़ा देने पर पाबंदियां लगानी शुरू कर दी थीं.
2017 में चीन के छात्रों ने कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी द्वारा तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा को आने का न्यौता देने के ख़िलाफ़ अभियान चलाया था. इस घटना के बाद चीन पर आरोप लगे थे कि वो छात्रों का इस्तेमाल अपनी ताक़त बढ़ाने के लिए कर रहा है.
कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख के तौर पर शी जिनपिंग के लंबे कार्यकाल का सीधा संबंध उनके राजनीतिक ताक़त जमा करने से है. इसी वजह से हॉन्गकॉन्ग उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है. चीन अब संगठित और अप्रत्यक्ष तरीक़े अपनाकर हॉन्गकॉन्ग पर अपना नियंत्रण स्थापित करने में जुट गया है. कम्युनिस्ट शासक के मानते हैं कि बहुत दिनों तक सख़्त क़दम उठाने की रणनीति के विपरीत प्रभाव भी हो सकते हैं. ऐसा लगता है कि कम्युनिस्ट पार्टी को अब ये लग रहा है कि वो सामाजिक संस्थाओं को अपने साथ जोड़ ले, तो उसके वैसे ही नतीजे होंगे जैसे मुख्य भूमि पर देखने को मिले थे. लेकिन, हॉन्गकॉन्ग छोड़कर भाग रहे युवा, चीन की सरकार की छवि पर धब्बा लगाते हैं. ऐसे में हॉन्गकॉन्ग के प्रशासन द्वारा अपनी नई पीढ़ी को देशभक्तों में तब्दील करने के ये प्रयास अंत में उसे ही नुक़सान पहुंचाएंगे.
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