‘न्यू इंडिया’ की बुनियाद रखने के मकसद के साथ हाल ही में मंज़ूर की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में शिक्षा प्रणाली में कई प्रगतिशील सुधारों की बात कही गई है. पाठ्यक्रम और स्टेम (एसटीईएम- साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स) पाठ्यक्रम के लचीलेपन पर एनईपी का समावेशी जोर एक स्वागतयोग्य कदम है. पिछले पांच सालों में, डिजिटल रुकावटों ने कंपनियों के अपने कारोबारी कामकाज के तरीके को बदल दिया है. बढ़ती ह्यूमन-टेक्नोलॉजी दख़लअंदाज़ी ने उन क्षमताओं का निर्माण किया है, जो आर्थिक विकास और काम के अवसरों को बढ़ाते हैं. तेज़ी से डिजिटल में परिवर्तन के साथ, तकनीकी रूप से सक्षम कर्मचारियों की मांग बढ़ रही है. शोध बताता है कि भारत में पिछले तीन वर्षों में स्टेम से संबंधित नौकरियों में 44 फ़ीसद वृद्धि हुई है. भारत के डिजिटल कोर सेक्टर में 2025 तक 6 से 6.5 करोड़ जॉब पैदा होने की उम्मीद है, जिनमें से कई में कार्यात्मक स्टेम कौशल की ज़रूरत होती है.
हालांकि, स्टेम के विषय मुख्यतः पुरुषों की पसंद बने हुए हैं और इनमें महिलाओं की बहुत कम भागीदारी देखी गई है. स्टेम सेक्टर में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व उन्हें टेक्नोलॉजी द्वारा विस्थापित किए जाने के भारी जोख़िम में डालता है. आईएमएफ़ का 2018 में किया अध्ययन बताता है कि महिलाएं, पुरुषों की तुलना में नियमित कार्य ज़्यादा करती हैं— यह ऐसे जॉब्स हैं जिनमें ऑटोमेशन की ज्यादा संभावना है. स्टेम कौशल, क्षमताओं, पहुंच और जागरूकता के असमान स्वामित्व के कारण 9 फ़ीसद पुरुष कर्मचारियों की तुलना में महिला कर्मचारियों की संख्या का लगभग 11 फ़ीसद ऑटोमेशन के गहरे जोख़िम में है. ऐसे में, औपचारिक शिक्षा में नामांकन बढ़ाना लैंगिक अंतर को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, हालांकि, लड़कियों और महिलाओं को प्रासंगिक कौशल के विषयों से लैस करना भी इतना ही महत्वपूर्ण है और यह उनके काम में बने रहने की संभावना के लिए वातावरण प्रदान करता है. यह न केवल लैंगिक अंतर को कम करेगा बल्कि सक्षम, उत्पादक और मूल्यवान मानव पूंजी के नुकसान को भी रोकेगा जो देश की अर्थव्यवस्था में सकारात्मक योगदान दे सकता है.
स्टेम में महिलाओं की कमी सिर्फ़ कौशल की अपर्याप्तता के कारण नहीं है, बल्कि यह लैंगिक भूमिकाओं को लेकर तयशुदा धारणा के परिणामस्वरूप भी है. महिलाओं को “दोहरी भूमिका” मानसिकता का सामना करने की संभावना है, जिसमें पेशेवर फैसले काफ़ी हद तक उनकी घरेलू ज़िम्मेदारियों से प्रभावित होते हैं.
स्टेम की रिसती हुई पाइप लाइन
स्टेम क्षेत्रों में बढ़ते अवसरों के बावजूद भारत में महिलाओं को कम प्रतिनिधित्व मिलता है. स्टेम क्षेत्रों में महिलाओं का न्यून-प्रतिनिधित्व देश के लिए एक विरोधाभासी चुनौती है. शिक्षा मंत्रालय द्वारा किए गए उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वे (एआईएसएचई) 2018-19 के अनुसार, देश में कुल स्टेम नामांकन में लगभग 43 फ़ीसद महिलाएं शामिल हैं; हालांकि, बाद की योग्यता के साथ असमानता बढ़ती जाती है. सिर्फ़ तीन फ़ीसद महिलाएं साइंस में पीएचडी के लिए पंजीकरण कराती हैं और छह फ़ीसद इंजीनियरिंग व टेक्नोलॉजी में पीएचडी चुनती हैं. इसके अलावा, वे अनुसंधान विकास संस्थानों में कुल वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, टेक्नोलॉजी में केवल 14 फ़ीसद हैं. स्टेम क्षेत्रों में इस ‘रिसती हुई पाइप लाइन’ से महिलाएं ज़्यादा बाहर गिरती हैं और कम महिलाएं पेशेवर इंजीनियर या वैज्ञानिक के रूप में उच्च पदों तक पहुंचती हैं.
स्टेम में महिलाओं की कमी सिर्फ़ कौशल की अपर्याप्तता के कारण नहीं है, बल्कि यह लैंगिक भूमिकाओं को लेकर तयशुदा धारणा के परिणामस्वरूप भी है. महिलाओं को “दोहरी भूमिका” मानसिकता का सामना करने की संभावना है, जिसमें पेशेवर फैसले काफ़ी हद तक उनकी घरेलू ज़िम्मेदारियों से प्रभावित होते हैं. भारत में, महिला श्रम कार्यबल भागीदारी (एफएलएफपी) और उनकी वैवाहिक स्थिति के बीच एक प्रतिगामी रुझान है— शहरी क्षेत्रों में अविवाहित महिलाओं की भागीदारी की तुलना में विवाहित महिलाओं की भागीदारी कम है. भारत में महिलाएं आमतौर पर करियर के मध्यकाल के आसपास कार्यबल से बाहर निकल जाती हैं; नतीजतन, महिलाओं की नेतृत्व की भूमिकाओं में कमी है. नीति आयोग की 2016-17 की रिपोर्ट में कहा गया है कि साइंस में 30 फ़ीसद महिलाओं को लगता है कि उनके करियर ने परिवार की प्रतिबद्धताओं और घरेलू जिम्मेदारियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है. इसके अलावा, जवाब देने वालों में 47 फ़ीसद ने अपने करियर में चुनौतीपूर्ण अवसर से इनकार करने के लिए परिवार की देखभाल का हवाला दिया.
घरेलू ज़िम्मेदारियों के अलावा, स्टेम में महिलाओं को उनके कार्यक्षेत्र में छिपे हुए भेदभाव का सामना करना होता है. की ग्लोबल वर्कफ़ोर्स इंसाइट्स के अनुसार, स्टेम में प्रदर्शन मूल्यांकन में लगभग 81 फ़ीसद भारतीय महिलाओं को लैंगिक पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ा और एक बड़े अनुपात को लगता है कि उनकी कंपनियां महिलाओं को शीर्ष स्थान नहीं देंगी. कम महिला सहकर्मियों और प्रमुखों के कारण, उन्हें पुरुष-प्रधान कार्यक्षेत्रों में किनारे लगा दिए जाने और अलगाव का ख़तरा रहता है. इसके अलावा, उपयुक्त कार्यस्थल की कमी या शिक्षा लाभ जैसे यात्रा भत्ता, आवास और मातृत्व लाभ भी उन्हें स्टेम में करियर बनाने से रोकता है.
लैंगिक भूमिकाएं इतनी शुरुआती उम्र में सौंपी जाती हैं कि ज़्यादातर महिलाओं को लगता है कि उनके पुरुष समकक्षों को स्टेम विषयों में आनुवांशिक लाभ मिलता है— लगभग 76 फ़ीसद भारतीय महिलाओं ने महसूस किया कि उनके पुरुष सहकर्मियों को मैथ और साइंस में जन्मजात लाभ हैं.
लैंगिक भूमिकाएं इतनी शुरुआती उम्र में सौंपी जाती हैं कि ज़्यादातर महिलाओं को लगता है कि उनके पुरुष समकक्षों को स्टेम विषयों में आनुवांशिक लाभ मिलता है— लगभग 76 फ़ीसद भारतीय महिलाओं ने महसूस किया कि उनके पुरुष सहकर्मियों को मैथ और साइंस में जन्मजात लाभ हैं. इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के शोध के अनुसार, लैंगिक पूर्वाग्रह तब शुरू होता है जब वयस्क सामाजिक व्यवहार के माध्यम से विभिन्न जेंडर के बच्चों के साथ अपने व्यवहार को अलग करना शुरू करते हैं. आपसी खेल में, यहां तक कि उनके खिलौनों के साथ खेलने में भी, लैंगिक रूढ़ियां जड़ जमा सकती हैं. वे बच्चों के भविष्य के करियर के विकल्पों और रुचियों को प्रभावित करते हैं— उदाहरण के लिए, लड़कियों की तुलना में लड़कों के स्टेम खिलौना उठाने की तीन गुना अधिक संभावना है, जो बताता है कि लड़कों में स्टेम के लिए बुनियादी रुझान है. अक्सर, इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस, मशीन जैसे विषय पुरुषत्व से जुड़े होते हैं. जबकि, महिलाओं को शुरुआती उम्र से ही देखभाल करने वाली भूमिकाओं जैसे नर्सों या शिक्षकों के लिए अनुकूलित किया जाता है. यह बताता है कि स्टेम में अवसरों के बारे में धारणाएं बदलना कम उम्र से शुरू किए जाने की ज़रूरत है.
समावेशी वातावरण का निर्माण
यह याद रखना ज़रूरी है कि सभी सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों और सभी अल्प-प्रतिनिधित्यव प्राप्त समूहों का लगभग आधा हिस्सा महिलाएं होती हैं. एनईपी 2020 अपने ‘वृहद समावेशन फंड’ में संविधान में वर्णित विविधता की आवश्यकता को स्वीकार करता है, और सभी महिलाओं के साथ-साथ ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए शिक्षा की पहुंच में सुधार की वकालत करता है. री-स्किलिंग में शुरुआती निवेश स्टेम शिक्षा को बढ़ावा देना रिटेंशन (क्षेत्र में टिके रहने) वालों की संख्या बढ़ा सकता है और लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ने में मदद कर सकता है. स्टेम विषयों को अन्य विषयों के साथ जोड़कर शुरुआत से ही स्कूलों में लागू करना स्टेम सीखना लड़कियों के लिए ज़्यादा आकर्षक और प्रेरक बना सकता है. महिला रोल मॉडल, मेंटर को जोड़ने और शिक्षकों को लैंगिक मुद्दों पर संवेदनशील बनाने से रूढ़िवादी धारणाओं को बदलने और अधिक लड़कियों को स्टेम शिक्षा का चुनाव करने के लिए प्रेरित कर सकता है.
औपचारिक और अनौपचारिक दोनों शैक्षिक व्यवस्थाओं में स्कूलों की अध्ययन यात्रा से लेकर अनुसंधान केंद्रों, सरकारी एजेंसियों और संग्रहालयों के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है. इसके अलावा, प्रायोगिक स्टेम लर्निंग और अप्रेंटिशशिप से श्रम मार्केट की ज़रूरत को पूरा करने के साथ-साथ महिलाओं को ज़्यादा रोज़गारपरक बनाने में मदद मिल सकती है. सरकारी एजेंसियों के तहत पेड इंटर्नशिप और अप्रेंटिसशिप के मौक़े मेंटरशिप और प्रभावशाली प्रशिक्षण सुनिश्चित कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका की फेडरल नेवल रिसर्च लैब ने कई कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के साथ सफल साझेदारी की है ताकि छात्रों को स्टेम से जुड़े अनुसंधान में व्यावहारिक अनुभव लेने के लिए गर्मी की छुट्टियों में इंटर्नशिप दी जा सके. महिला के लिए छात्रवृत्ति और फ़ेलोशिप उन्हें इन क्षेत्रों में उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित कर सकती हैं. वंचित समुदायों की लड़कियों के लिए साधन-संपन्न प्रयोगशालाओं की सुविधा और डिजिटल पहुंच जैसी बुनियादी सुविधाएं भी महत्वपूर्ण हैं.
संयुक्त राज्य अमेरिका की फेडरल नेवल रिसर्च लैब ने कई कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के साथ सफल साझेदारी की है ताकि छात्रों को स्टेम से जुड़े अनुसंधान में व्यावहारिक अनुभव लेने के लिए गर्मी की छुट्टियों में इंटर्नशिप दी जा सके.
कार्यस्थलों को लचीले काम के घंटों, वर्क फ़्राम होम और पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए पेरेंटल लीव के विकल्प सहित काम और जिंदगी के बीच अधिकतम संतुलन का अवसर देकर और अधिक मददगार बनाया जा सकता है. इसके अलावा, भारत में, साइंस के क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को लचीले घंटों और देर रात की पाली के विकल्प, जो दोहरी भूमिका निभाने के लिए सबसे अनुकूल कार्यस्थल विशेषता है, के बाद आवास और परिवहन की सुविधा मिली. नीतियां पेशेवर महिलाओं को ज़रूरी संसाधन, बाजार और नेटवर्क उपलब्ध कराने पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं. लगभग 82 फ़ीसद पेशेवर महिलाओं का मानना है कि महिला नेतृत्व तक पहुंच उन्हें अपने करियर को आगे बढ़ाने में मदद कर सकती है. संगठनों के शीर्ष स्तरों पर महिलाओं के आवंटित प्रतिनिधित्व से विविधता परिणामों में और सुधार हो सकता है.
लगभग 82 फ़ीसद पेशेवर महिलाओं का मानना है कि महिला नेतृत्व तक पहुंच उन्हें अपने करियर को आगे बढ़ाने में मदद कर सकती है. संगठनों के शीर्ष स्तरों पर महिलाओं के आवंटित प्रतिनिधित्व से विविधता परिणामों में और सुधार हो सकता है.
आर्थिक विकास में साइंस और टेक्नोलॉजी की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, स्टेम श्रृंखला में ज़्यादा नीतियों का लक्ष्य महिलाओं को प्रोत्साहित करने और उनके टिके रहने के लिए होना चाहिए. कुशल महिला श्रम शक्ति की पूरी क्षमता का इस्तेमाल करना देश की आर्थिक उत्पादकता, सामाजिक गतिशीलता और इनोवेशन को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. संयुक्त राष्ट्र के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल-5 (एसडीजी) में आर्थिक सशक्तिकरण और अधिक से अधिक अधिकार प्राप्त करने के साधन के रूप में आईसीटी (इन्फॉर्मेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी) सहित महिलाओं को सक्षम बनाने वाली टेक्नोलॉजी का उपयोग शामिल है. इसके अलावा, स्टेम को लेकर मिथकों और रूढ़ियों को तोड़ना न सिर्फ़ गोल-5 (लैंगिक समानता) को हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि स्टेम से संबंधित कई और भी एसडीजी भी हासिल किए जा सकते हैं.
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