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Published on May 29, 2025 Updated 0 Hours ago
हार के बीच बावजूद फील्ड मार्शल पद पर प्रमोशन पाकर आसिम मुनीर ने पाकिस्तान पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है. इससे पाकिस्तान का आर्थिक संकट और गहरा गया है. देश अब क्षेत्रीय अशांति और अनियंत्रित सैन्यवाद के युग की तरफ बढ़ने लगा है.
जनरल आसिम मुनीर का प्रमोशन और 'हार्ड स्टेट' की तरफ बढ़ता पाकिस्तान

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ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के साथ चार दिनों तक चले संघर्ष में पाकिस्तान को हार मिली. उसे कई बड़ी सैनिक असफलताओं का सामना करना पड़ा. इसके बावजूद, पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर ने एक महत्वपूर्ण व्यक्तिगत जीत हासिल की. भारत से हुए संघर्ष के दो हफ्ते के भीतर ही, आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर प्रमोट किया गया है. मुनीर को प्रमोशन देते हुए कहा गया कि "संघर्ष के दौरान उन्होंने रणनीतिक प्रतिभा और साहसी नेतृत्व दिखाते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित की और दुश्मन को निर्णायक रूप से मात दी". हालांकि पाकिस्तानी मामलों के जानकार मानते हैं कि मुनीर को फील्ड मार्शल बनाना पाकिस्तानी आर्मी को लगे एक बड़े झटके के बीच सेना की प्रतिष्ठा की रक्षा करने का कदम है. सशस्त्र बलों में जनता का भरोसा फिर से बनाने, कमज़ोर और समझौतावादी गठबंधन सरकार को बनाए रखने के लिए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ की ये एक हताश लेकिन रणनीतिक कोशिश नज़र आती है. हालांकि, मुनीर ने अपने हालिया प्रमोशन और 'जीत' के संदिग्ध दावों के बाद सत्ता पर अपनी पकड़ निर्विवाद रूप से मज़बूत कर ली है, लेकिन पाकिस्तान को यकीनन एक और संस्थागत हार का सामना करना पड़ा है और इस बार अपनी ही सेना के हाथों. पाकिस्तान अब औपचारिक रूप से सैनिक शासन की कगार पर खड़ा है.

आर्थिक संकट में फंसता पाकिस्तान

हालांकि, एक बार जब पाकिस्तान में युद्ध उन्माद और कथित जीत का सैनिक जश्न उत्सव कम हो जाएगा, तब शायद पाकिस्तान के नागरिकों को ज़मीनी हकीक़त का पता चलेगा. उन्हें रोज़ाना की आजीविका संबंधी चिंताएं पता चलेंगी. खाद्य असुरक्षा, पानी और बिजली की कमी, राजनीतिक हकों की कमी और मानवाधिकार उल्लंघन जैसे मामले अभी भी अनसुलझे हैं. आने वाले महीनों में हालात और भी बदतर हो सकते हैं. वहीं पाकिस्तानी सेना के लिए, भारत के साथ किसी भी तरह के सैन्य संघर्ष या आंतरिक आतंकवाद विरोधी अभियान फायदेमंद होता है. सशस्त्र संघर्ष की सूरत में पाकिस्तान का रक्षा बजट बढ़ता है और पाकिस्तान के शासन पर सेना का नियंत्रण भी मज़बूत होता है. युद्ध होने पर सार्वजनिक कल्याण के लिए आवंटित वित्तीय संसाधनों पर असर पड़ता है, उसे रक्षा क्षेत्र की तरफ मोड़ा जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 में पाकिस्तान का रक्षा बजट 11 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है. पहले से ही गंभीर संकट से जूझ रही पाकिस्तानी की अर्थव्यवस्था पर ये एक बड़ा वित्तीय बोझ है. वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने चेतावनी दी है कि भारत के साथ चल रहे सैन्य तनाव से व्यापक आर्थिक स्थिरता और राजकोषीय संतुलन हासिल करने की पाकिस्तान की कोशिशों में बाधा उत्पन्न हो सकती है.

मुनीर ने अपने हालिया प्रमोशन और 'जीत' के संदिग्ध दावों के बाद सत्ता पर अपनी पकड़ निर्विवाद रूप से मज़बूत कर ली है, लेकिन पाकिस्तान को यकीनन एक और संस्थागत हार का सामना करना पड़ा है और इस बार अपनी ही सेना के हाथों.

इसके अलावा, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था विदेशी ऋणों और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के सहायता कार्यक्रम पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. हाल के अनुमानों में वित्त वर्ष 2025 के लिए पाकिस्तान की वृद्धि दर 2.68 प्रतिशत रहने का संकेत दिया गया है, जो कि पहले घोषित 3.6 प्रतिशत के अनुमान से कम है. वृद्धि दर में ये कमी उम्मीद से धीमी आर्थिक सुधार का संकेत देती है. कृषि विकास में कमी, औद्योगिक उत्पादन की धीमी दर और विदेशी वित्तीय सहायता जैसी चुनौतियों से पाकिस्तान पहले से ही परेशान है और इससे उसकी आर्थिक विकास की गति को धीमी हो रही है. भारत के साथ बढ़ते सैन्य तनाव से पाकिस्तान की अपने बाहरी ऋण दायित्वों को पूरा करने की क्षमता भी कम हो सकती है. पाकिस्तान के पास पहले से ही अपर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है और उसस पर दबाव बढ़ सकता है. ऋण की शर्तों को पूरा करने की इस्लामाबाद की क्षमता से आईएमएफ भी चिंतित है. इसीलिए उसने पाकिस्तान पर अपने 7 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज की अगली किस्त जारी करने के लिए 11 नई शर्तें लगाई हैं. आईएमएफ ने चेतावनी दी है कि भारत के साथ भू-राजनीतिक तनाव की वजह से योजना के राजकोषीय, बाहरी और संरचनात्मक सुधार के लक्ष्य अधूरे रह सकते हैं.

इसके विपरीत, भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' का अगला चरण शुरू कर दिया है. इसका मक़सद पाकिस्तान प्रयोजित यानी सीमा पार आतंकवाद से निपटने के लिए इस समस्या को राजनयिक और कूटनीतिक स्तर पर संबोधित करना है. रिपोर्ट्स से पता चला है कि जून में दिल्ली में होने वाली फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की पूर्ण बैठक से पहले भारत सरकार उसे एक डोजियर सौंपने का इरादा रखती है. इस डोज़ियर के सहारे पाकिस्तान को बढ़ी हुई निगरानी के अधीन देशों की 'ग्रे लिस्ट' में फिर से शामिल करने की अपील की जाएगी. भारत सरकार पाकिस्तान को विश्व बैंक से और ज्यादा आर्थिक मदद दिए जाने का विरोध करने की भी योजना बना रही है. गौरतलब है कि पाकिस्तान इससे पहले 2018 से 2022 तक एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में था, क्योंकि वो आतंकियों को मिलने वाली वित्तीय मदद पर लगाम लगाने में विफल रहा था. इस्लामाबाद स्थित निजी सलाहकार सेवा फर्म और थिंक टैंक तबदलाब ने 2021 में एक स्टडी की थी. तबदलाब की इस स्टडी में दावा किया गया है कि 2008 से 2019 के बीच पाकिस्तान को लंबे समय तक ग्रे लिस्टिंग की वजह से उसे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 38 अरब डॉलर का घाटा हो सकता है. अगर पाकिस्तान को दोबारा ग्रे लिस्ट में शामिल किया गया तो पाकिस्तान की आर्थिक कमज़ोरी और बढ़ सकती है. लोन चुकाने की क्षमता कम हो सकती है और डिफॉल्ट का जोखिम बढ़ सकता है.

सत्ता पर पकड़ मज़बूत करते मुनीर

इसके अलावा, भारत के साथ बढ़ते सैन्य तनाव से आसिम मुनीर की प्रमुख आर्थिक पहल, विशेष निवेश सुविधा परिषद (एसआईएफसी), के लिए जटिलता पैदा होने की आशंका है. इस पहला का उद्देश्य विदेशी निवेश को आकर्षित करना और पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था पर घरेलू निवेशकों का विश्वास बढ़ाना है. एसआईएफसी को पहले से ही विवादास्पद हरित पाकिस्तान पहल (जीपीआई) को लेकर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. हरित पाकिस्तान पहल  के तहत कॉर्पोरेट खेती के लिए 'बंजर' चोलिस्तान भूमि की सिंचाई के लिए पंजाब प्रांत में सिंधु नदी पर छह नई नहरों के निर्माण का प्रस्ताव है. इस योजना की वजह से सिंध प्रांत के लोग नाराज़ हैं. योजना के खिलाफ़ व्यापक हिंसक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. सिंध प्रांत के लोगों ने पंजाब प्रांत पर सिंधु नदी के पानी के अपने हिस्से को हड़पने का आरोप लगाया है. पाकिस्तान में नदियों का जल स्तर लगातार घट रहा है. यही वजह है कि पानी और संसाधन के बंटवारे को लेकर पाकिस्तान के अलग-अलग राज्यों के बीच तनाव तेज़ी से बढ़ रहा है. चूंकि पाकिस्तान का पंजाब प्रांत सिंधु नदी प्रणाली के तहत ऊपरी तट पर स्थित है, इसलिए उस पर ये आरोप लगता है कि उसे जितना पानी लेने का कानूनी अधिकार है, वो उससे ज़्यादा पानी लेता है. इतना ही नहीं शहबाज़ शरीफ के नेतृत्व वाली संघीय सरकार और जनरल आसिम मुनीर के सैन्य नेतृत्व पर संसाधनों के आवंटन में पक्षपात के आरोप लगे हैं. इन पर आरोप है कि वो अन्य प्रांतों की तुलना में पंजाब को ज़्यादा तरजीह देते हैं. पंजाब के लिए संसाधनों का अधिक आवंटन किया जाता है.

इसके विपरीत, भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' का अगला चरण शुरू कर दिया है. इसका मक़सद पाकिस्तान प्रयोजित यानी सीमा पार आतंकवाद से निपटने के लिए इस समस्या को राजनयिक और कूटनीतिक स्तर पर संबोधित करना है.

पाकिस्तान इस वक्त कई समस्याओं से जूझ रहा है. संसाधनों के असमान वितरण, जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. इस्लामी संगठनों के फिर से उभरने, अर्थव्यवस्था की कमी और राजनीतिक अस्थिरता पाकिस्तान के लिए बड़ा सिरदर्द बने हुए हैं. पाकिस्तान को तनावपूर्ण क्षेत्रीय संबंधों,खास तौर पर अफगानिस्तान के साथ, को लेकर बढ़ते आंतरिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है. आसिम मुनीर ने कथित तौर पर भारत के साथ सीमित सैन्य संघर्ष को भड़काकर जनता का ध्यान इन सब मुद्दों से भटकाने की कोशिश की. ख़ास बात ये है कि महत्वपूर्ण एयरबेसों के नुकसान सहित तमाम सैन्य असफलताओं का सामना करने के बावजूद मुनीर को अप्रत्याशित रूप से फील्ड मार्शल के पद पर प्रमोशन दिया गया. भारत के साथ संघर्ष से पहले पाकिस्तानी सेना के पक्ष में वहां की जनता की राय ऐतिहासिक रूप से न्यूनतम स्तर पर थी. इमरान खान के समर्थक तो सेना के खिलाफ़ खुलेआम विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन अब सेना के पक्ष में समर्थन बढ़ा है. ऐसे में मुनीर का अगला कदम पाकिस्तान को एक 'हार्ड स्टेट' में बदलकर अपनी शक्ति को और मज़बूत करना हो सकता है. राजनीति विज्ञान की भाषा में हार्ड स्टेट ऐसे देश को कहा जाता है, जहां सत्ता एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों तक सीमित होती है और जो कूटनीति की बजाए सैन्य शक्ति पर ज़्यादा भरोसा करता है.

मार्च 2025 में राष्ट्रीय सुरक्षा पर संसदीय समिति की एक विशेष बैठक के दौरान मुनीर ने बेहतर शासन की आवश्यकता और पाकिस्तान को एक 'हार्ड स्टेट' में बदलने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया. मुनीर ने सवाल उठाया कि पाकिस्तान कब तक 'सॉफ्ट स्टेट' होने की आड़ में अपने हितों की कुर्बानी देता रहेगा. इस समिति के सदस्यों में पाकिस्तानी पीएम शहबाज़ शरीफ भी शामिल हैं. मुनीर ने समिति के सदस्यों को आगाह किया कि पाकिस्तान के अंदर और बाहर जो सशस्त्र संघर्ष चल रहे हैं, वो देश की भावी पीढ़ियों के लिए अस्तित्व का सवाल हैं. मुनीर ने इन सशस्त्र विद्रोहों से निपटने के लिए सभी सियासी दलों से देश हित में अपने संकीर्ण मतभेदों को अलग रखने की गुज़ारिश की. राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सेना की जिम्मेदारी को स्वीकार करते हुए मुनीर ने हाल की गलतियों के लिए अप्रभावी राजनीतिक नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया. इसी आड़ में मुनीर ने सभी प्रांतों में शासन में सेना की विस्तारित भूमिका को स्पष्ट रूप से सही ठहराया. मुनीर तो अपनी बात मनवाने में कामयाब रहे लेकिन इसके विपरीत, पाकिस्तान की सरकार जून 2024 में देश भर में हिंसा में भारी वृद्धि को रोकने के लिए शुरू किए गए ऑपरेशन आज़म-ए-इस्तेहकाम (स्थिरता के लिए संकल्प) की विफलता के लिए सेना को जवाबदेह ठहराने में नाकाम रही.

जाफर एक्सप्रेस अपहरण के बाद, इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) के महानिदेशक चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने घोषणा की थी कि अब आतंकवादियों से 'निपटने के नियम' बदल गए हैं. उन्होंने भरोसा दिया कि पाकिस्तानी सेना "आतंकवादियों से, उनके मददगारों और उन्हें बढ़ावा देने वालों से सख्ती से निपटेगी, फिर चाहे वो पाकिस्तान के अंदर हों या बाहर" इसी तरह, मुनीर ने आतंकवाद से 'पूरी ताकत' से लड़ने की कसम खाई और कहा कि "एकता के जरिए आतंकियों के मददगारों के मंसूबों को नाकाम किया जाएगा". बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा ने पाकिस्तानी सेना के इस सख्त रवैये का खामियाजा भुगता है. इन प्रांतों में रोज़ाना शांति कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, छात्रों और स्थानीय सरकार के प्रतिनिधियों की जबरन गुमशुदगी और बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के पालन किए हत्या के मामलों में बढ़ोत्तरी देखी गई है. इस बीच, सिंधु जल विवाद के अनसुलझे रहने के कारण सिंध प्रांत में अस्थिरता बढ़ती जा रही है. इस बात की आशंका जताई जा रही है कि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ़ सेना हिंसा का सहारा ले सकती है, जैसा कि नवंबर 2024 में इस्लामाबाद में पूर्व पीएम इमरान खान के समर्थकों के खिलाफ़ किया गया था.

बलोच विद्रोह के बहाने भारत को घेरने की कोशिश

भारत-पाकिस्तान संघर्ष के बाद अब इस्लामाबाद आक्रामक और सक्रिय रूप से भारत को झूठे आरोपों में फंसाने की कोशिश कर रहा है. पाकिस्तान आरोप लगा रहा है कि बलूचिस्तान में स्थानीय विद्रोह को प्रायोजित करने के पीछे भारत का हाथ है. इस स्थापित लेकिन निराधार रणनीति को वर्तमान परिस्थितियों में एक बार फिर इसलिए मज़बूत किया जा रहा है, ताकि पाकिस्तान को आतंकवाद का 'पीड़ित' दिखाया जा सके, जबकि वो खुद संयुक्त राष्ट्र की तरफ से आतंकवादी संगठन घोषित किए जा चुके लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) जैसे संगठनों की मेजबानी करना जारी रखे हुए हैं. पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का अस्थायी है. ऐसे में पाकिस्तान अब आतंकवाद के बारे में भारत के खिलाफ़ इस झूठे बयान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करने की पूरी कोशिश कर रहा है. इसके लिए पाकिस्तान ने एक बेबुनियाद डोज़ियर भी तैयार कर लिया है, जिसमें कहा गया है कि पाकिस्तान में उग्रवाद को समर्थन देने में भारत की मिलीभगत है. हालांकि, सच ये है कि पाकिस्तान अपने झूठे आरोपों की आड़ में अपने यहां निहत्थे नागरिकों के खिलाफ़ हिंसा करना चाहता है. पाकिस्तानी सेना द्वारा नए सैन्य अभियान शुरू करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक और बहाना है.

फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत होने और बिना किसी सबूत के भारत को 'हराने' के दावे पर मुनीर खुद को विजयी मान सकता है. हालांकि, एक बार जब पाकिस्तान में 'जीत' का उत्साह खत्म हो जाएगा और वास्तविकता सामने आएगी, तो लोग सड़कों पर उतर आएंगे.

पाकिस्तान की स्थिति इस वक्त आसिम मुनीर के लिए मुफ़ीद दिखती है. बढ़ते राष्ट्रवाद, सेना समर्थक भावनाओं, सीमित राजनीतिक और न्यायिक निगरानी के बीच मुनीर अपनी कठोर नीतियों को ज़्यादा आक्रामकता के साथ लागू करने के लिए तैयार दिखाई देते हैं. हालांकि ऐसी रणनीतियां वास्तविक मुद्दों-जैसे कि खाद्य और ऊर्जा की बढ़ती कीमतें, धीमी विकास दर, पानी और बिजली संकट, राज्यों की बीच तनाव और सशस्त्र बलों के भीतर भ्रष्टाचार के आरोप- से ध्यान हटाने में अस्थायी रूप से सफल हो सकती हैं, लेकिन मुनीर की नीतियों की दीर्घकाल तक सफल होंगी, इसे लेकर संदेह है. आखिर मुनीर कब तक बाहरी युद्धोन्माद और सैन्य खतरों, विशेष रूप से भारत की तरफ से, का फायदा उठाकर रक्षा बजट में बढ़ोत्तरी का मांग कर सकते हैं? कब तक वो सेना की सत्ता को मज़बूत करने और लोगों को बुनियादी अधिकारों और संसाधनों से वंचित करने की वकालत कर सकते हैं?

शायद इस एजेंडे का सबसे स्पष्ट संकेत पहलगाम में हुए क्रूर आतंकी हमले के बाद भारत के साथ सैन्य तनाव को बढ़ाने के उनके फैसले में दिखता है. इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी एक प्रॉक्सी ग्रुप - द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने ली है, जो पाकिस्तानी सेना के भरोसेमंद लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा हुआ है. ये मुनीर की 'हार्ड स्टेट' नीतियों को दर्शाता है. इस नीति में आर्थिक सुधारों की बजाए सैन्यीकरण को तरजीह दी जाती है और आम सहमति की बजाए ज़बरदस्ती पर ज़ोर दिया जाता है. फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत होने और बिना किसी सबूत के भारत को 'हराने' के दावे पर मुनीर खुद को विजयी मान सकता है. हालांकि, एक बार जब पाकिस्तान में 'जीत' का उत्साह खत्म हो जाएगा और वास्तविकता सामने आएगी, तो लोग सड़कों पर उतर आएंगे. तब वो पाकिस्तान को 'बचाने' वाले फील्ड मार्शल से अपने अधिकारों की मांग करेंगे. हो सकता है, उस समय तक मुनीर या तो 'हार्ड स्टेट' पाकिस्तान में एक और प्रमोशन की उम्मीद कर रहे होंगे, या पाकिस्तान में 'हाइब्रिड शासन' के नेता होंगे.



सरल शर्मा जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली में डॉक्टोरल कैंडिडेट हैं. वो नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल सेक्रेट्रिएट में भी काम कर चुके हैं.

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