फ़रवरी 2023 में भारत के जियोलॉजिकल सर्वे (GSI) ने जम्मू-कश्मीर के रियासी ज़िले के सलाल-हैमाना इलाक़े में 59 लाख टन लिथियम के भंडार मिलने की तस्दीक़ की. इस खोज के बाद भारत, लिथियम भंडार के मामले में दुनिया का सातवां बड़ा देश बन गया है. मार्च महीने में जियोलॉजिकल सर्वे ने जम्मू-कश्मीर में मिले लिथियम के भंडार के खनन की आगे की योजनाओं के बारे में प्रस्ताव रखा. वहीं, 2 अगस्त 2023 को संसद ने माइंस एंड मिनरल्स (डेवलपमेंट ऐंड रेग्युलेशन ) अमेंडमेंट बिल 2023 पारित कर दिया, ताकि गहराई में मिलने वाले और अहम खनिज तत्वों की खोज में निजी क्षेत्र से निवेश आकर्षित किया जा सके. इसके बाद, सितंबर में मीडिया में ख़बरें आईं कि जम्मू-कश्मीर, अगले कुछ हफ़्तों में अपने लिथियम भंडारों की नीलामी करेगा.
आज के दौर की अर्थव्यवस्था में लिथियम-आयन बैटरियां केंद्रीय भूमिका निभाती हैं. इनका इस्तेमाल कई तरह की तकनीकों में होता है.
त्वरित गति से उठाए गए इन एक के बाद दूसरे क़दमों से ज़ाहिर है कि सरकार, लिथियम के इन भंडारों की अपार सामरिक क़ीमत का पूरा लाभ उठाने का इरादा रखती है. लिथियम, लिथियम-आयन बैटरियों का एक अहम तत्व है. इन बैटरियों में अधिक ताक़त होती है, ये ज़्यादा दिनों तक चलती हैं और हल्की होने की वजह से लिथियम-आयन बैटरियां दूसरी बैटरियों की तुलना में जल्दी चार्ज भी हो जाती हैं. आज के दौर की अर्थव्यवस्था में लिथियम-आयन बैटरियां केंद्रीय भूमिका निभाती हैं. इनका इस्तेमाल कई तरह की तकनीकों में होता है. इनमें रोज़मर्रा के इस्तेमाल की चीज़ें जैसे कि मोबाइल और लैपटॉप, मेडिकल उपकरण और इलेक्ट्रिक गाड़ियां (EV) शामिल हैं. जलवायु परिवर्तन को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच, हरित तकनीकों में इन बैटरियों के उपयोग ने इन्हें वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक बेशक़ीमती स्रोत बना दिया है.
2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत को स्वच्छ ईंधन के मामले में बहुत बड़े पैमाने पर बदलाव करने होंगे. इसके अलावा, भारत 2030 तक 70 प्रतिशत कारोबारी गाड़ियों, 30 फ़ीसद निजी कारों, 40 प्रतिशत बसों, 80 फ़ीसद दोपहिया वाहनों और सारी तिपहिया गाड़ियों की बिक्री को इलेक्ट्रिक बनाने का इरादा रखता है. टिकाऊ अर्थव्यवस्था बनाने के ये महत्वाकांक्षी लक्ष्य, भारत के लिए लिथियम की नियमित और भरोसेमंद आपूर्ति को बेहद ज़रूरी बना देते हैं. हालांकि, इस संसाधन तक पहुंच बहुत सीमित है.
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की चिंताएं
अर्जेंटीना, चिली और बोलीविया के ‘लिथियम त्रिकोण’ में मोटे तौर पर दुनिया के 56 प्रतिशत लिथियम भंडार मिलते हैं. चीन के पास दुनिया का 8 प्रतिशत लिथियम भंडार है और वो अपने देश से बाहर भी इसकी खदानों और खनन को नियंत्रित करता है. इसमें लिथियम त्रिकोण वाले देश भी शामिल हैं. यही नहीं, दुनिया में जितना भी लिथियम साफ़ करके इस्तेमाल करने लायक़ बनाया जाता है, उसमें से लगभग आधा अकेले चीन में होता है. इस वजह से लिथियम की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला एक तरह से चीन के शिकंजे में है. 2010 में चीन ने अपने मछुआरों को गिरफ़्तार किए जाने पर पलटवार करते हुए, जापान को दुर्लभ खनिज तत्वों (REE) के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी. ज़ाहिर है कि चीन, बाज़ार पर अपने दबदबे का इस्तेमाल, अपने राष्ट्रीय हित के विरोधियों को दंडित करने से भी नहीं डरता है. इससे पहले से ही नाज़ुक आपूर्ति श्रृंखलाएं और भी अनिश्चित हो जाती हैं और भारत को अपनी इस निर्भरता को दूर करने के लिए आगाह करती हैं.
चीन के पास दुनिया का 8 प्रतिशत लिथियम भंडार है और वो अपने देश से बाहर भी इसकी खदानों और खनन को नियंत्रित करता है. इसमें लिथियम त्रिकोण वाले देश भी शामिल हैं.
लिथियम-आयन बैटरियां बनाने में जितनी चीज़ें लगती हैं, भारत लगभग उन सभी का आयात करता है. लिथियम-आयन बैटरियों की मांग में तेज़ी से बढ़ोत्तरी की वजह से 2022-23 वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों के दौरान भारत ने लिथियम से जुड़े 2.064 करोड़ डॉलर के सामान का आयात किया था. इन परिस्थितियों में रियासी में लिथियम के भंडार मिलने से स्थायित्व और स्वायत्तता की उम्मीदों को बल मिला है.
लिथियम खदान के विकास की चुनौतियां
हालांकि, केवल लिथियम के भंडार मिलना ही पर्याप्त नहीं है. इस क्षेत्र में अभी कई और चुनौतियों से निपटना होगा.
पर्यावरण
लिथियम के उत्पादन और इसकी साफ़-सफ़ाई से जुड़े ऐसे कई पहलू हैं, जो इसे स्वच्छ ईंधन के मामले में विरोधाभास की मिसाल बना देते हैं. लिथियम के खनन में बहुत संसाधन लगते हैं और इसको खदान से निकालकर साफ़ करने के दौरान, बहुत सा खनिज कचरा भी निकलता है, जो खदान के आस-पास के पानी और मिट्टी को प्रदूषित कर सकता है, जिससे स्थानीय निवासियों, खेती-बाड़ी और जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. रियासी ज़िले की ज़्यादातर आबादी ग्रामीण है. यहां काफ़ी हरियाली है और पहाड़ी के पास चेनाब नदी भी है. लिथियम के खनन से इन सबके लिए ख़तरा पैदा होगा. इसके अलावा, जम्मू और कश्मीर, पारिस्थितिकी के लिहाज़ से भी बेहद संवेदनशील है और ये सिस्मिक ज़ोन V में पड़ता है. इस दर्जे में आने वाले इलाक़ों में भूगर्भीय गतिविधियां सबसे ज़्यादा होती हैं. इन सब कारणों से रियासी से लिथियम निकालने के दौरान होने वाली औद्योगिक गतिविधियां बेहद जटिल और नाज़ुक काम बन जाता है.
तकनीकी
मई 2021 में भारत सरकार ने एडवांस केमिस्ट्री सेल भारत में बनाने के लिए 217.6 करोड़ डॉलर की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना को मंज़ूरी दी थी. हालांकि, आयात पर निर्भरता को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए, भारत को अपने यहां बैटरी में इस्तेमाल होने वाले लिथियम की रिफाइनिंग की क्षमता विकसित करनी होगी. इसके अलावा, भारत को ज़मीनी स्तर से इसका मूलभूत ढांचा और तकनीकी दक्षता का निर्माण करना होगा. उल्लेखनीय है कि रियासी में मिले लिथियम भंडारों का तुरंत इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. क्योंकि यहां की सख़्त चट्टानें, दक्षिण अफ्रीका में मिलने वाले खारे पानी से बिल्कुल अलग हैं. इससे लिथियम के खनन और उसको रिफाइन करने की चुनौती और लागत दोनों बढ़ जाती हैं, और इस मामले में अभी भारत को तजुर्बा नहीं है. अयस्कों को बैटरी ग्रेड वाले लिथियम में तब्दील करने के लिए उसको लिथियम हाइड्रोक्साइड में बदलना होगा और फिर लिथियम आयरन फास्फेट में, जो इलेक्ट्रिक बैटरी बनाने का एक महत्वपूर्ण तत्व है. इस बहुस्तरीय प्रक्रिया के लिए कई रासायनिक तत्वों, जैसे कि कोबाल्ट सल्फेट, निकेल, सल्फेट, और मैंगनीज सल्फेट को भी जुटाना होगा. ये काम बैटरी बनाने की दक्षता रखने वाली कंपनियों को करना होगा और भारत में अभी ऐसी कंपनियां नहीं हैं.
लिथियम के खनन और उसको रिफाइन करने की चुनौती और लागत दोनों बढ़ जाती हैं, और इस मामले में अभी भारत को तजुर्बा नहीं है.
सामाजिक
हो सकता है कि लिथियम की खदान, जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था नई उछाल देने वाली हो, जिसकी उसे सख़्त ज़रूरत है. क्योंकि राजनीतिक अस्थिरता और बार बार इंटरनेट बंद होने से जम्मू-कश्मीर में निवेश में गिरावट आई है. हालांकि, चिनाब नदी को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद, खदान का नियंत्रण रेखा के पास होना और धारा 370 हटाए जाने के बाद बदलते हुए हालात, इन भंडारों के दोहन को जटिल बना सकते हैं. आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद की एक शाखा, पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट पहले ही एक बयान जारी कर चुका है, जिसमें उसने भारत को इस भंडार का दोहन करने से रोकने की क़सम खाई है. वैसे तो पाकिस्तान ने अब तक रियासी ज़िले में लिथियम के भंडार मिलने पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है. लेकिन इनका बेशक़ीमती होना, भारत और पाकिस्तान के पहले से ही तनावपूर्ण चल रहे रिश्तों को और बिगाड़ सकता है, जिससे इन खदानों की सुरक्षा को ख़तरे में डालने वाली घटनाएं और बढ़ सकती हैं.
आगे का रास्ता
लिथियम की अपनी क्षमता विकसित करने के लिए भारत को दोहरी रणनीति की ज़रूरत है. एक तरफ़ तो उसे तकनीकी बाधाओं से पार पाना है. वहीं दूसरी ओर, उसको अपनी इन गतिविधियों के सामाजिक और पर्यावरण पर प्रभाव से भी निपटना है.
तकनीकी मामले में भारत को क्षमता के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है. ऑस्ट्रेलिया में भी लिथियम के वैसे ही सख़्त चट्टानों वाले भंडार हैं, जैसे रियासी ज़िले में मिले हैं. ऐसे में भारत की लिथियम के खनन की क्षमता विकसित करने में ऑस्ट्रेलिया से तकनीक हासिल करना एक अहम काम हो सकता है. भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच, क्रिटिकल मिनरल्स इन्वेस्टमेंट पार्टनरशिप है. इसके तहत दोनों देशों ने लिथियम और कोबाल्ट के खनन के लिए पांच लक्ष्य आधारित परियोजनाएं तय की हैं. इस साझेदारी को प्रोसेसिंग प्रक्रिया के मामले में आगे बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि दोनों ही देश चीन पर निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहे हैं.
लिथियम के स्रोतों का पक्के तौर पर पता लगाने से लेकर खदानों में से लिथियम निकालने के बीच, दस साल या इससे भी ज़्यादा का समय लग सकता है. फ़ौरी तौर पर कहें, तो भारत को 2030 के लक्ष्य हासिल करने के लिए अभी भी अहम खनिज तत्व जुटाने की एक रणनीति की दरकार है. ऐसा करने के लिए भारत, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना और चिली से अपने संबंध विकसित करने के साथ साथ, लिथियम-आयन बैटरियों को रिसाइकिल करने की क्षमता विकसित कर सकता है.
ये ज़रूरी है कि भारत इन क्षमताओं के विकास के साथ साथ, आर्थिक विकास और सामाजिक पर्यावरण संबंधी ज़िम्मेदारियों के बीच एक संतुलन भी बनाता चले. जलवायु के क्षेत्र में संवेदनशील प्रक्रियाओं में निवेश के लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के हितों के बीच तालमेल बैठाया ही जाना चाहिए. स्वच्छ ईंधन का निर्माण, पारिस्थितिकी की अक्षुण्णता के साथ समझौता या फिर समुदायों का विनाश करने की क़ीमत पर क़तई नहीं होना चाहिए. रियासी में मिले भंडार, आबादी वाले इलाक़ों में फैले हैं, जैसे कि सलाल गांव. खनन के लिए हज़ारों लोगों को उस जगह से हटाकर दूसरी जगह बसाना होगा. मूलभूत ढांचे के विकास की बड़ी परियोजनाओं, जैसे कि सलाल पनबिजली परियोजना के चलते रियासी के बाशिंदे पहले भी पर्यावरण के नकारात्मक असर को भुगत रहे हैं. इसलिए, सरकार के लिए ये ज़रूरी हो जाता है कि लिथियम की खदानों के आस-पास रह रहे समुदायों को न्यायोचित और सुरक्षित ढंग से दूसरी जगह पर ले जाकर बसाया जाए. भारत के अपने इतिहास में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसी कई मिसालें मिलती हैं, जिनको दोहराने से भारत को बचना चाहिए, ताकि स्थानीय लोगों का समर्थन और अनुपालन हासिल हो सके.
भारत अपने खनिज भंडारों की क्षमता के विकास के मामले में एक अहम मोड़ पर खड़ा है. लिथियम के घरेलू स्रोत पर नियंत्रण से भारत को स्थायित्व से जुड़े अपने वादे पूरे करने में मदद मिलेगी. वहीं इससे उसका तेल और दूसरी चीज़ों का आयात भी कम होगा. भारत को इस मौक़े का लाभ उठाने के लिए ख़ुद को तैयार करना चाहिए और इस मूल्यवान संसाधन का ज़िम्मेदारी से दोहन करने की मिसाल क़ायम करनी चाहिए. आज जब भारत अधिक हरे-भरे और ज़्यादा स्वतंत्र भविष्य की राह बना रहा है, तो उसे अपनी जनता और धरती की भलाई से समझौता किए बग़ैर, अपने सामरिक लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध रहना चाहिए.
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