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बढ़ते भौतिक और साइबर ख़तरों से समुद्री जलमार्गों को सुरक्षित रखने के लिए तालमेल बनाकर काम करने से ही हम वैश्विक आपूर्ति शृंखला को सुरक्षित रख सकते हैं.
Image Source: Getty Images
यह लेख ‘सागरमंथन एडिट 2025’ निबंध शृंखला का हिस्सा है.
दुनिया का ज़्यादातर व्यापार समुद्रों के रास्ते होता है, लेकिन अब यही रास्ते डकैती, तस्करी और साइबर हमलों से घिरे हैं. बढ़ते ख़तरों के बीच संयुक्त राष्ट्र ने फिर समुद्री सुरक्षा पर चर्चा शुरू की है. सवाल यह है कि क्या दुनिया अपने जलमार्गों को सुरक्षित रख पाएगी और वैश्विक व्यापार को बचा सकेगी?
इस साल समुद्री सुरक्षा और वैश्विक समुद्री व्यापार मार्गों की रक्षा का मसला फिर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एजेंडे में आ गया है. मई 2025 में यूनान द्वारा बुलाई गई एक उच्च-स्तरीय बहस में महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने चेतावनी दी कि महासागरों के सामने चुनौतियां बढ़ रही हैं; गिनी की खाड़ी में डकैती, भूमध्यसागर में तस्करी, लाल सागर में हुतियों के हमले और सोमालिया के पास अस्थिरता का फिर बढ़ना, इनसे ख़तरों में लगातार वृद्धि हो रही है. इसी तरह, अगस्त में अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के महासचिव आर्सेनियो डोमिंग्वेज़ ने भी पनामा द्वारा आयोजित खुली बहस में कहा था कि ‘जल-परिवहन के सामने हमेशा ख़तरे बने रहते हैं.’
2023 के बाद से, लाल सागर में जहाज़ों पर 200 से ज़्यादा मिसाइल और ड्रोन हमले हुए हैं, जिस कारण माल परिवहन में 50 फ़ीसदी की कमी आई है और मिस्र को हर महीने करीब 80 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक़सान हो रहा है. अकेले 2024 में, समुद्री डकैती व हथियारों के बल पर लूट-पाट की लगभग 150 घटनाएं दर्ज़ की गईं और 126 नाविकों को बंधक बनाया गया, जिनका अक्सर ‘राजनीतिक मोलभाव’ के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है. संगठित अपराध, डकैती, हथियारों की तस्करी, राज्य प्रायोजित असामाजिक तत्व, विभिन्न देशों के आपसी तनाव, मानव तस्करी और प्रवासी तस्करी जैसे मामले समुद्री क्षेत्र में लगातार चुनौतियां बढ़ा रहे हैं. दुनिया के कुछ सबसे महत्वपूर्ण जलमार्गों में ये अपराध खूब होने लगे हैं.
इन भौतिक ख़तरों के अलावा, समुद्री क्षेत्र उन गंभीर साइबर हमलों व घटनाओं से भी जूझ रहे हैं, जो विभिन्न देशों या गैर-राज्य तत्वों द्वारा संचालित हैं. ऐसा माना जाता है कि किसी समुद्री संगठन पर साइबर हमले में औसतन 5.5 लाख डॉलर से अधिक का नुक़सान होता है. यहां काम करने वाले पेशेवरों को उम्मीद है कि साइबर घटनाओं की संख्या न सिर्फ़ बढ़ती रहेगी, बल्कि उनमें कई गुना की वृद्धि होगी. क्षेत्रीय तनावों और भू-राजनीतिक दुश्मनी के कारण इन भौतिक और साइबर चुनौतियों में बढ़ोतरी होती है, जिसका सीधा असर वैश्विक व्यापार पर पड़ता है. इनसे न सिर्फ़ लागत बढ़ रही है, बल्कि मालों की ढुलाई प्रभावित हो रही है और आपूर्ति शृंखला कमज़ोर पड़ रही है.
क्षेत्रीय तनावों और भू-राजनीतिक दुश्मनी के कारण इन भौतिक और साइबर चुनौतियों में बढ़ोतरी होती है, जिसका सीधा असर वैश्विक व्यापार पर पड़ता है. इनसे न सिर्फ़ लागत बढ़ रही है, बल्कि मालों की ढुलाई प्रभावित हो रही है और आपूर्ति शृंखला कमज़ोर पड़ रही है
भले ही समुद्री क्षेत्र को सुरक्षा के लिहाज़ से मज़बूत माना जाता है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की दो बैठकों से बेचैनी का माहौल बन गया है. नीति-निर्माताओं, जहाज़ मालिकों और सरकारों का हिसाब सीधा है- वे मानते हैं कि समुद्री सुरक्षा के बिना, वैश्विक सुरक्षा और स्थिरता नहीं आ सकती. आखिर, 90 फ़ीसदी के करीब अंतरराष्ट्रीय व्यापार समुद्री रास्तों से ही होते हैं, और माना यही जाता है कि 1,10,000 जहाज़ और 20 लाख से ज़्यादा नाविक ही दुनिया की अर्थव्यवस्था चला रहे हैं. कुल मिलाकर, अगर समुद्री रास्ते सुरक्षित नहीं हैं, तो वैश्विक आपूर्ति शृंखला के बाधित होने का ख़तरा बना रहेगा.
अच्छी बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक बार फिर समुद्री सुरक्षा पर चर्चा हो रही है. सरकारों में इन ख़तरों से निपटने की प्रतिबद्धता बहुत महत्वपूर्ण है. कुछ देशों के बीच दक्षिण चीन सागर, लाल सागर या काला सागर में तनाव के बावजूद, ख़तरों के पैमानों, कार्रवाई करने की ज़रूरत और मिलकर काम करने की अहमियत पर मोटे तौर पर सभी पक्षों में सहमति बनी हुई है. संयुक्त राष्ट्र की बैठकों में कई अहम सुझाव भी दिए गए, जिनमें सरकारों ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने, कानून लागू करने वाली एजेंसियों के बीच ज़्यादा तालमेल बनाने, ज़रूरी क्षमता निर्माण करने, बेहतर उपायों को अपनाने और नई तकनीक पर ज़्यादा ज़ोर देने की वकालत की.
हालांकि, समुद्री ख़तरों का मुकाबला करने और किसी भी कमी को दूर करने के लिए उच्च-स्तरीय प्रतिबद्धता तब तक मायने नहीं रखेगी, जब तक उनको असरदार रूप से लागू नहीं किया जाएगा. इसके लिए साफ़ तौर पर, सरकारों और उनके सुरक्षा बलों को मिलकर काम करना होगा. कथनी को करनी में बदलने के लिए निजी सहयोग बढ़ाने, ख़ासकर जहाज़ मालिकों, कार्गो मालिकों, जहाज़ को पंजीकृत करने वाले देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों, बीमा कंपनियों और निजी सुरक्षा एजेंसियों की भागीदारी की ज़रूरत होगी. महत्वपूर्ण समुद्री जलमार्गों को सुरक्षित रखने और वैश्विक व्यापार के मुख्य रास्तों की हिफ़ाज़त करने के लिए अब ठोस रणनीति बनाने पर ध्यान देना ही होगा.
इसके साथ ही, विभिन्न स्तरों पर रक्षा व सुरक्षा पर ध्यान देते हुए कई तरीक़ों से ख़तरे को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आपसी सहयोग बनाया जाना चाहिए. नौसेना की निगरानी, क्षेत्रीय समझौते, निजी सुरक्षा कंपनियों द्वारा संचालित जहाज़ और बंदरगाहों पर मज़बूत सुरक्षा व्यवस्था के बीच तालमेल बनाना होगा, साथ ही निगरानी बढ़ानी होगी, नियम-कानून बेहतर बनाने होंगे और कोई रुकावट होते ही आकस्मिक योजनाएं बनानी होंगी. असुरक्षा के कारणों पर, फिर चाहे वे असुरक्षा सामाजिक हों, आर्थिक या फिर आपराधिक, गहरे शोध-कार्यों को बढ़ावा देना होगा और इस मामले में विशेषज्ञ संस्थानों से सहायता ली जानी चाहिए.
बिल्कुल. एक दशक पहले, निजी समुद्री सुरक्षा कंपनियां अदन की खाड़ी से गुज़रने वाले जहाज़ों की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाती थीं. जहाज़ों की सुरक्षा में तैनात टीमें और हथियारों से लैस सुरक्षा बलों ने सोमालिया के पास जहाज़ों की हाईजैकिंग को कम करने में मदद की है. आज, इन कंपनियों में उन महत्वपूर्ण रास्तों पर भी सुरक्षा देने की पूरी क्षमता है, जहां नौसेना की तरफ से ज़रूरी मदद नहीं मिल पा रही है. हालांकि, उनकी भूमिका को ध्यान से तय करना होगा. उनकी तैनाती अंतरराष्ट्रीय मानदंडों, निगरानी और अनुबंध की शर्तों के अनुसार होनी चाहिए. इतना ही नहीं, निजी समुद्री सुरक्षा कंपनियां कानून का पालन करें, मानवाधिकारों का सम्मान करें और शिकायतों को दूर करने का प्रभावी तंत्र बनाएं, इसके लिए इंटरनेशनल कोड ऑफ़ कंडक्ट एसोसिएशन (ICoCA) का सर्टिफिकेशन और निगरानी सिस्टम द्वारा तय व्यवस्था का लाभ उठाना चाहिए. प्रशिक्षण, जांच, बल प्रयोग के नियम और तैरते शस्त्रागार का प्रशासन जैसे मसले समुद्री सुरक्षा की बुनियादी ज़रूरते हैं, मगर बातचीत को और आगे बढ़ाना ही होगा.
सुरक्षा से जुड़े कोई भी उपाय इंसानों की ज़रूरतों के हिसाब से तय होने चाहिए. जहाज़ों पर काम करने वाले नाविकों और सुरक्षाकर्मियों के लिए कामकाज की स्थिति अच्छी बननी चाहिए. उनके साथ अनुबंध होना चाहिए और सही बर्ताव किया जाना चाहिए.
सुरक्षा से जुड़े कोई भी उपाय इंसानों की ज़रूरतों के हिसाब से तय होने चाहिए. जहाज़ों पर काम करने वाले नाविकों और सुरक्षाकर्मियों के लिए कामकाज की स्थिति अच्छी बननी चाहिए. उनके साथ अनुबंध होना चाहिए और सही बर्ताव किया जाना चाहिए. जिस तरह समुद्री श्रम कन्वेंशन ने नाविकों की सुरक्षा तय की है, उसी तरह के नियम निजी सुरक्षाकर्मियों पर भी लागू होने चाहिए. उनकी कानूनी स्थिति की पहचान करने, सही रोज़गार उपलब्ध कराने, स्वास्थ्य व सुरक्षा मानकों का प्रयोग करने, शिकायत निवारण तंत्र जैसी व्यवस्थाएं बनाने का कोई विकल्प नहीं है, बल्कि इसे अनिवार्य तौर पर लागू किया जाना चाहिए. यह समझना होगा कि कारोबार को सुरक्षित रखने वाले लोगों की रक्षा करना, खुद व्यापार की रक्षा करने से अलग नहीं है.
संयुक्त राष्ट्र की बहसों से एक बात साफ़ हो गई कि समुद्री सुरक्षा पर ख़तरे असली, जटिल और टाले न जा सकने योग्य हैं. मगर उनसे निपटने की रणनीति भी हम बना सकते हैं. दुनिया के महत्वपूर्ण जलमार्गों को सुरक्षित करके अंतरराष्ट्रीय समुदाय वैश्विक आपूर्ति शृंखला में आर्थिक मज़बूती ला सकता है.
बेशक, समुद्री सुरक्षा कानूनी, तकनीकी और भू-राजनीतिक मसला है, लेकिन यह सबसे बढ़कर इंसानों से जुड़ा है. यह ज़िंदगी बचाने, व्यापार के टिकाऊ बनाने और विश्व अर्थव्यवस्था को सुचारू बनाए रखने से जुड़ा है. दूरदर्शिता, सहयोग और निजी सुरक्षा के साथ ज़िम्मेदारीपूर्ण तालमेल बनाकर दुनिया के महत्वपूर्ण जलमार्गों को सुरक्षित किया जा सकता है और बढ़ते ख़तरों के खिलाफ वैश्विक आपूर्ति शृंखला को मज़बूत बनाया जा सकता है.
(जेमी ए. विलियमसन इंटरनेशनल कोड ऑफ़ कंडक्ट एसोसिएशन (ICoCA) के कार्यकारी निदेशक हैं.)
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Jamie A. Williamson is Executive Director at the International Code of Conduct Association (ICoCA). ...
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