इक्वेटोरियल गिनी में इस वक़्त मारबर्ग वायरस डिज़ीज़ (MVD) का संक्रमण फैला हुआ है. इस बीमारी ने एक बार फिर सार्वजनिक स्वास्थ्य के उसनज़रिए की अहमियत को उजागर किया है, जिसे ‘वन हेल्थ’ कह सकते हैं और अब संक्रामक बीमारियों का मुक़ाबला करने के लिए सामूहिक प्रयासों की ज़रूरत और भी स्पष्ट हो गई है. MVD से संक्रमित लोगों की मृत्यु दर लगभग 50 प्रतिशत है, जिस पर पूरी दुनिया को ग़ौर करना चाहिए. इस संक्रामक बीमारी के प्रकोप के बाद, विश्व स्वास्थ्य संगठन के रिसर्च एवं विकास के ब्लूप्रिंट ने एक अविलंब बैठक बुलाई, जिससे इस महामारी के प्रकोप के हिसाब से रिसर्च की प्राथमिकताएं तय की जा सके. ये बीमारी छोटे मोटे स्तर पर 1967 से ही सिर उठाती आई है और इससे लोगों की जानें भी गई है. फिर भी अब तक MVD का न तो कोई ख़ास इलाज ढूंढा गया है और न ही इसका टीका विकसित किया जा सका है. (Figure 1) इसके अतिरिक्त, इससे प्रभावित आबादी एक नाज़ुक स्वास्थ्य व्यवस्था के भीतर रहती है, जिससे दुनिया के अन्य देशों की जनता के स्वास्थ्य के लिए ख़तरा और भी बढ़ जाता है. उदाहरण के तौर पर इबोला वायरस के प्रकोप के दौरान, मरीज़ की देखरेख की राह में आने वाली बाधाओं पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार इसके लिए संसाधन और कामगारों का अभाव है. Mpox और MVD जैसे सेहत के ख़तरों से स्वास्थ्य व्यवस्था को मज़बूत बनाने के लिए, वैश्विक समुदाय एक महामारी संधि पर वार्ता कर रहा है, जो भविष्य में आने वाली महामारियों के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौता होगा.
MVD से संक्रमित लोगों की मृत्यु दर लगभग 50 प्रतिशत है, जिस पर पूरी दुनिया को ग़ौर करना चाहिए. इस संक्रामक बीमारी के प्रकोप के बाद, विश्व स्वास्थ्य संगठन के रिसर्च एवं विकास के ब्लूप्रिंट ने एक अविलंब बैठक बुलाई, जिससे इस महामारी के प्रकोप के हिसाब से रिसर्च की प्राथमिकताएं तय की जा सके.
[caption id="attachment_119276" align="aligncenter" width="660"] Figure 1: Timeline of MVD outbreak.
C: number of cases; D: number of deaths; DRC: Democratic Republic of Congo[/caption]
मारबर्ग वायरस बीमारी के प्रकोप ने उभरती हुई और बार बार उभरने वाली संक्रामक बीमारियों से निपटने के लिए आपसी तालमेल से साझा प्रयास करने की महत्ता को उजागर किया है. वैज्ञानिक कहते है कि चार में से तीन नई बीमारियां दूसरे जानवरों से होते हुए इंसानों तक पहुंचती है. इन बीमारियों का मुक़ाबला करने के लिए इंटीग्रेटेड वेक्टर मैनेजमेंट (IVM) मॉडल जैसे उपायों के साथ सबूतों पर आधारित निर्णय प्रक्रिया, तरफ़दारी, क्षमता निर्माण और आपसी सहयोग के महत्वपूर्ण तत्वों पर ध्यान देना आवश्यक है, जिससे संक्रमण पर क़ाबू पाने के उपाय लागू किए जा सके. मिसाल के तौर पर मार्गबर्ग वायरस के संक्रमण के लिए मुख्य रूप से रूसेटस एजिप्टिएकस नाम की चमगादड़ों की एक प्रजाति ज़िम्मेदार है. ये चमगादड़ वायरस का भंडार होते हैं और इनके बारे में ये मालूम है कि इनके नज़दीकी संपर्क में आने से वायरस इंसानों तक पहुंच जाता है. इसके लिए IVM मॉडल अपनाकर वाहक जीव यानी चमगादड़ की आबादी को निशाना बनाया जा सकता है. मतलब ये कि उनके रहने के ठिकानों को अलग थलग किया जाए या फिर उनकी आबादी पर क़ाबू पाने के लिए जैविक उपाय अपनाए जाएं. ऐसे उपायों से चमगादड़ों और इंसानों के बीच वायरस के संक्रमण के चक्र को तोड़ा जा सकता है. इसी तरह, संक्रमण का प्रकोप फैलने से रोकने और इसके दोबारा उभरने के जोखिम को कम करने के लिए सबूतों के संश्लेषण और रिसर्च में सहयोग और नियंत्रण पाने के उपायों को बनाए रखने जैसे क़दम उठाने आवश्यक है. मारबर्ग वायरस के संक्रमण के प्रसार के आयाम को और बेहतर ढंग से समझने के लिए निगरानी के आंकड़ों के एकीकरण की ज़रूरत है. इससे हमें भविष्य में संक्रमण फैलने से रोकने के लिए लक्ष्य आधारित उपाय लागू करने में सहयोग मिलेगा.
इसके अलावा, ऐसे संक्रमणों के शिकार होने वाले लोगों की आवाज़ को भी ताक़तवर बनाना ज़रूरी है. इनमें स्वास्थ्य कर्मचारी, संक्रमित समुदाय और हाशिए पर पड़े तबक़े शामिल है. ये काम सामुदायिक संवाद और अंतर्क्षेत्रीय समन्वय के माध्यम से किया जा सकता है. मिसाल के तौर पर स्वास्थ्य मंत्रालय (MoH), विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिका के डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के केंद्रों और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने आपस में मिलकर इस संक्रमण पर क़ाबू पाने और भविष्य में इसका प्रकोप रोकने के लिए निगरानी में सहयोग, समुदाय से संवाद, मरीज़ों की देखरेख और इलाज, प्रयोगशाला की सेवाएं, संपर्क में आए लोगों का पता लगाने, संक्रमण नियंत्रित करने और संसाधनों के ज़रिए मदद एवं प्रशिक्षण के साथ सुरक्षित दफ़नाने के तरीक़े बताने जैसे उपाय किए गए है. इसका एक और असरदार तरीक़ा ये हो सकता है कि हमारी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में मौजूद संरचनात्मक असमानताओं को दूर किया जाए. इसमें स्वास्थ्य सेवा तक असमान पहुंच, जन स्वास्थ्य के कार्यक्रमों को कम पूंजी देने और आबादी के अनुपात में स्वास्थ्य सेवा का अपर्याप्त मूलभूत ढांचे का अभाव शामिल है.
लगातार उभर रही और उभरती संक्रामक महामारियों ने हमें याद दिलाया है न तो ये पहली महामारी है और न ही आख़िरी. इसीलिए, अब वक़्त आ गया है कि वैश्विक स्वास्थ्य के लिए एक मज़बूत बहुपक्षीय व्यवस्था खड़ी की जाए, जो समावेशी, समतामूलक और निष्पक्ष हो.
इसके अतिरिक्त मारबर्ग वायरस बीमारी ने वैश्विक स्वास्थ्य के ख़तरों से निपटने के लिए महामारी संधि की अविलंब आवश्यकता को उजागर किया है. महामारी संधि एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय समझौता है, जिसका लक्ष्य, तमाम देशों के बीच अधिक सहयोग और समन्वय के माध्यम से वैश्विक स्वास्थ्य के ख़तरों से निपटना है. इन चुनौतियों का सामना करने के लिए ये एक आवश्यक संसाधन है क्योंकि इससे सुनिश्चित होगा कि भविष्य की स्वास्थ्य की आपात स्थितियों के दौरान सभी देशों के पास आवश्यक संसाधन, औज़ार और विशेषज्ञता होगी कि वो उन आपातकालीन स्थितियों से असरदार ढंग से निपट सके. इस संधि में भविष्य के स्वास्थ्य संकटों से निपटने की तैयारी और प्रतिक्रिया की एक रूपरेखा भी तैयार करेगी. जिससे सूचना साझा करने को बढ़ावा दिया जाएगा और सभी देशों के बीच टीकों और अन्य मेडिकल संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित किया जा सकेगा. महामारी संधि से हाशिए पर पड़े तबक़ों और संक्रामक बीमारी के प्रकोप के सबसे ज़्यादा शिकार हुए लोगों की आवाज़ बुलंद की जा सकेगी. निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनको शामिल करने को प्राथमिकता देकर ये संधि ये सुनिश्चित कर सकती है कि महामारी की सूरत में उससे निपटने के उपाय लक्ष्य आधारित, असरदार और समान हों.
आगे की राह
कोविड-19 महामारी ने तो संकट की एक झलक ही दिखाई है और इसने कोविड से पहले की स्वास्थ्य व्यवस्था की कमज़ोरियों को उधेड़ कर रख दिया है. महामारी संधि ये स्वीकार करती है कि महामारियां समुदायों के बीच ही पैदा होती और ख़त्म होती हैं, और कोई भी इंसान तब तक सुरक्षित नहीं है, जब तक सभी सुरक्षित न हों. वैसे तो महामारी का ज़ीरो ड्राफ्ट निर्देश देता है कि ट्रायल, संसाधनों तक पहुंच के मामले में अधिक समन्वय और समतावादी हो, और प्रशासन के हर स्तर पर तेज़ी से जानकारी देने और पारदर्शिता रखने को केंद्र में रखा जाए. इसके अलावा, महामारी संधि में मक़सद के लिए सही होने का पता लगाने के अधिक परीक्षण करने का निर्देश हो और रिसर्च की बर्बादी से भी बचने का प्रयास होना चाहिए. लगातार उभर रही और उभरती संक्रामक महामारियों ने हमें याद दिलाया है न तो ये पहली महामारी है और न ही आख़िरी. इसीलिए, अब वक़्त आ गया है कि वैश्विक स्वास्थ्य के लिए एक मज़बूत बहुपक्षीय व्यवस्था खड़ी की जाए, जो समावेशी, समतामूलक और निष्पक्ष हो. अब ये सवाल तो बनता है कि क्या महामारी संधि मौजूदा स्वास्थ्य व्यवस्था के मुद्दे पर्याप्त रूप से हल कर पाने में सक्षम होगी, और देशों को लोचदार भविष्य के लिए तैयार कर सकेगी?
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