मालदीव के चुनाव आयोग के अध्यक्ष फ़ुवाद तौफ़ीक़ ने अपने इस सीमित बयान से विपक्षी खेमे में हलचल मचा दी है कि इस बात की ‘काफ़ी संभावना’ है कि जेल में बंद PPM-PNC के नेता अब्दुल्ला यामीन को दिसंबर के आख़िर में रिश्वतखोरी एवं मनी लॉन्ड्रिंग के दूसरे मामले में मिली 11 साल की सज़ा को लेकर अगर उच्च अदालतें फ़ैसला नहीं देती हैं तो उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति मिल सकती है. ये बयान चुनाव आयोग की उस घोषणा के बाद आया है जिसके अनुसार मालदीव के 2,83,000 मतदाताओं में से 42 प्रतिशत किसी राजनीतिक पार्टी के साथ नहीं जुड़े हैं. ऐसे में फ़ुवाद के बयान के बाद इस्लामिक उपवास के महीने रमज़ान (22 मार्च-21 अप्रैल) के आख़िर में बड़ा राजनीतिक अभियान भी शुरू हो सकता है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि सत्ताधारी MDP गठबंधन की सहयोगी जम्हूरी पार्टी (JP) ने भी मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह के ख़िलाफ़ उम्मीदवार उतारने का एलानकिया है.
2008 के संविधान के अनुच्छेद 109 (एफ) के तहत किसी उम्मीदवार को राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए 12 महीने से ज़्यादा की सज़ा पूरी होने के बाद तीन साल बीत जाने चाहिए. यही नियम राष्ट्रपति से मिली माफ़ी के मामले में भी लागू होता है.
2008 के संविधान के अनुच्छेद 109 (एफ) के तहत किसी उम्मीदवार को राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए 12 महीने से ज़्यादा की सज़ा पूरी होने के बाद तीन साल बीत जाने चाहिए. यही नियम राष्ट्रपति से मिली माफ़ी के मामले में भी लागू होता है. यामीन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें एक केस में बरी किया है जबकि पांच साल की एक सज़ा के ख़िलाफ़ उनकी अपील हाई कोर्ट में लंबित है. तीसरे केस में ट्रायल की प्रक्रिया पहले के एक केस की तरह आपराधिक कोर्ट में धीरे-धीरे चल रही है. अगर चुनाव आयोग के प्रमुख की टिप्पणी सही है तो इसका ये मतलब है कि ट्रायल कोर्ट के फ़ैसले को लेकर अपील के दौरान भी राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के यामीन के अधिकार में कोई अड़चन नहीं आएगी.
हालांकि, चुनाव आयोग के अध्यक्ष ने ये सफ़ाई दी कि अगर यामीन अपना नामांकन दायर करते हैं तो उन्हें इस पर निर्णय लेने से पहले क़ानूनी सलाह लेने की ज़रूरत है. मालदीव में ऐसे मामलों का पहले से कोई उदाहरण नहीं है लेकिन राष्ट्रमंडल देशों में इससे मिलते-जुलते हालात पैदा हुए हैं. उदाहरण के तौर पर भारत में बीआर कपूर बनाम तमिलनाडु सरकार यानी जयललिता केस में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि अगर अपील की प्रक्रिया के दौरान ज़मानत मिल भी जाती है तो वो केवल सज़ा पर लागू होगी और जब तक अंतिम फ़ैसला नहीं आता है, तब तक दोष पर ये लागू नहीं है.
यामीन-सोलीह गुट
यामीन का खेमा फुवाद तौफ़ीक़ की 'काफ़ी संभावना' वाली टिप्पणी को लेकर उत्साह में है. यामीन के राजनीतिक सहयोगी उनकी रिहाई के लिए समय-समय पर प्रदर्शन शुरू कर रहे हैं. अब वो उनके कारावास को 'हाउस अरेस्ट' में बदलवाना चाहते हैं जैसा कि पिछले केस में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा उन्हें बरी करने से पहले हुआ था. अपनी तरफ़ से यामीन के बड़े-बड़े वक़ीलों की टीम ने उच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार संशोधित अपील दायर की है और वो इस पर जल्द सुनवाई की उम्मीद कर रहे हैं. वैसे राजनीति से भरे भ्रष्टाचार विरोधी आयोग (एंटी-करप्शन कमीशन या ACC) ने सरकारी वक़ील को मनी लॉन्ड्रिंग के एक केस में यामीन के समय के रक्षा मंत्री मेजर जनरल मूसा अली जलील (रिटायर्ड) के ख़िलाफ़ कार्रवाई की सलाह दी है. हालांकि उन्होंने तुरंत ही अपने ख़िलाफ़ आरोपों से इनकार किया.
इनकार के बावजूद सोलिह गुट उस वक़्त नाउम्मीद हुआ जब जम्हूरी पार्टी की परिषद ने पार्टी सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के फ़ैसले को मंज़ूरी दी. ख़बरों के मुताबिक़ ये निर्णय पर्दे के पीछे परिषद को प्रभावित करने की कोशिशों के नाकाम होने के बाद लिया गया. वैसे तो जम्हूरी पार्टी के सम्मेलन के दौरान पार्टी के द्वारा समर्थित उप राष्ट्रपति फ़ैसल नसीम मौजूद नहीं रहे और इस तरह उन्होंने राष्ट्रपति सोलिह के साथ अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया लेकिन राष्ट्रपति के कार्यालय में एक जूनियर मंत्री अहमद समीर ने फ़ैसले के बाद पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया. उन्होंने पार्टी के नेतृत्व को इस बात के लिए मनाने की कोशिश की कि वो राष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़े लेकिन नाकाम रहे. इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि जम्हूरी पार्टी के नेता क़ासिम इब्राहिम फ़ैसले को मोड़ने के लिए 2008 और 2013 में वांछित पहले राउंड के 'ट्रांसफर होने वाले' वोट को सुपुर्द करने के बाद तीसरी बार राष्ट्रपति का चुनाव लड़ेंगे.
वैसे तो जम्हूरी पार्टी के सम्मेलन के दौरान पार्टी के द्वारा समर्थित उप राष्ट्रपति फ़ैसल नसीम मौजूद नहीं रहे और इस तरह उन्होंने राष्ट्रपति सोलिह के साथ अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया लेकिन राष्ट्रपति के कार्यालय में एक जूनियर मंत्री अहमद समीर ने फ़ैसले के बाद पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया.
सोलिह खेमे का दावा उचित है क्योंकि सरकार सत्ताधारी गठबंधन में राष्ट्रपति पद के दो उम्मीदवारों के साथ काम नहीं कर सकती. सोलिह की टीम जम्हूरी पार्टी के मंत्रियों से पद छोड़ने की मांग कर रही है जबकि क़ासिम मुंहतोड़ जवाब देते हुए कह रहे हैं कि मंत्रियों के बदले राष्ट्रपति को पद छोड़ना चाहिए क्योंकि जिस गठबंधन ने उन्हें चुना अब वो अस्तित्व में नहीं है. इस मुद्दे का समाधान होने से पहले क़ासिम इब्राहिम की पत्नी और परिवहन मंत्री एशथ नहुला ने एक सरकारी कार्यक्रम के दौरान अलग-अलग द्वीपों में ‘विकास की कोशिशों’ को लेकर राष्ट्रपति सोलिह की तारीफ़ की और इस तरह उन्होंने पार्टी के कार्यकर्ताओं तक एक मिला-जुला संकेत भेजा.
जम्हूरी पार्टी का असमंजस यामीन की उम्मीदवारी को लेकर चुनाव आयोग के प्रमुख की घोषणा के बाद और बढ़ गया है. इससे सोलिह विरोधी वोट में बंटवारे की उम्मीद है जबकि ख़बरों के मुताबिक़ MDP के अध्यक्ष और संसद के स्पीकर मोहम्मद नशीद सोलिह विरोधी मतों को एकजुट करने में लगे हुए थे. राष्ट्रपति की उम्मीदवारी के लिए MDP की प्राइमरी में सोलिह से हार के बाद नशीद ने पिछले दिनों संसद में कहा था कि वो सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतरने को तैयार हैं. दूसरी तरफ़ सोलिह ने जम्हूरी पार्टी के निर्णय को लेकर चर्चा के लिए संसद में अपने समर्थकों से मुलाक़ात की. ख़बरों के मुताबिक़ इस बैठक में 87 में से 50 सांसद मौजूद थे. MDP के कुल मिलाकर 65 सांसद हैं और सोलिह की बैठक में मौजूद सांसदों में सहयोगी दलों के सांसद भी हो सकते हैं. सोलिह के सहयोगी कह रहे हैं कि वो जम्हूरी पार्टी के समर्थन के बिना भी दूसरा कार्यकाल हासिल करेंगे. इस तरह के बयान की शुरुआत MDP के संसदीय दल के नेता मोहम्मद असलम ने की.
ज़बरदस्त उतार-चढ़ाव
चुनाव आयोग के अध्यक्ष फुवाद की ये घोषणा कि मतदाताओं की एक बड़ी संख्या किसी पार्टी से नहीं जुड़ी है, चुनाव प्रचार के दौरान अवश्यंभावी तनाव में और बढ़ोतरी करती है. अतीत के राष्ट्रपति चुनावों में औसत 90 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया है लेकिन इस तरह की उम्मीदें 2021 में हुए देशव्यापी स्थानीय निकाय चुनाव में कम मतदान से फीकी पड़ गई हैं. मिसाल के तौर पर राजधानी माले में देश की कुल जनसंख्या में से एक-तिहाई लोग रहते हैं लेकिन यहां कुछ जगहों पर मतदान प्रतिशत 20 तक ही था और इस बात को लेकर बेचैनी है कि मतदाताओं की उदासीनता का एक बड़ा कारण कोविड रिकवरी की धीमी रफ़्तार से ज़्यादा लोगों का सामान्य मोहभंग है.
मालदीव में बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाए जाने के बाद से हुए राष्ट्रपति चुनाव में एक राजनीतिक विचारधारा से दूसरी विचारधारा तक ज़बरदस्त उतार-चढ़ाव देखा गया है. 2008 और 2013 के पहले दो चुनाव में मतदान दो चरणों में हुए. 2018 में MDP की अगुवाई वाले गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर सोलिह ने पहली बार देश में पहले चरण के मतदान में ही जीत हासिल करने का रिकॉर्ड बनाया. तत्कालीन राष्ट्रपति यामीन के ख़िलाफ़ सोलिह को सबसे ज़्यादा 58 प्रतिशत वोट मिले. वैसे यामीन को मिले 42 प्रतिशत वोट भी कोई कम बड़ी उपलब्धि नहीं थी, विशेष रूप से तब जब उन्होंने ख़ुद को मिले वोट का अधिकतर हिस्सा बनाए रखा.
अभी तक राष्ट्रपति सोलिह और सेना से रिटायर कर्नल मोहम्मद नाज़िम, जिनके नये दल मालदीव नेशनल पार्टी (MNP) ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित किया है, राष्ट्रपति चुनाव के मुक़ाबले में हैं जबकि यामीन की उम्मीदवारी क़ानूनी अधर में लटकी हुई है.
यामीन की उम्मीदवारी को लेकर चुनाव आयोग के अध्यक्ष की सकारात्मकता से अलग इस मामले में चुनाव आयोग का अंतिम निर्णय ही PPM-PNC गठबंधन का फ़ैसला निर्धारित करेगा. अगर यामीन की उम्मीदवारी को ठुकरा दिया जाता है तो वो फुवाद के मौजूदा बयान का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं. इस मामले में पुरानी बातें याद की जा सकती हैं जब फुवाद तौफ़ीक़ की अध्यक्षता में चुनाव आयोग एक बार सुप्रीम कोर्ट से लगभग भिड़ गया था. हालांकि उस वक़्त सुप्रीम कोर्ट की जीत हुई थी. यामीन 2013 में विवादित चुनाव में राष्ट्रपति बने थे जिसमें उन्होंने दूसरे चरण के दौरान सबसे कम वोट से MDP के नशीद को हराया था.
अपने दम पर प्रहार
पिछली बार तत्कालीन राष्ट्रपति यामीन के ख़िलाफ़ साझा उम्मीदवार उतारने के लिए रणनीति बनाने वाले, वो भी UK में राजनीतिक पनाह में रहकर, स्पीकर नशीद इस बार यामीन और क़ासिम के खेमे को साथ लाने के लिए काम कर रहे हैं. ऐसा करने से पहले उन्होंने अपने समर्थकों की मंज़ूरी हासिल कर ली है. इस बार वो सोलिह के ख़िलाफ़ अलग-अलग पार्टियों को एकजुट कर रहे हैं, वो सोलिह जो उनके बचपन के दोस्त थे और जिनका उन्होंने राजनीति में मार्गदर्शन किया. लोगों का आम तौर पर मानना है कि जब सोलिह ने पार्टी और सरकारी की नीतियों एवं कार्यक्रमों को लेकर ख़ुद फ़ैसले लेने शुरू कर दिए तो दोनों के रास्ते अलग हो गए. उधर नशीद का नाम लिए बिना सोलिह ने उनके राजनीतिक बर्ताव में विरोधाभासों के बारे में बताना शुरू कर दिया है. सोलिह के मुताबिक़ नशीद ने पहले तो किसी भी गठबंधन में MDP के बने रहने का विरोध किया और अब वो पार्टी के ख़िलाफ़ गठबंधन बनाने का काम कर रहे हैं.
उधर यामीन गुट ने ख़ुद को साझा चिंता के मुद्दों पर जम्हूरी पार्टी और MDP के नशीद खेमे के साथ काम करने के प्रस्ताव तक सीमित किया है. अभी कोई भी विपक्ष के साझा उम्मीदवार को लेकर बात नहीं कर रहा है. इससे पहले MRM के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति मामून अब्दुल गयूम के बेटे फारिस मामून ने जम्हूरी पार्टी के द्वारा सितंबर के चुनाव में लड़ने के फ़ैसले के बाद क़ासिम से मुलाक़ात की. हालांकि, बाद में गयूम ने राष्ट्रपति से भी मुलाक़ात की. सोलिह खेमे के अनुसार MRM विस्तार से बातचीत के लिए एक समिति का गठन कर रही थी. MRM अब बुरी स्थिति में है जबकि पूर्व राष्ट्रपति गयूम जब 2008 में MDP के नशीद से राष्ट्रपति का चुनाव हारे थे तो उन्हें 46 प्रतिशत वोट मिले थे. माना जाता है कि गयूम के ज़्यादातर वोटर उनके सौतेले भाई यामीन के पास चले गए जिनके साथ उनका विवाद है.
अभी तक राष्ट्रपति सोलिह और सेना से रिटायर कर्नल मोहम्मद नाज़िम, जिनके नये दल मालदीव नेशनल पार्टी (MNP) ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित किया है, राष्ट्रपति चुनाव के मुक़ाबले में हैं जबकि यामीन की उम्मीदवारी क़ानूनी अधर में लटकी हुई है. जम्हूरी पार्टी के बारे में उम्मीद की जा रही है कि वो राष्ट्रपति चुनाव की प्राइमरी के आख़िर में उम्मीदवार की घोषणा करेगी. नाज़िम ने इन बातों को ठुकराया है कि वो सोलिह के इशारे पर काम कर रहे थे. उन्होंने ये भी कहा है कि किसी अन्य के साथ समझौते का भी उनका कोई इरादा नहीं है.
पूर्व अटॉर्नी जनरल एवं MDP के पहले अध्यक्ष डॉ. मोहम्मद मुनव्वर ने भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के अपने इरादे का एलान किया है. उन्होंने सोशल मीडिया पर चल रही इन बातों से इनकार किया है कि वो नशीद के लिए प्रचार कर रहे थे जिनकी वजह से MDP का अध्यक्ष बनने के महज़ एक साल के बाद 2008 के राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार के दौरान उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा था. मुनव्वर ने जनवरी में MDP की प्राइमरी के आख़िरी दौर में नशीद के लिए प्रचार किया था. इस बीच राजनीतिक पार्टियां इस्लामिक उपवास के महीने रमज़ान (22 मार्च-21 अप्रैल) के बीच में 15 अप्रैल को होने वाले गुराईधू संसदीय उप-चुनाव के नतीजों का भी आकलन करेंगी. इस सीट पर MDP (सोलिह गुट), PPM एवं MNP मुक़ाबले में हैं और जम्हूरी पार्टी और MDP के नशीद गुट के द्वारा अदा की जाने वाली भूमिका की वजह से भी इस उप-चुनाव पर नज़र रहेगी.
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