बर्लिन में जब राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह अपने जर्मन समकक्ष फ्रैंक-वाल्टर स्टीनमीयर के साथ बैठक कर रहे थे, उसी वक़्त मालदीव के विदेश मंत्रालय नेईरान के साथ अपने राजनयिक संबंधों को बहाल करने की घोषणा कर दी थी. इस बात ने 2018 में सोलिह के सत्ता में लौटने के बाद इस द्वीपसमूह राष्ट्र की वैश्विक पहुंच में लगातार हो रहे विस्तार को एक नई गति प्रदान की है. ऐसा करते हुए सोलिह के नेतृत्व वाली सरकार ने खुलेआम और बगैर किसी शर्म के अपनी 'इंडिया फर्स्ट' नीति को जारी रखा है. लेकिन ऐसा करते हुए उसने चीन के साथ-साथ अपने मौजूदा और नए संबंधों को भी नुकसान न पहुंचे इस बात का ध्यान रखा है. दरअसल, सोलिह ने एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए इसके सकारात्मक परिणामों के साथ, 'इंडिया फर्स्ट' को अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपने देश के बढ़ते प्रयासों के लिए एक विश्वसनीय और परखा हुआ लॉन्च पैड बना लिया है.
सोलिह ने एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए इसके सकारात्मक परिणामों के साथ, 'इंडिया फर्स्ट' को अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपने देश के बढ़ते प्रयासों के लिए एक विश्वसनीय और परखा हुआ लॉन्च पैड बना लिया है.
मालदीव और ईरान के बीच संबंधों के बहाली की घोषणा भी बीजिंग में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की उपस्थिति में पारंपरिक विरोधी सऊदी अरब और ईरान के बीच हुए समझौते के तुरंत बाद की गई थी. जनवरी 2021 में भी, सोलिह सरकार ने उसी दिन कतर के साथ संबंधों को पुनर्जीवित किया था, जिस दिन सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), बहरीन और मिस्र ने भी अपने संबंधों को बहाल करने का निर्णय लिया था. याद रहे कि राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन (2013-18) के पूर्ववर्ती प्रशासन ने कतर के साथ संबंधों को ख़त्म कर दिया था.
सोलिह का छुपा हुआ संदेश साफ़ था. एक सुन्नी इस्लामिक राज्य के रूप में सउदी अरब को जहां मालदीव, इस्लामिक उलेमा के मार्गदर्शक सितारे के रूप में देखता हैं, वहीं उसने शिया बहुल ईरान के साथ संबंध बहाल करके ख़ुद की एक उदारवादी इस्लामिक राष्ट्र के रूप में अपनी साख को फिर से स्थापित करने की कोशिश की है. सोलिह प्रशासन यह जताना चाहता है कि भूराजनीतिक मज़बूरियों के अलावा मालदीव के लिए सांप्रदायिक विभाजन कोई मायने नहीं रखता है.
बर्लिन में, सोलिह ने तीन साल के कोविड प्रेरित ब्रेक के बाद इंटरनेशनल टूरिज्म बोरसे (आईटीबी) का दौरा किया. इस दौरे में उनका उद्देश्य अपने देश को एक बेहतरीन पर्यटन स्थल के रूप में पेश करते हुए आईटीबी के लोगों के बीच इस बात की मार्केटिंग अर्थात विपणन करने का था. मालदीव की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का योगदान सबसे अहम है. सोलिह सरकार ने वैश्विक लॉकडाउन के ठीक छह महीने बाद ही पर्यटकों के लिए मालदीव को खोलने का एक साहसिक कदम ऐसे वक़्त उठाया था, जब बाकी दुनिया ऐसा या इसके करीब कुछ भी करने से घबरा रही थी.
उस महत्वपूर्ण दौर में, जब मालदीव की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई थी, भारत के 'बबल टूरिज्म' की अवधारणा ने उसकी सहायता की थी. सरकार के प्रयासों ने सुनिश्चित किया कि पर्यटक महामारी से पीड़ित न हो अथवा इसकी चपेट में न आए. इन्हीं कोशिशों का परिणाम था कि यूरोप और अन्य जगहों के अपेक्षाकृत धनवान पर्यटकों ने मालदीव की यात्रा करने की हिम्मत जुटाई. इस दौर में दुनिया के अधिकांश हिस्सों में अन्य पर्यटन स्थल अभी भी बंद पड़े थे.
इस यात्रा के पश्चात विदेश मंत्री जयशंकर समेत माले से लेकर दिल्ली तक की अनेक वीवीआईपी और वीआईपी यात्राओं को भी इसी तरह की चर्चित यात्राओं के रूप में देखा जा सकता है. इसमें ही मालदीव की रक्षा मंत्री मारिया दीदी की यात्रा को भी याद किया जा सकता है.
बर्लिन मेले में सोलिह ने सउदी पर्यटन मंत्री अहमद अल-खतीब के साथ पर्यटन को बढ़ावा देने पर चर्चा की. संयोग से, सऊदी अरब की बजट एयरलाइन, फ्लाईनास ने मालदीव को अपने नए गंतव्यों में शामिल किया है. इसी प्रकार सऊदी अरब स्वतंत्र रूप से राजधानी माले के पुनर्निर्मित, उपनगरीय हुले माले द्वीप में 400 आवास इकाइयों के निर्माण के लिए धन दे रहा है. यह द्वीप जेल में बंद राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के पिछले शासन के तहत निर्मित चीन-वित्तपोषित सिनामाले समुद्री पुल से जुड़ता है.
सोलिह-शाहिद की जोड़ी
जर्मनी जाते हुए रास्ते में, सोलिह सर्बिया में राष्ट्रपति एलेक्जेंडर वुसिक से मिलने के लिए रुके थे. इसके अलावा कतर में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस और राष्ट्रपति डॉ. महमूद अब्बास (फिलिस्तीन), राष्ट्रपति वेवेल रामकलावन (सेशेल्स), राष्ट्रपति डॉ. ख़ोसे रामोस-होर्ट (तिमोर-लेस्ते), राष्ट्रपति डॉ. लाजरस चकवेरा (मलावी) से भी मुलाकात की थी. राष्ट्रपति सोलिह ने जिन देशों के प्रमुखों से अपनी तीन देशों की यात्रा के दौरान मुलाकात की उन राष्ट्रों का मिश्रण इस बात को उजागर करता है कि कैसे सोलिह की अगुवाई में मालदीव ने अपने विभिन्न हितों और चिंताओं को ध्यान में रखकर अपनी विदेश नीति को विकसित किया है.
दोहा में, सोलिह मुख्यत: संयुक्त राष्ट्र की ओर से कम से कम विकसित देशों (यूएनसीएलडीसी) पर आयोजित पांचवें सम्मेलन में शामिल होने के लिए गए थे. एक छोटे द्वीप विकासशील राज्य (एसआईडीएस) के रूप में मालदीव के अनुभव का जिक्र करते हुए सोलिह ने साफ़ कर दिया था कि मालदीव ने ‘सबसे कम विकसित देशों’ (एलसीडी) की श्रेणी से मध्यम आय वाला देश बनते हुए किसी भी बात को अपवाद नहीं बनाया था. उन्होंने कहा किएलडीसी और एसआईडीएस दोनों ने ही जलवायु-परिवर्तन के परिणामों को झेला है. इसी बात पर सत्तर के दशक के बाद से ही सोलिह के पूर्ववर्तियों ने भी बार-बार बल दिया था.
इस योजना का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यह था कि नई दिल्ली ने धन देने के लिए परियोजनाओं को स्वयं चुनने के बजाय, सीधे धन निर्धारित करते हुए मेज़बान सरकार अर्थात मालदीव सरकार को ही परियोजनाओं का चयन करने का अधिकार दे दिया है.
घरेलू स्तर पर सोलिह की विदेश नीति के तहत कोविड लॉकडाउन से पहले और बाद में विभिन्न राष्ट्राध्यक्ष, सरकार प्रमुख और विदेश मंत्री उनके यहां दौरे पर आए थे. जनवरी 2023 में, कंबोडियाई प्रधान मंत्री, समदेक अक्का मोहा सेना पडी टेको हुन सेन, को माले में आमंत्रित किया गया था. इस तरह की यात्राओं में एक चर्चित यात्रा भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की थी, जो नवंबर 2018 में सोलिह के कार्यकाल के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किए जाने वाले विश्व के एकमात्र विश्व नेता थे. इस यात्रा के पश्चात विदेश मंत्री जयशंकर समेत माले से लेकर दिल्ली तक की अनेक वीवीआईपी और वीआईपी यात्राओं को भी इसी तरह की चर्चित यात्राओं के रूप में देखा जा सकता है. इसमें ही मालदीव की रक्षा मंत्री मारिया दीदी की यात्रा को भी याद किया जा सकता है. अक्टूबर 2020 में तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री माइकल पोम्पिओ की माले यात्रा को भी नहीं भुला जाना चाहिए. विदेश मामलों के मंत्री, अब्दुल्ला शाहिद ने भी अपने राजनयिक प्रयासों से मालदीव की विदेश नीति को आगे बढ़ाने में अहम योगदान दिया है. उन्होंने बर्लिन में एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए छोटे राष्ट्र-राज्यों की अर्थव्यवस्था को वैश्विक समर्थन दिए जाने की आवश्यकता को रेखांकित किया था. राष्ट्रपति के साथ तीन देशों के दौरे में शामिल होने से पहले, शाहिद ने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) को भी संबोधित किया. मालदीव 2025 तक समाप्त होने वाले दो साल के कार्यकाल के लिए मतदान का अधिकार रखने वाले परिषद के 47 निर्वाचित सदस्यों में से एक है. इसके बाद में उन्होंने नई दिल्ली का दौरा किया, जहां सिंगापुर के शांगरी-ला डायलॉग के समकक्ष दक्षिण एशिया के प्रतिष्ठित 'रायसीना डायलॉग' को संबोधित करने के अलावा उन्होंने भारत के विदेश मंत्री जयशंकर और अन्य देशों के समकक्षों से मुलाकात भी की थी.
' इंडिया फर्स्ट' क्यों?
यह सच है कि सोलिह प्रशासन ने अपनी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) की 'इंडिया फर्स्ट' विदेश नीति के दृष्टिकोण की फिर से पुष्टि की है. इस दृष्टिकोण को पार्टी प्रमुख मोहम्मद नशीद ने प्रतिपादित किया था. नशीद 2008 में एक बहुदलीय लोकतांत्रिक योजना के तहत चुने जाने वाले देश के पहले राष्ट्रपति थे. नशीद से पहले, राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम, ने 30 वर्षों (1978-2008) तक देश पर शासन किया था. उन्होंने भी एक भारत की ओर झुकी हुई स्पष्ट विदेश नीति को ही लागू किया था.
इस तरह का दृष्टिकोण दोनों देशों की भौगोलिक निकटता देखते हुए पूरी तरह से ज़मीनी हकीकत पर आधारित था. रिसोर्सेस अर्थात संसाधनों और संसाधन रिसोर्सफुल अर्थात उपायकुशल पड़ोसी के रूप में भारत ने मालदीव के साथी के रूप में अपनी योग्यता साबित भी की थी. इसका पहला उदाहरण भारतीय वायुसेना (आईएएफ) के ऑपरेशन कैक्टस (1988) से देखने को मिला था. इस ऑपरेशन कैक्टस ने यह सुनिश्चित किया था कि श्रीलंकाई तमिल भाड़े के सैनिकों द्वारा तख़्तापलट की जो कोशिश की गई थी उसे सफ़लता नहीं मिल सकी. इसके अलावा ऐसे उदाहरणों में मानवीय कार्य भी शामिल हैं. उदाहरण के लिए, सुनामी के बाद बचाव, राहत और पुनर्निर्माण कार्य (2004). भारत ने 2014 में दो डिसैलिनेशन अर्थात अलवणीकरण केंद्रों के बंद पड़ जाने के बाद भारी मात्रा में पेयजल उपलब्ध करवाकर मालदीव की सहायता की थी. इसी तरह कोविड के दौरान भारत की ओर से मालदीव को दवाइयां, भोजन और धन भेजकर सहायता प्रदान की गई.
इसके अलावा, नई दिल्ली ने 'हाई-इम्पैक्ट प्रोजेक्ट्स' योजना के तहत भौतिक और सामाजिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए भी बड़े पैमाने पर मालदीव को सहायता प्रदान की है. यह सहायता विशेष रूप से उन दूर के द्वीपों में की जा रही हैं, जहां अभी तक विकास नहीं पहुंचा है. इस योजना का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यह था कि नई दिल्ली ने धन देने के लिए परियोजनाओं को स्वयं चुनने के बजाय, सीधे धन निर्धारित करते हुए मेज़बान सरकार अर्थात मालदीव सरकार को ही परियोजनाओं का चयन करने का अधिकार दे दिया है. अब मालदीव की सरकार परियोजनाओं का चयन कर भारत की ओर से मुहैया करवाए गए धन को ख़र्च कर सकेगी.
प्रभावी पुन: संतुलन
संयोग से यामीन शासन के तहत मालदीव में चीन द्वारा उच्च लागत वाली योजनाओं को वित्तपोषित करने के तरीके से भारत का यह भिन्न तरीका हो सकता है. फिर भी, उम्मीद के विपरीत, राष्ट्रपति सोलिह ने अपने अब तक के लगभग पूरे कार्यकाल में चीन के मोर्चे पर चुप्पी साध रखी है. उन्होंने ऐसा संतुलन सुनिश्चित किया है, जो पूर्ववर्ती यामीन के शासन के दौरान नहीं देखा गया था. उस दौरान मालदीव चीन की ओर झुका हुआ दिखाई देता था. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जैसे ही अपना तीसरा कार्यकाल शुरू किया वैसे ही सोलिह ने बगैर वक़्त गंवाए जिनपिंग को बधाई दे दी. सोलिह की सरकार ने चीन को लेकर राजनीतिक, कूटनीतिक और अन्य सभी तरह के मोर्चे पर सही पैंतरा ही अपनाया है.
लेकिन इसी संदर्भ में, सोलिह प्रशासन का रवैया पार्टी प्रमुख और संसद अध्यक्ष नशीद के उस बयान और नीति से अलग है. नशीद, चीन को यामीन शासन के दौरान मालदीव को 'ऋण-जाल' में धकेलने के लिए ज़िम्मेदार बताकर उसकी आलोचना करते रहे है. विदेश मंत्री शाहिद भी नवंबर 2011 में राष्ट्रपति नशीद द्वारा माले में उद्घाटित चीन के दूतावास के माध्यम से लगातार चीनी पक्ष के संपर्क में रहते हैं. इसके विपरीत सितंबर 2014 में हुई चीनी राष्ट्रपति की अब तक की एकमात्र यात्रा का श्रेय यामीन शासन लेता रहा है. लेकिन हकीकत यह है कि इस यात्रा ने मालदीव को न केवल भारत बल्कि शेष लोकतांत्रिक दुनिया से भी दूर कर दिया था.
सोलिह-शाहिद की जोड़ी ने पिछले चार से अधिक वर्षों में सहजता के साथ विदेश नीति में पुन: संतुलन लाने का काम किया है. इसके परिणामस्वरूप, मालदीव की विदेश नीति पिछले दशकों के दौरान किसी भी समय इतनी अधिक मजबूत नहीं रही, जितनी वर्तमान में दिखाई देती है. देश की स्वतंत्रता के इतिहास को देखते हुए एक ब्रिटिश संरक्षित देश होने के बावजूद उसकी यह नीति मालदीव के राष्ट्रवाद, इसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के बारे में काफ़ी कुछ दर्शा जाती है. इससे यह भी पता चलता है कि यामीन का 'इंडिया आउट/इंडिया मिलिट्री आउट' अभियान उन लोगों को समझाने में क्यों विफ़ल रहा है, जिन्होंने पिछले 45 वर्षों में एक बार नहीं बल्कि तीन बार बिना पूछे भारतीय सैनिकों को घर वापस जाते हुए देखा है.
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