मालदीव (Maldives) के राष्ट्रपति इब्राहिम ‘इबु’ सोलिह (President Ibrahim ibu solih) के द्वारा पार्टी के अध्यक्ष और संसद के स्पीकर मोहम्मद ‘अन्नी’ नशीदके प्रति निष्ठा रखने वाले पार्टी के 14 ‘बाग़ी’ सांसदों के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई का संकेत देने के साथ सत्ताधारी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) साल 2022 ख़त्म होते-होते निर्णायक मुक़ाबले की तरफ़ बढ़ती दिख रही है. सोलिह और नशीद के बीच छिड़ी इस लड़ाई के दौरान आपराधिक अदालत ने MDP के धुर विरोधी और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के ख़िलाफ़ दिसंबर तक मनी लॉन्ड्रिंग के दूसरे केस में फ़ैसला सुनाने का ऐलान किया है. अदालत (Court) ने अगर यामीन को दोषी ठहराया तो वो चुनाव लड़ने के अयोग्य भी हो सकते हैं. इस तरह 2023 की चौथी तिमाही में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से पहले 2022 का अंत एक दिलचस्प या फिर पहेलीनुमा मोड़ पर हो सकता है. ऐसे में मालदीव के ज़्यादातर लोगों के दिमाग़ में ये सवाल मंडरा रहा है कि क्या इन गतिविधियों का नतीजा राजनीतिक अस्थिरता (Political Instability) के रूप में निकल सकता है.
नशीद को जोड़ दें तो उनके गुट के पास 15 सांसदों का समर्थन है (वैसे अफ़वाह तो ये भी है कि उन्हें 20 सांसदों का समर्थन है). 87 सदस्यों वाली मालदीव की संसद में MDP के 65 सांसद हैं. नवंबर की शुरुआत में मॉरिशस से जुड़े ‘चागोस मुद्दे’ को लेकर संसद के भीतर MDP बंटवारे के क़रीब पहुंच गई थी. यामीन की अगुवाई वाले PPM-PNC गठबंधन के द्वारा इस मुद्दे पर सदन में चर्चा के लिए आपात प्रस्ताव लाया गया था. लेकिन उस वक़्त सोलिह गुट के भी कई सांसदों ने नशीद गुट के साथ मतदान किया. इस बार ऐसा कोई सवाल नहीं था क्योंकि सरकार को ज़्यादा GST और TGST (टूरिज़्म GST) से जुड़े विधेयक को पारित करने की आवश्यकता थी.
सोलिह और नशीद के बीच छिड़ी इस लड़ाई के दौरान आपराधिक अदालत ने MDP के धुर विरोधी और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के ख़िलाफ़ दिसंबर तक मनी लॉन्ड्रिंग के दूसरे केस में फ़ैसला सुनाने का ऐलान किया है.
GST विधेयक को लेकर कोई ‘टाइ’ नहीं हुआ जो कि 54-26 से पारित हो गया. इस तरह नशीद को स्पीकर का ‘निर्णायक वोट’ देने और आधिकारिक तौर पर ‘पहचान’ में आने की ज़रूरत नहीं पड़ी. लेकिन नशीद को छोड़ दें तो उनके गुट के 14 सांसदों ने MDP संसदीय दल के नेता मोहम्मद असलम की तरफ़ से जारी तीन लाइन की पार्टी व्हिप की अवहेलना की. एक स्थानीय मीडिया वेबसाइट ने असलम को ये कहते हुए पेश किया कि पार्टी का नेतृत्व व्हिप की अवहेलना करने वाले सांसदों के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई की शुरुआत करेगा ताकि पार्टी के वफ़ादारों, चाहे वो सांसद हों या कैडर, तक ग़लत संदेश नहीं जाए. लेकिन सवाल ये है कि क्या पार्टी अध्यक्ष के तौर पर नशीद संगठन में जैसे को तैसा की रणनीति अपनाएंगे या सोलिह गुट नशीद समर्थक सांसदों को चेतावनी देकर चुप रह जाएगा ताकि पार्टी के चुनाव और उसके बाद राष्ट्रपति पद के लिए लंबे अभियान से पहले आमने-सामने की टक्कर से परहेज किया जा सके.
MDP ने ऐलान किया है कि राष्ट्रपति पद के लिए पार्टी का चुनाव उस वक़्त होगा जब प्रशासनिक तैयारियां पूरी हो जाएंगी. ये उम्मीद की जा रही है कि नये साल की पहली तिमाही में पार्टी का चुनाव होगा और सोलिह ने पहले ही इस चुनाव में उतरने की घोषणा कर दी है. वैसे तो उनके समर्थक ये दलील देते हैं कि मौजूदा पार्टी संविधान के तहत वर्तमान राष्ट्रपति को अगले कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ने का विकल्प अपने-आप मिल जाता है लेकिन सोलिह ये चाहते हैं कि राष्ट्रपति बनने के पांच साल के बाद उन्हें फिर से पार्टी की मंज़ूरी हासिल करनी चाहिए.
आख़िरी ख़बर आने तक नशीद, जो कि सोलिह के समर्थन को लेकर कभी तैयार होते हैं तो कभी विरोध करते हैं, ने अपने दोस्त और भरोसेमंद शख़्स का विरोध करने का एलान किया है. ऐसे में इस तरह की अटकलें तेज़ हैं कि पार्टी के चुनाव में उनकी पसंद का व्यक्ति कौन होगा. अटकलें इस बात को लेकर भी हैं कि क्या वो ख़ुद चुनाव में उतरेंगे. हालांकि दोनों गुटों में कैडर के स्तर पर इस बात को लेकर आशंकाएं हैं कि आख़िरी समय में नेतृत्व के स्तर पर समझौता हो जाए तो लोग मूर्ख नहीं बनेंगे. ख़ास तौर पर वो ‘अनिर्णायक वोटर’ मूर्ख नहीं बनेंगे जिन्होंने पिछले चुनावों के नतीजों को तय किया है.
‘यामीन या मैं’ का नारा
विरोधी खेमे की बात करें तो हर किसी की निगाहें यामीन के केस में आने वाले फ़ैसले पर टिकी हैं. ये फ़ैसला यामीन के चुनावी भाग्य को तय करेगा. फिलहाल यामीन राष्ट्रपति चुनाव के लिए राजनीतिक पार्टी के इकलौते उम्मीदवार हैं. उनके PPM-PNC गठबंधन ने कुछ महीने पहले उनकी उम्मीदवारी का एलान कर दिया था. ट्रायल कोर्ट के निर्णय के बाद अगर वो चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाते हैं तो उनकी पार्टी के नेता और मतदाता समान रूप से परेशान हो जाएंगे.
पार्टी के भीतर राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की चाह रखने वाले दूसरी कतार के नेता भी हैं जो ख़ामोशी से पार्टी के भीतर ‘यामीन या मैं’ की बात कर रहे हैं. लेकिन चुनाव लड़ने की चाह रखने वाले आधा दर्जन से ज़्यादा नेताओं को ये बात अच्छी तरह मालूम है कि यामीन के समर्थन के बिना उनकी ख्वाहिश कभी पूरी नहीं हो सकती है. उन्हें ये भी मालूम है कि यामीन का समर्थन पाने के लिए सबसे बड़ी कसौटी वफ़ादारी होगी और राष्ट्रपति चुने जाने के बाद नये राष्ट्रपति का मुख्य काम होगा यामीन की जल्द-से-जल्द वापसी को सुनिश्चित करना.
राष्ट्रपति के चुनाव में अब कुछ ही महीने बचे हैं. ऐसे में PPM-PNC गठबंधन के लिए मुक़ाबले में यामीन के बिना व्यक्ति-केंद्रित चुनाव अभियान चला पाना मुश्किल होगा, कम-से-कम तब तक जब तक कि यामीन के ख़िलाफ़ केस के मामले में अंतिम फ़ैसला नहीं आ जाए.
इसके लिए एक समान रूप से वफ़ादार उप-राष्ट्रपति उम्मीदवार का होना ज़रूरी है और चुनावी अधिकार मिलने के बाद इस बात की संभावना है कि यामीन संसदीय चुनाव लड़ें और 2018-19 की अवधि के दौरान जिस तरह नशीद स्पीकर बने थे, उसी तरह वो भी स्पीकर बन जाएं.संविधान के तहत स्पीकर को सबसे बड़े पद के खाली होने पर 60 दिनों के लिए राष्ट्रपति बनाया जाता है और यामीन मज़बूती की स्थिति के साथ राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ना चाहेंगे. यही अनुमान PPM-PNC गठबंधन और उसके बाहर लगाया जा रहा है.
फिर भी राष्ट्रपति के चुनाव में अब कुछ ही महीने बचे हैं. ऐसे में PPM-PNC गठबंधन के लिए मुक़ाबले में यामीन के बिना व्यक्ति-केंद्रित चुनाव अभियान चला पाना मुश्किल होगा, कम-से-कम तब तक जब तक कि यामीन के ख़िलाफ़ केस के मामले में अंतिम फ़ैसला नहीं आ जाए. इसके उलट बात भी सही है. क्या होगा अगर ट्रायल कोर्ट यामीन को बरी कर दे? क्या सरकार ट्रायल कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील करेगी?
दोनों पक्षों के लिए सुप्रीम कोर्ट से अपने ख़िलाफ़ कोई भी फ़ैसला आने पर उनका चुनावी हिसाब गड़बड़ हो सकता है. लेकिन अगर निचली अदालत ने यामीन को दोषी ठहराया तो यामीन के पास अपील करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा. अगर सोलिह सरकार ने यामीन के बरी होने के ख़िलाफ़ हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का फ़ैसला नहीं लिया तो उसे पार्टी के भीतर और MDP के बाक़ी बचे ‘तटस्थ मतदाताओं’ के तीखे विरोध का सामना करना पड़ सकता है.
पर्यटन उद्योग को नुक़सान
राजनीतिक प्रतिक्रियाओं को देखते हुए ऐसा लगता है कि GST-TGST में बढ़ोतरी को लेकर आम लोगों का विरोध है जिसे सरकार स्वीकार करने के लिए तैयार हो सकती है. राष्ट्रपति सोलिह ने दोनों क़ानूनों को मंज़ूरी दी है और ऐसा इसलिए क्योंकि ये बदलाव ला सकते हैं. सरकार से जुड़ी हस्तियों को उम्मीद है कि लोग वर्तमान की वास्तविकता को शिकायत के साथ स्वीकार कर लेंगे लेकिन उन्हें इस बात की भी आशंका है कि मौजूदा समय और राष्ट्रपति चुनाव के बीच हर बीते हुए हफ़्ते, हर बीते हुए महीने के साथ प्रदर्शन और तेज़ होगा.
लोगों की समझ ये है कि धीरे-धीरे रफ़्तार पकड़ रहा पर्यटन सेक्टर नई दरों के ख़िलाफ़ है क्योंकि पर्यटन कारोबार से जुड़े लोगों को अपनी लागत पर फिर से काम करना होगा जिसे विदेश के टूर ऑपरेटर नामंज़ूर भी कर सकते हैं क्योंकि नया सीज़न पहले ही शुरू हो चुका है (दिसंबर-मार्च). इसका ये मतलब है कि हरेक ऑपरेटर को थोड़ा नुक़सान झेलना होगा. वैसे पर्यटन उद्योग राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों का बड़ा वित्तीय प्रायोजक तो है ही, साथ ही सरकारी नौकरियों के बाहर बड़ा रोज़गार देने वाला भी है. इस तरह पर्यटन उद्योग में काम करने वाले लोगों और उनके परिवार को जोड़ दें तो इनका वोट काफ़ी महत्वपूर्ण है.
संसद में तो नशीद इस हद तक आगे बढ़ गए कि उन्होंने ये ऐलान कर दिया कि उनकी जानकारी के मुताबिक़ सरकार के पास सिर्फ़ दो हफ़्तों का खर्च चलाने के लिए विदेशी मुद्रा का भंडार है.
यहां तक कि सामान्य लोगों को भी नहीं छोड़ा गया है क्योंकि सामान्य GST में भी बढ़ोतरी की गई है. ऐसा देश जहां सरकार सिर्फ़ चार सामानों- यानी ईंधन, चावल, आटा और चीन- की क़ीमत तय करती है, वहां टैक्स में बढ़ोतरी करके या बढ़ोतरी के बिना दूसरे सामानों की क़ीमत इतनी ज़्यादा कभी नहीं बढ़ी थी. ये स्थिति तब है जब मुद्रास्फीति के प्रावधान के साथ या उसके बिना पारिवारों की आमदनी कोविड से पहले के स्तर तक नहीं पहुंची है.
लोगों के इस कथित मूड के साथ राजनीतिक दल आर्थिक हालात को लेकर काफ़ी सोच-समझकर आगे बढ़ रहे हैं. सबसे नज़दीकी पड़ोसी देश श्रीलंका में संकट ने मालदीव के लोगों में डर पैदा कर दिया है. खुले बाज़ार में अमेरिकी डॉलर का भाव आम लोगों के लिए भी चिंता का उतना ही बड़ा मुद्दा है जितना कि कारोबार के लिए.
इसका कारण ये है कि श्रीलंका में मालदीव के लगभग 30,000 लोग रहते हैं, इनमें वो लोग शामिल हैं जो वहां काम करते हैं और पढ़ाई के लिए गए हैं. यही वजह है कि मालदीव के हर द्वीप में पिछले कुछ महीनों के दौरान पड़ोसी देश की आर्थिक स्थिति और उसको लेकर लोगों के प्रदर्शन एवं राजनीतिक संकट को लेकर एक-एक जानकारी मौजूद है.
मंडराता विदेशी मुद्रा का संकट?
अब आने वाले विदेशी मुद्रा संकट, जिसे सरकार लगातार मज़बूती के साथ ठुकरा रही है, के साथ इस बात की आशंका है कि बैंकिंग प्रणाली में डॉलर की वास्तविक कमी हो जाएगी और खुले बाज़ार में डॉलर के भाव में काफ़ी बढ़ोतरी होगी. यहां भी विडंबना ये है कि राजनीतिक विरोधियों के मुक़ाबले स्पीकर नशीद ही अपनी पार्टी की सरकार की आलोचना कर रहे हैं जबकि वो पिछले कई वर्षों से उस पार्टी के चुने हुए अध्यक्ष हैं.
संसद में तो नशीद इस हद तक आगे बढ़ गए कि उन्होंने ये ऐलान कर दिया कि उनकी जानकारी के मुताबिक़ सरकार के पास सिर्फ़ दो हफ़्तों का खर्च चलाने के लिए विदेशी मुद्रा का भंडार है. उन्होंने आगे ये भी कहा कि उनके लिए ऐसे देश कीसंसद के सत्र की अध्यक्षता करना शर्मिंदगी की बात है जो दिवालियापन की तरफ़ बढ़ रहा है. उन्होंने बार-बार सरकार से ये भी कहा कि लोगों को गुमराह न करे.
ऐसा लगता है कि ये सभी किरदार राष्ट्रपति चुनाव ख़ुद लड़ने या किसी दूसरे उम्मीदवार का समर्थन करने को लेकर निर्णय लेने से पहले यामीन के केस में कोर्ट के फ़ैसले और इसके साथ-साथ MDP की अंदरुनी लड़ाई के नतीजे का इंतज़ार करेंगे.
मौजूदा सरकार के कार्यकाल के चार वर्षों के दौरान ज़्यादातर समय नशीद की सोलिह विरोधी आलोचना को देखते हुए अर्थव्यवस्था को लेकर उनके वर्तमान बयानों ने लोगों की सोच में कोई बदलाव नहीं डाला है. इसके बावजूद तनाव को साफ़ तौर पर महसूस किया जा सकता है और इसकी बड़ी वजह श्रीलंका के हालात के साथ मानसिक तुलना है जहां इस साल की शुरुआत में आर्थिक संकट ने देश को चपेट में लेना शुरू किया था.
भविष्य का अनुमान
इस संपूर्ण पृष्ठभूमि में दूसरे राजनीतिक किरदार इस बात का अनुमान लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि देश किस तरफ़ जा रहा है और अगर वो राष्ट्रपति का चुनाव लड़ते हैं तो उनके जीतने की कितनी संभावना है. वो कोई भी बड़ा फ़ैसला लेने से पहले दिसंबर की बड़ी घटनाओं के घटने का इंतज़ार करेंगे. इस बीच वो ‘चागोस मुद्दे’,GST विधेयक और अर्थव्यवस्था को लेकर ‘लोगों से जुड़े’ बयान दे रहे हैं.
राजनीतिक दलों के बीच जम्हूरी पार्टी, जो सत्ताधारी MDP की सहयोगी है और जिसका नेतृत्व अरबपति कारोबारी गसीम इब्राहिम कर रहे हैं, ने अपने भविष्य की रणनीति तय करने के लिए अपनी पार्टी का राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया है. पूर्व रक्षा मंत्री कर्नल मोहम्मद नाज़िम (रिटायर्ड) की अनुभवहीन मालदीव नेशनल पार्टी (MNP) ने पहले ही राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपनी पार्टी के भीतर चुनाव की तारीख़ तय कर दी है.
मालदीवियन डेवलपमेंट अलायंस (MDA) में एक तीसरा किरदार भी है. ये हैं अहमद सियाम मोहम्मद या ‘सन’ सियाम. ये भी अपने विकल्पों पर विचार-विमर्श कर रहे हैं. पूर्व गृह मंत्री उमर नसीर, जिनकी राष्ट्रपति पद की ख्वाहिश है और जिन्होंने एक समय मालदीव के बड़े नेता रहे मामून अब्दुल गयूम की बेटी और पूर्व विदेश मंत्री दुन्या मामून के साथ धिवेही नेशनल एक्शन (DNA) के नाम से एक राजनीतिक संगठन बनाया है, लंबे समय सेसुर्खियों से दूर हैं और ये उनके स्वभाव के विपरीत है.
ऐसा लगता है कि ये सभी किरदार राष्ट्रपति चुनाव ख़ुद लड़ने या किसी दूसरे उम्मीदवार का समर्थन करने को लेकर निर्णय लेने से पहले यामीन के केस में कोर्ट के फ़ैसले और इसके साथ-साथ MDP की अंदरुनी लड़ाई के नतीजे का इंतज़ार करेंगे. उनके पास पहले चरण का चुनाव लड़ने का विकल्प भी है. इस तरह उन्हें उम्मीद है कि वो नतीजे को दूसरे चरण तक ले जाएंगे और इस बीच पहले चरण में सबसे आगे रहने वाले दो उम्मीदवारों से अपने समर्थन को लेकर समझौता कर लेंगे.
2008 और 2013 के राष्ट्रपति चुनावों में पहले चरण के दौरान गमीस के द्वारा क्रमश: 16 प्रतिशत और 25 प्रतिशत मत हासिल करने के बाद सभी के सामने एक मिसाल भी है. 2018 के चुनाव में आकर ही चार विपक्षी पार्टियों, जिनमें MDP और जम्हूरी पार्टी शामिल हैं, ने एकजुट होकर साझा उम्मीदवार के रूप में सोलिह को उतारा और तत्कालीन राष्ट्रपति यामीन को पहले ही चरण में भारी मतों के अंतर से पटखनी दे दी.
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