मालदीव की राजधानी माले में मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स के इंटीग्रेटेड हेडक्वार्टर में एक विशेष समारोह को संबोधित करते हुए, जिस दौरान मालदीव ने अमेरिका के मोंटाना नेशनल गार्ड पार्टनरशिप प्रोग्राम पर दस्तख़त किए, मालदीव की रक्षा मंत्री मारिया दीदी ने कहा कि “इस कार्यक्रम में शामिल होकर हम (राष्ट्रपति सोलिह का प्रशासन) अमेरिका-मालदीव रक्षा और सुरक्षा संबंधों, जो पिछले तीन वर्षों के दौरान बेहतरीन ढंग से आगे बढ़ा है, को मज़बूत करने की प्रतिबद्धता को फिर से दोहरा रहे हैं.” जिन तीन वर्षों का ज़िक्र मालदीव की रक्षा मंत्री ने किया ये वो समय है जब उन्होंने कोविड-19 लॉकडाउन और प्रतिबंधों की चरम सीमा के दौरान चुपचाप अमेरिका का दौरा किया था और सितंबर 2020 में अमेरिका के रक्षा विभाग और मालदीव के रक्षा मंत्रालय के बीच “रक्षा और सुरक्षा साझेदारी की रूप-रेखा” पर हस्ताक्षर किए थे.
हाल के समारोह के दौरान मंत्री मारिया ने कहा कि इस तरह के प्रतिष्ठित कार्यक्रम में मालदीव का शामिल होना पहले के समझौते के ठोस नतीजों में से एक है. मारिया के मुताबिक़ पहले के समझौते ने ‘द्विपक्षीय रक्षा और सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करने में आगे का रास्ता तय किया’. उन्होंने ये भी जोड़ा कि अमेरिका के साथ साझेदारी ‘आज की चुनौतियों का सामना करने में मालदीव के रक्षा क्षेत्र की क्षमता और तैयारी का निर्माण करने में’ बड़ी भूमिका निभाएगी. मंत्री ने स्पष्ट किया कि अमेरिका के साथ साझेदारी का कार्यक्रम इस तरह से तैयार किया गया है कि वो मालदीव के रक्षा और सुरक्षा परिदृश्य की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करे. इसके लिए प्रमुख क्षेत्रों जैसे समुद्री इलाक़े में जागरूकता, मानवीय सहायता और आपदा राहत, साइबर डिफेंस, संचार सुरक्षा, उड्डयन सुरक्षा संचालन, नेतृत्व विकास, सैन्य चिकित्सा एवं इंजीनियरिंग गतिविधियां, संचालन के साजो-सामान और रसायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल, परमाणु क्षेत्र में रक्षा एवं प्रतिक्रिया में भागीदारी को आसान बनाया जाएगा.
मारिया के मुताबिक़ पहले के समझौते ने ‘द्विपक्षीय रक्षा और सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करने में आगे का रास्ता तय किया’. उन्होंने ये भी जोड़ा कि अमेरिका के साथ साझेदारी ‘आज की चुनौतियों का सामना करने में मालदीव के रक्षा क्षेत्र की क्षमता और तैयारी का निर्माण करने में’ बड़ी भूमिका निभाएगी.
दोनों देशों का ये कहना है कि औपचारिक युद्ध लड़ने के लिए एमएनडीएफ को तैयार करने के अलावा अमेरिका का ट्रेनिंग कार्यक्रम संपूर्ण है. मंत्री ने ख़ुद ज़ोर देकर कहा कि “अमेरिकी साझेदारी आज की चुनौतियों का सामना करने में मालदीव के रक्षा क्षेत्र की क्षमता और तैयारी का निर्माण करने में बड़ी भूमिका निभाएगी.’ रक्षा मंत्री मारिया ने 2020 के समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए जो बातें कही थीं, ये सभी चीज़ें उसी के अनुसार थीं. उन्होंने कहा था कि ‘रक्षा और सुरक्षा संबंध इंडो-पैसिफिक और हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में समुद्री डकैती और आतंकवाद के बढ़ते ख़तरे के बीच शांति और सुरक्षा में साझा सिद्धांतों और हितों के मुताबिक़ बेहतरीन अमेरिका-मालदीव साझेदारी में बहुत बड़ा योगदान करेगा.”
इंडो-पैसिफिक, जिसे अमेरिका ने शीत युद्ध के बाद के समय में अटलांटिक से सामरिक बदलाव में अपनी देरी को लेकर गढ़ा था, का ज़िक्र होने से 2020 का समझौता और उसके बाद की सारी चीज़ें चीन के लिए चिंता की वजह होनी चाहिए. ऐसा हिंद महासागर क्षेत्र के लिए चीन के भू-रणनीतिक एजेंडे की वजह से है जो मालदीव, श्रीलंका और ऐतिहासिक विरोधी भारत से जुड़ा हुआ है. भारत के सामरिक विश्लेषकों ने ख़ास तौर पर अमेरिका-मालदीव समझौते को भारत-चीन सीमा संघर्ष के संदर्भ में जोड़ा जिसकी शुरुआत चीन के द्वारा भारतीय क्षेत्र पर अवैध कब्ज़े और 20 भारतीय सैनिकों की बेरहमी से हत्या से हुई थी.
चौंका देने वाली ख़ामोशी
मालदीव में सत्ताधारी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के विरोधी और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन अपने राष्ट्रपति कार्यकाल (2013-18) के समय से ही पड़ोसी देश भारत के बड़े आलोचक रहे हैं. उन्होंने देशव्यापी ‘इंडिया आउट’ या ‘इंडिया मिलिट्री आउट’ अभियान भी शुरू किया था. लेकिन अमेरिका के साथ सोलिह सरकार के रक्षा और सुरक्षा समझौते को लेकर चौंका देने वाली ख़ामोशी अख्त़ियार कर उन्होंने समान रूप से अपने समर्थकों और विरोधियों को हैरान कर दिया है. अमेरिका भारत के बाद इकलौता ऐसा देश है जिसके साथ मालदीव ने ऐसा समझौता किया है. ये बात मालदीव की संप्रभुता को लेकर नहीं है कि वो किसी भी देश के साथ किसी भी तरीक़े से जुड़ना चाहता है.
ये कोई पहला मौक़ा नहीं है जब यामीन खेमे ने इस तरह से प्रतिक्रिया दी है. मालदीव के पहले लोकतांत्रिक राष्ट्रपति मोहम्मद ‘अन्नी’ नशीद (2008-12) ने अपने कार्यकाल के दौरान पहले विदेशी रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए थे जिसे अमेरिकी एक्विज़िशन एंड क्रॉस-सर्विसिंग एग्रीमेंट (एसीएसए) कहा गया था. बाद में जब यामीन खेमा इस्लामिक एनजीओ के नशीद विरोधी प्रदर्शन का राजनीतिक चेहरा बन गया और जिसकी वजह से नशीद सरकार में उप राष्ट्रपति मोहम्मद वहीद हसन मानिक ने नशीद के पांच साल के कार्यकाल के बाक़ी बचे समय (2012-13) के दौरान राष्ट्रपति का पद संभाला, उस वक़्त अमेरिका केंद्रित एक और रक्षा सहयोग समझौते की चर्चा चल रही थी.
मालदीव में सत्ताधारी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) के विरोधी और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन अपने राष्ट्रपति कार्यकाल (2013-18) के समय से ही पड़ोसी देश भारत के बड़े आलोचक रहे हैं. उन्होंने देशव्यापी ‘इंडिया आउट’ या ‘इंडिया मिलिट्री आउट’ अभियान भी शुरू किया था.
प्रस्तावित समझौते के तहत अमेरिका के साथ एसीएसए को एसओएफए (स्टेटस ऑफ फोर्सेज़ एग्रीमेंट) में बदलने की बात थी. इसके तहत ‘रेस्ट एंड रेकुपरेशन’ यानी आराम और स्वास्थ्य लाभ पर गए अमेरिकी सैनिकों पर मालदीव का घरेलू क़ानून लागू नहीं होने का प्रावधान था और मालदीव की सीमा में उन्हें अपना व्यक्तिगत हथियार लेकर चलने की स्वतंत्रता थी. ये आरोप भी लगे कि वहीद के कार्यकाल के दौरान अमेरिका को मालदीव में सैन्य अड्डा स्थापित करने के लिए जगह दी गई थी. दोनों प्रस्तावों को लेकर स्थानीय मीडिया में ख़बरें आने के बाद वहीद सरकार को मजबूर होकर दूरी बनानी पड़ी. तत्कालीन अटॉर्नी जनरल ऐशथ भीशम ने ये सफ़ाई भी दी कि संसदीय क़ानून के बिना मालदीव के क्षेत्र को किसी और देश को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है.
इस पर ध्यान देना चाहिए कि इन सभी मामलों के दौरान भी यामीन ने अपनी आवाज़ नहीं उठाई. चाहे वो अमेरिका के साथ वास्तविक समझौता हो या अटकलबाज़ी. पड़ोसी देश भारत के मुक़ाबले अमेरिका केंद्रित रक्षा समझौतों को लेकर यामीन का सिर्फ़ झुकाव नहीं था बल्कि उन्होंने अपने पीपीएम-पीएनसी गठबंधन को पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो के दौरे का स्वागत करने के लिए एक बयान भी जारी किया. पोम्पियो अपने दौरे में मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद के साथ महत्वपूर्ण द्विपक्षीय चर्चा में शामिल हुए. पोम्पियो का दौरा उस वक़्त हुआ जब यामीन जेल में ही थे और लाखों डॉलर के ‘मनी लॉन्ड्रिंग केस’ में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी नहीं किया था.
एकतरफ़ा मांग
यामीन खेमे के द्वारा भारत की आलोचना उथुरु थिला फल्हु (यूटीएफ) द्वीप पर मालदीव के कोस्ट गार्ड का एक विशेष अड्डा विकसित करने और उसके लिए फंड देने के मक़सद से भारत के साथ एक द्विपक्षीय समझौते पर केंद्रित है. मालदीव की रक्षा मंत्री समेत वहां के दूसरे अधिकारियों ने कहा है कि कोस्ट गार्ड का अड्डा बन जाने के बाद भारतीय सैन्य कर्मियों के द्वारा इसको अपने अधिकार में लेने का न तो कोई गुप्त अनुच्छेद है और न ही इसका प्रावधान किया गया है. बल्कि इसके बदले ये स्थानीय सरकार के द्वारा अपनी सेना, जो अब एक साझा पहचान ‘मालदीवियन नेशनल डिफेंस फोर्स’ (एमएनडीएफ) के तहत देश की सेवा करती है, के हर अंग को मज़बूत करने के फ़ैसले का हिस्सा है.
यामीन खेमे ने संवेदनशील सुरक्षा और रक्षा सहयोग के समझौतों को लेकर संसदीय चर्चा और सार्वजनिक छानबीन की मांग बार-बार करते हुए सोलिह सरकार को मजबूर किया कि वो यूटीएफ समझौते को संसद की ‘241’ राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के सदस्यों को दिखाए. एक बार जब ये साफ़ हो गया कि पीपीएम-पीएनसी गठबंधन के सदस्यों को यूटीएफ समझौते में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला तो यामीन खेमा मांग करने लगा कि पूरी संसद को इस समझौते के बारे में संपूर्ण जानकारी दी जाए यानी पूरे देश को बताया जाए. भारत के अलावा अमेरिका इकलौता ऐसा देश है जिसके साथ मालदीव ने अभी तक इस तरह का समझौता किया है. लेकिन यामीन खेमा ने एक बार भी अमेरिका के साथ किसी रक्षा सहयोग समझौते को लेकर आधी भी जानकारी नहीं मांगी. इससे साफ़ संकेत मिलता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर यामीन खेमे की चिंता एकतरफ़ा और सिर्फ़ भारत केंद्रित थी. ये चिंता उतनी ‘राष्ट्रवादी’ नहीं है जितना वो चाहते हैं कि मालदीव और मालदीव के लोग समझें.
भारत के अलावा अमेरिका इकलौता ऐसा देश है जिसके साथ मालदीव ने अभी तक इस तरह का समझौता किया है. लेकिन यामीन खेमा ने एक बार भी अमेरिका के साथ किसी रक्षा सहयोग समझौते को लेकर आधी भी जानकारी नहीं मांगी. इससे साफ़ संकेत मिलता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर यामीन खेमे की चिंता एकतरफ़ा और सिर्फ़ भारत केंद्रित थी.
इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि राष्ट्रपति के तौर पर (2013-18) यामीन सरकार ने चीन के साथ कई व्यपार और विकास समझौतों पर हस्ताक्षर किए जिससे भारी मात्रा में कर्ज़ बढ़ा जिसको भविष्य की सरकारों को चुकाना पड़ेगा. चीन के कर्ज़ को लेकर मौजूदा समय में श्रीलंका के अनुभव को देखते हुए सिंगापुर के पूर्व प्रधानमंत्री ली कुआन यू की तरह विकास करने वाला नेता बनने की महत्वाकांक्षा रखने वाले यामीन को संसद के ज़रिए देश को विश्वास में लेना चाहिए था क्योंकि ये सिर्फ़ अर्थव्यवस्था से जुड़ा मामला था. लेकिन जब बात चीन के हितों को लेकर थी तो यामीन ने रिसॉर्ट बनाने के लिए द्वीप के आवंटन में गुपचुप रुख़ अख्तियार किया. बाद में उन्हें अपने चीन के दौरे से दो दिन पहले संसद के सत्र का ख़्याल आया और वो भी कुछ घंटों के लिए ताकि मालदीव-चीन मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को मंज़ूरी दी जा सके. वैसे उनके चीन दौरे को भी आख़िरी समय तक बेहद गुप्त रखा गया था. अगर एफटीए लागू नहीं हुआ तो इसकी वजह मालदीव में सरकार का बदलना है.
व्यक्तिगत पूर्वाग्रह
ऐसा लगता है कि यामीन की भारत विरोधी राजनीति उनके व्यक्तिगत पूर्वाग्रह की वजह से है. ये उनके खेमे की इस सोच पर केंद्रित है कि भारत मालदीव की राजनीति में उनके राजनीतिक विरोधियों का पक्ष लेता है. 2013 में यामीन के पक्ष में कथित न्यायिक झुकाव को लेकर अलग-अलग विवादों के बीच उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव जीता था. इससे कुछ दिन पहले यामीन और जम्हूरी पार्टी (जेपी) के राष्ट्रपति उम्मीदवार गासिम इब्राहिम ने एक साझा बयान जारी कर कहा कि मालदीव के चुनाव आयोग की मदद करने वाले भारत के तकनीकी कर्मी एमडीपी के नशीद के पक्ष में नतीजे लाने के लिए धांधली करने वाले हैं. यामीन खेमे ने इस बात पर भी आपत्ति जताई थी कि भारत नशीद के लिए ‘समान अवसर’ मुहैया कराने की मांग कर रहा है जिससे कि वो चुनाव लड़ सकें. उस वक़्त नशीद एक ‘अपहरण के मामले’ का सामना कर रहे थे और ये संभव था कि सज़ा मिलने की वजह से वो चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाते.
भारत के ख़िलाफ़ यामीन के पूर्वाग्रह की वजह से नकदी के संकट से जूझ रही उनकी सरकार को भारतीय इंफ्रा कंपनी जीएमआर ग्रुप को 271 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भारी-भरकम मुआवज़ा देना पड़ा. इसकी वजह ये थी कि यामीन से पहले की वहीद सरकार ने माले हवाई अड्डे के निर्माण का काम रद्द कर दिया था जिसे नशीद की सरकार ने जीएमआर ग्रुप को आवंटित किया था. बाद में यामीन ने भारत के विदेश मंत्रालय के द्वारा अभूतपूर्व ढंग से एक मित्र देश के ‘आंतरिक मामलों’ में टिप्पणी और उनके फ़ैसले, जिसमें आपातकाल लागू करना शामिल है, की आलोचना को सहजता से नहीं लिया. यामीन ने सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की बेंच के द्वारा नशीद के लिए स्वतंत्रता के आदेश के बाद आपातकाल लागू किया था.
भारत के अलावा अमेरिका इकलौता ऐसा देश है जिसके साथ मालदीव ने अभी तक इस तरह का समझौता किया है. लेकिन यामीन खेमा ने एक बार भी अमेरिका के साथ किसी रक्षा सहयोग समझौते को लेकर आधी भी जानकारी नहीं मांगी. इससे साफ़ संकेत मिलता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर यामीन खेमे की चिंता एकतरफ़ा और सिर्फ़ भारत केंद्रित थी.
हालांकि, नशीद ने उस वक़्त यूके में राजनीतिक शरण हासिल कर लिया था जहां मालदीव की एक अदालत के द्वारा सज़ा सुनाए जाने के बाद वो क़ैदी के तौर पर गए थे. यामीन इस बात से भी नाराज़ हो गए कि भारत ने उनके क़रीबी सहयोगी और पीपीएम संसदीय समूह के नेता अहमद निहान को चेन्नई से वापस भेज दिया जहां वो अपनी मां का इलाज करवाने के लिए गए थे.
अपने पूरे कार्यकाल के दौरान यामीन सरकार ने भारत पर अपने दो हेलीकॉप्टर वापस लेने के लिए दबाव बनाए रखा. भारत ने दोनों हेलीकॉप्टर भारतीय पायलट और तकनीकी कर्मियों के साथ मालदीव को मानवीय सहायता, ख़ास तौर पर दूर-दराज़ के द्वीपों में गंभीर रूप से बीमार मरीज़ों को अस्पताल तक पहुंचाने के काम, के लिए तोहफ़े के रूप में दिया था. हालांकि, यामीन के दबाव के बावजूद उनके बाद सत्ता में आई सोलिह सरकार ने भारतीय हेलीकॉप्टर, पायलट और तकनीकी कर्मियों का इस्तेमाल जारी रखा. इसके लिए कई बार सफ़ाई और भरोसा दिया गया कि हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल पूरी तरह से एमएनडीएफ के निर्देश पर होता है जिसको कि इस काम के लिए समन्वय का ज़िम्मा सौंपा गया है.
यामीन की पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी पता है कि चावल, चीनी और दवाई से लेकर रोज़ाना के इस्तेमाल की हर चीज़ भारत कई वर्षों से लगातार सप्लाई कर रहा है. भारत ने उस समय भी मालदीव को ज़रूरी सामानों की सप्लाई जारी रखी जब भारत ख़ुद उन सामानों की कमी का सामना कर रहा था.
यामीन खेमे के द्वारा अपने ‘इंडिया आउट’ और ‘इंडिया मिलिट्री आउट’ के अभियानों के बीच बदलाव के पीछे ये वजह हो सकती है क्योंकि मौजूदा सरकार के ख़िलाफ़ अपने कई आरोपों के मुक़ाबले अपने इस मक़सद के लिए लोगों के समर्थन को लेकर वो अनिश्चित लग रहे हैं और वो इसको लेकर दबाव बनाने के उत्सुक नहीं हैं. इसकी एक वजह ये भी है कि यामीन की पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी पता है कि चावल, चीनी और दवाई से लेकर रोज़ाना के इस्तेमाल की हर चीज़ भारत कई वर्षों से लगातार सप्लाई कर रहा है. भारत ने उस समय भी मालदीव को ज़रूरी सामानों की सप्लाई जारी रखी जब भारत ख़ुद उन सामानों की कमी का सामना कर रहा था. इस स्थिति में यामीन की पार्टी के कार्यकर्ता ख़ुद को भी ये समझाने में नाकाम थे कि वो भारत को पसंद नहीं करते हैं या भारत के वो आभारी नहीं हैं.
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