Published on Oct 09, 2023 Updated 20 Days ago

ग़रीब परिवारों द्वारा मुख्य ईंधन के तौर पर LPG इस्तेमाल करने की क्षमता सीमित होने से ग़रीबों द्वारा सरकारी सब्सिडी के साथ LPG का इस्तेमाल करने और उसका ख़र्च उठा पाने को लेकर सवाल उठ रहे हैं. 

भारत में LPG गैस सब्सिडी देने की सीमाएं

ये लेख हमारी, ‘कॉम्प्रिहेंसिव एनर्जी मॉनिटर: इंडिया ऐंड दि वर्ल्ड’ का एक हिस्सा है


पृष्ठभूमि

उज्जवला योजना के तहत सब्सिडी वाली एलपीजी के इस्तेमाल को लेकर 2022 और 2023 में संसद में और RTI के प्रावधानों के तहत पूछे गए सवालों के जवाब दिए गए थे. RTI के तहत पूछे गए एक सवाल के जवाब में तरल प्राकृतिक गैस (LPG) के खुदरा विक्रेताओं ने बताया था कि उज्जवला कार्यक्रम के 9.58 करोड़ लाभार्थियों में से 1.84 करोड़ ने दोबारा LPG गैस सिलेंडर नहीं भराया था और 1.5 करोड़ लोगों ने 2022-23 में केवल एक बार अपना सिलेंडर दोबारा भराया था. संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया था कि 2019-20 से 2020-21 के बीच उज्जवला योजना के तहत LPG सब्सिडी पाने वाले लाभार्थियों द्वारा सिलेंडर भराने की तादाद तीन से बढ़कर 4.4 हो गई थी. लेकिन, 2022-23 में दोबारा सिलेंडर भराने का ये औसत फिर से घटकर 3.7 रह गया था. भले ही रसोई गैस को लेकर सरकार सब्सिडी दे रही है. लेकिन, ग़रीब परिवारों द्वारा मुख्य ईंधन के तौर पर LPG इस्तेमाल करने की क्षमता सीमित होने से ग़रीबों द्वारा सरकारी सब्सिडी के साथ LPG का इस्तेमाल करने और उसका ख़र्च उठा पाने को लेकर सवाल उठ रहे हैं. 

भारत में तरल प्राकृतिक गैस (LPG) के सीमित इस्तेमाल की सबसे बड़ी वजह इसका ख़र्च उठा पाने की क्षमता है.

परिवारों के LPG इस्तेमाल करने की क्षमता

भारत में तरल प्राकृतिक गैस (LPG) के सीमित इस्तेमाल की सबसे बड़ी वजह इसका ख़र्च उठा पाने की क्षमता है. भारत, ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच की नीतियां, निचले आर्थिक और सामाजिक स्तर पर लागू करने की कोशिश कर रहा है. जिन देशों में ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच के कार्यक्रम पहले लागू किए गए थे, वहां प्रति व्यक्ति आय का स्तर पहले से ही काफ़ी अधिक था. (ख़ास तौर से बिजली के मामले में जो खाना पकाने के ईंधन के तौर पर भी इस्तेमाल होती है).

Source: World Bank Database

मिसाल के तौर पर जब 1935 में अमेरिका के ग्रामीण इलाक़ों में विद्युतीकरण का प्रशासन स्थापित किया गया था, जब अमेरिका की प्रति व्यक्ति GDP 9644 डॉलर प्रति व्यक्ति (2017 का मूल्य), जो 2022 में भारत की प्रति व्यक्ति GDP से चार गुना अधिक थी. यहां तक कि जब दक्षिण अफ्रीका ने घर घर बिजली पहुंचाने का अभियान शुरू किया था, तो वहां की प्रति व्यक्ति GDP, आज के भारत की दोगुनी थी.

भारत में शहरीकरण और औद्योगीकरण की रफ़्तार उतनी तेज़ नहीं है, जितनी तेज़ उन देशों की रही थी, जब उन्होंने सभी नागरिकों तक खाना पकाने का ईंधन पहुंचाने के कार्यक्रम शुरू किए थे. चीन, जो शुरुआत में भारत जैसी विकास संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहा था, उसने अपने ऊर्जा संसाधन पहुंचाने के कार्यक्रमों के साथ साथ औद्योगीकरण, आधुनिकीकरण और शहरीकरण के कार्यक्रम भी शुरू किए थे (चार्ट 1 और 2 देखें). इससे ग्रामीण परिवारों की आमदनी बढ़ी और उससे उनके लिए स्वच्छ ईंधन इस्तेमाल करने का ख़र्च उठाने की क्षमता में भी इज़ाफ़ा हो गया.

LPG तक पहुंच से लंबी अवधि में ग़रीबी घटाने में मदद (आमदनी बढ़ाने) में भी मिलती है. क्योंकि इससे लकड़ी जुटाने और उससे खाना पकाने में लगने वाला समय और लागत घट जाते हैं.

ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच और ग़रीब परिवारों की कम आमदनी के बीच पारस्परिक संबंध है. और इसी वजह से ऊर्जा के स्रोतों जैसे कि LPG की कम मांग, कम आमदनी का कारण भी है और नतीजा भी. LPG तक पहुंच से लंबी अवधि में ग़रीबी घटाने में मदद (आमदनी बढ़ाने) में भी मिलती है. क्योंकि इससे लकड़ी जुटाने और उससे खाना पकाने में लगने वाला समय और लागत घट जाते हैं. ये बात ग्रामीण भारत की महिलाओं पर ख़ास तौर से लागू होती है, जिनके ऊपर खाना पकाने के लिए लकड़ी जुटाने की ज़िम्मेदारी सबसे ज़्यादा होती है. खाना पकाने के लिए ईंधन जुटाने की लागत कम होने से सैद्धांतिक रूप से महिलाओं के लिए शिक्षा और मेहनताने वाली आर्थिक गतिविधियों के अवसर बढ़ जाते हैं. फिर इससे परिवारों की आमदनी बढ़ती है और वो LPG इस्तेमाल करने का ख़र्च उठाने लायक़ बन जाते हैं. 

हालांकि, उज्जवला के लाभार्थियों द्वारा LPG सिलेंडर दोबारा भराने के आंकड़े बताते हैं कि सीमित अवधि में ग़रीबी से LPG की मांग कम हो सकती है. भारत में प्रति व्यक्ति निजी अंतिम खपत का व्यय (PFCE) साल 2022-23 में 104, 811 रूपए आंका गया था. इसका मतलब है कि 1100-1350 रूपए मूल्य वाले 14.2 किलोग्राम वाले LPG सिलेंडर का इस्तेमाल, लोगों की आमदनी के दस प्रतिशत से भी अधिक मासिक ख़र्च के बराबर बैठता है. अब जिन परिवारों को ऊर्जा के आधुनिक संसाधन अपनाने के लिए अपने मासिक ख़र्च के दस प्रतिशत से भी ज़्यादा व्यय करने पड़ें, तो ये ऊर्जा की ग़रीबी कही जाएगी. इस परिभाषा के मुताबिक़, सिर्फ़ LPG ख़रीदने (इसमें रौशनी के लिए बिजली और दोपहिया वाहनों के इस्तेमाल के लिए पेट्रोल का ख़र्च शामिल नहीं है) का बोझ ही एक सदस्य की आमदनी के भरोसे रहने वाले परिवार को ऊर्जा की ग़रीबी की ओर धकेल सकता है.

Source: World Bank Database

ग़रीब तबक़े के बीच LPG की कम मांग और ग्रामीण परिवारों के भौगोलिक रूप से बिखरे होने के कारण भी शहरी इलाक़ों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में रसोई गैस की सुविधा अच्छी नहीं है. गांवों में भी LPG वितरण के शहरों जैसी सुविधा स्थापित करने में निवेश करना फ़ायदेमंद नहीं माना जाता (आर्थिक और सामाजिक रूप से इसे बरबादी कहा जाता है). क्योंकि, गांवों में आर्थिक गतिविधियों और उत्पादकता का स्तर निम्न स्तर का होता है. रसोई गैस की कम मांग की वजह से इसकी आपूर्ति भी अच्छी नहीं होती (नियमित और समय पर उपलब्धता न होना). फिर इसकी वजह से LPG की मांग ही नहीं होती. इस वजह से कम मांग और फिर उससे ख़राब सेवा का दुष्चक्र शुरू हो जाता है, जिससे मांग और भी कम हो जाती है. ‘ग़रीबों के लिए ख़राब सेवा’ के नियम से सार्वजनिक हित के संसाधनों जैसे कि ऊर्जा (जिसमें LPG और ऊर्जा के अन्य स्रोत भी शामिल हैं) की मांग की सेवाएं, शहरों के मुक़ाबले ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अलग और ख़राब तरह की होती हैं. इनमें सब्सिडी देना भी शामिल है. ग्रामीण परिवारों की क़ीमत पर शहरी परिवारों को बेहतर सुविधाएं दी जाती हैं. ये गहरी जड़ें जमाए बैठी पूंजीवादी आर्थिक व्यवस्था के मूल में है. यही बात मूलभूत ढांचे, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा जैसे अन्य सार्वजनिक हित के संसाधनों में भी लागू होती है. इससे समाज में गहरी जड़ें जमाए बैठी सामाजिक वर्गीकरण की व्यवस्था नुमायां होती है, जो दूरी और आबादी के घनत्व की वजह से और बिगड़ती जाती है. इस दुविधा से उबरने के लिए लोग सबसे पहले शहरों की ओर भागने का विकल्प चुनते हैं. ग़रीब लोग LPG और बिजली जैसी ऊर्जा की अन्य बेहतर सुविधाएं पाने के लिए शहरों का रुख़ करते हैं, ताकि वो गांवों तक ये बेहतर सुविधाएं पहुंचने का इंतज़ार करने के बजाय शहरों में रहकर बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएं हासिल कर सकें.

LPG सब्सिडी का ख़र्च उठाने की क्षमता और सरकार

LPG की खपत बढ़ाने के लिए सब्सिडी की सेवा 1970 के दशक में शुरू की गई थी, जब रसोई गैस सिलेंडर उपयोग करने में सुरक्षा के ख़तरों की वजह से शहरों में इसे सीमित रूप से अपनाया गया था. 1990 का दशक आते आते, शहरी परिवारों के बीच LPG का व्यापक उपयोग बढ़ाने के लिए इसकी सुरक्षा को मज़बूत किया गया. तब LPG सब्सिडी का उपयोग तुलनात्मक रूप से बेहतर आर्थिक स्थितियों वाले शहरी परिवार ही कर पा रहे थे. इस वजह से LPG घटना के सुझाव पर सरकार का विरोध होने लगा था. ये स्थिति 2010 के दशक में बदल गई, जब संस्थागत रूप से LPG सब्सिडी घटाने की पहल शुरू की गई. वित्तीय सब्सिडी घटाने के बजट प्रावधान, लक्ष्य आधारित ग्राहकों को सीधे बैंक में सब्सिडी देने की सुविधा और तेल- गैस की अंतररराष्ट्रीय क़ीमतों में गिरावट की वजह से धीरे धीरे LPG पर दी जाने वाली सब्सिडी ख़त्म होती गई. लेकिन, 2021 के बाद से अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में LPG की क़ीमतों में बढ़ोत्तरी और ये हक़ीक़त सामने आने के बाद कि LPG पर दी जाने वाली सब्सिडी से हमेशा ग़रीबों द्वारा इसका इस्तेमाल नहीं बढ़ता है, ने एक बार फिर से रसोई गैस के इस्तेमाल का ख़र्च उठा पाने के सवाल में दिलचस्पी पैदा कर दी है.

G20 की पहली रिपोर्ट का सुझाव है कि LPG इस्तेमाल के बदले में कार्बन क्रेडिट दिए जाएं, जिससे भारत और अन्य देशों में जहां खाना बनाने के लिए लकड़ी और दूसरे जैविक ईंधनों का इस्तेमाल ज़्यादा होता है, उसे कम किया जा सके.

2013 की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में LPG की क़ीमत 800 डॉलर प्रति टन से घटकर आधी यानी 400 डॉलर प्रति मीट्रिक टन रह गई थी. कोविड-19 महामारी के अंतिम दौर तक LPG के यही दाम अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बने रहे थे. हालांकि, 2022 की शुरुआत में इसके दाम बढ़कर 1000 डॉलर प्रति टन के स्तर पर जा पहुंचे थे. उसके बाद से 2023 के मध्य में LPG की क़ीमतें घटकर लगभग आधी यानी 500 मीट्रिक टन रह गई हैं. हालांकि, भारत में LPG की क़ीमत लगभग 166 प्रतिशत बढ़कर 414 रूपए प्रति सिलेंडर से बढ़कर जुलाई 2023 में 1103 रूपए (दिल्ली में) पहुंच गई थी. दाम में ये बढ़ोत्तरी अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में क़ीमतों में उछाल से ज़्यादा सब्सिडी में कटौती का नतीजा है (देश की 60 प्रतिशत से ज़्यादा LPG की मांग आयात से पूरी होती है). नवंबर 2018 तक प्रति सिलेंडर डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर 435 रुपए तक पहुंच गया था. इसके बाद ये जुलाई 2019 में गिरकर 140 रूपए प्रति सिलेंडर हो गया. 2015-16 में DBT 260 अरब रुपए थी, जो 2018-19 में बढ़कर 315 अरब रुपए पहुंच गई. लेकिन, उसके बाद से डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर में गिरावट आती जा रही है और 2022-23 में ये घटकर 8.5 अरब रुपए ही रह गई है. ज़ाहिर है कि सरकारी ख़ज़ाने पर सब्सिडी का बोझ कम करने पर लगातार ज़ोर दिया जा रहा है.

LPG की खपत को कैसे बनाए रखा जाए

LPG सब्सिडी को लेकर इस दुविधा से हाल की दो रिपोर्टों से निपटने की कोशिश की गई है. इनमें सुझाव दिया गया है कि ग़रीब घरों में LPG की खपत बनाए रखने के लिए बाहरी मदद दी जाए. G20 की पहली रिपोर्ट का सुझाव है कि LPG इस्तेमाल के बदले में कार्बन क्रेडिट दिए जाएं, जिससे भारत और अन्य देशों में जहां खाना बनाने के लिए लकड़ी और दूसरे जैविक ईंधनों का इस्तेमाल ज़्यादा होता है, उसे कम किया जा सके. तेल और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा तैयार की गई एनर्जी ट्रांज़िशन एडवाइज़री कमेटी की दूसरी रिपोर्ट ने सुझाव दिया है कि हर साल ग़रीब परिवारों को आठ LPG सिलेंडर रिफिल कराने पर सब्सिडी दी जाए और इसमें उन परिवारों पर ख़ास ज़ोर दिया जाए, जिनको इसकी सबसे अधिक ज़रूरत है.

एनर्जी ट्रांज़िशन एडवाइज़री कमेटी का सुझाव मानते हुए सरकार LPG सब्सिडी को जारी रख सकती है, जिससे कम अवधि में LPG की सब्सिडी तो बनी रहे. लेकिन G20 के मंच से LPG कार्बन क्रेडिट को बढ़ावा दिया जाता रहे, जिससे दूरगामी अवधि में भी LPG का इस्तेमाल बना रहे.

Source: Petroleum Planning & Analysis Cell
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Authors

Akhilesh Sati

Akhilesh Sati

Akhilesh Sati is a Programme Manager working under ORFs Energy Initiative for more than fifteen years. With Statistics as academic background his core area of ...

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Lydia Powell

Lydia Powell

Ms Powell has been with the ORF Centre for Resources Management for over eight years working on policy issues in Energy and Climate Change. Her ...

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Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change. Member of the Energy News Monitor production ...

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