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Published on Oct 28, 2025 Updated 3 Days ago

स्वच्छ ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों की दुनिया में खनिज ही नई ‘सुपर-पावर’ बन गए हैं. लिथियम, तांबा और कोबाल्ट जैसी सामग्रियाँ न सिर्फ तकनीकी क्रांति की रीढ़ हैं, बल्कि भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक महत्वाकांक्षा का नया रास्ता भी खोलती हैं. लैटिन अमेरिका की खनिज संपदा अब भारत के वैश्विक सप्लाई चेन और स्थिर विकास की कुंजी बनती जा रही है.

लिथियम + तांबा: भारत की 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था की नई रीढ़

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स्वच्छ ऊर्जा की तरफ दुनिया भर में बदलाव उन खनिजों पर नई निर्भरता उत्पन्न कर रहा है जो नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक गाड़ियों से आवाजाही की रीढ़ की हड्डी के रूप में काम करते हैं. विशेष रूप से लिथियम और तांबा कम कार्बन वाले विकास को बनाए रखने के लिए ज़रूरी संसाधन के रूप में उभरे हैं. फिर भी, दुनिया भर में खनिज संपदा को लेकर बढ़ते अनुसंधान के बावजूद ज़्यादातर ध्यान चीन के भारी निवेश या पश्चिमी देशों के स्थिरता केंद्रित ढांचे पर बना हुआ है. महत्वपूर्ण खनिजों को लेकर दुनिया का ध्यान खींचने में उभरते क्षेत्र लैटिन अमेरिका की चर्चा अपेक्षाकृत कम होती है. जैसे-जैसे भारत महत्वपूर्ण खनिजों और इसके आयात एवं निर्यात से जुड़ी दूसरी सप्लाई चेन की तलाश में अपनी दिशा बदल रहा है, उस समय लैटिन अमेरिका के साथ संबंध एक प्रमुख माध्यम बनने की संभावना है. 

  • महत्वपूर्ण खनिजों को लेकर लैटिन अमेरिका के साथ भारत के संबंध उसकी अर्थव्यवस्था को आकार दे सकते हैं. 
  • चीन की तुलना में भारत का मौजूदा नज़रिया मामूली लगता है. लैटिन अमेरिका में प्रभावी ढंग से अपनी जगह हासिल करने के लिए भारत को इनोवेटिव, पर्यावरण को ध्यान में रखकर खनन का तौर-तरीका अपनाने की आवश्यकता है. 

5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने और जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करने की भारत की आकांक्षा संसाधनों को सुरक्षित करने पर टिकी हुई है. महत्वपूर्ण खनिजों तक पहुंच के बिना भारत का ऊर्जा बदलाव और विकास से जुड़ा उसका व्यापक एजेंडा तेज़ी से आगे बढ़ने में संघर्ष करेगा. शायद इस बारे में सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा गारंटी खनिजों का लगातार आना होगा जो घरेलू स्तर पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं. अमेरिका में नीतिगत उथल-पुथल से दुनिया भर में सप्लाई पर असर पड़ने के बीच लैटिन अमेरिका के साथ सप्लाई चेन की नई कनेक्टिविटी स्थापित करने से इस क्षेत्र में भारत की अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा किया जा सकता है और इससे बेहद ज़रूरी स्थिरता मिल सकती है. ये कनेक्टिविटी सिर्फ महत्वपूर्ण खनिजों के मामले में नहीं बल्कि आयात और निर्यात के दूसरे सामानों में भी होनी चाहिए. 

मशहूर लिथियम ट्रायंगल है जो अर्जेंटीना, बोलीविया और चिली तक फैला हुआ है. यहां के नमक के मैदानों और रेगिस्तान के नीचे दुनिया के लिथियम भंडार का 60 प्रतिशत से ज़्यादा मौजूद है. चिली और पेरू के पहाड़ों में भारी मात्रा में तांबा मौजूद है जो इसे दुनिया में संभावित ऊर्जा बदलाव का एक और केंद्र बनाता है. 

इस सोच के केंद्र में मशहूर लिथियम ट्रायंगल है जो अर्जेंटीना, बोलीविया और चिली तक फैला हुआ है. यहां के नमक के मैदानों और रेगिस्तान के नीचे दुनिया के लिथियम भंडार का 60 प्रतिशत से ज़्यादा मौजूद है. चिली और पेरू के पहाड़ों में भारी मात्रा में तांबा मौजूद है जो इसे दुनिया में संभावित ऊर्जा बदलाव का एक और केंद्र बनाता है. दूरदराज के क्षेत्रों में छिपे ये संसाधन अर्थव्यवस्था और पर्यावरण से जुड़े भारत के लक्ष्यों के लिए जीवनरेखा बन सकते हैं. महत्वपूर्ण खनिजों को लेकर लैटिन अमेरिका के साथ भारत के संबंध उसकी अर्थव्यवस्था को आकार दे सकते हैं. 

खनिजों का भू-अर्थशास्त्र 

लिथियम, कोबाल्ट और तांबा जैसे महत्वपूर्ण खनिज केवल कमोडिटी नहीं हैं बल्कि ये स्वच्छ ऊर्जा, स्थिरता और तकनीक में अत्याधुनिक क्रांति से अपने संबंधों की वजह से प्रेरित नए ज़माने के भू-अर्थशास्त्र के लिए अहम हैं. उदाहरण के लिए, लिथियम से चलने वाली बैटरी न सिर्फ इलेक्ट्रिक गाड़ियों में बदलाव ला रही है बल्कि अलग-अलग देशों के सतत विकास लक्ष्यों (SDG) में भी सुधार कर रही है. कोबाल्ट और तांबा जैसे दूसरे महत्वपूर्ण खनिज आधुनिक तकनीकों और रक्षा एवं नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों में अपनी ज़रूरी भूमिका के लिए अहम हैं. इसके साथ-साथ वो सोलर ग्रिड से लेकर पवन ऊर्जा टर्बाइन तक आधुनिक ऊर्जा प्रणालियों की औद्योगिक रीढ़ की हड्डी के रूप में भी काम करते हैं. 

लैटिन अमेरिका की तरफ भारत का झुकाव पिछले कुछ वर्षों के दौरान लगातार तेज़ी से बढ़ा है. महत्वपूर्ण खनिजों के क्षेत्र में वैश्विक सप्लाई और वैल्यू चेन के साथ लैटिन अमेरिका के अपने एकीकरण का मिलन भारत में इस क्षेत्र में पर्याप्त सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए तेज़ी से कदम बढ़ाने के साथ हुआ है. जनवरी 2024 में एक नई शुरुआत हुई जब खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) ने अर्जेंटीना की सरकारी कंपनी कैमयेन एसई (CAMYEN SE) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. ये लैटिन अमेरिका में भारत की पहली प्रत्यक्ष खनन साझेदारी थी जिसके तहत भारत को 15,000 हेक्टेयर में फैले लिथियम से भरपूर खारे हिस्से की खोज करने और विकसित करने का अधिकार मिला. फरवरी 2025 में दोनों पक्षों ने पिछले साल के खनन समझौते को आगे बढ़ाते हुए महत्वपूर्ण खनिजों का पता लगाने और संसाधन विकास में गहरे तालमेल के लिए एक और समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए. इसके साथ-साथ चिली के साथ बातचीत ने तांबे और लिथियम में सहयोग के लिए दरवाजे खोले जबकि भारत की प्राइवेट कंपनियों ने पेरू और बोलीविया में अवसरों का पता लगाने की शुरुआत की. एक समय जो सीमित व्यापार लगता था वो अब भारत और लैटिन अमेरिका के बीच व्यापक सामरिक साझेदारी के शुरुआती चरण के रूप में दिखाई देता है. 

दुनिया के अखाड़े में मुकाबला 

महत्वपूर्ण खनिजों के लिए वैश्विक परिदृश्य तेज़ी से भीड़ भरा हो रहा है जो निकट भविष्य में संभावित प्रतिस्पर्धा की ओर ले जाएगा. लैटिन अमेरिका अगला महादेश बन गया है जहां महत्वपूर्ण खनिजों, विशेष रूप से लिथियम, के लिए शोर महाशक्तियों के बीच मुकाबले की ओर ले जाएगा. लैटिन अमेरिका में चीन की मौजूदगी भारत से कहीं ज़्यादा है. चीन, अर्जेंटीना की लिथियम और परणामु ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश कर रहा है. 2018 से चीन की कंपनियों ने खनन और प्रसंस्करण के काम में 16 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा का निवेश किया है जिसे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं से मज़बूती मिली है. इन निवेशों का एक हिस्सा एकीकृत प्रणाली हासिल करने में लगाया गया है जो खनन से लेकर रिफाइनिंग और बैटरी उत्पादन तक फैली हुई है. चीन, पेरू के खनन क्षेत्र के महत्वपूर्ण हिस्से पर भी नियंत्रण रखता है. भारी मात्रा में लिथियम भंडार वाला चिली इस क्षेत्र में एक और देश है जहां चीन सबसे बड़ा ख़रीदार बनकर उभरा है. 

लैटिन अमेरिका अगला महादेश बन गया है जहां महत्वपूर्ण खनिजों, विशेष रूप से लिथियम, के लिए शोर महाशक्तियों के बीच मुकाबले की ओर ले जाएगा. लैटिन अमेरिका में चीन की मौजूदगी भारत से कहीं ज़्यादा है.

चीन की तुलना में भारत का मौजूदा नज़रिया मामूली लगता है. सरकारी स्तर पर समझौते से प्रवेश तो मिलता है लेकिन प्राइवेट कंपनियों की भागीदारी और सप्लाई चेन का एकीकरण सीमित बना रहता है. लैटिन अमेरिका में प्रभावी ढंग से अपनी जगह हासिल करने के लिए भारत को इनोवेटिव, पर्यावरण को ध्यान में रखकर खनन का तौर-तरीका अपनाने की आवश्यकता है. साथ ही भारत को ऐसी साझेदारी विकसित करनी होगी जो विकास और नैतिक मानकों- दोनों को प्राथमिकता दे. 

लैटिन अमेरिका की खनिज संपदा के साथ भारत की भागीदारी अवसर और चुनौतियां- दोनों पेश करती है. ख़ुद को एक भरोसेमंद और इनोवेटिव साझेदार के रूप में स्थापित करने के लिए भारत को ऐसा नज़रिया अपनाना होगा जो पारंपरिक खनिज निकालने की निवेश रणनीति से आगे हो. उसे ख़ुद को न केवल महत्वपूर्ण खनिजों के एक ख़रीदार के रूप में बल्कि जानकारी साझा करने वाले के रूप में भी स्थापित करना होगा जो इन महत्वपूर्ण संसाधनों के खनन के साथ जुड़ी तकनीकों और विशेषज्ञता के मामले में लेन-देन का दृष्टिकोण अपनाने में सक्षम हो. पर्यावरण से जुड़े दबाव भी महत्वपूर्ण है क्योंकि चिली के अटाकामा रेगिस्तान में लिथियम निकालने और पेरू में तांबे के खनन के दौरान बड़ी मात्रा में पानी की खपत होती है और इससे नाज़ुक इकोसिस्टम को नुकसान होता है. भारत इससे सीख सकता है और नवीकरणीय ऊर्जा से लैस खनन की तकनीकों (जैसे कि लिथियम के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले वाष्पीकरण तालाब और तांबे के लिए पवन ऊर्जा की मदद से अयस्क प्रसंस्करण) के मज़बूत समर्थक के रूप में खनिज निकालने की नई तकनीकों में योगदान कर सकता है. ये कम असर डालने वाली पद्धतियां खनन वाले क्षेत्रों में पुनर्वास कार्यक्रमों के साथ मिलकर भारत को लंबे समय तक संसाधन की स्थिरता को सुनिश्चित करते हुए पर्यावरण के संरक्षण को प्रदर्शित करने की अनुमति दे सकती हैं. इसके अलावा भारत अपनी खनन की रणनीति में सर्कुलर अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों को जोड़ने में अग्रणी भूमिका निभा सकता है. केवल खनिज निकालने पर निर्भर रहने के बदले भारत बैटरी और तांबा रिसाइकल करने के सिस्टम को लागू कर सकता है. इस तरह कचरे को कीमती संसाधनों में बदला जा सकता है. 

लैटिन अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती भागीदारी (विशेष रूप से खनिजों को निकालने के लिए तकनीकी सहयोग के क्षेत्र में) उसके रिश्तों को मज़बूत कर सकती है. लेकिन दुनिया के व्यापक संदर्भ में सावधानी बरतने की आवश्यकता है. वैश्विक मांग के साथ खनिजों के दाम बदलते रहते हैं और भू-राजनीतिक तनाव से पल भर में सप्लाई चेन में रुकावट आ सकती है. ऊर्जा से जुड़ी अपनी महत्वाकांक्षाओं की सुरक्षा के लिए भारत को अलग-अलग देशों से आयात करना चाहिए, लिथियम एवं तांबे का रणनीतिक भंडार बनाए रखना चाहिए और रियल-टाइम में संचालन पर नज़र रखने के लिए तकनीक का लाभ उठाना चाहिए. भारत को जो चीज़ सच में अलग करती है वो है खनन साझेदारी में डिजिटल गवर्नेंस और भविष्य बताने वाले विश्लेषण का संभावित एकीकरण. ये ऐसा क्षेत्र हैं जिसके बारे में ज़्यादा नहीं पता लगाया गया है. ब्लॉकचेन और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) जैसे सिस्टम हर चरण में पारदर्शिता प्रदान कर सकते हैं जिससे नैतिक प्रथाएं सुनिश्चित होंगी और पता लगाने योग्य एवं जवाबदेह सप्लाई चेन भी बनी रहेगी. 

भारत की रणनीति और संतुलन

भारत के पास केवल खनिज निकालने से आगे बढ़ने का भी मौका है. मेज़बान देशों में बैटरी उत्पादन इकाई या खनिज प्रसंस्करण का केंद्र स्थापित करने से भारत को अधिक लाभ हासिल होगा, रोज़गार पैदा होंगे और उसके कूटनीतिक संबंध मज़बूत होंगे. ग्रीन मिनरल बॉन्ड या सार्वजनिक-निजी निवेश की योजना जैसे इनोवेटिव फंडिंग के मॉडल एक तरफ तो लंबे समय के लिए पूंजी आकर्षित कर सकते हैं, वहीं दूसरी तरफ टिकाऊ और जवाबदेह विकास के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का संकेत दे सकते हैं. इसके ज़रिए भारत, लैटिन अमेरिका में हुनर और क्षमता जैसी खामियों को दूर करने में भी मदद कर सकता है. ट्रेनिंग कार्यक्रम, साझा रिसर्च परियोजनाएं और स्कॉलरशिप हुनरमंद प्रोफेशनल का भंडार तैयार कर सकती है जिससे परिचालन से जुड़ी कार्यकुशलता में बढ़ोतरी होगी और स्थानीय स्तर पर जानकारी को जोड़ा जा सकता है.  

जैसे-जैसे सेमीकंडक्टर पर दुनिया की निर्भरता बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे महत्वपूर्ण खनिजों के क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए भारत के राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (NCMM) के तहत घरेलू केंद्रों की स्थापना और संभावित क्षेत्रों पर बाहरी निर्भरता के बीच एक नाज़ुक संतुलन बनाने की आवश्यकता है. लैटिन अमेरिका ऐसा ही एक क्षेत्र हो सकता है.  

फिर भी, मज़बूत सामुदायिक संबंधों के बावजूद ये रास्ता अनिश्चितताओं के बिना नहीं है. लैटिन अमेरिका में खनन कानून और रॉयल्टी के ढांचे में बदलाव या खदानों के राष्ट्रीयकरण की दिशा में कदम बढ़ने के साथ राजनीतिक और नियामक स्थिति तेज़ी से बदल सकती है. भारत सावधानी से किए गए बहुवर्षीय समझौतों (जो कानूनी स्थिरता के साथ सरकारों, स्थानीय कंपनियों और भारतीय साझेदारों को प्रोत्साहन प्रदान करें) के माध्यम से इन मुश्किलों का सामना कर सकता है. परत दर परत ये संबंध बनाकर भारत एक ऐसे मज़बूत नेटवर्क का निर्माण कर सकता है जो नीतियों में उतार-चढ़ाव और आर्थिक झटकों का सामना करने में सक्षम हो.  

जैसे-जैसे सेमीकंडक्टर पर दुनिया की निर्भरता बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे महत्वपूर्ण खनिजों के क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए भारत के राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (NCMM) के तहत घरेलू केंद्रों की स्थापना और संभावित क्षेत्रों पर बाहरी निर्भरता के बीच एक नाज़ुक संतुलन बनाने की आवश्यकता है. लैटिन अमेरिका ऐसा ही एक क्षेत्र हो सकता है.  


विवेक मिश्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में डिप्टी डायरेक्टर हैं. 

प्रकृति चौधरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं. 

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