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दुनिया भर में AI को लेकर बंटवारे के बीच किगाली शिखर सम्मेलन ने अफ्रीका के डिजिटल उदय के लिए मंच तैयार किया लेकिन असली असर बुनियादी ढांचे, समावेशन और कार्यान्वयन पर निर्भर करेगा.
Image Source: Getty
अफ्रीका इस समय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) क्रांति के चौराहे पर खड़ा है. वैसे तो AI अफ्रीका में परिवर्तनकारी आर्थिक अवसरों को सामाजिक विकास के साथ जोड़ता है लेकिन महादेश के अलग-अलग हिस्सों में इसकी उपलब्धता और प्रभावशीलता बहुत कम है. 4.92 अरब अमेरिकी डॉलर के मूल्य वाला अफ्रीका का AI बाज़ार वर्तमान में वैश्विक AI बाज़ार के केवल 2.5 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है. एक अनुमान के मुताबिक 2030 तक AI वैश्विक अर्थव्यवस्था में 19.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर जोड़ेगा. ऐसे में अगर अफ्रीका मौजूदा समय में निर्णायक कदम नहीं उठाता है तो भविष्य में उसके केवल उपभोक्ता बनकर रह जाने का ख़तरा है.
AI की कार्यप्रणाली में विशाल डेटासेट पर एल्गोरिदम को प्रशिक्षित करना शामिल है ताकि मुश्किल कामों को अंजाम दिया जा सके. इसमें अक्सर शक्तिशाली ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट (GPU) पर निर्भर रहना पड़ता है. ये तकनीक अफ्रीका में पहले ही महत्वपूर्ण क्षमता का प्रदर्शन कर चुकी है, विशेष रूप से कृषि और स्वास्थ्य देखभाल में. कृषि में AI टूल का इस्तेमाल बारिश, मिट्टी की स्थिति और फसल की सेहत का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है जिससे किसानों को उपज बढ़ाने में मदद मिलती है. स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में AI का उपयोग बीमारियों के प्रकोप पर निगरानी रखने और दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सूचना के प्रसार को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है.
अगर अफ्रीका मौजूदा समय में निर्णायक कदम नहीं उठाता है तो भविष्य में उसके केवल उपभोक्ता बनकर रह जाने का ख़तरा है.
हालांकि AI का ये प्रयोग हाई-स्पीड इंटरनेट और मज़बूत कंप्यूटिंग क्षमता पर निर्भर करता है. अफ्रीका में इंटरनेट की पहुंच सिर्फ़ 43 प्रतिशत लोगों तक है. यहां बहुत कम देशों जैसे कि मोरक्को, मिस्र, दक्षिण अफ्रीका, केन्या और नाइजीरिया में ही AI के लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचा है. इसकी वजह से अफ्रीका के एक बड़े हिस्से के AI क्रांति से दूर रहने का ख़तरा है. इसके अलावा वैश्विक AI डेटा में अफ्रीका का योगदान बहुत कम है जिसकी वजह से स्थानीय संदर्भों के लिए AI टूल की प्रासंगिकता और सटीकता सीमित हो जाती है. दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई ये है कि अफ्रीका ने अभी तक AI की क्षमता का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया है. इसका एक बड़ा कारण अपर्याप्त बुनियादी ढांचा है.
अप्रैल 2025 में रवांडा ने अफ्रीका को लेकर पहले वैश्विक AI शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की ताकि वैश्विक AI इकोसिस्टम में अफ्रीका को एक सक्रिय योगदानकर्ता के रूप में तत्काल स्थापित किया जा सके और AI से प्रेरित अर्थव्यवस्था में अफ्रीका की क्षमता एवं वर्तमान हिस्सेदारी के बीच के अंतर को दूर किया जा सके. नीति निर्माताओं, निवेशकों, इनोवेटर्स और अकादमिक जगत से जुड़े लोगों को इकट्ठा करके शिखर सम्मेलन का उद्देश्य डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, वर्कफोर्स विकास और समावेशी नीति निर्माण में निवेश को बढ़ावा देना था ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि अफ्रीका जनसांख्यिकी से जुड़ा अपना फायदा असरदार ढंग से उठा सके और AI के भविष्य में योगदान करने के मामले में हाशिए पर नहीं रह जाए.
इसके अलावा, किगाली शिखर सम्मेलन में मौजूदा नेताओं ने सामूहिक रूप से 60 अरब अमेरिकी डॉलर देने का संकल्प लिया. इस फंड का इस्तेमाल AI संरचना का निर्माण करने, अफ्रीकी स्टार्टअप्स का समर्थन करने और AI से जुड़े अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने में किया जाएगा. इस कदम में सहायता देने के लिए रवांडा के सूचना एवं संचार तकनीक (ICT) और इनोवेशन मंत्रालय ने गेट्स फाउंडेशन के साथ मिलकर अफ्रीका का पहला AI स्केलिंग हब शुरू करने का एलान किया. 7.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बजट के साथ ये पहल स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और कृषि के क्षेत्रों में AI को लागू करने पर ध्यान देगी.
फिर भी, बड़ा सवाल जिसे शिखर सम्मेलन ने टाल दिया, वो था 60 अरब अमेरिकी डॉलर के फंड का स्रोत. अतीत के एक और उदाहरण में, 2001 के मशहूर आबुजा घोषणापत्र के दौरान अफ्रीका के देशों ने संकल्प लिया था कि वो हर साल अपने बजट का 15 प्रतिशत स्वास्थ्य देखभाल के लिए आवंटित करेंगे. लेकिन दक्षिण अफ्रीका और काबो वर्डे को छोड़कर कोई भी देश इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया. अगर यही पैटर्न दोहराया जाता है तो फंडिंग का दायित्व एक बार फिर विदेशी दानकर्ताओं, मुख्य रूप से बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर डाला जा सकता है. ब्लैकरॉक, माइक्रोसॉफ्ट और MGX (UAE समर्थित कंपनी) जैसी बड़ी कंपनियों ने पहले ही 100 अरब अमेरिकी डॉलर के एक वैश्विक AI फंड की घोषणा की है जिसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा अफ्रीका के लिए सुरक्षित रखा गया है.
रवांडा के सूचना एवं संचार तकनीक (ICT) और इनोवेशन मंत्रालय ने गेट्स फाउंडेशन के साथ मिलकर अफ्रीका का पहला AI स्केलिंग हब शुरू करने का एलान किया. 7.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बजट के साथ ये पहल स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और कृषि के क्षेत्रों में AI को लागू करने पर ध्यान देगी.
इसके अलावा, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी तकनीकी कंपनियों ने घाना, केन्या और दक्षिण अफ्रीका में डेटा सेंटर के साथ अफ्रीका में एक महत्वपूर्ण/भारी-भरकम मौजूदगी हासिल कर ली है. अफ्रीका के डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को आगे बढ़ाने के लिए गूगल ने 1 अरब अमेरिकी डॉलर का वित्तीय समर्थन दिया है. इसका दूसरा पहलू ये है कि इन निवेशों से अनजाने में डिजिटल उपनिवेशवाद को भी मज़बूती मिलने की आशंका है. उदाहरण के लिए, अफ्रीका में 2,000 से ज़्यादा भाषाओं की भाषाई विविधता के बावजूद गूगल केवल 60 का समर्थन करता है जिससे AI की पहुंच और प्रभाव सीमित होती है.
डेटा संप्रभुता और नियामक ढांचे को लेकर चिंताएं भी बनी हुई हैं. अफ्रीका का ज़्यादातर डेटा महादेश के बाहर स्थित सर्वर में स्टोर किया जाता है जिससे अधिकार क्षेत्र और यूज़र की निजता को लेकर कानूनी और नैतिक सवाल/अनिश्चितता उत्पन्न होती है. इस बीच AI के ट्रेनिंग मॉडल में अफ्रीका के डेटा का कम प्रतिनिधित्व बना हुआ है जिसके नतीजतन पक्षपातपूर्ण परिणाम सामने आ सकते हैं और ये सिस्टम अफ्रीका की वास्तविकताओं के लिए ठीक से काम नहीं कर सकता है.
नियामक कमियां एक और महत्वपूर्ण बाधा उत्पन्न करती हैं. मौजूदा समय में 10 से कम अफ्रीकी देशों (बेनिन, मिस्र, मॉरिशस, मोरक्को, रवांडा, सेनेगल, सिएरा लियोन और ट्यूनीशिया) में राष्ट्रीय AI रणनीति या नीति है. इसके विपरीत बाकी देशों में व्यापक राष्ट्रीय रूप-रेखा की कमी है. अफ्रीकन यूनियन (AU) ने इस दिशा में उस समय एक महत्वपूर्ण कदम उठाया जब जुलाई 2024 में उसने पूरे महाद्वीप के लिए AI रणनीति की शुरुआत की. लेकिन ये रणनीतियां उस समय तक सांकेतिक बनी रहेंगी जब तक कि उन्हें लागू करने में तेज़ी के लिए व्यावहारिक नीतियां और कार्यान्वयन के तौर-तरीके नहीं तैयार किए जाते हैं.
दुनिया के स्तर पर बात करें तो AI को विकसित करने के सही रास्ते को लेकर राय बंटी हुई है. फरवरी 2025 में पेरिस AI शिखर सम्मेलन के दौरान यूरोप के जोखिम-प्रतिकूल दृष्टिकोण, अमेरिका के इनोवेशन से प्रेरित मॉडल और चीन के सरकार की अगुवाई वाली रणनीति के बीच बंटवारा साफ तौर पर दिखा. वैसे तो इस सम्मेलन के दौरान अफ्रीका के कई नेता मौजूद थे लेकिन एक ठोस अफ्रीकी आवाज़ गायब रही. इस आयोजन ने अपने डिजिटल भविष्य को आकार देने के उद्देश्य से अफ्रीका के लिए विशेष मंच की आवश्यकता को और रेखांकित किया.
किगाली शिखर सम्मेलन ने बुनियाद तो रखी है लेकिन वास्तविक परीक्षा इसको लागू करना होगा जिससे ये सुनिश्चित होगा कि अफ्रीका में AI सिद्धांत और व्यवहार- दोनों मामलों में कायापलट करने वाला हो.
फिर भी, किगाली शिखर सम्मेलन अफ्रीका के नेतृत्व में AI विकास की दिशा में एक सांकेतिक कदम है. आने वाले समय में जोहानिसबर्ग में होने वाला AI फॉर गुड इंम्पैक्ट अफ्रीका इवेंट और किगाली में इंटरनेशनल ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर स्टैंडर्डाइज़ेशन (ISO) की वार्षिक बैठक- दोनों आयोजन अक्टूबर 2025 में होने वाले हैं- वैश्विक AI मानकों को अफ्रीका की ख़ास प्राथमिकताओं और विकास से जुड़े संदर्भ के साथ जोड़ने के लिए नए अवसर पेश करती है. दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने भी आगामी G20 शिखर सम्मेलन की अपनी अध्यक्षता के दौरान अफ्रीका के AI हितों की वकालत करने का संकल्प लिया है.
AI क्रांति में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने और इससे लाभ उठाने के लिए अफ्रीका महादेश को बुनियादी ढांचा तेज़ी से बढ़ाना होगा, अपने वर्कफोर्स को हुनरमंद बनाना होगा और समावेशी एवं लागू करने योग्य नीतियां तैयार करनी होंगी. किगाली शिखर सम्मेलन ने बुनियाद तो रखी है लेकिन वास्तविक परीक्षा इसको लागू करना होगा जिससे ये सुनिश्चित होगा कि अफ्रीका में AI सिद्धांत और व्यवहार- दोनों मामलों में कायापलट करने वाला हो.
समीर भट्टाचार्य ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
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Samir Bhattacharya is an Associate Fellow at ORF where he works on geopolitics with particular reference to Africa in the changing global order. He has a ...
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