Author : Falguni Tewari

Published on Nov 11, 2016 Updated 24 Days ago
जयललिता ‘अम्‍मा’ – एक शख्सियत

जे0 जयललिता नहीं रहीं। एक आकर्षक व्‍यक्तित्‍व ने 5 दिसम्‍बर की मध्‍य रात्रि में आखिरी सांसे लीं। 75 दिन की जीवन- मृत्‍यु की त्रासद यात्रा का आखिरकार अन्‍त हुआ। 6 दिसम्‍बर की प्रात- जब लोगों ने अखबार की सुर्खियां देखी या टी0वी0चैनलों को खोला, तो राजाजी मेमोरियल हाल चेन्‍नई में ’अम्‍मा’ केवल ‘स्‍मृति शेष’ भर थीं। शानदार पारदर्शी ताबूत में वे निष्‍प्राण अपने करोड़ों  समर्थकों को रोता-बिलखता छोड़ गयी थी। मृत्‍यु में भी ‘अम्‍मा’ आकर्षक लग रही थी। उनका चेहरा निस्‍तेज़ नहीं था। एक आभा-मण्‍डल अभी भी झलक रहा था। चेहरे पर विराजमान शान्ति एवं सजीवता सचमुच बता रही थी कि अपोलो एवं एम्‍स के चिकित्‍सक कतई गलत नहीं थे। अम्‍मा अस्‍पताल से घर जाने के लिए निश्चित ही स्‍वस्‍थ्‍य हो चुकी थी।

अम्‍मा की मृत्‍यु निश्‍चय ही शानदार रही। गांधी, नेहरू, शास्‍त्री, लोहिया, जे0पी0, चरण्‍ा सिंह, बालठाकरे जैसे राजनेताओं की मृत्‍यु हो अथवा राजीव गांधी, माधव राव सिंधिया एवं राजेश पायलट, प्रमोद महाज़न या गोपी नाथ मुंडे का असामयिक निधन हो, देश भले क्षुब्‍ध या व्‍यग्र हो, किन्‍तु देश की राजधानी से सुदुर स्थित एक राज्‍य के मुख्‍यमंत्री के निधन पर देश इस तरह से ठहर जायेगा, यह बिल्‍कुल ही अकल्‍पनीय था। यह इसलिए और भी विचारणीय हो उठता है कि जयललिता महीनों अपोलो अस्‍पताल में भर्ती रहीं। उनकी बीमारी की खब़र तब बनती थी, जब उनकी मृत्‍यु की अफवाहें फैलती थी। सोशल मीडिया में तो      तरह-तरह की कहानियां चलती-रहती थीं। उसमें तो शशिकला के षडयंत्र से लेकर, नोटबन्‍दी तथा एआईडीएमके समर्थकों के सम्‍भावित उपद्रव की आशंका जैसी अनेकों बेतुकी बातें जगह पाती रहती थीं ।

और अचानक जब सबकुछ ठीक लगने लगा तो, ‘अम्‍मा’ अपने करोड़ों समर्थकों को छोड़कर चलीं गयीं। जयललिता का व्‍यक्तित्‍व बेहद करिश्‍माई था। सिनेमा के रूपहले पर्दे पर वह अनायास आयीं। वे अत्‍यन्‍त प्रतिभाशाली छात्रा थी एवं अपनी अच्‍छी प्रारम्भिक शिक्षा के कारण ही वे अंग्रेजी की प्रखर वक्‍ता भी   थीं। पिता की असमय मृत्‍यु एवं परिवार की आर्थिक परेशानियों ने उन्‍हें अपनी शिक्षा को छोड़कर अभिनय के रास्‍ते पर आने को मज़बूर किया।  अभिनय  जगत

में ही उन्‍हें अपने आदर्श एवं प्रेरणा स्रोत गुरू एम0जी0 रामचन्‍द्रन की नायिका होने का सौभाग्‍य मिला।  लगभग 28 फिल्‍मों  में  जयललिता उस महानायक की नायिका रहीं। एम0जी0आर0 की प्रेरणा से ही जया फिल्‍मी दुनियां छोड़कर राजनीति में आयीं। एम0जी0आर0 की मृत्‍यु के बाद, थोड़ी कठिनाईयों के बाद वे उनकी राजनैतिक विरासत की वारिस बनीं।

जयललिता की संघर्ष गाथा किसी फिल्‍मी पटकथा के कम रोमाचंक नहीं है। अपने लगभग 30 साल के राजनैतिक सफर में जया ने ढेरों उतार-चढ़ाव देखे। वे तमिलनाडु की 6 बार मुख्‍यमंत्री बनीं। भ्रष्‍टाचार के आरोप में दो बार जेल तथा दो बार अपदस्‍थ भी हुई। विधान सभा में विरोधी डी0एम0के0 के विधायकों द्वारा सदन में उनके साथ साड़ी एवं बालखींचने जैसा लज्‍जाज़नक दुर्व्‍यवहार भी हुआ। परन्‍तु इससे जय‍ललिता की न तो जिजीविषा ही कम हुई एवं न ही जनमानस में लोकप्रियता। 2015 में जब चेन्‍नई शहर हफतों बाढ़ से डूब रहा तो लगभग सभी समीक्षकों एवं चुनाव विश्‍लेषकों ने ‘अम्‍मा’ को खारिज़ कर दिया              था। यह जया की लोकप्रियता ही थी जिसके बूते वे 2016 के विधान सभा चुनावों में सभी ‘एक्जिट चुनाव सर्वे’ को धता बताती हुई शानदार ढंग से विजयी हुई। शानदार इसलिए भी थी कि कई दशकों से तमिल राजनीति में कोई सत्‍ताधारी दल लगातार दो बार चुनाव नहीं जीत सका था।

‘अम्‍मा’ के अन्तिम दर्शन के लिए उमड़ी भीड़ एवं समर्थकों की भावविहूवलता उनकी लोक प्रियता दर्शाती है। समूचे तमिलनाडु में समर्थकों का उमड़ा जन सैलाब ही था जिसने राष्‍ट्रीय मीडिया को चेन्‍नई का रूख करने को बाध्‍य किया। आम भारतीय के मन में जया के लिए शायद ही श्रद्धा का भाव पहले रहा हो। जया का एकाकीपन, अविवाहित-महिला होना, एक रहस्‍यमयी तिलस्‍म, सुसज्जित वार्डरोव, सैकड़ों घडि़यां एवं सैन्डिलें  एवं अकूत जेवरात कोतुहल भले ही उत्‍पन्‍न करतें हों, श्रद्धा या सम्‍मान तो कतई नहीं। रही-सही-कसर एआईडीएमके के लोक सभा/राज्‍य सभा सदस्‍यों का चारण-गान पूर्ण कर देता था। जब भी कोई वक्‍ता सदन में कुछ भी बोलता था, ‘अम्‍मा  की स्‍तुति’ अनिवार्य थी। केवल सदन ही नहीं पुरा देश मुस्‍करा भर देता था।

‘अम्‍मा करोड़ों तमिलों की अधिष्‍ठात्री देवी थी।  अपनी पार्टी में उनकी तूती बोलती थी। प्रदेश के प्रशासन में बिना ‘अम्‍मा’ की इच्‍छा के पत्‍ता भी नहीं खड़क सकता था। अन्‍य राज्‍यों में गाहे-बगाहे साहस दिखाने वाले आई0ए0एस0/ आई0पी0एस0 अधिकारी  पराक्रम  दिखाने  के  बजाय  केन्‍द्र में प्रतिनियुक्ति पर

भागने  के फि़राक में रहते थे। नौकरशाही हो या जनप्रतिनिधि, समपर्ति होना एक अनिवार्यता थी। ‘अम्‍मा’ एक लोकनायक थीं, निर्वाचित साम्राज्ञी। ‘पनीर सेल्‍वन’ ने तो कभी ‘अम्‍मा’ की कुर्सी पर बैठने का साहस तक नहीं दिखाया। सारा राज-काज ‘अम्‍मा’ की फोटो की ‘पराश्‍ाक्ति’ से चलाना श्रेयस्‍कर  समझा ।

जया स्‍त्री थी एवं ब्राहमण भी। द्रविण सामाजिक –राजनैतिक परिदृश्‍य में ये दोनों तथ्‍य अनुकूल नहीं थे। परन्‍तु अपनी दृढ़ इच्‍छा शक्ति, अपने सीधे संवाद – विशेषकर गरीबों एवं महिलाओं के बूते उन्‍होंने तमिल राजनीति में वह मुक़ाम हासिल कर दिया थ, जो शायद ही कोई अन्‍य तमिल राजनेता पा सके। जया की विरासत ढ़ेरों हैं। उन्‍होंने कांग्रेस हो या भाजपा, समय-समय पर केन्‍द्र सरकारों का समर्थन किया। 1999 में वाजपेयी सरकार केवल जयललिता की वज़ह से गिरी। वर्तमान एन0डी0ए0 सरकार को उनका पूर्ण समर्थन हासिल था, किन्‍तु तमिलनाडु के हित सर्वोपरि थे। जी0एस0टी0 पर तमाम मान-मनौव्‍वल के उपरान्‍त भी वे टस से मस नहीं हुई।

‘अम्‍मा’ का ज़ादू तमिलनाडु के गरीबों, महिलाओं यहां तक कि दलितों के दिलो-दिमाग पर क्‍यों छाया था, यह शोध का विषय हो सकता है। अपने सीमित संसाधनों से ही उन्‍होने तमिलनाडु में उत्‍कृष्‍ट कानून व्‍यवस्‍था स्‍थापित की एवं उसे औद्योगिक हब के रूप में विकसित किया। जिन्‍हे तमिलनाडु में कार्य-व्‍यवहार का अवसर मिला है वे निश्‍चय ही तमिल कार्यसंस्‍कृति एवं चुस्‍त प्रशासन की तारीफ़ किये बिना नहीं रहेगें। किन्‍तु समूचे राष्‍ट्र एवं विशेषकर राजनेताओं को ‘अम्‍मा’ की विरासत का भान उनकी अन्तिम–यात्रा में उमड़े जन सैलाब से हुआ होगा। अपनी अंतिम-यात्रा से  अम्‍मा देश-विदेश के जन-नेताओं को यह संदेश जरूर देती गयी हैं कि इस देश में या कहिए समूचे विश्‍व में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्‍हे 5 रूपये की ‘अम्‍मा थाली’ भी नसीब नहीं हो पाती है। ‘अन्तिम यात्रा’ में उमड़ी लाखों की भीड़ में असंख्‍य ऐसे भी थे जिनकी ‘अन्‍नपूर्णा अम्‍मा’ अब नहीं रहीं। सचमुच आर0जे0 विन्‍सेंट का कथन कितना सत्‍य है कि “भुखमरी विश्‍व समाज की स्‍थानिक आपदा है’’। “जीवन निर्वाह का अधिकार ही सबसे प्रमुख मौलिक अधिकार (मानवाधिकार) है’’ (विन्‍सेंट आर0जे0 “मानवाधिकार एवं अन्‍तर्राष्‍ट्रीय संबंध (1986)”। “अम्‍मा कैन्‍टीन की लोकप्रियता ने साबित कर दिया है कि आज़ादी के 70 वर्ष बाद भी भारत में भुखमरी एक कड़वी सच्‍चाई है। कोई भी लोकतांत्रिक सरकार नंगे-भूखों की लम्‍बे समय तक उपेक्षा नहीं कर सकती है।”

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