टास्क फोर्स 6: SDGs में तेज़ी लाना: 2030 एजेंडा के लिए नए रास्ते तलाशना
सार
वैश्विक स्तर पर महिलाएं अनपेड केयर वर्क, अर्थात अवैतनिक देखभाल कार्य (UCW) पर पुरुषों की तुलना में 3 गुना अधिक समय व्यतीत करती हैं. हालांकि, देखा जाए तो G20 सदस्य देशों में इस समय को लेकर बहुत अधिक अंतर है. उदाहरण के तौर पर भारत में जहां पुरुषों की तुलना में महिलाएं अवैतनिक देखभाल कार्यों पर लगभग 8 गुना अधिक समय ख़र्च करती हैं, वहीं कनाडा में महिलाएं लगभग 1.5 गुना अधिक समय ख़र्च करती हैं. इस प्रकार से महिलाओं और पुरुषों के बीच ज़िम्मेदारियों का एक लिहाज़ से लैंगिक रूप से विभाजन हो गया है और यह स्पष्ट रूप से श्रम बाज़ारों में मार्केट की नाक़ामियों में दिखाई देता है, महिलाओं की शिक्षा तक पहुंच में रुकावटें पैदा करता है और महिलाओं को वर्कफोर्स में शामिल होने से व नौकरियों में बने रहने से भी रोकने का काम करता है.
G20 देश वर्ष 2025 तक श्रम बाज़ारों में लैंगिक अंतर को 25 प्रतिशत तक कम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. UCW को पहचानना, इसे कम करना और इसे फिर से विभाजित करना और देखभाल से संबंधित कार्यों में इस लैंगिक अंतर को समाप्त करने के लिए समाधान तलाशना ज़रूरी है, ताकि औपचारिक श्रम बाज़ारों में महिलाओं की भागीदारी को सुविधाजनक बनाया जाना सुनिश्चित किया जा सके. इस पॉलिसी ब्रीफ़ में G20 देशों के लिए केयर इकोनॉमीज यानी देखभाल अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण में निवेश करने के लिए विभिन्न सिफ़ारिशें प्रस्तुत की गई हैं. इस सिफ़ारिशों में देखरेख के लिए अवकाश का प्रावधान, नियोक्ताओं और परिवारों को वित्तीय प्रोत्साहन, बच्चों की देखभाल एवं बुजुर्गों की देखभाल से जुड़ी सुविधाओं, जैसे केयर इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप्स (PPPs) का लाभ उठाना और प्रोत्साहन एवं समुदाय-आधारित संगठनों (CBOs) में निवेश को प्रोत्साहन शामिल है.
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चुनौती
वैश्विक स्तर पर बात करें तो महिलाएं और लड़कियां औसतन 70 प्रतिशत वैतनिक और अवैतनिक देखभाल घंटे एवं 75 प्रतिशत UCW प्रदान करती हैं, [1] यह आंकड़ा पुरुषों की तुलना में तीन गुना अधिक है. [2] कोविड-19 महामारी ने UCW में लागत, जोख़िम एवं लैंगिक असमानताओं को बढ़ा दिया है. इस महामारी के दौरान वर्ष 2020 में महिलाओं ने UCW में 512 बिलियन घंटे का अतिरिक्त कार्य किया है. [3]
ज़ाहिर है कि परिवारों में और घरों के भीतर अवैतनिक देखरेख कार्यों का लैंगिक आधार पर जो बंटवारा है, वह न केवल महिलाओं एवं लड़कियों को शिक्षा व रोज़गार के अवसरों तक पहुंचने में रुकावट उत्पन्न करता है, बल्कि उन्हें न्यायोचित और समुचित वेतन से भी वंचित करता है. यह असमान विभाजन कई महिलाओं एवं लड़कियों को आर्थिक और पर्यावरणीय झटकों के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ ग़रीबी एवं दूसरों पर निर्भरता के दुष्चक्र में धकेल देता है और फिर ये सिलसिला पीढ़-दर-पीढ़ी यूं ही चलता रहता है.
UCW का मूल्यांकन नहीं करने, इसके महत्व को अच्छी तरह से नहीं समझने और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) समेत राष्ट्रीय एकाउंटिंग के मानक उपायों में महिलाओं एवं लड़कियों के आर्थिक योगदान का पूरी तरह से ध्यान में नहीं रखने से ये मूलभूत असमानताएं बरक़रार रहती हैं. महिलाओं के देखभाल से जुड़े कार्यों को कम आंकने और उसे मान्यता नहीं देने का ही नतीज़ा है कि श्रम बाज़ार नाक़ाम हो गया है. महिलाओं के साथ होने वाली इस अमानता को कम से कम निम्न चार बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:
- महिलाएं गैर वैतनिक कार्यों में इतनी व्यस्त रहती हैं कि उनके पास अपने लिए समय ही नहीं बचता है, यानी उन्हें वक़्त की कमी का अनुभव होता है. अर्थात पुरुषों के पास वैतनिक कार्यों के लिए, आराम करने के लिए और शिक्षा जैसे कार्यों के लिए जितना समय होता, उसकी तुलना में महिलाओं के पास समय का अभाव रहता है.
- अवैतनिक कार्यों में व्यस्त रहने की वजह से महिलाओं को वैतनिक कार्यों वाले लेबर फोर्स भागीदारी के विकल्पों का लाभ उठाने में तमाम रुकावटें सामने आती हैं. ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) (2014) के विभिन्न देशों के अनुमानों के मुताबिक़ महिलाओं की अवैतनिक श्रम प्रतिबद्धताओं में दो घंटे की बढ़ोतरी से महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR) में 10 प्रतिशत की कमी हो जाती है. [4]
- ऐसी महिलाएं, जिनके बच्चे होते हैं, उन्हें अमूमन ऐसे पुरुष, जिनके बच्चे होते हैं, उनकी तुलना में कम वेतन मिलता है. इतना ही नहीं ज़्यादातर G20 अर्थव्यवस्थाओं में माताओं को कुआंरी या बिना बच्चों वाली महिलाओं की तुलना में कम वेतन मिलता है. अर्जेंटीना और चीन में वेतन में यह कमी 10 प्रतिशत तक हो सकती है, जबकि तुर्किये में वेतन में 30 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है. [5] इसके विपरीत, बच्चों वाले पुरुषों की बिना बच्चों वाले पुरुषों की तुलना में इनकम अधिक होती है.
- यहां तक कि सेवा प्रदाताओं द्वारा घर के बाहर किए जाने वाले देखरेख के कार्यों को भी कम महत्व दिया जाता है. इसके फलस्वरूप, देखभाल वाली नौकरियों में या तो कम वेतन मिलता है, या फिर ऐसी नौकरियां अक्सर अनौपचारिक या अस्थाई होती हैं.
G20 में UCW में लैंगिक अंतर का आकलन करने से (चित्र 1) इसके विभिन्न सदस्य देशों में महत्त्वपूर्ण अंतर स्पष्ट दिखाई देता है. इससे साफ पता चलता है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं में लैंगिक अंतर अधिक है. उदाहरण के लिए, पुरुषों और महिलाओं द्वारा किए गए अवैतनिक देखभाल के कार्यों में जो असमानता है, वो कनाडा में 1.5 गुना है, जबकि भारत में 8.4 गुना है. इसकी एक वजह विकसित अर्थव्यवस्थाओं द्वारा सरकार प्रायोजित पैटर्नल लीव्स, सब्सिडी वाली देखरेख समेत देखभाल के बुनियादी ढांचे एवं नीतियों में निवेश पर निरंतर ध्यान केंद्रित किया जाना है. इसी प्रकार से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से लैटिन अमेरिकी देश व्यापक देखभाल योजनाएं बनाने के प्रस्तावों को आगे बढ़ा रहे हैं. [6]
चित्र 1: G20 देशों में UCW में लैंगिक अंतर
नोट: इंडोनेशिया और सऊदी अरब के लिए डेटा और यूरोपियन यूनियन के लिए अलग-अलग आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. ब्राज़ील और रूस के आंकड़े विश्व बैंक से लिए गए हैं और भारत के आंकड़ों को भारत सरकार के टाइम यूज़ सर्वे 2019 (Time Use Survey) से लिया गया है.
स्रोत: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघठन (ILO) (2018) [7]
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G20 की भूमिका
अवैतनिक देखभाल कार्य में लैंगिक असमानता की वजह से महिलाओं के पास अपने जीवन के लिए, अपने उत्थान के लिए समय नहीं बचता और इसके परिणामस्वरूप G20 अर्थव्यवस्थाओं में महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR) कम हो गई है. ज़ाहिर है कि वैश्विक स्तर पर बच्चों या परिवार के सदस्यों के लिए वहन करने योग्य देखभाल की कमी के चलते महिलाओं की लेबर मार्केट में हिस्सेदारी की संभावना विकासशील देशों में लगभग 5 प्रतिशत और विकसित देशों में 4 प्रतिशत तक कम हो जाती है. [8] इंडोनेशिया की ही बात करें, तो वहां लगभग 40 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं शादी होने के बाद या बच्चे का जन्म होने के बाद नौकरी नहीं करती हैं, जिनमें से आधी महिलाएं इसके पीछे परिवार से जुड़े कारणों को ज़िम्मेदारी बताती हैं. [9] भारत में किए गए कई गुणात्मक अध्ययनों से यह स्पष्ट तौर पर पता चलता है कि UCW का बोझ महिलाओं की काम करने की क्षमता में रुकावटें पैदा करने का कार्य करता है. [10]
G20 देशों में महिला कामगारों की भागीदारी बढ़ाने से सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा. विश्व बैंक के जेंडर एम्प्लॉयमेंट गैप इंडैक्स (GEGI) के मुताबिक़ अगर लैंगिक स्तर पर रोज़गार की इस खाई को पाट दिया जाए, तो तमाम देश अपनी GDP में 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी कर सकते हैं. [11]
देखरेख से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर और विभिन्न सेवाओं में निवेश UCW में लैंगिक गैप को फिर से संतुलित करने के महत्त्वपूर्ण उपकरण हैं और ख़ास तौर पर ये साधन महिलाओं के लिए आर्थिक प्रगति एवं रोज़गार सृजन को बढ़ाने का काम कर सकते हैं. इंटरनेशनल ट्रेड यूनियन कॉन्फेडेरेशन (ITCU) ने वर्ष 2017 में अनुमान लगाया था कि स्वास्थ्य और देखभाल से जुड़े सेक्टर में GDP का 2 प्रतिशत निवेश करने से कुल मिलाकर रोज़गार में 1.2 प्रतिशत से 3.2 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी होगी. यानी कि इससे चीन जैसे देश में क़रीब 24 मिलियन नई नौकरियां सृजित होंगी, भारत में 11 मिलियन, इंडोनेशिया में 2.8 मिलियन, ब्राज़ील में 4.2 मिलियन और दक्षिण अफीका में 400,000 से कुछ ज़्यादा रोज़गार एवं नौकरियों का सृजन होगा. [12]
वर्ष 2022 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा किए गए एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि यूनिवर्सल चाइल्ड केयर एवं दीर्घकालिक देखरेख सेवाओं में निवेश से वर्ष 2035 तक 299 मिलियन नौकरियां सृजित होने की संभावना है, जिनमें से 78 प्रतिशत नौकरियां विशेष रूप से महिलाओं को मिलने की उम्मीद है. [13] अध्ययन से यह भी पता चला है कि यूनिवर्सल चाइल्ड केयर, बच्चों की देखभाल के लिए सवैतनिक अवकाश, स्तनपान अवकाश और दीर्घकालिक देखरेख सेवाओं को शुरू करने से रोज़गार में वैश्विक स्तर पर लैंगिक अंतर लगभग 7.5 प्रतिशत तक कम हो जाएगा और एक तिहाई देशों में यह लैंगिक अंतर क़रीब-क़रीब पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा. इसके अलावा, अफ्रीकी अर्थव्यवस्थाओं में बड़ी वृद्धि के साथ GDP में 3.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज़ होगी, क्योंकि इससे नए रोज़गार सृजित होंगे और उनसे टैक्स रेवेन्यू यानी कर राजस्व में वृद्धि होगी और आख़िरकार केयर पॉलिसी पैकेजों के लिए कुल फंडिग की ज़रूरत कम हो जाएगी.
देखा जाए तो, G20 समूह में शामिल देश विकसित एवं और उभरती अर्थव्यवस्थाओं का मिलाजुला रूप हैं. इन देशों में विश्व की लगभग 66 प्रतिशत आबादी रहती है एवं वैश्विक GDP में इनकी हिस्सेदारी लगभग 85 प्रतिशत है. ऐसे में निसंदेह रूप पर G20 समूह केयर इकोनॉमी यानी देखभाल से जुड़ी अर्थव्यवस्था की चुनौतियों का मुक़ाबला करने एवं ऐसे समाधान प्रस्तुत करने के लिए अच्छी तरह से तैयार है, जो G20 समूह के सदस्य देशों में और समूह से बाहर के देशों में उल्लेखनीय तौर पर प्रभाव पैदा कर सकते हैं. [14]
ब्रिस्बेन में वर्ष 2014 में G20 नेताओं ने 2025 तक लेबर फोर्स भागीदारी में लैंगिक अंतर को 25 प्रतिशत तक कम करने का संकल्प लिया था. [15] वर्ष 2022 में देखरेख से संबंधित अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को W20 द्वारा और इंडोनेशिया में महिला सशक्तिकरण पर दूसरे G20 मंत्रिस्तरीय सम्मेलन द्वारा प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में लिया गया था. इस सम्मेलन में देखरेख के कार्यों को पुरुषों और महिलाओं के बीच एक साझा ज़िम्मेदारी के साथ-साथ देशों एवं समाजों की भी ज़िम्मेदारी घोषित किया गया था. इन लक्ष्यों को लागू करने के लिए नवंबर 2022 में G20 नेताओं की बाली घोषणा में वैतनिक और अवैतनिक देखभाल कार्यों में असमान वितरण को संबोधित करने और देखभाल से जुड़े कार्य को आर्थिक प्रगति के लिए प्राथमिकता के रूप में स्थान देने की प्रतिबद्धता जताई गई. [16]
ज़ाहिर है कि इससे आगे बढ़ते हुए G20 देश लचीली देखभाल प्रणालियों को सशक्त करने और विस्तारित करने एवं राजनीतिक इच्छाशक्ति और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के निर्माण के लिए प्रभावी नीतियों पर ध्यान केंद्रित करके महिलाओं पर पड़ने वाले देखभाल के मौज़ूदा बोझ को कम कर सकते हैं.
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G20 के लिए सिफ़ारिशें
G20 अर्थव्यवस्थाओं को चाहिए कि वे देखरेख के कार्य “एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक कल्याण एवं एक ज़रूरी मानवाधिकार” के रूप में स्वीकार करने एवं दृढ़तापूर्वक मानने के लिए प्रतिबद्ध हों. [17] व्यावहारिक देखभाल सेवा वितरण मॉडल विकसित करने में PPPs एक महत्त्वपूर्ण तरीक़ा हो सकता है. सरकारें और निजी सेक्टर देखभाल से संबंधित अर्थव्यवस्था में समान रूप से भागीदार बन सकते हैं और देखभाल अर्थव्यवस्था में तीन प्रकार के हस्तक्षेपों में अनुपूरक यानी कमियों को पूरी करने वाली भूमिकाएं निभा सकते हैं (चित्र 2), ये भूमिकाएं निम्न प्रकार से हैं:
- अवकाश एवं लाभ से संबंधित नीतियां
- देखभाल से संबंधित सेवाओं में सब्सिडी देना
- देखरेख से संबंधित बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश
चित्र 2: तीन प्रकार की देखभाल अर्थव्यवस्था नीतियां
नोट: यह आंकड़ा तीन प्रकार के देखरेख अर्थव्यवस्था हस्तक्षेपों में से प्रत्येक में सरकार बनाम प्राइवेट योगदान को प्रकट करता है.
स्रोत: लेखक का अपना
चित्र 4: देखभाल संबंधी अर्थव्यवस्था हस्तक्षेपों के लिए फ्रेमवर्क
नोट: यह आंकड़ा तीन प्रकार की देखभाल अर्थव्यवस्था हस्तक्षेपों में से प्रत्येक की सब-कैटेगरी दिखाता है.
स्रोत: लेखक का अपना विश्लेषण
अवकाश संबंधी नीतियां
अध्ययनों के मुताबिक़ नए-नए बने माता-पिता को सवैतनिक छुट्टी देने से बच्चों के स्वस्थ विकास में मदद मिलती है, मातृ स्वास्थ्य में सुधार होता है और परिवारों की आर्थिक सुरक्षा में बढ़ोतरी होती है. [18] उदाहरण के लिए, तीस OECD देशों में श्रम बाज़ार के परिणामों को लेकर माता-पिता की सवैतनिक छुट्टी के प्रभाव पर की गई एक स्टडी में पाया गया कि सवैतनिक छुट्टी के विस्तार से महिला-पुरुष कार्य घंटों का अनुपात (प्रति सप्ताह 0.5-1.8 घंटे) बढ़ जाता है. [19]
- मातृत्व अवकाश: अमेरिका को छोड़कर, G20 के सभी सदस्य देशों में सवैतनिक मातृत्व अवकाश को अनिवार्य करने वाले क़ानूनी प्रावधान मौज़ूद हैं. आमतौर पर कुछ अपवादों को अगर छोड़ दिया जाए, तो मातृत्व अवकाश 10 से 20 सप्ताह के बीच होता है [A] 10 से अधिक देशों में सरकार मातृत्व अवकाश के प्रावधान के लिए कुछ न कुछ वित्तीय सहायता भी प्रदान करती है.
- पितृत्व अवकाश: अधिकतर G20 देशों (भारत, अमेरिका, चीन, [B] कनाडा, [C] रूस और जापान को छोड़कर) के पास 2 से 30 दिनों तक पेड पैटर्निटी लीव यानी सवैतनिक पितृत्व अवकाश के क़ानूनी अधिकार भी मौज़ूद हैं.
- साझा पेरेन्टल लीव: G20 सदस्य देशों में से आधे से भी कम देशों में ऐसे क़ानूनी प्रावधान हैं, जो प्राथमिक देखभालकर्ता को उनके जेंडर की परवाह किए बगैर माता-पिता की छुट्टी और आंशिक रूप से वित्तीय लाभ प्रदान करते हैं.
ऐसे में G20 देश ऐसे फ्रेमवर्क्स स्थापित करने की ओर आगे बढ़ सकते हैं, जो केवल लंबे मातृत्व अवकाशों (छोटे पितृत्व अवकाशों के साथ) के बजाए लैंगिक तौर पर संवेदनशील पैरेन्टल अवकाशों को प्रमुखता देने वाले हों. आदर्श स्थितियों में लैंगिक रूप से संवेदनशील पैतृक छुट्टियों को माता और पिता को समान अवधि का अवकाश लेने के लिए प्रोत्साहित करके साझा ज़िम्मेदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. लैंगिक तौर पर संवेदनशील पैरेन्टल लीव उन रूढ़िवादी विचारों को कमज़ोर करने का काम कर सकती हैं, जिनके मुताबिक़ माता ही बच्चे की प्राथमिक देखभालकर्ता है. इतना ही नहीं प्रत्येक देश की वित्तीय क्षमता के आधार पर इस तरह की छुट्टी का समय और संख्या अलग-अलग होना चाहिए.
देशों द्वारा बच्चों की देखभाल के लिए दी जाने वाली छुट्टियों की लागत को नियोक्ता और कर्मचारी के योगदान, बीमा एवं पब्लिक फंडिंग के संयोजन का इस्तेमाल कर के कवर किया जा सकता है. उल्लेखनीय है कि ऐसी नीतियां जो लाभ प्रदान करने की पूरी ज़िम्मेदारी नियोक्ता के ऊपर डालती हैं, वे श्रम बाज़ार में महिलाओं के रोज़गार पर विपरीत प्रभाव डाल सकती हैं, जैसा कि भारत के मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम 2017 से साफ तौर पर पता चलता है. [20] इसलिए, G20 देश माता-पिता के अवकाश के लिए प्राइवेट सेक्टर के साथ लागत को साझा करने, अर्थात आर्थिक बोझ को मिलकर वहन करने के समाधान तलाशने के लिए भी कार्य कर सकते हैं.
इसके अलावा, देशों को अनौपचारिक सेक्टर में कार्यरत कामगारों के लिए छुट्टी का दायरा बढ़ाने के विकल्प भी तलाशने चाहिए, जैसे कि माता-पिता के लिए नकद सहायता के हस्तांतरण के ज़रिए. यह ग्लोबल साउथ में विशेष रूप से बेहद अहम है, जहां अनौपचारिक सेक्टर में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या बहुत अधिक है और अक्सर पारंपरिक पैरेन्टल अवकाश नीतियों तक इन कामगारों की पहुंच को सीमित कर देती है. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के (2021) दिशानिर्देशों का पालन करते हुए, विभिन्न देश नकद हस्तांतरण के माध्यम से गैर-अंशदायी पैरेन्टल लाभ सुनिश्चित कर सकते हैं. कुछ देश, जैसे कि अर्जेंटीना यूनिवर्सल प्रेगनेंसी एलाउंस के ज़रिए गर्भवती महिलाओं को आर्थिक मदद का नकद हस्तांतरण करते हैं, जिससे माताओं को हर महीने एक छोटी सी राशि मिलती है. वर्ष 2019 की एक स्टडी के अनुसार, अर्जेंटीना की नकद हस्तांतरण और शुरुआती बचपन देखभाल सेवाओं समेत विभिन्न देखरेख नीतियों का संबंधित GDP में 0.7 प्रतिशत और 5.3 प्रतिशत की वृद्धि के साथ और कुल रोजगार में 0.7 प्रतिशत से 6.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ एक सशक्त आर्थिक असर पड़ा है. [21] ज़ाहिर है कि आर्थिक मदद के इन नकद हस्तांतरणों को कम से कम न्यूनतम वेतन तक बढ़ाया जा सकता है और माता एवं पिता दोनों को ही इसमें शामिल किया जा सकता है.
देखरेख से जुड़ी सेवाओं के लिए सब्सिडी
G20 के लिए देखा जाए तो देखभाल से जुड़ी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए सब्सिडी माता-पिता के लिए व्यक्तिगत टैक्स क्रेडिट्स और कर रियायतों के रूप में होती है, ताकि कर्मचारियों को चाइल्ड केयर लाभ प्रदान करने के लिए व्यवसायों एवं उद्योगों को प्रोत्साहित किया जा सके. उदाहरण के लिए, अमेरिका में माता-पिता बच्चे की उम्र के आधार पर विभिन्न टैक्स क्रेडिट्स और कर कटौती के लिए योग्य हैं. [22]
टैक्स सब्सिडी विकसित देशों में बहुत सामान्य है, हालांकि इन सब्सिडियों को धीरे-धीरे विकासशील देशों में लागू किया जा रहा है. ब्राज़ील की बात करें, तो वहां नियोक्ताओं के पास दो महीने का अतिरिक्त मातृत्व अवकाश देने और इस अवधि के दौरान भुगतान की गई धनराशि को उनके कॉर्पोरेट इनकम टैक्स से कटौती करने का विकल्प होता है. [23] अर्जेंटीना का थ्री-पिलर सिस्टम यानी तीन स्तंभों वाली प्रणाली कर रियायतों और नकद हस्तांतरण के माध्यम से बेरोज़गारी एवं अनौपचारिक रोज़गार का सामना करने वाले परिवारों का समर्थन करती है. [24]
G20 सरकारें उन नियोक्ताओं को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने पर विचार कर सकती हैं, जो कॉर्पोरेट टैक्स क्रेडिट्स के माध्यम से अपने कर्मचारियों के बीच देखभाल कार्य की ज़िम्मेदारियों में कमी करने और उनके पुनर्वितरण को प्रोत्साहित करते हैं. उदाहरण के लिए, जो नियोक्ता स्तनपान/स्तनपान कक्ष, गर्भवती महिलाओं के लिए पार्किंग की सुविधा जैसी देखभाल सेवाएं प्रदान करते हैं, देखरेख कार्य के लिए छुट्टियों की पेशकश करते हैं और बच्चों की देखभाल एवं बुजुर्गों की देखभाल के लिए देखरेख सेवा प्रदाताओं को काम पर रखकर कर्मचारियों की मदद करते हैं, उन्हें टैक्स में छूट के माध्यम से पुरस्कृत किया जा सकता है. इसके अलावा, सरकारें देखभाल कार्य के लिए मदद उपलब्ध कराने वाले छोटे व्यवसायियों के लिए उच्च कर कटौती की पेशकश कर सकती हैं.
देखरेख से संबंधित बुनियादी ढांचे में सरकारी निवेश
जैसा कि सेक्शन 3 में बताया गया है कि केयर इकोनॉमी निवेश G20 के सदस्य देशों में सामाजिक-आर्थिक विकास के मामले में महत्त्वपूर्ण संचालक हो सकते हैं. अलग-अलग देशों की सरकारें इन सामाजिक-आर्थिक विकास के अवसरों को साकार करने के लिए देखभाल से जुड़े बुनियादी ढांचे और सेवाओं में सरकारी निवेश पर विचार कर सकती हैं.
a.चाइल्ड केयर एवं बुजुर्गों की देखरेख से जुड़ी सुविधाओं पर ख़र्च बढ़ाएं
G20 के सदस्य देशों, ख़ास तौर पर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को बच्चों एवं बुजुर्गों के लिए बेहतर गुणवत्ता वाली, किफ़ायती और आसानी से सुलभ देखभाल तक पहुंच का विस्तार करने की ज़रूरत है. ज़ाहिर है कि इसके लिए ग्रामीण क्षेत्र और ऐसे इलाकों में जहां इस तरह की सेवाएं आसानी से उपलब्ध नहीं है, वहां बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर पर सरकारी ख़र्च को बढ़ाने की ज़रूरत है.
वर्ष 2018 की बात करें तो उस दौरान G20 समूह के सदस्य देश देखभाल से जुड़ी कुछ चिन्हित नीतियों पर अपनी GDP का 1 प्रतिशत से 4.1 प्रतिशत के बीच ख़र्च कर रहे थे (चित्र 3). विकसित देशों में GDP के प्रतिशत के रूप में देखभाल से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण पर निवेश 2 प्रतिशत से 4.1 प्रतिशत के बीच है, जबकि विकासशील देशों के लिए यह व्यय 1 प्रतिशत से कम से लेकर 3.9 प्रतिशत के बीच है. [25]
चित्र 3: G20 सदस्य देशों में GDP के प्रतिशत के रूप में देखभाल से जुड़े कार्यों पर किया जाने वाला ख़र्च
स्रोत: आईएलओ आंकड़े, 2018
नोट: इस व्यय में प्री-प्राइमरी शिक्षा; दीर्घकालिक देखभाल सेवाएं और लाभ; और मातृत्व, अशक्तता, बीमारी और ड्यूटी के वक़्त किसी दुर्घटना की वजह से पूर्ण या आंशिक दिव्यांगता होने पर उससे जुड़े लाभ शामिल हैं.
कनाडा, जर्मनी, चीन और यूनाइटेड किंगडम जैसी G20 अर्थव्यवस्थाएं हाल के वर्षों में एक लचीला केयर इकोसिस्टम बनाने के लिए सक्रिय रूप से देखभाल से जुड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश कर रही हैं. ब्रिटेन ने बच्चों की देखभाल से संबंधित कार्यों में लागत की अड़चनों को समाप्त करने के लिए पात्र कामकाजी माता-पिता के लिए मुफ्त चाइल्ड केयर का विस्तार करने के लिए 4.87 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की घोषणा की है. [26] जर्मनी ने नई चाइल्ड केयर सुविधाएं स्थापित करने एवं वर्तमान सुविधाओं को नया रूप देने के लिए वर्ष 2020 में 590 मिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2021 में अतिरिक्त 590 मिलियन अमेरिकी डॉलर आवंटित किए थे. [27] इसी प्रकार से कनाडा में सस्कैचवान (Saskatchewan) प्रांत ने प्रारंभिक शिक्षा और चाइल्ड केयर सेंटर्स की मदद के लिए 44 मिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की घोषणा की. [28] चीन ने बुजुर्ग नागरिकों की देखरेख से संबंधित अपनी प्रणाली का सहयोग करने के लिए सेवानिवृत्ति सुविधाओं के निर्माण हेतु 5.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया है. [29] हालांकि इतना सब काफ़ी नहीं है, बल्कि इससे भी आगे बढ़ते हुए G20 समूह में शामिल विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को बच्चों और बुजुर्गों की देखरेख से जुड़ी इकोनॉमी में अपने वित्तीय निवेश को बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए.
b.कौशल प्रशिक्षण एवं मौज़ूदा देखरेख संबंधित कार्य संरचनाओं को औपचारिक बनाना
देखरेख से जुड़े कार्य और घरेलू कार्य, देखा जाए तो निहायत ही अनौपचारिक किस्म के होते हैं, ख़ास तौर पर महिला कामगारों के बीच. [30]
देखभाल कार्य में जुटे कर्मियों के लिए बेहतर और औपचारिक कामकाजी परिस्थितियों को सुनिश्चित करने के लिए G20 सदस्य देश C189 कन्वेंशन की मंज़ूरी पर विचार करने के साथ ही, नीतिगत, क़ानूनी एवं नियामक फ्रेमवर्क्स को सशक्त करने पर भी विचार कर सकते हैं. [D]
उल्लेखनीय है कि केयर वर्कर्स यानी देखरेख के कार्यों में जुटे कर्मचारियों के लिए कौशल, ड्यूटी के घंटे और अनुभव के मुताबिक़ नौकरी की व्यापक भूमिकाओं एवं उन्हें भुगतान की जाने वाली धनराशि के साथ ही बेहतर संगठनात्मक फ्रेमवर्क्स को तैयार करने की ज़रूरत है. केयर इकोनॉमी यानी देखभाल से जुड़े वैतनिक और अवैतनिक कार्यों में संलग्न कामगारों के कौशल को बढ़ाने के लिए कार्यक्रम तैयार किए जा सकते हैं. इसके साथ ही केयर वर्कर्स के बीच वरिष्ठता और विशेषज्ञता को प्रमाणित करने के लिए कामकाज के अनुभव एवं कौशल प्रशिक्षण पर आधारित सर्टिफिकेशन पेश किए जा सकते हैं और G20 देशों के बीच देखरेख का कार्य करने वाले कामगारों की आवाजाही को सुगम बनाया जा सकता है, जिस प्रकार से ब्रिटेन और कनाडा जैसे विकसित देशों में किया जा रहा है. देखभाल अर्थव्यवस्था के श्रमिकों के लिए कौशल कार्यक्रम तैयार किए जा सकते हैं और देखभाल श्रमिकों के बीच वरिष्ठता स्तर और विशेषज्ञता स्थापित करने के लिए कार्य अनुभव और कौशल प्रशिक्षण-आधारित प्रमाणपत्र पेश किए जा सकते हैं और G20 देशों के बीच देखभाल श्रमिकों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाया जा सकता है, जैसा कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में किया जा रहा है. यूनाइटेड किंगडम में निजी नियोक्ता अपने केयर वर्कर्स को शुरुआती स्तर के सर्टिफिकेट हासिल करने और फिर आगे की योग्यता के लिए ट्रेनिंग प्रदान कर सकते हैं. कनाडा के ओंटारियो में उच्च सार्वजनिक सुरक्षा एवं देखभाल कार्य में संलग्न कार्यकर्ता की व्यक्तिगत जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक पंजीकरण की व्यवस्था विकसित की गई है. इसके अंतर्गत केवल उन्हीं कामगारों का पंजीकरण किया जाता है, जिन्हें कुशल एवं सुरक्षित देखभाल प्रदान करने के लिए पूरी तरह से योग्य माना जाता है. [31]
c.पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप्स (PPPs) का लाभ उठाना
कोरोना महामारी के पश्चात टिकाऊ एवं लैंगिक रूप से समावेशी रिकवरी के लिए, G20 सदस्य देश देखरेख सेवाओं के प्रावधान के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप्स (PPPs) को संचालित करने के लिए पॉलिसी एवं रेगुलेटरी फ्रेमवर्क्स तैयार कर सकते हैं. इसके साथ ही G20 देश प्रयोग के तौर पर ग्रीनफील्ड/ब्राउनफील्ड देखभाल इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए, जिसमें केयर इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाओं के लिए मॉडल रियायत समझौते भी शामिल हैं, जैसे कि बच्चों की देखभाल से जुड़ी सुविधाएं या बुजुर्गों की देखरेख से संबंधित सुविधाएं, तैयार कर सकते हैं. इन फ्रेमवर्क्स को केयर सेक्टर के लिए प्रासंगिक ख़तरों को कम करने के तंत्रों और वित्तपोषण के मॉडलों की पहचान करनी चाहिए, साथ ही प्रदर्शन से जुड़े प्रमुख संकेतकों की भी व्याख्या करनी चाहिए. प्रयोग के तौर पर शुरू करने के बाद इन मॉडलों के असर और प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिए पर्याप्त प्रमाण और साक्ष्य तैयार किए जा सकते हैं.
d.समुदाय-आधारित संगठनों और सामाजिक उद्यमों में निवेश को प्रोत्साहित करना
तमाम G20 देश ऐसे हैं, जिनमें स्थानीय समुदाय आधारित संगठनों (CBOs) को सीधे अनुदान देने का प्रावधान है, ख़ासकर अनौपचारिक सेक्टरों और ग्रामीण क्षेत्रों में. उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया वित्तीय सहायता के साथ बुजुर्गों की देखभाल के लिए स्वीकृत प्रदाताओं का सहयोग करता है. [32]
देखरेख से संबंधित नए-नए तरह के समाधान उपलब्ध कराने वाले सामुदाय आधारित संगठनों का सहयोग करने के लिए सरकारें ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में निवेश को प्राथमिकता दे सकती हैं. समुदाय-संचालित देखभाल सेवाओं (CCCs) का एक सफल उदाहरण भारत से आता है, जिसे यदि सरकारी धन मुहैया कराया जाए, तो यह अपने समाधान को व्यापक स्तर पर बढ़ा सकता है और दोहरा भी सकता है. मुंबई की अस्थाई बस्तियों में महिलाओं द्वारा संचालित CBO, अपनालय, जिसके साथ निकोर एसोसिएट्स (Nikore Associates) परामर्शदाता के रुप में जुड़ा हुआ है, उससे पता चला कि कैसे CCCs ने महिलाओं की कार्यबल भागीदारी को बढ़ाने का काम किया है और कई महिलाओं को रोज़गार के स्रोत भी उपलब्ध कराए हैं. [33]
निजी उद्यम भी समुदाय आधारित संगठनों को अपने कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) बजट से फंडिंग उपलब्ध करा सकते हैं. औपचारिक क्षेत्र के उद्यमों के साथ साझेदारी के माध्यम से ये CBOs कारखानों और अन्य कार्य स्थलों में श्रमिकों को वहीं पर देखभाल सुविधाएं प्रदान कर सकते हैं. इस तरह के गठजोड़ से CBOs को अपने ऑपरेशन्स को बढ़ाने में सहायता मिल सकती है, ज़ाहिर है कि इससे उन्हें वित्तीय रूप से व्यवहार्य सामाजिक उद्यम स्थापित करने और ग्रामीण एवं अनौपचारिक सेक्टरों में देखभाल सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी. इसका एक सबसे बेहतरीन उदाहरण टाटा ट्रस्ट की पहल है, जिसके तहत ग्रामीण भारत में मौजूदा आंगनबाड़ियों (चाइल्ड केयर सेंटर्स) के रखरखाव में सहयोग किया जाता है, ताकि बच्चों के लिए पोषण संबंधी नतीज़ों में सुधार किया जा सके, यानी उन्हें कुपोषण से मुक्त किया जा सके. [34]
e.देखभाल कार्य पर लैंगिक रूप से असंबद्ध आंकड़ों का संग्रह
G20 देशों में लैंगिक रूप से असंबद्ध टाइम यूज़ सर्वे (TUS) यानी समय के उपयोग से संबंधित सर्वेक्षणों को नियमित तौर पर किया जाना ज़रूरी हैं. इन सर्वेक्षणों में व्यापक राष्ट्रीय और स्थानीय कवरेज, अधिक विवरण वाले सवाल एवं विभिन्न प्रकार की UCW गतिविधियों के बारे पता लगाने के लिए कार्यप्रणाली में सुधार शामिल हैं.
इसके अलावा, सरकारें देखभाल से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर में वित्तीय निवेश की मात्रा और इससे पैदा होने वाली देखरेख से जुड़ी नौकरियों की संख्या के बारे में पता लगा सकती हैं. G20 देश डेटा संग्रह के लिए समान फ्रेमवर्क्स स्थापित करने के लिए मिलजुल कर काम करने पर भी विचार कर सकते हैं, जिसे वार्षिक आधार पर सक्रिय रूप से ट्रैक किया जा सकता है और G20 द्वारा समर्थित कार्यशालाओं एवं सम्मेलनों में इस पर चर्चा-परिचर्चा भी की जा सकती है.
ऐसी कार्य प्रणाली का एक उदाहरण मैक्सिको में मिलता है, जिसके अंतर्गत हाउसहोल्ड सैटेलाइट एकाउंट्स का उपयोग करके डेटा संग्रह करने का कार्य किया जाता है, इस प्रणाली के माध्यम से अलग-अलग तबकों और आबादी के समय के उपयोग (time use) की विशेषताओं का आकलन किया जाता है. इससे प्राप्त आंकड़ों का इस्तेमाल देखरेख से जुड़ी नीतियों को बनाने में किया गया है. [35]
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निष्कर्ष
UCW के विषम बोझ के कारण से मार्केट में कामकाजी महिलाओं की भागीदारी में रुकावटें पैदा हो रही हैं, यानी मज़बूरन महिलाएं वर्कफोर्स का हिस्सा नहीं बन पा रही हैं. बाज़ार की इन नाक़ामियों को दुरुस्त करने के लिए और इस परेशानी का समाधान तलाशने के लिए G20 समूह के प्रमुख हितधारकों के मिलेजुले प्रयास की सख़्त ज़रूरत है.
परिशिष्ट A
इस पॉलिसी ब्रीफ़ में प्रस्तुत की गई सिफ़ारिशों को और प्रभावी बनाने या फिर उनकी सहायता के लिए वैश्विक स्तर पर उपयोग में लाई जाने वाले पांच सर्वोत्तम प्रथाओं को इस परिशिष्ट में केस स्टडीज़ के रूप में पेश किया गया है.
केस स्टडी 1 |
भारत में ‘अपनालय’ द्वारा संचालित कम्युनिटी चाइल्ड केयर सेंटर्स (CCCs) |
देश |
मुंबई, भारत |
शुरुआत का वर्ष |
2014 |
कार्यान्वयन करने वाली एजेंसी |
अपनालय, एक समुदाय आधारित संगठन |
मॉडल के बारे में |
मुबंई की अनियमित और अनाधिकृत बस्तियों में एक समुदाय आधारित संगठन की सहायता से बच्चों की देखभाल से संबंधित बुनियादी ढांचा. |
प्रमुख विशेषताएं |
आर्थिक आत्मनिर्भरता एवं उद्यमिता के लिए क्षमता निर्माण करके अपनालय महिलाओं का सशक्तिकरण करता है. वर्ष 2014 में आंगनवाड़ी सेवाओं (जो शहरी क्षेत्रों में लंबे समय तक उपलब्ध नहीं थीं) के विकल्प के रूप में अपनालय ने CCCs लॉन्च करने के लिए मुंबई में कई अनियमित बस्तियों में महिला उद्यमियों का सहयोग किया. सामाजिक उद्यम मॉडल पर आधारित सामुदायिक बाल देखरेख केंद्र (CCCs) किफ़ायती चाइल्ड केयर सेवाएं प्रदान करते हैं, साथ ही माताओं को काम करने में सक्षम बनाते हैं, बच्चों को सुरक्षित रखते हैं और समुदाय में महिलाओं के लिए रोज़गार के मौक़े सृजित करते हैं. |
कार्यक्रम का प्रभाव
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अपनालय के साथ विचार-विमर्श से यह पता चला कि CCCs महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी को सुधारते हैं: इन केंद्रों की 79 प्रतिशत उपयोगकर्ता कामकाजी माताएं थीं और कोरोना महामारी के दौरान CCCs के बंद होने के पश्चात इन केंद्रों का उपयोग करने वाली महिलाओं में से 14 प्रतिशत महिलाओं को बच्चों की देखभाल के बढ़ते बोझ की वजह से अपनी नौकरी छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा. इसके अलावा, CCCs रोज़गार के स्रोत के रूप में भी काम करते हैं. 50 प्रतिशत CCCs संचालकों के लिए, यह उनकी पहली नौकरी थी. ऐसा देखा गया है कि महिला सूक्ष्म उद्यमियों ने अपनी आय सुनिश्चित कर ली है और इस प्रकार वे अब घरेरू ख़र्चों को लेकर स्वतंत्रतापूर्वक फैसले लेने में समर्थ हो गई हैं. |
स्रोत: निकोर एसोसिएट्स [36]
भारत सरकार ने देश भर में केयर सर्विसेज प्रदान करने के लिए कई कार्यक्रम एवं योजनाएं शुरू की हैं. भारत सरकार का राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन शहरी एवं ग्रामीण, दोनों इलाक़ों में एक समान और किफ़ायती एवं गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक हर किसी की पहुंच की सुविधा प्रदान करता है.
एक्रेडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट यानी मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (ASHA) और आंगनवाड़ी वर्कर्स (AWW) नेशनल हेल्थ मिशन के अंतर्गत कार्य करने वाले मानद स्वयंसेवक सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं. इन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की ज़िम्मेदारी में मातृ एवं शिशु देखभाल सेवाएं प्रदान करना और टीकाकरण एवं पोषण संबंधी देखभाल के लिए जागरूकता पैदा करना और लोगों को इसके लिए तैयार करना शामिल है. [37]
एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना, जो कि 2 अक्टूबर 1975 को शुरू की गई थी, यह योजना बच्चों और नर्सिंग मदर्स, अर्थात शिशुओं को दूध पिलाने वाली माताओं पर केंद्रित भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है. ICDS के अंतर्गत जो आंगनवाड़ी केंद्र स्थापित किए गए हैं, वे स्वास्थ्य, पोषण और प्राथमिक शिक्षा जैसी सभी पहलों के कार्यान्वयन के प्रमुख केंद्र हैं.
केस स्टडी 2 |
ऑस्ट्रेलिया की ‘डैड एंड पार्टनर पे’ पॉलिसी |
देश |
ऑस्ट्रेलिया |
शुरू होने का वर्ष |
2013 |
कार्यान्वयन करने वाली एजेंसी |
ऑस्ट्रेलिया की सरकार का सोशल सर्विसेज विभाग |
मॉडल के बारे में |
बच्चे के पालन-पोषण में पिता की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए ऑस्ट्रेलिया की सवैतनिक पैरेन्टल अवकाश योजना को वर्ष 2013 में बदल दिया गया था और इस योजना में दो सप्ताह तक के लिए ‘डैड एंड पार्टनर पे’ यानी ‘पिता एवं साथी वेतन’ को शामिल किया गया था (प्राथमिक देखभालकर्ता के लिए 18 सप्ताह के लिए मौज़ूदा पैरेन्टल लीव पे के अतिरिक्त), जिसका राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन की दर पर भुगतान किया जाता है. |
प्रमुख विशेषताएं |
पात्रता: पिता एवं पार्टनर वेतन हेतु योग्य होने के लिए व्यक्ति को बच्चे का जैविक या गोद लेने योग्य पिता, या बच्चे की मां का पार्टनर होना चाहिए, इसके साथ ही उसे बच्चे के जन्म या गोद लेने से पहले 13 महीनों में से कम से कम 10 महीने कार्य किया होना चाहिए.
भुगतान राशि: वर्तमान में भुगतान टैक्स से पहले अधिकतम दो सप्ताह के लिए 719.35 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर प्रति सप्ताह (सितंबर 2021 तक) निर्धारित है. यह भुगतान कर योग्य इनकम के अंतर्गत आता है और इसके लिए सामान्य टैक्स कटौती की जाती है.
भुगतान का समय: भुगतान का दावा बच्चे के जन्म या गोद लेने के बाद पहले 52 सप्ताह के भीतर किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन यह निश्चित है कि भुगतान का दावा बच्चे के जन्म या गोद लेने के 52 सप्ताह के भीतर ही किया जाना चाहिए, उसके बाद में नहीं.
कार्य करने पर प्रतिबंध: डैड एंड पार्टनर पे प्राप्त करने की अवधि के दौरान व्यक्ति को काम नहीं करना चाहिए या सवैतनिक छुट्टी नहीं लेनी चाहिए.
अन्य अधिकारों पर प्रभाव: ‘डैड एंड पार्टनर पे’ प्राप्त करने पर किसी व्यक्ति के अन्य सरकारी भुगतानों, जैसे कि पारिवारिक कर लाभ के लिए पात्रता आदि पर असर पड़ सकता है और नियोक्ता द्वारा प्रदान की गई विभिन्न सुविधाओं (entitlements) पर भी असर पड़ सकता है.
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कार्यक्रम का प्रभाव |
• बच्चे के जन्म के समय छुट्टी लेने के लिए वित्तीय सहायता पिताओं को पैसों से भी आगे एक बड़ी भूमिका प्रदान कर सकती है, जो उन्हें बच्चे के देखभाल से संबंधित कार्यों में तत्काल जुट जाने के लिए प्रोत्साहित करती है. यह छुट्टी पिताओं को ज़ल्दी ही को-पैरेन्टिंग संबंध विकसित करने और एक ऐसे जीवंत अनुभव का साक्षी बनने का अवसर प्रदान कर सकती है, जो पितृत्व की धारणाओं को न केवल एक बिलकुल नया आकार देता है, बल्कि अपने बच्चे की देखभाल में उनकी व्यावहारिक और भावनात्मक संलग्नता एवं दिलचस्पी को भी बढ़ा सकता है.
• इसके अतिरिक्त, निजी संगठन जो इस छुट्टी को अपनी साझा पैरेन्टल लीव पॉलिसियों के साथ जोड़ते हैं, वे भी कहीं न कहीं इस दिशा में सकारात्मक वृद्धि करने में सहयोग करते हैं.
• डेलॉइट (Deloitte) ने अपनी माता-पिता की अवकाश योजना के पुरुष उपयोगकर्ताओं के अनुपात में 20 प्रतिशत से 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज़ की है. PwC ने अपनी पैरेन्टल लीव स्कीम का उपयोग करने वाले पुरुषों के प्रतिशत में 45 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की है.
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स्रोत : ग्रैट्टन इंस्टीट्यूट, 2021 [38]
इस सबके अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया की सरकार का स्वास्थ्य एवं बुजुर्ग देखभाल विभाग, होम केयर, रेजिडेंशियल केयर और लचीली बुजुर्ग देखरेख हेतु पंजीकृत एवं मंजूरी प्राप्त सेवा प्रदाताओं के लिए वृद्ध देखभाल सब्सिडी दे रहा है. सेवा प्रदाताओं को यह सब्सिडी देखभाल किए जाने वाले हर उस बुजुर्ग व्यक्ति को मिलने वाली सरकारी सब्सिडी से भुगतान की जाती है. इस पॉलिसी में बुजुर्ग ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों की देखरेख में जुटे केयर वर्कर्स के कौशल एवं जानकारी को बेहतर बनाने के लिए उन्हें प्रशिक्षित एवं शिक्षित करने हेतु फंडिंग का प्रावधान भी शामिल है. ऑस्ट्रेलियन इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड वेलफेयर (AIHW) के मुताबिक़ वित्तीय वर्ष 2019-20 में ऑस्ट्रेलिया में एक मिलियन से ज़्यादा नागरिक वृद्ध देखभाल सेवाओं का उपयोग कर रहे थे. [39]
केस स्टडी 3 |
स्वीडन में माता-पिता को मिलने वाले लाभ |
देश |
स्वीडन |
शुरू होने का वर्ष |
1995 |
कार्यान्वयन करने वाली एजेंसी |
स्वीडिश सोशल इंश्योरेंस एजेंसी |
मॉडल के बारे में |
स्वीडन में प्रत्येक माता-पिता अपने वेतन के 80 प्रतिशत के साथ 90 व्यक्तिगत दिनों (या 12 सप्ताह से अधिक) की छुट्टी के हक़दार हैं और इसके साथ ही 480 साझा दिनों के भी अधिकारी हैं, जिनमें से माता-पिता दोनों में से प्रत्येक के पास 240 दिन हैं. |
प्रमुख विशेषताएं |
बच्चे के पहले वर्ष के दौरान, माता-पिता दोनों के ही लिए समान अवधि के दौरान 30 दिनों (तथाकथित ‘डबल डेज’) से अधिक के लिए पैरेन्टल लीव का लाभ लेने का मौक़ा होता है. बच्चे के चौथे जन्मदिन से पहले 384 दिनों के पैरेन्टल लाभ अनिवार्य रूप से ले लिया जाना चाहिए. बाक़ी बचे 96 दिनों के लाभ को अधिक से अधिक, बच्चे को 12 वर्ष का होने से पहले या पांचवीं कक्षा पूरी करने तक बचा कर रखा जा सकता है और उनका लाभ उठाया जा सकता है. |
कार्यक्रम का प्रभाव |
• वर्ष 1995 के बाद जन्म लेने वाले बच्चों के लिए, 77 प्रतिशत पिताओं ने बच्चे के 4 वर्ष की आयु तक पहुंचने से पहले पैरेन्टल लीव का उपयोग किया है.
• ऐसी नीतियों की ही वजह से स्वीडन में अपेक्षाकृत प्रजनन स्तर उच्च है, यानी महिलाएं अपेक्षाकृत अधिक बच्चों को जन्म देती हैं. इसके साथ ही स्वीडन में नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी भी बहुत अधिक है और बच्चों की देखभाल के लिए माता-पिता के पास अधिक वक़्त होता है.
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स्रोत: इंस्टीट्यू फॉर फ्यूचर स्टडीज, 2005 [40]
केस स्टडी 4 |
जर्मनी में बच्चों के डे सेंटर्स का विस्तार |
देश |
जर्मनी |
शुरू होने का वर्ष |
2020-21 |
कार्यान्वयन करने वाली एजेंसी |
जर्मनी की सरकार |
मॉडल के बारे में |
जर्मनी के निवेश कार्यक्रम के एक हिस्से के तौर पर, जिसे चाइल्ड केयर फाइनेंसिंग के रूप में जाना जाता है, वहां की फेडरल गवर्नमेंट चाइल्ड डे केयर सुविधाओं के विस्तार में अरबों यूरो का निवेश कर रही है. |
प्रमुख विशेषताएं |
• नई चाइल्ड केयर सुविधाओं का निर्माण करने और मौज़ूदा सुविधाओं का विस्तार करने के कार्यक्रम के लिए वर्ष 2021 में सरकार द्वारा 1 बिलियन यूरो आवंटित किए गए थे.
• इस राशि से 90,000 नई शिशु देखभाल सुविधाएं स्थापित की जाएंगी.
• इसके अलावा, ग्रेड 1 से 4 में पूरे दिन की देखरेख हेतु स्थान को बढ़ाने के लिए 1.5 बिलियन यूरो की धनराशि आवंटित की गई है, इसके साथ ही स्कूलों के डिजिटल उपकरणों में निवेश के रूप में 0.5 बिलियन यूरो की अतिरिक्त राशि भी आवंटित की गई है.
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कार्यक्रम का असर |
• यह बच्चों की बेहतर देखभाल और माता-पिता के लिहाज़ से सकारात्मक नतीज़ों को बढ़ावा देता है
• चाइल्ड केयर सुविधाओं तक पहुंच बढ़ाने को प्रोत्साहित करता है और उत्पादकता को भी बढ़ाता है
• OECD की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ चाइल्ड केयर सर्विसेज के विस्तार की वजह से जर्मनी के भीतर वर्क फोर्स में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है. इतना ही नहीं इसने जर्मनी में जेंडर एम्प्लॉयमेंट गैप यानी लैंगिक रोज़गार अंतर को कम करने में भी अहम योगदान दिया है.
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स्रोत: यूरोपीय आयोग [41]
केस स्टडी 5 |
अर्जेंटीना में मातृत्व अवकाश नीति |
देश |
अर्जेंटीना |
शुरू होने का वर्ष |
आगामी वर्षों में संशोधन के साथ रोज़गार अनुबंध पर वर्ष 1974 के राष्ट्रीय क़ानूनों के प्रावधानों के तहत विनियमित |
कार्यान्वयन करने वाली एजेंसी |
अर्जेंटीना सरकार – नेशनल सोशल सिक्योरिटी ऑर्गेनाइजेशन |
मॉडल के बारे में |
• सरकार मातृत्व अवकाश के लिए पूरी तरह से नकद लाभ देती है और 13 सप्ताह का मातृत्व अधिकार प्रदान करती है.
• मातृत्व अवकाश की अवधि के पश्चात माताएं तीन से छह महीने की अवैतनिक लीव ऑफ एब्सेंस यानी गैरहाज़िरी वाली छुट्टी भी ले सकती हैं.
• इसमें अशक्तता के लिए भी प्रावधान हैं. डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों के मामले में सवैतनिक मातृत्व अवकाश को 6 महीने तक बढ़ा दिया जाता है.
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कार्यक्रम का प्रभाव |
• वित्तपोषित मातृत्व अवकाश पॉलिसी जहां एक तरफ माताओं को अपनी नौकरी को सुरक्षित बनाए रखने में सक्षम बनाती है, वहीं दूसरी तरफ माता और बच्चे के जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार करती है.
• रोज़गार की शर्तों को निर्धारत करने के लिए नियोक्ताओं के साथ सामूहिक सौदेबाजी और निजी सेक्टर की पहलों ने क़ानून की प्रभावशीलता को बढ़ाने का काम किया है. उदाहरण के तौर पर कृषि श्रम क़ानून के अंतर्गत अस्थायी कामगारों को भी समान शर्तों के मुताबिक़ कवर किया जाता है.
• परिवार और व्यवसाय सुलह केंद्र (CONFyE) ने कई इनोवेटिव समाधानों के बारे में बताया है, जैसे कि रिटर्निंग मदर्स यानी बच्चे के जन्म के बाद नौकरी पर आने वाली माताओं को वेतन पूरा दिया जाए, लेकिन उनके काम के घंटे कम कर दिए जाएं और लचीली कामकाजी व्यवस्था के लिए उन माताओं का सहयोग करना.
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स्रोत: लीव नेटवर्क, 2021 [42]
ट्रीब्यूशन: मिताली निकोरे एवं अन्य, “G20 देशों में आर्थिक विकास को गति देने एवं महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण हेतु देखभाल अर्थव्यवस्था (Care Economy) निवेश का लाभ उठाना आवश्यक,” T20 पॉलिसी ब्रीफ़, जून 2023.
Endnote:-
[A] ब्रिटेन में 52 सप्ताह का वैधानिक मातृत्व अवकाश अनिवार्य है, लेकिन मातृत्व वेतन हासिल करने की पात्रता केवल 39 सप्ताह के लिए ही प्रदान की जाती है.
[B] राष्ट्रीय स्तर पर वैधानिक अधिकार मौज़ूद नहीं है; हालांकि, कुछ राज्य में 10 से 30 दिनों का पितृत्व अवकाश देने का विकल्प है.
[C] क्यूबेक को छोड़कर कनाडा में कोई वैधानिक पितृत्व अवकाश नहीं है. कनाडा में पितृत्व अवकाश पैरेन्टल छुट्टी का ही एक हिस्सा है, जिसका मतलब है कि माता–पिता दोनों इस समय का इस्तेमाल एक साथ कर सकते हैं, लेकिन कम से कम 5 सप्ताह “डैडी डेज” के लिए आरक्षित हैं.
[D] C189 कन्वेंशन घरेलू कामगारों के लिए श्रम मानदंड निर्धारित करने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) कन्वेंशन है.
[1] “Not all Gaps are Created Equal: The True Value of Care Work,” Oxfam International , 2023.
[2] Laura Addati et al., Care Work and Care Jobs for the Future of Decent Work (Genèva: International Labour Organisation (ILO), 2018).
[3] “Progress on the Sustainable Development Goals,” UN Women, 2022.
[4] Gaëlle Ferrant, Luca Maria Pesando, and Keiko Nowacka, “Unpaid Care Work: The Missing Link in the Analysis of Gender Gaps in Labour Outcomes,” OECD, December 2014.
[5] International Labour Organization (ILO), “Global Wage Report 2018/19: What Lies Behind Gender Pay Gaps,” 2018.
[6] INMujeres and UN Women, “Bases Para Una Estrategia Nacional de Cuidados,” 2018.
[7] Addati et al., Care Work and Care Jobs for the Future of Decent Work
[8] ILO, World Employment Social Outlook (Geneva: International Labour Organisation (ILO), 2017).
[9] Anna O’Donnell, “How Investing in Childcare Drives Economic Growth for Indonesia,” World Bank Blogs, 2023.
[10] Nikore et al., “India’s Missing Working Women: Tracing the Journey of Women’s Economic Contribution Over the Last Seven Decades, and During COVID-19”
[11] Steven Michael Pennings, “A Gender Employment Gap Index,” 2022.
[12] Jérôme De Henau, Susan Himmelweit, and Diane Perrons, “Investing in the Care Economy,” ITUC, 2017.
[13] Laura Addati, Care at Work: Investing in Care Leave and Services for a More Gender Equal World of Work (Geneva: International Labour Organization, 2022).
[14] Government of India, “The Group of Twenty (G20),” accessed 2023.
[15] “Women at Work in G20 Countries: Progress and Policy Action Since 2018: International Labour Organization (ILO),” International Labour Organization (ILO),2019.
[16] G20 Bali Leaders’ Declaration, November 2022.
[17] Clare Coffey et al., “Time to Care: Unpaid and Underpaid Care Work and the Global Inequality Crisis: Oxfam,” Oxfam International, 2020.
[18] Christopher J. Ruhm, “The Economic Consequences of Parental Leave Mandates: Lessons from Europe,” The Quarterly Journal of Economics 113, no. 1 (Feb 1, 1998): 285-317. doi:10.1162/003355398555586.
[19] Olivier Thévenon and Anne Solaz, “Labour Market Effects of Parental Leave Policies in OECD Countries,” OECD.
[20] Purna Banerjee, Shreya Biswas, and Debojyoti Mazumder, “Maternity Leave and Labour Market Outcomes,” July 4, 2022.
[21] Gala Diaz Langou and Florencia Caro Sachetti. “Achieving “25 by 25”: Actions to Make Women’s Labour Inclusion a G20 Priority,” CIPPEC, 2018.
[22] “Child Tax Credit,” The White House, accessed April 2023.
[23] “Consolidation of Laws of Work and Related Standards,” Federal Senate, 2017, (senado.leg.br)
[24] “Argentina’s Universal Child Allowance,” UNESCAP, accessed April 2023.
[25] Addati et al., Care Work and Care Jobs for the Future of Decent Work
[26] “30 Hours Free Childcare,” Government of United Kingdom, accessed April 2023.
[27] “Childcare Financing 2020-2021,” Federal Ministry of Family Affairs, accessed April 2023.
[28] “Government Announces $44 Million in New Grants for Child Care Facilities,” Government of Saskatchewan, January 31, 2023.
[29] Marion F. Krings et al., “China’s Elder Care Policies 1994-2020: A Narrative Document Analysis,” International Journal of Environmental Research and Public Health 19, no. 10 (May 18, 2022): 6141, doi:10.3390/ijerph19106141.
[30] International Labour Organization (ILO), “Formalizing Domestic Work,” 2016.
[31] OECD, “Who Cares? Attracting and Retaining Care Workers for the Elderly,” 2020.
[32] “Aged Care Subsidies and Supplement,” Australian Government Department of Health and Aged Care, April 2023.
[33] Coffey Clare et al., “Time to Care,” Oxfam, 2020.
[34] “Centres for Care,” Tata Enterprises, accessed April 2023.
[35] National Institute of Statistics and Geography, “Unpaid Household Work Satellite Account of Mexico,” UN Stats, 2022.
[36] Mitali Nikoreet al., “India’s Missing Working Women: Tracing the Journey of Women’s Economic Contribution Over the Last Seven Decades, and During COVID-19,” Journal of International Women’s Studies 23, no. 4 (2022).
[37] Nikore et al., “India’s Missing Working Women”
[38] Danielle Wood, Owain Emslie, and Kate Griffiths, Dad Days (Grattan Institute Support, 2021).
[39] Australian Institute of Health and Welfare, Australian Government, 2021.
[40] Ann-Zofie Duvander, Tommy Ferrarini, and Sara Thalberg, “Swedish Parental Leave and Gender Equality,” Institute for Future Studies, 2005.
[41] European Commission, “Germany’s Recovery and Resilience – Supported Projects”.
[42] International Network on Leave Policies and Research, “Argentina,” 2021.
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