Author : Seema Sirohi

Published on Apr 08, 2021 Updated 0 Hours ago

इस भयंकर युद्ध से उठ रही लहरें विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी को ही नहीं, बल्कि सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी की अवास्तविक अपेक्षाओं को डुबोने पर आमादा हैं 

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की तीन महीने पुरानी एकता की अपील कितनी सफल? एक विश्लेषण

संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस साल  एक महीने के अंतराल में विद्रोह भी देखा, एक नए राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण भी देखा और एक महाभियोग भी देखा. ज़ाहिर है, एक के बाद होती गई इन विशाल घटनाओं के सामने अमेरिका ठिठक कर खड़ा रह गया. ऐसे में जब 20 जनवरी 2021 को व्हाइट हाउस में देश के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कदम रखा था तब ऐसा लगा कि पुराने अमेरिका मे नई जान लौट आई है.

राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने शपथ ग्रहण के मौक़े पर वचन दिया था कि वो बुरी तरह विभाजित और ज़ख़्मी अमेरिका को एकजुट करेंगे, जबकि पूर्व राष्ट्रपति नाल्ड ट्रंप अपने असली व्यक्तित्व का परिचय देते हुए देश में विभाजन की दीवारें खड़ी करने में जुटे रहे. सच तो ये है कि अमेरिका को इस क़दर बांट देने का काम ट्रंप ही कर सकते हैं. लेकिन, राष्ट्रपति बाइडेन ने अमेरिका द्वारा अपने ही ख़िलाफ़ छेड़े गए जिस असभ्य युद्ध को ख़त्म करने की अपील की थी, वो बदस्तूर जारी है. इस भयंकर युद्ध से उठ रही लहरें विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी को ही नहीं, बल्कि सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी की अवास्तविक अपेक्षाओं को डुबोने पर आमादा हैं.

आज अमेरिका की कड़वी सच्चाई ये है कि उसकी घरेलू राजनीति बड़े बड़े जुमलों के शोर पर प्रतिक्रिया देने से कहीं आगे निकल चुकी है. पिछले एक दशक या उससे भी ज़्यादा समय से अमेरिकी समाज में विभाजन की दीवारें धीरेधीरे ऊंची ही होती जा रही हैं. देश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों ने देश के ध्रुवीकरण में अपनीअपनी भूमिका अदा की है. रिपब्लिकन पार्टी ने लोगों की असुरक्षा को भड़काया है, तो डेमोक्रेटिक पार्टी ने स्वयं के जागृत रहने का ढोंग करके इस विभाजन को मज़बूत किया है.

आज अमेरिका की कड़वी सच्चाई ये है कि उसकी घरेलू राजनीति बड़े बड़े जुमलों के शोर पर प्रतिक्रिया देने से कहीं आगे निकल चुकी है. पिछले एक दशक या उससे भी ज़्यादा समय से अमेरिकी समाज में विभाजन की दीवारें धीरे-धीरे ऊंची ही होती जा रही हैं.

जब से डोनाल्ड ट्रंप ने रिपब्लिकन पार्टी पर क़ब्ज़ा किया है, उसके बाद से ही रिपब्लिकन पार्टी में उग्र दक्षिणपंथी लोगों की तादाद बढ़ती गई है. इनमें साज़िश की बातें करने वालों से लेकर वो लोग तक शामिल हैं, जो Qanon जैसी वाहियात क़हानी में यक़ीन रखते हैं. इन लोगों को लगता है कि शैतानों की पूजा करने वाले और बच्चों का यौन शोषण करने वाले डेमोक्रेटिक पार्टी के डीप स्टेट के लोगों ने ट्रंप के शासनकाल को नीचा दिखाने वाले काम किए थे.

अभी भी लाखों अमेरिकी नागरिक ऐसे हैं, जो पिछले साल नवंबर में हुए राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडेन की जीत पर शक करते हैं. उनमें से काफ़ी लोग ट्रंप के उकसावे पर राजधानी में इकट्ठा भी हुए थे और अमेरिकी संसद यानी कैपिटॉल पर धावा बोला था. इन लोगों की करतूतों ने ये साबित किया था कि अमेरिका में एक वैकल्पिक राजनीतिक व्यवस्था भी है, जो मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था में विश्वास नहीं रखती.

बँटा हुआ अमेरिकी समाज

आज अमेरिकी नागरिक तथ्यों पर बंटे हुए हैं, सत्ता और सरकार के बुनियादी उसूलों पर विभाजित हैं और उनमें इस बात को लेकर भी मतभेद है कि देश को कैसे चलाया जाना चाहिए. हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि बहुत से राजनीति वैज्ञानिकों ने आज अमेरिका को शासित  हो सकने वाले देशों में शुमार किए जाने की आशंका भी जतानी शुरू कर दी है. अगर आप इसमें अमेरिका की सामाजिक व्यवस्था के अन्य तनावों जैसे कि नस्लवाद, पुलिस की निर्दयता, आमदनी में असमानता और अवैध अप्रवासियों की चुनौती को जोड़ दें जो पिछले कई वर्षों से बढ़ती ही जा रही हैं और इस महामारी के दौरान इनमें इज़ाफ़ा ही हुआ है, तो तस्वीर और भी बदसूरत हो जाती है. अगर हम ये कहें कि जो बाइडेन के सामने पहाड़ सी चुनौती खड़ी है, तो भी समस्या को कम करके आंकने जैसा ही होगा. आज अमेरिका के बुरी तरह विभाजित समाज को एकजुट करना ठीक वैसा ही असंभव काम है, जैसे कि पानी और हवा को आपस में मिलाना.

अगर हम ये कहें कि जो बाइडेन के सामने पहाड़ सी चुनौती खड़ी है, तो भी समस्या को कम करके आंकने जैसा ही होगा. आज अमेरिका के बुरी तरह विभाजित समाज को एकजुट करना ठीक वैसा ही असंभव काम है, जैसे कि पानी और हवा को आपस में मिलाना.

भले ही आज व्हाइट हाउस और अमेरिकी संसद की कमान डेमोक्रेटिक पार्टी के हाथ में है. अमेरिकी संसद के निचले सदन, हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स (210 की तुलना में 222) और उच्च सदन सीनेट में (50-50) में  डेमोक्रेटिक पार्टी को बहुमत हासिल है. लेकिन, ये बहुमत बहुत मामूली सा है. डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए संसद के शिकंजे से बच निकलना बहुत मुश्किल है. वहीं, रिपब्लिकन पार्टी अल्पमत में होने के बावजूद ऐसी स्थिति में है कि जब चाहे सरकार को कठघरे में खड़ा कर सकती है.

जो बाइडेन के शपथ ग्रहण करने के एक हफ़्ते से भी कम समय के अंदर, उनकी पार्टी इस बात की मांग कर रही है कि वो बड़े और साहसिक क़दम उठाकर ये साबित करें कि उनकी सरकार जनता के लिए काम कर सकती है. डेमोक्रेटिक पार्टी आज सीनेट के नियमों में बदलाव करना चाहती है. जिससे कि वो सामान्य बहुमत से भी जल्दबाज़ी में कोई विधेयक पारित कर सके और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को 1.9 ख़रब डॉलर के स्टिमुलस पैकेज मुहैया कराया जा सके.

वहीं, रिपब्लिकन पार्टी ने अमेरिकी लोकतंत्र को चोट पहुंचाने वाली, 6 जनवरी को ट्रंप विद्रोह भड़काने की करतूतों पर थोड़ा सा पछतावा जताया और अब पार्टी दोबारा, विभाजित द्विपक्षीय राजनीति करने में जुट गई है. ऐसा लगता है कि रिपब्लिकन पार्टी ने लोहे का ऐसा कवच धारण कर लिया है जिस पर मोटे-मोटे अक्षरों में नहीं लिखा है. अमेरिकी संसद पर हमले के सदमे को पहले ही भुला दिया गया है. जबकि ख़ुद रिपब्लिकन पार्टी के एक राष्ट्रपति ने अपने भड़काऊ भाषण से रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों की जान को ख़तरे में डाला था

ट्रंप विरोधी सांसदों की मुश्किलें बढ़ीं

अमेरिकी संसद के निचले सदन में रिपब्लिकन पार्टी के केवल दस सदस्यों ने ही ट्रंप के ख़िलाफ़ महाभियोग चलाने के पक्ष में वोट दिया था और अपने-अपने क्षेत्र में इन रिपब्लिकन सांसदों की मुसीबतें बढ़ गई हैं. आज ट्रंप पर महाभियोग का समर्थन करने वाले सांसदों की ही आलोचना की जा रही है. उन्हें अलग थलग किया जा रहा है,  कि ट्रंप को.

सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों ने ट्रंप के ख़िलाफ महाभियोग चलाने के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोट करने के लिए नए नए बहाने तलाश लिए हैं. इसकी एक वजह रिपब्लिकन सीनेटरों का वो डर भी है कि ट्रंप के विरोध में वोट करने से उनके लाखों वोटर नाराज़ हो जाएंगे और उनका अपना राजनीतिक भविष्य ख़तरे में पड़ जाएगा. रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों का समर्थन  मिलने के चलते उन पर महाभियोग चलाने का डेमोक्रेटिक पार्टी का सपना अधूरा ही रह गया. इस प्रस्ताव को पास करने के लिए ज़रूरी दो तिहाई वोट हासिल नहीं किए जा सके और महाभियोग का प्रस्ताव सीनेट में गिर गया.

संसद में रिपब्लिकन पार्टी के सख़्त विरोध के चलते जो बाइडेन के शासन काल को आगे भी कई वैधानिक चुनौतियों का सामना करना होगा. ऐसे में उनके लिए अपने चुनावी वादों को पूरा कर पाना असंभव नहीं तो बहुत मुश्किल ज़रूर होगा.

इस क़दर विभाजित कांग्रेस से जो बाइडेन ने महामारी में राहत देने वाले 1.9 ख़रब डॉलर का पैकेज तो पारित करा लिया है, और इससे उनके शासनकाल की अच्छी शुरुआत भले हो गई हो, लेकिन उनके आगे के कई वैधानिक प्रस्तावों को भी ऐसा ही समर्थन मिल जाएगा, ये कहना बहुत मुश्किल है.

संसद में रिपब्लिकन पार्टी के सख़्त विरोध के चलते जो बाइडेन के शासन काल को आगे भी कई वैधानिक चुनौतियों का सामना करना होगा. ऐसे में उनके लिए अपने चुनावी वादों को पूरा कर पाना असंभव नहीं तो बहुत मुश्किल ज़रूर होगा. अब जो बाइडेन के सामने दो ही विकल्प हैं. या तो वो कांग्रेस का समर्थन जुटा लेने की मशक्कत करते रहें, या फिर संसद के नियम बदलकर रिपब्लिकन सांसदों के विरोध को दरकिनार कर दें. इस विकल्प को आज़माने में बाइडेन के लिए दिक़्क़त इस बात की है कि ख़ुद उनकी डेमोक्रेटिक पार्टी के बहुत से नेता, विपक्षी रिपब्लिकन को हाशिए पर धकेलने के पक्ष में नहीं हैं.

वहीं रिपब्लिकन पार्टी भी उस दोराहे पर खड़ी है, जहां से उसे दो विकल्पों में से एक का चुनाव करना है. वो ट्रंप के दिखाए राजनीतिक पथ पर चले या फिर ट्रंप के शिकंजे से अपनी पार्टी को आज़ाद कराए. अब तक रिपब्लिकन पार्टी को ट्रंप के शिकंजे से आज़ाद कराने के विकल्प के समर्थन में मुट्ठी भर नेता ही हैं. ये आसान विकल्प इसलिए नहीं है, क्योंकि रिपब्लिकन पार्टी के मतदाताओं का एक बड़ा तबक़ा अभी भी यही मानता है कि इस चुनाव में ट्रंप से धांधली हुई. ऐसे हालात में अगर रिपब्लिकन नेता ट्रंप के ख़िलाफ़ कार्रवाई करते हैं, तो उनका अपना राजनीतिक करियर ख़त्म हो जाएगा.

इन परिस्थितियों में जो बाइडेन को अपने एजेंडे में थोड़ी मुलायमियत लानी होगी, जिससे वो नरमपंथी रिपब्लिकन सांसदों का समर्थन जुटा सकें. ख़ास तौर से अपनी अप्रवासी नीति को लेकर क्योंकि अगर जो बाइडेन की अप्रवासी नीति को जस का तस लागू किया जाता है, तो अमेरिका की दक्षिणी सीमा पर अमेरिका आने वालों की भीड़ लग जाएगी. जो लोग अमेरिका में उदारवादी अप्रवासी नीति का समर्थन करते रहे हैं, वो आज अवैध घुसपैठियों जैसे जुमलों का इस्तेमाल  करने तक की वकालत करने लगे हैं, क्योंकि उनके मुताबिक़ इससे अप्रवासी लोग लांछन के शिकार बन जाते हैं. डेमोक्रेटिक पार्टी में ऐसे उग्रपंथी काफी संख्या में हैं.

रिपब्लिकन पार्टी, कामकाजी वर्ग के उन गोरे मतदाताओं को लुभाने में पूरी ताक़त से जुटी है, जो आर्थिक चुनौतियां झेल रहे हैं. इनके ग़ुस्से का ट्रंप ने भी भरपूर राजनीतिक लाभ उठाया था. अगर इन मतदाताओं को डेमोक्रेटिक पार्टी के उग्र उदारवादियों के साथ जोड़ लें, तो जो बाइडेन की देश को एकजुट करने की चुनौती और भी बड़ी हो जाती है अमेरिका को एकजुट करने की भारी क़ीमत चुकानी होगी. लेकिन, सवाल ये है कि ये राजनीतिक क़ीमत कौन चुकाएगारिपब्लिकन पार्टी या डेमोक्रेटिक पार्टी?

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