Author : Puneet Sharma

Expert Speak Raisina Debates
Published on Dec 13, 2024 Updated 0 Hours ago

QUAD का गठन एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए किया गया था. इसी मक़सद से इसे रिन्यू भी किया गया, लेकिन अब ऐसा लगता है कि इसके अर्ध-संस्थागत रूप ने क्वाड का प्रभाव काफ़ी कम कर दिया है.

क्या QUAD का ढीला ढांचा वैश्विक चुनौतियों का सामना कर सकता है?

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क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग यानी QUAD की कल्पना 2004 में आई सुनामी के बाद की गई. जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के नेतृत्व में 2007 में औपचारिक रूप से इसका गठन किया गया. उन्होंने ही इंडो-पैसिफिक के तौर पर एक नई क्षेत्र की कल्पना की थी. हालांकि क्वाड के गठन के बाद से ही संगठन के कुछ सदस्यों में इसे लेकर कुछ हिचकिचाहट थी. उन्हें लग रहा था कि क्वाड को कहीं चीन विरोधी संगठन ना समझ लिया जाए. इसके अलावा चीन भी क्वाड के ख़िलाफ़ मुहिम चला रहा था. इसी का नतीजा हुआ कि 2008 में ऑस्ट्रेलिया इससे बाहर हो गया. 2017 में ये संगठन फिर ज़िंदा हुआ. इसकी वजह बनी चीन की बढ़ती आक्रामकता और बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियां. मुक्त और खुला इंडो-प्रशांत (FOIP) क्षेत्र और नियम आधारित व्यवस्थाओं की अवधारणा लोकप्रिय होने लगी. इसने क्वाड को पुनर्जीवित करने में योगदान दिया. हालांकि अतीत से सबक सीखते हुए इस संगठन ने अपनी ब्रांडिंग नए तरीके से की. क्वाड ने खुद को ऐसे संगठन के तौर पर पेश किया जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सतत विकास, स्थिरता और समृद्धि के ज़रिए अपने लोगों की भलाई चाहता है. इसने उन कामों का समर्थन किया, जो नियम आधारित व्यवस्था का सम्मान करते हैं और मौजूदा क्षेत्रीय संस्थाओं को मज़बूत करते हैं. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के देशों के लिए इस नए क्वाड ने खुद को ऐसे पेश किया, जो उन्हें चीन के बढ़ते प्रभाव और दादागिरी से बचाएगा, इस क्षेत्र में स्थिरता लाएगा.

 

QUAD को दोबारा क्यों किया गया ज़िंदा?


2017 में क्वाड के फिर से सक्रिय होने के बाद से इसके अस्तित्व और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता लाने के लिए क्वाड को संस्थागत बनाने पर बहस चल रही है. हालांकि, कुछ स्कॉलर्स का मानना है कि QUAD को पहले ही संस्थागत बना दिया गया है. वैसे हक़ीकत ये है कि क्वाड अभी अर्ध-संस्थागत संगठन ही बना हुआ है. इसके सदस्य देश ही इसके पूरी तरह संस्थागतकरण के पक्ष में नहीं हैं. 26 फरवरी 2024 को अमेरिका की प्रतिनिधि सभा ने "क्वाड को मजबूत करने का अधिनियम" पारित किया. इसके बाद सभी सदस्य देशों की सरकारों ने अपने मंत्रालयों के भीतर कुछ ऐसी प्रक्रियाएं शुरू की, जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि ये सारे कदम क्वाड के सीमित संस्थागतकरण के लिए उठाए गए. इसे अर्ध-संस्थागत रूप देने का कई लोग द्वारा समर्थन कर रहे हैं. इनका मानना था कि सदस्य देशों के अलग-अलग दृष्टिकोणों और विभिन्न राष्ट्रीय हितों की मौजूद चुनौतियों को देखते हुए क्वाड को अर्ध-संस्थागत रूप दिया जाना ज़रूरी है. लेकिन अब तक काम को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि ये संगठन अपने लक्ष्य से दूर है. क्वाड को लेकर ये कहा जा रहा था कि वो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन का विकल्प बनेगा. इसे मुक्त और खुले इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के तौर पर विकसित किया जाएगा, लेकिन इसमें संस्थागतकरण की कमी की वजह से ये लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया.

 क्वाड को लेकर ये कहा जा रहा था कि वो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन का विकल्प बनेगा. इसे मुक्त और खुले इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के तौर पर विकसित किया जाएगा, लेकिन इसमें संस्थागतकरण की कमी की वजह से ये लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया.

QUAD और चीन की इच्छाशक्ति में कितना अंतर है, इसे एक उदाहरण से समझिए. क्वाड ने साल 2024 में आधिकारिक तौर पर घोषित अलग-अलग कार्यक्रमों के लिए करीब एक अरब डॉलर देने का वादा किया है, जबकि चीन ने पिछले साल यानी 2023 में अपने ग्लोबल डेवलपमेंट इनिशिएटिव (जीडीआई) के एक हिस्से के रूप में 4 अरब डॉलर देने का वादा किया है. इतना ही नहीं भावी विकास के लिए चीन ने 10 अरब डॉलर का स्पेशल फंड बनाने का वादा भी किया है. वहीं अगर क्वाड की बात करें तो इसकी फंडिंग अब भी सदस्य देशों की योगदान की इच्छा पर निर्भर है. जीडीआई पहल में चीन के द्वारा की जा रही फंडिंग और क्वाड की फंडिंग के बीच के इस अंतर पर गौर करने और इसे दूर करने की ज़रूरत है. क्वाड को संस्थागत करने के बाद ऐसा किया जा सकता है. इस संस्थागत इकाई की भूमिका फंड की आवश्यकता का अंदाज़ा लगाना, सदस्य देशों की इच्छा के मुताबिक आर्थिक मदद हासिल करना होगा. इसके अलावा इसका काम उन विभिन्न वैश्विक वित्तीय संस्थानों के साथ समन्वय बनाना होगा, जो इस क्षेत्र के देशों की मदद कर रहे हैं. नई पहलों को बढ़ावा दे रहे हैं.

QUAD की प्रमुख परियोजनाएं

ऐसी ही एक पहल है जलवायु और ऊर्जा पहल 2024. इस पहल के तहत शुरू की जा रही परियोजनाओं में 2025 में प्रशांत क्षेत्र में थ्रीडी-प्रिंटेड ऑटोमेटिक मौसम स्टेशन प्रदान करना शामिल है. ये स्टेशन स्थानीय मौसम और जलवायु के पूर्वानुमान तक पहुंच प्रदान करता है. इस योजना के तहत अमेरिका ने फिजी में विशेषज्ञों को प्रशिक्षण भी दिया. ऑस्ट्रेलिया भी हर मौसम के लिए तैयार पूर्व चेतावनी प्रणाली को स्थापित और मज़बूत करने में मदद कर रहा है. ये पैसिफिक आइलैंड्स फोरम द्वारा समर्थित पहल है. इसके ज़रिए क्वाड क्लीन एनर्जी सप्लाई कार्यक्रम के विविधीकरण का संचालन कर रहा है. इसमें ग्रीन एनर्जी सेक्टर की सप्लाई के लचीलेपन पर ध्यान दिया जाता है.

जापान ने अपने "प्रशांत जलवायु पहल को मज़बूत" करते हुए इस क्षेत्र के देशों की मदद करने का वादा किया है. इतना ही नहीं रिन्यूएबल एनर्जी परियोजनाओं के लिए जापान ने 122 मिलियन डॉलर देने का भी ऐलान किया है. सार्वजनिक और निजी दोनों तरह की संस्थाओं को ये रकम अनुदान और ऋण के रूप में मिलेगी. भारत ने भी मेडागास्कर, सेशेल्स, फिजी और कोमोरोस द्वीपों में नई सौर ऊर्जा परियोजनाए लगाने का भरोसा दिया है. इसमें 2 मिलियन डॉलर के निवेश करने की बात है. क्वाड ने किरिबाती, समोआ, सोलोमन द्वीप, टोंगा और वानुअतु में विशेषज्ञों को प्रशिक्षित करने की योजना बनाई है. इसका मक़सद ये है कि अचानक आने वाली बाढ़ की बेहतर निगरानी और पूर्वानुमान लगाया जा सके. हालांकि इन देशों में लगाई जाने वाली परियोजनाओं से स्पष्ट है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में क्वाड सबसे ज़्यादा प्राथमिकता पश्चिम प्रशांत क्षेत्र को देता है. इसके बाद पूर्व, दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र और हिंद महासागर क्षेत्र का नंबर आता है. यहां पर एक गौर करने वाली बात ये भी है कि क्वाड के सदस्य उन देशों की परियोजनाओं में आर्थिक मदद देते हैं, जो उनके राष्ट्रीय हितों का ख्याल रखते हैं. ज़रूरत इस बात की है कि क्वाड परियोजनाओं के लिए देशों का चयन करते वक्त ज़्यादा संतुलित नज़रिया अपनाए. अगर उसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित करने वाली संस्था बनना है तो सिर्फ राष्ट्रीय हित देखने की बजाए क्षेत्रीय हित भी देखने होंगे. ऐसा तभी मुमकिन है जब क्वाड अपने मौजूदा ढांचे में कुछ बदलाव करे. फिलहाल क्वाड में यही दिखता है कि ये सदस्य देशों द्वारा किए जा रहे कामों में कोई समन्वय नहीं कर रहा है. ज़रूरत इस बात की है कि संस्थाओं के बीच एक तरह का समन्वय हो. ये ऐसा संगठन बने, जहां व्यापारिक लेन-देन सिर्फ मौजूदा द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों पर निर्भर ना हों. 

 

संतुलित नज़रिया अपनाए. अगर उसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित करने वाली संस्था बनना है तो सिर्फ राष्ट्रीय हित देखने की बजाए क्षेत्रीय हित भी देखने होंगे. ऐसा तभी मुमकिन है जब क्वाड अपने मौजूदा ढांचे में कुछ बदलाव करे.

क्वाड का जो मौजूदा स्वरूप है, उसमें सरकारी एजेंसियों को इस संगठन के कामकाज से जुड़ी प्रक्रियाओं को शामिल किया गया है. इससे भविष्य में मुश्किलें आ सकती हैं, क्योंकि ये सदस्य देशों की सरकारों पर बहुत ज़्यादा निर्भर है. जब भी सदस्य देशों में नेतृत्व परिवर्तन होता है तो इस संगठन के अस्तित्व पर सवाल खड़े होने लगते हैं. हालांकि हाल ही में विलमिंगटन, डेलावेयर में हुई क्वाड की मीटिंग में अमेरिकी राष्ट्रपति ने आश्वासन दिया कि क्वाड को उनके देश का समर्थन जारी रहेगा. इसके बावजूद इस संगठन के भविष्य पर सवाल खड़ा होता रहता है. अगर क्वाड को औपचारिक तौर से संस्थागत रूप दिया जाता है तो इस तरह की समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है और क्वाड पर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के देशों का भरोसा बढ़ेगा. 

 

क्वाड को कैसे बनाया जा सकता है प्रभावी?

अगर अभी की बात करें तो एक बात बिल्कुल स्पष्ट है, क्वाड का अर्ध-संस्थागत रूप इसके विकास में बाधा बन रहा है. क्वाड को और ज़्य़ादा मज़बूत होने से रोक रहा है. ना तो ये क्वाड को एक पारदर्शी और भरोसेमंद संगठन के रूप में उभरने दे रहा है, ना ही ये तेज़ी से बढ़ते चीन का विकल्प बन पा रहा है. अगर क्वाड को इंस्टीट्यूशनलाइज किया जाता है तो ये मज़बूत भी बनेगा और भारत-प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच इसकी विश्वसनीयता बढ़ेगी. हालांकि ऐसा कर पाना बहुत ज्यादा चुनौतीपूर्ण है. क्वाड के सदस्य देशों के चीन के साथ आर्थिक संबंध हैं. ऐसे में उनके अंदर हमेशा से ये डर रहता है कि कहीं क्वाड को चीन के ख़िलाफ काम करने वाले सुरक्षा गठबंधन के रूप में ना देखा जाए. ऐसा होने पर उनके सामने आर्थिक और सुरक्षा संबंधी चिंताएं पैदा हो सकती हैं. इसका यही समाधान है कि क्वाड के सदस्य देश इस हिचकिचाहट को त्याग दें और संगठन को संस्थागत रूप देने पर तेज़ी से काम करें. इसके लिए सदस्य देशों को आपसी सहयोग और हितों के साझा क्षेत्र खोजने चाहिए. ये सदस्य देशों के बीच तालमेल बिठाने और सहयोग के क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करेगा. इसके साथ ही चीन के व्यवहार का भी आंकलन किया जा सकेगा. उसी के आधार पर ये तय किया जाएगा कि क्वाड को सुरक्षा पर आधारित गठबंधन बनाया जाए या फिर उसका मौजूदा स्वरूप ही बना रहे.


पुनीत शर्मा भारतीय सेना में कार्यरत अफसर हैं

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Colonel Puneet Sharma, is a serving Indian Army Officer. He was commissioned into the Army (The Grenadiers Regiment) in year 2000. He has vast experience ...

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