Author : Samriddhi Vij

Expert Speak Raisina Debates
Published on Oct 10, 2025 Updated 0 Hours ago

जब इराक़ चुनावों की ओर बढ़ रहा है, तो वोटरों के सामने विकल्प हैं: तेल पर निर्भर मौजूदा स्थिति को बनाए रखना, बड़े बदलावों का जोखिम उठाना, या लोकप्रिय लेकिन अनिश्चित विकल्प अपनाना.

इराक़ चुनाव: अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा बड़ा असर

इराक में 11 नवंबर 2025 को चुनाव होने वाले हैं. इराक जैसे-जैसे अपने निर्णायक राष्ट्रीय चुनावों से पहले के आखिरी हफ़्तों की तरफ बढ़ रहा है, वैसे-वैसे उसके सामने कुछ महत्वपूर्ण सवाल भी खड़े हो रहे हैं. ये सवाल सिर्फ राजनीतिक ही नहीं, बल्कि आर्थिक भी हैं. 2003 में अमेरिका के नेतृत्व में हुए आक्रमण के बाद से इराक में सातवीं बार मतदान होने वाला है. इराक की जनता 37 गठबंधनों, 38 दलों और लगभग 80 स्वतंत्र उम्मीदवारों के बीच से 329 सीटों वाली एक नई प्रतिनिधि परिषद चुनने के लिए तैयार हैं.

तेल पर अत्यधिक निर्भरता ने एक ऐसी राजनीतिक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है, जो विविधीकरण की तुलना में वितरण पर अधिक केंद्रित है.

यह मतदान एक ऐसे आर्थिक मॉडल पर जनमत संग्रह भी बन सकता है, जो प्रचुर मात्रा में तेल संपदा को शासन और सेवा-प्रदान की निरंतर चुनौतियों के साथ जोड़ता है. हालांकि, मूल मुद्दा तेल पर निर्भरता है, जो इराक के राजस्व का लगभग 90 प्रतिशत है. तेल पर अत्यधिक निर्भरता ने एक ऐसी राजनीतिक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है, जो विविधीकरण की तुलना में वितरण पर अधिक केंद्रित है. इराकी अर्थव्यवस्था के तीन-चौथाई हिस्से को तेल मंत्रालयों द्वारा निर्देशित किया जा रहा है. इसके अलावा, जो बाकी बचा हुआ गैर-सरकारी, गैर-तेल अर्थव्यवस्था का ज़्यादातर हिस्सा है, वो नकदी पर आधारित है. हाइड्रोकार्बन से मिलने वाली रकम एक बड़े सार्वजनिक क्षेत्र को वित्तपोषित करती हैं, करीब 45 लाख इराकियों को रोज़गार देता है, और श्रम-बाज़ार के प्रोत्साहनों और देश की राजकोषीय स्थिति को आकार देता है. हालांकि, इससे जुड़ा वेतन बिल बजट का एक बड़ा हिस्सा सोख लेता है, जिससे बुनियादी ढांचे की कमियों को दूर करने के लिए आवश्यक पूंजीगत व्यय सीमित हो जाता है. इसका उदाहरण बार-बार होने वाली बिजली कटौती और गंभीर जल संकट के रूप में दिखता है. इसके अलावा, इराक की आबादी युवा है, फिर भी श्रम बल में शामिल होने वाले कई लोगों को सीमित अवसरों का सामना करना पड़ता है. विश्व बैंक के अनुसार, 2024 में कुल श्रम बल का 15.5 प्रतिशत बेरोज़गार था. पिछले एक दशक में बेरोज़गारी दर बढ़ रही है, जैसा कि चित्र 1 में देखा जा सकता है.

  • जैसे-जैसे इराकी मतदाता अपना निर्णय लेने की तैयारी कर रहे हैं, मुकाबला अब अलग-अलग राजनीतिक और आर्थिक नजरियों के बीच तीन तरफ़ा संघर्ष बन गया है.
  • कुल मिलाकर, इराक की राजनीति में विरोधाभास यह है कि किसी भी चुनाव के परिणाम को पूरी तरह स्पष्ट और सटीक रखना मुश्किल है।

11 नवंबर को होने वाला मतदान उस व्यवस्था पर फ़ैसला होगा, जिसकी संचित ने देश को एक निर्णायक मोड़ पर ला खड़ा किया है. इसलिए, इस चुनाव नीतिगत और संस्थागत बाधाओं सिर्फ़ मंत्रिमंडल का गठन नहीं, बल्कि राजनीतिक अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा भी दांव पर लगी है. लोगों को ये चुनाव करना है कि वो अब तक चली आ रही निरंतरता चाहते हैं या फिर वो देश को एक ज़्यादा महत्वाकांक्षी सुधार पथ पर ले जाना चाहते हैं.

किन पार्टियों के बीच चुनाव?

जैसे-जैसे इराकी मतदाता अपना फैसला सुनाने की तैयारी कर रहे हैं, वैसे-वैसे मुकाबला मौलिक रूप से भिन्न राजनीतिक-आर्थिक आदर्शों के बीच त्रिकोणीय संघर्ष में बदल गया है. ये चुनाव व्यक्तिगत दलों के बीच नहीं, बल्कि तीन अलग-अलग भविष्यों के बीच है. पहला; यथास्थिति का नियंत्रित पतन, दूसरा; आमूलचूल सुधार का उच्च ज़ोखिम वाला दांव, और तीसरा; लोकलुभावन विघटन की अस्थिर अनिश्चितता. हालांकि, इस बात की संभावना बहुत कम है कि कोई एक पार्टी सरकार बना लेगी, लेकिन अधिकांश सत्तारूढ़ गठबंधनों की कल्पना निम्नलिखित तीन व्यापक रास्तों के साथ की जा सकती है.

इस बात की संभावना बहुत कम है कि कोई एक पार्टी सरकार बना लेगी, लेकिन अधिकांश सत्तारूढ़ गठबंधनों की कल्पना निम्नलिखित तीन व्यापक रास्तों के साथ की जा सकती है.

इराक में प्रमुख राजनीतिक शक्ति अभी भी ईरान समर्थित समन्वय ढांचा ही बना हुआ है. ये स्थापित शिया इस्लामी दलों का एक गठबंधन है और 2003 के बाद बनी व्यवस्था के मुख्य निर्माता और इसके लाभार्थी इस गठबंधन में शामिल पार्टियां रही हैं. हालांकि, नवंबर से पहले ही ये गठबंधन पांच गुटों में बंट गया है, जिन्होंने अलग-अलग चुनाव लड़ने, लेकिन चुनावों के बाद फिर से एकजुट होने का वादा किया है. वो एक राजनीतिक गठबंधन कम और व्यवस्था के संरक्षक ज़्यादा हैं. उनकी शक्ति राज्य तंत्र के साथ गहराई से जुड़ी हुई है. प्रमुख मंत्रालयों पर उनके नियंत्रण और समानांतर सुरक्षा संरचना के रूप में कार्य करने वाले शक्तिशाली सशस्त्र गुटों की वफ़ादारी से सत्ता पर इनकी पकड़ और भी मज़बूत होती है. इसलिए, उनकी आर्थिक नीति व्यवस्थित संरक्षण और केंद्रीकृत नियंत्रण की है. उनके वादों के बावजूद, ये संभावना नहीं है कि वो तेल पर निर्भरता, और इस मामले में इराक की किराएदार देश की स्थिति को ख़त्म होने देंगे. इसकी बजाए, वो तेल पर निर्भरता को ऐसे पेश करेंगे कि इसके बिना राजनीतिक सत्ता का काम नहीं चल सकता. इसे मुहासासा नामक जातीय-सांप्रदायिक सत्ता-साझाकरण प्रणाली के माध्यम से हासिल किया जाता है, जिसके तहत सार्वजनिक क्षेत्र का उपयोग राजनीतिक संरक्षण और सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में किया जाता रहा है. मुहासासा प्रणाली को 2003 में अमेरिका के नेतृत्व में इराक पर आक्रमण के बाद इराक के विभिन्न जातीय-सांप्रदायिक समूहों के बीच आनुपातिक सरकारी प्रतिनिधित्व प्रदान करने के प्रयास के रूप में लागू किया गया था, फिर भी कई इराकियों का मानना है कि ये प्रणाली बहुत दोषपूर्ण है और इसमें उसके बाद से हुई सभी गलतियां समाहित हैं. ये विकास मॉडल राज्य-नेतृत्व वाले अनुबंधों को प्राथमिकता देता है, अक्सर ऐसे भू-आर्थिक साझेदारों के साथ जो पश्चिमी संस्थानों की पारदर्शिता की ज़रूरतों से कम प्रभावित होते हैं. ऐसे में, अगर उम्मीदों के मुताबिक सत्ताधारी गुट की जीत होती है तो ये गतिरोध के भविष्य की शुरुआत करेगी. हालांकि, इस गठबंधन की जीत निकट भविष्य में एक हद तक स्थिरता का वादा करता है, जो अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा निवेशकों को आश्वस्त कर सकता है क्योंकि शासन संबंधी कमियों के बावजूद, व्यवस्था स्वयं तुरंत ध्वस्त नहीं होगी. कई प्रतिष्ठित सर्वेक्षणों में ये बात सामने आई है कि लोग भी स्थापित दलों के लिए निरंतर समर्थन का संकेत देते हैं. 2025 में, 55 प्रतिशत इराकियों ने मौजूदा सरकार पर भरोसा जताया. हालांकि, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सर्वेक्षण ये नहीं बताते कि रोज़गार की स्थिति के आधार पर मतदान को लेकर लोगों का इरादा क्या रहने वाला है. 

इसके बाद सुधारवादी निर्दलीय नेता हैं, जो 2019 के तिशरीन विरोध आंदोलन की चिंगारी से पैदा हुए सांप्रदायिक राजनीतिक वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं. तकनीकीविदों, शिक्षाविदों और युवा कार्यकर्ताओं का यह विविध गठबंधन उन विरोध प्रदर्शनों का परिणाम है, जो अब एक राजनीतिक शक्ति के रूप में अवतरित हो चुका है. उनका दृष्टिकोण संरचनात्मक सुधार और वैश्विक एकीकरण का है. इराकी संदर्भ में देखें तो, उनके प्रस्ताव अकुशल सार्वजनिक क्षेत्र में सुधार, भ्रष्टाचार कम करने, मुहासासा व्यवस्था में बदलाव और निजी क्षेत्र के नेतृत्व वाले विकास को गति देने पर ज़ोर देते हैं. उनका लक्ष्य वैश्विक पारदर्शिता मानकों का पालन करके पश्चिम और खाड़ी देशों से निवेश आकर्षित करना है. हालांकि, सुधारवादियों को अक्सर इराकी राजनीति से दरकिनार कर दिया जाता है, क्योंकि वो उन लोकलुभावन नीतियों मुकाबला नहीं कर सकते, जो बड़ी पार्टियों को बचाए रखती हैं. वैसे, इराकी चुनावों के इतिहास और 2019 के आंदोलन की ताकत ने उन्हें ये सिखाया है कि कि सामूहिक संकल्प की शक्ति को कम करके नहीं आंकना चाहिए. इसलिए, सुधारवादी सबसे बड़े इनाम के लिए सबसे बड़ा ज़ोखिम उठाते हैं. इन्हें सत्ता में जड़ जमाए बैठे अभिजात वर्ग द्वारा अस्तित्व के लिए ख़तरा माना जाता है, जिससे सशस्त्र गुटों द्वारा तीव्र प्रतिरोध की प्रबल संभावना है. बिना किसी मज़बूत सुरक्षा व्यवस्था के, अगर वो किसी तरह के कष्टदायक वित्तीय और प्रशासनिक कदम उठाते हैं तो उनसे सामाजिक अशांति फैल सकती है. उनकी सफलता त्वरित अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय मदद और सुरक्षा समर्थन पर निर्भर करेगी. इन समर्थनों के बिना, क्षमता की कमी और ज़बरदस्ती का विरोध सुधारों को रोक सकता है. इसलिए, सुधारवादियों को वोट देना एक बड़ा जुआ है. ये एक संभावित राष्ट्रीय आर्थिक सुधार और संस्थागत अपंगुता के ज़ोखिम के बीच चुनाव करने जैसा है.

 

एक अन्य महत्वपूर्ण शक्ति राष्ट्रवादी गुट है, जो मुक्तदा अल-सद्र जैसे नेताओं की अपार लोकलुभावन अपील के इर्द-गिर्द एकजुट है. अक्टूबर 2021 में इराक में हुए चुनाव में, शिया इस्लामवादी सद्रवादी आंदोलन ने 329 संसदीय सीटों में से 73 पर जीत हासिल की. हालांकि, नई सरकार के गठन को लेकर प्रतिद्वंद्वी शिया समन्वय ढांचे के साथ उनका विवाद हुआ. आठ महीने के गतिरोध के बाद, अल-सद्र इस प्रक्रिया से हट गए और अपने सांसदों को इस्तीफ़ा देने का आदेश दिया. 2025 के चुनावों से पहले महीनों तक फिर से सक्रिय होने के संकेतों के बावजूद, अल-सद्र ने अब कहा है कि वो इराक की राजनीति का बहिष्कार करेंगे. अल-सद्र अपनी रणनीतिक अनिश्चितता के लिए जाने जाते हैं. चूंकि वह लगातार मिले-जुले संकेत दे रहे हैं, इसलिए सद्र की जीत का इराकी अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव पर विचार करना ज़रूरी है. 

 2025 के चुनावों से पहले महीनों तक फिर से सक्रिय होने के संकेतों के बावजूद, अल-सद्र ने अब कहा है कि वो इराक की राजनीति का बहिष्कार करेंगे.

कई सद्रवादी नेताओं के उम्मीदवार के रूप में पंजीकरण कराने के बाद, अल-सद्र ने उन्हें निष्कासित कर दिया और फिर समर्थकों से कहा कि वो उन लोगों को परेशान ना करें. उन्होंने अपने समर्थकों से चुनाव के बहिष्कार की स्थिति में भी अपने मतदाता पहचान पत्र अपडेट करने को कहा है. मतदाताओं को लामबंद करने और गठबंधनों को विफल करने की उनकी क्षमता को देखते हुए, देर से आए सद्रवादी झुकाव के निहितार्थों का आकलन करना ज़रूरी है. महत्वपूर्ण बात ये है कि उनका सत्ता का आधार सरकारी नौकरशाही में नहीं, बल्कि गरीबों में है. अल-सद्र अपनी सत्ता धार्मिक वैधता और उग्र इराकी राष्ट्रवाद के एक शक्तिशाली मेल से हासिल करते हैं. अर्थव्यवस्था को लेकर अल-सद्र का दृष्टिकोण एक क्रांतिकारी, ऊपर से नीचे तक चलने वाला भ्रष्टाचार-विरोधी अभियान है, जिसका उद्देश्य सत्ताधारी अभिजात वर्ग और प्रतिद्वंद्वियों के संरक्षण नेटवर्क को ध्वस्त करना है. ये आर्थिक दृष्टिकोण विदेशी प्रभाव को गहरे शक की नज़र से देखता है. उन्हें लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव होने से बाहरी शक्तियां देश पर नियंत्रण बनाने की कोशिश करती हैं. 2021 की तरह, इन राष्ट्रवादियों की एक चौंकाने वाली जीत इराक में एक बार फिर अस्थिरता का दौर शुरू कर सकती है. सत्ता में जड़ जमाए बैठे अभिजात वर्ग पर उनके हमले से प्रतिद्वंद्वी गुटों का तीखा प्रतिरोध भड़क सकता है. इससे पूंजी पलायन का ज़ोखिम बढ़ सकता है और बढ़ती अनिश्चितता के बीच नए विदेशी निवेश में रुकावट आ सकती है. ऐसी जीत का नतीजा या तो आर या तो पार वाला है. ये एक ऐसा जुआ है, जो या तो व्यवस्थागत भ्रष्टाचार की कमर तोड़ सकता है या अनियंत्रित टकराव के ज़रिए संस्थागत कार्यक्षमता को तहस-नहस कर सकता है.

 
सत्ता की कुंजी किनके पास है?

कुर्द और सुन्नी दलों के जातीय-क्षेत्रीय गुट राष्ट्रीय आर्थिक मॉडल के वैचारिक दावेदार के रूप में नहीं, बल्कि लेन-देन के आधार पर किंगमेकर के रूप में चुनावी मुकाबले में उतरते हैं. इन गुटों के पास इराक की पिछली संसद में लगभग एक-तिहाई सीटें थीं, इसलिए उनके पास चुनाव के अंतिम फैसले को प्रभावित करने की शक्ति है. उनका आर्थिक एजेंडा व्यावहारिक है और क्षेत्रीय हितों की सुरक्षा पर पूरी तरह केंद्रित है. उदाहरण के लिए, प्रमुख कुर्द दल मुख्य रूप से संघीय बजट में अपने हिस्से पर एक स्थिर, दीर्घकालिक समझौते पर बातचीत करने और ऊर्जा संसाधनों पर कुर्दिस्तान क्षेत्रीय सरकार की स्वायत्तता को मज़बूत करने या संहिताबद्ध करने के लिए चिंतित हैं. इसी प्रकार, खंडित सुन्नी गुट राष्ट्रीय व्यापक आर्थिक नीति पर कम जबकि इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) के विरुद्ध युद्ध में तबाह हुए प्रांतों के लिए पुनर्निर्माण निधि सुरक्षित करने पर ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं. इसके साथ ही, वो इस बात को भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि उनके घटकों को सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों और राज्य अनुबंधों में आनुपातिक हिस्सा मिले. उनकी भूमिका अपनी संसदीय सीटों का लाभ उठाकर अंत में सरकार बनाने वाले बड़े शिया नेतृत्व वाले गुटों से विशिष्ट आर्थिक रियायतें हासिल करने की होगी.

 फिलहाल तो सबसे बड़ा सवाल ये है कि कौन से आर्थिक दृष्टिकोण से वोट मिलेंगे और क्या इराक की आधारभूत सत्ता संरचनाएं किसी सार्थक आर्थिक बदलाव की इजाज़त दे सकती हैं. इसका जवाब 11 नवंबर को होने वाले चुनाव के बाद ही मिलेगा.

कुल मिलाकर देखें तो,  इराक के राजनीतिक अंकगणित का विरोधाभास ये है कि किसी भी एक चुनावी जनादेश की शुद्धता बरकरार रहना मुश्किल है. अगर शिया-नेतृत्व वाला गुट विजयी होगा, तब भी उसे व्यावहारिक कुर्द और सुन्नी गुटों के गणितीय रूप से ज़रूरी समर्थन के लिए अपने व्यापक दृष्टिकोण का सौदा करने के लिए मज़बूर होना होगा. फिर सवाल ये हैं कि किस तरह भविष्य के फैसलों से अतीत के प्रतिबिंब बदल जाते हैं. फिलहाल तो सबसे बड़ा सवाल ये है कि कौन से आर्थिक दृष्टिकोण से वोट मिलेंगे और क्या इराक की आधारभूत सत्ता संरचनाएं किसी सार्थक आर्थिक बदलाव की इजाज़त दे सकती हैं. इसका जवाब 11 नवंबर को होने वाले चुनाव के बाद ही मिलेगा.


समृद्धि विज ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन मिडिल ईस्ट में एसोसिएट फेलो हैं.

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