जैसे-जैसे यूक्रेन के साथ रूस का युद्ध बढ़ता जा रहा है, पश्चिम के साथ भारत के जुड़ाव में भी तेजी आ रही है. दिलचस्प है कि कई लोगों को आशंका थी कि यूक्रेन-रूस युद्ध के समय में भारत पर पश्चिमी रुख़ के मुताबिक चलने के लिए दबाव डाला जाएगा, लेकिन अब रूस के साथ भारत के अच्छे रिश्ते की वजहों को समझा जा रहा है. नई दिल्ली पहुंचने वाले यूरोपीय नेताओं का तांता लगा हुआ है. यूरोप और भारत के बीच संबंध लगातार बढ़ रहे हैं, दोनों पक्षों के नेतृत्व ने कई मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है.
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन भी गत दिनों भारत में थीं, जहां उन्होंने स्पष्ट रूप से जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता के नुकसान, ऊर्जा और डिजिटल प्रसार, परस्पर संपर्क, सुरक्षा, रक्षा और हिंद-प्रशांत में सहयोग पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया है. यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष के रूप में उनकी यह पहली भारत यात्रा थी, जिसके दौरान उन्होंने भारत में एक कार्यक्रम को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित भी किया.
पश्चिम में अनेक लोगों को भारत से शिकायत रही है कि वह यूक्रेन के मामले में पश्चिमी देशों के साथ नहीं है और अपनी अलग स्थिति बनाकर चलना चाहता है. वैसे भारत अपनी स्थिति को लेकर कतई रक्षात्मक नहीं है.
बोरिस जॉनसन का दृष्टिकोण
ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भी पिछले सप्ताह भारत में थे और उनका दृष्टिकोण है कि भारत और ब्रिटेन के बीच पूरकता पर जोर देना है और रूस के मामले में परस्पर मतभेदों को कम करना है. जॉनसन ने भारत-रूस संबंधों के बारे में कहा कि यह एक ऐतिहासिक संबंध है, जिसे हर कोई समझता है और सम्मान करता है. इससे शायद कई ऐसे लोगों को आश्चर्य हुआ होगा, जिन्होंने उम्मीद की थी कि इस यात्रा के दौरान रूस पर एक विवादास्पद बहस सामने आएगी. पश्चिम में अनेक लोगों को भारत से शिकायत रही है कि वह यूक्रेन के मामले में पश्चिमी देशों के साथ नहीं है और अपनी अलग स्थिति बनाकर चलना चाहता है. वैसे भारत अपनी स्थिति को लेकर कतई रक्षात्मक नहीं है.
भारत-यूरोप साझेदारी को बढ़ावा
नई दिल्ली रूस के सवाल पर पूरी साफगोई से अपनी बात रख रही है. भारत में अनेक पश्चिमी नेताओं की मेजबानी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत-यूरोप साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए मई की शुरुआत में तीन यूरोपीय देशों, जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस का दौरा करेंगे. विदेश मंत्री, एस जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 2+2 वार्ता के लिए पहले ही अमेरिका जा चुके हैं, भारत-अमेरिका द्विपक्षीय एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं. भारत इतिहास में या आज गलत जगह खड़ा है, ऐसी धारणा से अमेरिका पीछे हट रहा है.
भारत किसी तरह की अनावश्यक बहस में नहीं उलझ रहा है, पूरी सफाई के साथ अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए चल रहा है. यदि पश्चिम को भारत को अपनी रणनीति में शामिल करना है, तो उसे भारत की दीर्घकालिक चुनौतियों का समाधान प्रदान करने में भागीदार बनना होगा
भारत किसी तरह की अनावश्यक बहस में नहीं उलझ रहा है, पूरी सफाई के साथ अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए चल रहा है. यदि पश्चिम को भारत को अपनी रणनीति में शामिल करना है, तो उसे भारत की दीर्घकालिक चुनौतियों का समाधान प्रदान करने में भागीदार बनना होगा, चाहे वह रक्षा हो या ऊर्जा. यही संदेश भारत अपने पश्चिमी समकक्षों को लगातार दे रहा है. भारतीय विदेश मंत्री तांत्रिक जवाबों के साथ पेश आ रहे हैं. भारत में एक नया विश्वास पाया गया है कि नई दिल्ली के विकल्प केवल अपनी सामरिक अनिवार्यताओं से संचालित होंगे.
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय विदेश नीति के सामने सबसे महत्वपूर्ण मकसदों में से एक है, पश्चिम के साथ दीर्घकालिक स्थायी संबंध बनाना. इस लक्ष्य का पीछा करने में नई दिल्ली ने कुछ गंभीर कूटनीतिक पूंजी ख़र्च की है और नतीजे साफ हैं. बेशक, पश्चिम को भी भारत की बदलती उम्मीदों और हिंद-प्रशांत में उभरती भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के साथ आना पड़ा है. लंबे समय से यूरोपीय संघ ऐसे किसी प्रयास से बच रहा था, लेकिन जैसे-जैसे चीन की ओर से दबाव बढ़ा और रूस ने यूरोप की सुरक्षा के लिए चुनौती पैदा कर दी, यूरोप को बदलाव के लिए तैयार होना पड़ा. ख़ासकर पश्चिम यूरोपीय देश नई विदेश नीति विकसित करने को मजबूर हो रहे हैं. अब यूरोप समान विचारधारा के देशों के साथ भागीदारी बढ़ाना चाहता है.
यह आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए कि रूस-यूक्रेन युद्ध से संकट, पश्चिम के साथ भारत के बढ़ते जुड़ाव को मज़बूत करेगा
भारत-यूरोपीय संघ की साझेदारी
इस नए समीकरण में भारत-यूरोपीय संघ की साझेदारी निश्चित रूप से यूरोपीय संघ के लिए महत्वपूर्ण है, यह देखते हुए कि यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार और एक ख़ास रणनीतिक महत्व वाला देश बना हुआ है.
आज जब भारत की बात आती है, तो यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ के बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पद्र्धा भी दिखाई पड़ती है. दोनों भारत के साथ लंबे समय से लंबित मुक्त व्यापार समझौते पर तेजी से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए कि रूस-यूक्रेन युद्ध से संकट, पश्चिम के साथ भारत के बढ़ते जुड़ाव को मज़बूत करेगा और यह भारतीय कूटनीति की असली कामयाबी है
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