Published on Jul 04, 2022 Updated 0 Hours ago

ईंधन की बढ़ती ज़रूरतों से निपटने के लिए भारत में बैटरी अदला-बदली की नीति सामने रखी गई है. इस दिशा में ये एक ज़रूरी मगर नाकाफ़ी क़दम है.

#भारत की बैटरी अदला-बदली नीति: क्या हम इस आस में हैं कि एक दिन बूंद ही समंदर बन जाएगा?

ये लेख कॉम्प्रिहैंसिव एनर्जी मॉनिटर: इंडिया एंड द वर्ल्ड  सीरीज़ का हिस्सा है. 


भारत सरकार के अंदरुनी थिंक टैंक नीति आयोग ने अप्रैल 2022 में दोपहिया और तिपहिया वाहनों के लिए बैटरियों की अदला-बदली (BS) से जुड़ी मसौदा नीति जारी की. मसौदे में बताई गई नीति का मक़सद इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की स्वीकार्यता को बढ़ावा देना है. अत्याधुनिक सेल बैटरियों के लिए कच्चे मालों, सार्वजनिक कोषों और ज़मीन जैसे दुर्लभ संसाधनों के प्रभावी और कार्यकुशल प्रयोग में सुधार लाकर इस क़वायद को अंजाम दिए जाने पर ज़ोर दिया गया. इससे उपभोक्ता-केंद्रित सेवाओं की आपूर्ति में सुधार लाया जा सकेगा. इस दिशा में नीतिगत लक्ष्य हैं- (1) EVs की ख़रीद से जुड़ी अग्रिम लागतों से बैटरी की लागतों को अलग करने के लिए अत्याधुनिक रसायन सेल के ज़रिए बैटरियों की अदलाबदली को प्रोत्साहित करना, ताकि इलेक्ट्रिक वाहनों की स्वीकार्यता आगे बढ़ाई जा सके (2) चार्जिंग सुविधाओं के विकल्प के तौर पर बैटरियों की अदलाबदली की विकास प्रक्रिया को बढ़ावा देकर इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोगकर्ताओं को लचीली व्यवस्था मुहैया कराना (3) बाज़ार की अगुवाई वाली नवाचार व्यवस्था को बाधित किए बिना बैटरियों की अदला-बदली से जुड़े तंत्र में घटकों की पारस्परिकता को बढ़ावा देना. साथ ही तकनीकी मानकों के पीछे के सिद्धांत स्थापित करना. (4) प्रतिस्पर्धी वित्तीय सुविधा तक पहुंच सुनिश्चित करने और बैटरियों की अदला-बदली से जुड़े तंत्र के जोख़िम कम करने के लिए नीतिगत और नियामक क़वायदों को प्रयोग में लाना (5) बैटरी मुहैया कराने वालों, बैटरी (मौलिक उपकरणों के निर्माता (OEMs) और बीमा/फ़ाइनेंसिंग जैसे दूसरे प्रासंगिक हिस्सेदारों के बीच भागीदारी को प्रोत्साहित करना. अंतिम उपयोगकर्ता को एकीकृत सेवाएं उपलब्ध कराने की क्षमता रखने वाले इकोसिस्टम के निर्माण को बढ़ावा देना, और (6) बैटरियों के बेहतर जीवनकाल प्रबंधन को प्रोत्साहित करना. इस कड़ी में बैटरियों के उपयोगी जीवनकाल में उनके इस्तेमाल को अधिकतम स्तर तक लाना और उनके जीवनकाल की समाप्ति के बाद बैटरी रिसायक्लिंग की सुविधा जुटाना.

अत्याधुनिक सेल बैटरियों के लिए कच्चे मालों, सार्वजनिक कोषों और ज़मीन जैसे दुर्लभ संसाधनों के प्रभावी और कार्यकुशल प्रयोग में सुधार लाकर इस क़वायद को अंजाम दिए जाने पर ज़ोर दिया गया. इससे उपभोक्ता-केंद्रित सेवाओं की आपूर्ति में सुधार लाया जा सकेगा.

मसौदा नीति के प्रावधानों में ख़ासतौर से बैटरी और EV उद्योग से जुड़ी चुनौतियों का निपटारा किया गया है. हालांकि, मसौदे में बैटरियों की अदला-बदली से जुड़ी क़वायद की कामयाबी को पहले से ही पक्का मान लिया गया है. लिहाज़ा ये भी मान लिया गया है कि इस क़वायद से मूल्य ऋंखला के दूसरे सिरे के व्यापक मसले अपने-आप सुलझ जाएंगे. इनमें ACC बैटरियों का घरेलू विनिर्माण और EVs के उत्पादन शामिल हैं. ग़ौरतलब है कि बैटरियों की अदला-बदली से जुड़ी क़वायद EV इकोसिस्टम का महज़ एक छोटा सा हिस्सा है. हालांकि, मसौदे में इसी क़वायद के भारत में गतिशीलता से जुड़े क्षेत्र को कार्बनमुक्त बनाने में मददगार होने की भी उम्मीद लगा ली गई है. 

बैटरियों की अदला-बदली

इलेक्ट्रिक कारों की क़ीमत को उनके सबसे महंगे हिस्से से अलग करने की क़वायद में ही बैटरियों की अदला-बदली की अहमियत छिपी है. बैटरी ही इसे उपभोक्ताओं के लिए आकर्षक बनाएगी. बैटरियों की अदला-बदली से ऐसे वाहनों के चालकों की तमाम तरह की चिंताओं और अनिश्चितताओं में कटौती हो सकती है. दरअसल इससे बैटरियों का उनके आकार के हिसाब से लचीले तरीक़े से चयन किया जा सकता है. साथ ही मासिक आधार पर या तो इसकी ख़रीद हो सकती है या किराए पर भी लिया जा सकता है. इतना ही नहीं ऊर्जा की ज़रूरी मात्रा के हिसाब से ये सेवाएं मासिक ग्राहकी या सब्सक्रिप्शन पर भी आधारित हो सकती हैं. इससे उपभोक्ताओं को लचीला विकल्प मुहैया होता है. 

सभी इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरियों को समय-समय पर बिजली से चार्ज करना होता है. फ़िलहाल आमतौर पर वैश्विक स्तर पर केबल के ज़रिए स्थिर अवस्था में चार्जिंग (सामान्य या तेज़) का तरीक़ा अपनाया जा रहा है. हालांकि, चार्जिंग के लिए स्टैटिक और डायनामिक कंडक्टिव और इंडक्टिव तकनीक भी मौजूद हैं. बैटरियों की अदला-बदली से जुड़ी व्यवस्था में इलेक्ट्रिक वाहन के भीतर की डिस्चार्ज बैटरी को किसी BS स्टेशन (BSS) पर EV के बाहर की चार्ज बैटरी से बदला जाता है. आदर्श रूप से BSS में हज़ारों मानकीकृत और प्रामाणिक बैटरियों का भंडार होना चाहिए. साथ ही इनकी अदला-बदली से जुड़ी क़वायद को चंद मिनटों में अंजाम देने के लिए ज़रूरी लोग (या रोबोट) भी मौजूद होने चाहिए. 

बैटरियों की अदला-बदली से जुड़ी व्यवस्था में इलेक्ट्रिक वाहन के भीतर की डिस्चार्ज बैटरी को किसी BS स्टेशन (BSS) पर EV के बाहर की चार्ज बैटरी से बदला जाता है. आदर्श रूप से BSS में हज़ारों मानकीकृत और प्रामाणिक बैटरियों का भंडार होना चाहिए. साथ ही इनकी अदला-बदली से जुड़ी क़वायद को चंद मिनटों में अंजाम देने के लिए ज़रूरी लोग (या रोबोट) भी मौजूद होने चाहिए. 

बहरहाल, बैटरियों की अदला-बदली का विचार नया नहीं है. जर्मन कंपनी मर्सिडीज़-बेन्ज़ ने 1970 के दशक में ही इस दिशा में कोशिशें की थीं. हालांकि उसके प्रयास कामयाब नहीं हो सके थे. इज़राइली कंपनी बेटर प्लेस ने 2007 में दोबारा ये क़वायद शुरू की थी. हालांकि कुछ अर्सा बाद ये कंपनी ही दिवालिया हो गई. 2013 में अमेरिकी कंपनी टेस्ला ने अपने कार की मॉड्यूलर डिज़ाइन के ज़रिए इस दिशा में कोशिशें की थीं. इसके बाद टेस्ला ने अपनी ख़ुद की मालिक़ाना हक़ वाली केबल-आधारित चार्जिंग व्यवस्था का विकल्प चुना था. इस सिलसिले में एक ऐसा कारोबारी मॉडल तैयार किया जिसमें कारों और चार्जिंग को एकीकृत करने की क़वायद की गई. 

ऐसा लगता है कि भारत में बैटरियों की अदला-बदली से जुड़ी पहल चीन की देखादेखी चलाई जा रही है. चीन में इस सेक्टर में फ़िलहाल नई जान आती दिखाई दे रही है. चीन के इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं ने 2010 के दशक के शुरुआती दौर में बैटरियों की अदला-बदली की क़वायद पर ज़ोर दिया था. हालांकि, ये कोशिश सिरे नहीं चढ़ पाई थी. बैटरियों की अदला-बदली से जुड़ी चीन की शुरुआती कोशिशों की नाकामी के लिए कई कारकों को ज़िम्मेदार बताया जाता है. इनमें बैटरियों और बैटरियों की अदला-बदली की ऊंची लागत, मानकों के अभाव, मुख्य किरदारों में खुलेपन और अलग-अलग तकनीकी और आर्थिक हितों की कमी, वाहन के ढांचे को खोले जाने को लेकर कार निर्माताओं के एतराज़ और सरकार की ओर से नाकाफ़ी मदद शामिल हैं. बहरहाल, चीन में नए सिरे से तैयार BS मॉडल में इन चिंताओं का निपटारा किया गया है. 2020 में चीन की केंद्रीय सरकार ने ‘2021 से 2035 के लिए राष्ट्रीय नई ऊर्जा वाहन विकास रणनीति’ में बैटरी की अदला-बदली की टेक्नोलॉजी को शामिल किया. इसके साथ ही BS को ‘नए बुनियादी ढांचे के निर्माण की मुहिम‘ में भी शामिल कर लिया गया. 2021 की शुरुआत में चीन में 562 BSS संचालक थे. ये टैक्सियों, ऑनलाइन कार-सेवा संचालकों, निजी सवारी वाहनों और कारोबारी वाहनों को सेवाएं मुहैया करा रही थीं. ग़ौरतलब है कि चीन में बैटरियों की अदला-बदली की व्यवस्था के साथ एक लाख से भी ज़्यादा कारों की बिक्री हो चुकी है

भारत में बैटरियों की अदला-बदली से जुड़े मसले

मसौदा नीति में दोपहिया और तिपहिया वाहनों के क्षेत्र में बैटरियों की अदला-बदली की क़वायद पर ज़ोर दिए जाने को ज़रूरी ठहराते हुए तीन दलीलें दी गई हैं. पहला, देश के कुल वाहनों में दोपहिया और तिपहिया वाहनों का हिस्सा 70-80 प्रतिशत है; दूसरा, दोपहिया और तिपहिया इलेक्ट्रिक वाहन लागत के हिसाब से प्रतिस्पर्धी होते हैं. ये आंतरिक दहन इंजन (internal combustion engine) पर आधारित वाहन होते हैं. तीसरा, दोपहिया और तिपहिया इलेक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल हल्की बैटरियों की अदला-बदली आसान होती है. हालांकि इन मान्यताओं की पड़ताल ज़रूरी है. भारत के वाहन बेड़े में दोपहिया और तिपहिया वाहनों का हिस्सा बहुत ज़्यादा है. यही वजह है कि भारत में परिवहन क्षेत्र से होने वाले कुल उत्सर्जन में निजी वाहनों (कारों) का हिस्सा केवल 18 प्रतिशत है. ये कई दूसरे देशों के मुक़ाबले बेहद नीचे है. मिसाल के तौर पर अमेरिका में परिवहन क्षेत्र के कुल उत्सर्जन में पैसेंजर कारों का हिस्सा 57 प्रतिशत है. भले ही वाहनों के बेड़े में दोपहिया और तिपहिया वाहनों का हिस्सा 80 प्रतिशत हो लेकिन परिवहन ऊर्जा उपभोग के मामले में इनका हिस्सा महज़ 20 फ़ीसदी है, जबकि परिवहन उत्सर्जन में इनकी भागीदारी लगभग 18 प्रतिशत है. ज़ाहिर है सभी दोपहिया और तिपहिया वाहनों को इलेक्ट्रिक ज़रियों से चलाए जाने के बावजूद उत्सर्जन में कोई ख़ास गिरावट आने के आसार नहीं हैं. 

भारत के वाहन बेड़े में दोपहिया और तिपहिया वाहनों का हिस्सा बहुत ज़्यादा है. यही वजह है कि भारत में परिवहन क्षेत्र से होने वाले कुल उत्सर्जन में निजी वाहनों (कारों) का हिस्सा केवल 18 प्रतिशत है. ये कई दूसरे देशों के मुक़ाबले बेहद नीचे है.

स्वामित्व की कुल लागत (TCO) के पैमाने पर दोपहिया और तिपहिया वाहनों की लागत की प्रतिस्पर्धिता इस बात पर निर्भर करती है कि लिक्विड पेट्रोलियम पर ऊंचे करों से ये ईंधन गैस समेत किसी भी ईंधन के मुक़ाबले ग़ैर-प्रतिस्पर्धी बन जाते हैं. इन करों से सरकार के लिए राजस्व का एक बड़ा स्रोत हासिल होता है. भारत की सड़कों पर आज 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा इलेक्ट्रिक वाहन कम रफ़्तार (25 किमी प्रति घंटा से भी कम रफ़्तार वाले) वाले इलेक्ट्रिक स्कूटर हैं. इनके लिए रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस की दरकार नहीं है. क़ीमतें कम रखने के लिए लगभग सारे इलेक्ट्रिक स्कूटर लीड बैटरियों से चलती हैं. सरकारी नियंत्रण की ग़ैर-मौजूदगी इस उद्योग का प्राथमिक वाहक है. ऐसे में इस बात की संभावना ना के बराबर है कि ये प्रयोगकर्ता अदला-बदली के ज़रिए इस्तेमाल हो सकने वाले लीथियम-आयन बैटरियों की चाहत रखते होंगे. इसकी वजह ये है कि इन बैटरियों के इस्तेमाल से ये सरकार के नियमन के मातहत आ जाएंगे. 

BS नीति में बड़ी कार कंपनियों से बैटरियों से जुड़ी तकनीक (या कोई भी तकनीक) साझा करने की उम्मीद लगाई गई है. ये क़वायद आम वाणिज्यिक मान्यताओं के ख़िलाफ़ जाती है. पारंपरिक कार उद्योग में सिगरेट लाइटर पावर सप्लाई और टायरों के लिए वाल्व स्टेम जैसे सिर्फ़ कुछ छोटे उपकरणों के सिलसिले में अनुकूलता मौजूद होती है. सरकार द्वारा सख़्ती से लागू की गई अनुकूलित बैटरी डिज़ाइन और टेक्नोलॉजी से बैटरी निर्माण की क़वायद को बढ़ावा मिलने की बजाए उसमें रुकावट आने की आशंका है. आपसी अदला-बदली के लायक बैटरियों का मतलब ये भी है लीथियम और कोबाल्ट जैसे दुर्लभ और महंगे संसाधनों की एक बड़ी तादाद BS केंद्रों पर निष्क्रिय पड़ी रहेंगी. 

2020 में सड़क परिवहन मंत्रालय ने भारत में बिना बैटरियों के दोपहिया और तिपहिया इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री की मंज़ूरी दे दी. इससे बैटरियों की अदला-बदली की क़वायद के लिए रास्ता खुल गया. उसके बाद से बैटरियों की अदला-बदली से जुड़े कई सेवा प्रदाताओं ने भारत में कामकाज शुरू कर दिया है.

2020 में सड़क परिवहन मंत्रालय ने भारत में बिना बैटरियों के दोपहिया और तिपहिया इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री की मंज़ूरी दे दी. इससे बैटरियों की अदला-बदली की क़वायद के लिए रास्ता खुल गया. उसके बाद से बैटरियों की अदला-बदली से जुड़े कई सेवा प्रदाताओं ने भारत में कामकाज शुरू कर दिया है. इनमें से ज़्यादातर दिल्ली में केंद्रित हैं, जहां निजी वाहनों की सबसे बड़ी तादाद मौजूद है. सन मोबिलिटी 10 से ज़्यादा शहरों में कामकाज कर रही है. इसके बावजूद चीन के पैमाने पर भारत में BS रफ़्तार नहीं पकड़ सकी है. भारत में BS के विकास के रास्ते में कई मसले रुकावट बने हुए हैं. इनमें BS केंद्र के निर्माण के लिए भारी-भरकम निवेश की ज़रूरत, अदला-बदली केंद्रों में बैटरियों की ऊंची वित्तीय लागत, बैटरी की घिसावट, एकीकृत मानक हासिल करने में मुश्किलें, ज़िम्मेदारियों के बंटवारे में घालमेल, केंद्र के निर्माण के लिए सीमित जगह और सुरक्षा चिंताएं शामिल हैं. इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री का पैमाना, EV चार्जिंग सुविधाएं और BS सेवाओं की मात्रा और आकार चीन के मुक़ाबले कम हैं. इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरियों के विनिर्माण में चीन की तुलना में भारत काफ़ी पीछे है. चीनी सरकार के पास EV और बैटरियों के विनिर्माण में अगुवा बनने का रणनीतिक लक्ष्य हासिल करने को लेकर तमाम अलग-अलग किरदारों को एकजुट करने की क्षमता मौजूद है. भारत में इस क़वायद को दोहराना मुश्किल है. BS से जुड़ी नीति इलेक्ट्रिक वाहनों की स्वीकार्यता को आगे बढ़ाने की दिशा में एक छोटा क़दम है. भारत में गतिशीलता के क्षेत्र को कार्बन-मुक्त बनाने की दिशा में ये ज़रूरी क़दम है. हालांकि इस दिशा में ऊंची छलांग लगाने के लिए इतनी क़वायद काफ़ी नहीं है.

स्रोत: सोसाइटी ऑफ़ मैनुफ़ैक्चरर्स ऑफ़ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स

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Akhilesh Sati

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Akhilesh Sati is a Programme Manager working under ORFs Energy Initiative for more than fifteen years. With Statistics as academic background his core area of ...

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Lydia Powell

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Ms Powell has been with the ORF Centre for Resources Management for over eight years working on policy issues in Energy and Climate Change. Her ...

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Vinod Kumar Tomar

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Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change. Member of the Energy News Monitor production ...

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