ऐसा वायरस जो सभी को संक्रमित करता है चाहे वो युवा हों या बुजुर्ग, महिला हों या पुरुष, हर नस्ल, धर्म, भौगोलिक क्षेत्र या विशेषाधिकार वाले ही क्यों न हों. ऐसा वायरस जो हर तरह की अर्थव्यवस्था पर असर डालता है चाहे वो विकसित हों या विकासशील, अमीर हों या ग़रीब. ऐसा वायरस जो हर तरह की राजनीतिक प्रणाली पर असर डालता है चाहे वो लोकतांत्रिक हों या तानाशाही.
वैसे तो अलग-अलग देशों ने वायरस से निपटने के लिए अलग-अलग रणनीति अपनाई है लेकिन भारत ने हर तरीक़े को चुना है- भौतिक, वित्तीय, मौद्रिक, कार्यकारी (संघ और राज्यों में), विधायिका और न्यायपालिका, सरकारी और गैर-सरकारी.
पहली बात, भौतिक मोर्चे की बात करें तो भारत ने 21 दिनों का लॉकडाउन लागू किया. 24 मार्च 2020 को देश के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘आज रात आधी रात से पूरा देश, कृपया ध्यान से सुनिए, पूरा देश पूर्ण रूप से लॉकडाउन हो जाएगा. देश और उसके हर एक नागरिक की रक्षा के लिए आज आधी रात से लोगों के अपने-अपने घरों से बाहर निकलने पर पूरी तरह से पाबंदी लगाई जा रही है.‘’ भारत जैसे बड़े देश के लिए जहां विशाल जनसंख्या और सांस्कृतिक विविधता है, वहां लॉकडाउन निश्चित रूप से आख़िरी नीतिगत कार्रवाई है.
मोदी ने लॉकडाउन की थाह उससे ठीक पहले जनता कर्फ्यू के ज़रिए ली. जनता कर्फ्यू के तहत लोगों से कहा गया कि वो सुबह 7 बजे से लेकर रात 9 बजे तक अपने-अपने घरों में ही रहें. मोदी ने 22 मार्च 2020 को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा, ‘’इस कर्फ्यू के दौरान न तो हम अपने-अपने घरों से निकलेंगे, न ही गलियों या अपने-अपने इलाक़ों में घूमेंगे. जो आपात और ज़रूरी सेवाओं से जुड़े लोग हैं, सिर्फ़ वो अपने घरों से निकलेंगे.‘’ इसके अलावा पीएम ने लोगों से अनुरोध किया कि जो लोग ज़रूरी सेवाएं दे रहे हैं, उनका सम्मान करें. ‘’रविवार को ठीक 5 बजे हम सभी अपने-अपने दरवाज़ों, बालकनी, घरों की खिड़कियों में खड़े हो जाएं और 5 मिनट तक उनका सम्मान करें. उनका हौसला बढ़ाने के लिए, उनका सम्मान करने के लिए ताली बजाएं, थाली बजाएं, घंटी बजाएं.’’
इस अपील ने काम किया. शायद ये एक प्रयोग था ये जानने का कि लोग मुश्किल फ़ैसले को स्वीकार करते हैं या नहीं. इस प्रयोग की सफलता के बाद उन्होंने पूरी तरह लॉकडाउन का फ़ैसला लिया. मोदी ने इसी दौरान कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए सार्क देशों के नेताओं की बैठक का आयोजन भी किया. (6 नेता और एक पाकिस्तान के नुमाइंदे) इसके अलावा वीडियो कॉन्फ़्रेंस के ज़रिए जी20 देशों के नेताओं की असाधारण शिखर वार्ता भी हुई. कुछ बेघर लोगों और कुछ बाग़ियों- जो समझते हैं कि मोदी सरकार के फ़ैसलों की हर हाल में आलोचना होनी ही चाहिए- की आलोचना को छोड़ दें तो ये फ़ैसला भी कामयाब रहा.
ये बताता है कि मतभेदों पर राजनीति की जा सकती है लेकिन जब बात सामूहिक विनाश की आती है तो भारतीय नेता एक साथ आकर एहतियाती क़दम उठा सकते हैं
दूसरी बात, ये कि हर राज्य सरकार ने लॉकडाउन को लागू किया है. हालांकि, इससे हर कोई हैरान है क्योंकि विपक्षी दलों के शासन वाली सरकारों की ये नीति रही है कि हर हाल में मोदी का विरोध करना चाहिए और लोगों को इसकी आदत लग चुकी है. लेकिन ये वायरस ऐसा है कि केंद्र सरकार की तरफ़ से लिया गया फ़ैसला राज्यों ने भी बिना किसी कड़वाहट के लागू किया. महाराष्ट्र से पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु से पंजाब तक सभी राज्य सरकारों ने लॉकडाउन का पालन किया और उसे लागू कराया.
ये स्वागतयोग्य बदलाव है. ये बताता है कि मतभेदों पर राजनीति की जा सकती है लेकिन जब बात सामूहिक विनाश की आती है तो भारतीय नेता एक साथ आकर एहतियाती क़दम उठा सकते हैं. हमें लगता है कि इससे बेहतर सरकारें नहीं कर सकती थीं क्योंकि देश भर में अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को देखत हुए वायरस के फैलने के बाद क़दम उठाना बेहद मुश्किल होता.
तीसरी बात, ये कि वित्तीय मोर्चे पर केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना के तहत 1.7 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज का एलान किया है. 26 मार्च 2020 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की तरफ़ से जारी पैकेज में निम्नलिखित चीज़ें शामिल हैं-
- कोविड-19 से लड़ाई में शामिल हर स्वास्थ्यकर्मी के लिए 50 लाख रुपये का बीमा कवर
- अगले तीन महीनों के लिए 80 करोड़ ग़रीबों को मुफ़्त भोजन जिसके तहत 5 किलोग्राम गेहूं या चावल और 1 किलोग्राम दाल मिलेगी
- अगले तीन महीनों तक 20 करोड़ जन धन खाता धारक महिलाओं को हर महीने 500 रुपये
- मनरेगा के तहत मज़दूरी में बढ़ोतरी. 182 रुपये प्रति दिन की जगह 202 रुपये. इससे 13 करोड़ 60 लाख परिवारों को फ़ायदा होगा. लेकिन ये पता नहीं चल पा रहा कि फ़ायदा कैसे होगा क्योंकि सभी काम रोक दिए गए हैं. शायद ये संकट से उबरने के बाद का प्रस्ताव है.
- 3 करोड़ ग़रीब बुजुर्गों, ग़रीब विधवाओं और ग़रीब दिव्यांगों को 1,000 रुपये
- प्रधानमंत्री किसान योजना के तहत 8 करोड़ 70 लाख किसानों को 2,000 रुपये की किस्त
इन सभी योजनाओं से ग़रीबों के हाथ में पैसा आएगा. हमें लगता है कि ये राहत पैकेज की पहली किस्त है और दूसरा पैकेज भी आएगा. अगर कोविड-19 सामान्य चुनौती की तरह होता तो सीतारमण वित्तीय घाटे को काबू में रखने पर ध्यान देतीं. अगर वो वित्तीय घाटे के दायरे से बाहर निकलकर आर्थिक संक्रमण को दूर करने में जी-जान से जुटी हुई हैं तो पता चलता है कि सरकार इसे किस रूप में ले रही है. वित्तीय घाटा और GDP इंतज़ार कर सकता है लेकिन इस वक़्त हमें वित्त मंत्री के साथ रहना चाहिए.
चौथा, यानी मौद्रिक नीति को लेकर भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बड़े पैमाने पर लचीलेपन का एलान किया है. उन्होंने रेपो रेट (जिस दर पर बैंक RBI से कर्ज़ लेते हैं) में 75 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर इसे 4.4% कर दिया है और रिवर्स रेपो रेट (जिस दर पर बैंक RBI को कर्ज़ देते हैं) में 90 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर 4% कर दिया है. 27 मार्च 2020 को द्वि-मासिक मौद्रिक नीति के बयान में दास ने कहा कि, ‘’रिवर्स रेपो रेट से जुड़े इस क़दम का मक़सद बैंकों को इस बात के लिए हतोत्साहित करना है कि वो रिज़र्व बैंक के पास अपना पैसा जमा करें बल्कि इसकी जगह अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए कर्ज़ दें.‘’ इसके अलावा रिज़र्व बैंक ने कैश रिज़र्व रेशियो में 100 बेसिस प्वाइंट की कमी कर इसे 3% कर दिया है. ये बड़ा क़दम है क्योंकि इससे सिस्टम में 1 लाख 37 हज़ार करोड़ रुपये आ जाएंगे.
वैसे तो देश ख़ुद को लंबे लॉकडाउन के लिए तैयार कर रहा है लेकिन लगता है कि RBI कहना चाहता है कि पैसा कोई समस्या न बने. इससे जैविक निराशा के समय में आर्थिक उम्मीद का पता चलता है
RBI के इरादे वैसे तो अच्छे हैं लेकिन सिस्टम में ज़्यादा धन आने से व्यावसायिक गतिविधियों में बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं है. फिलहाल सभी आर्थिक गतिविधियां रुकी हुई हैं. शायद दास 22वें दिन का इंतज़ार कर रहे हैं जब लॉकडाउन ख़त्म हो जाएगा. वैसे तो देश ख़ुद को लंबे लॉकडाउन के लिए तैयार कर रहा है लेकिन लगता है कि RBI कहना चाहता है कि पैसा कोई समस्या न बने. इससे जैविक निराशा के समय में आर्थिक उम्मीद का पता चलता है.
कुल मिलाकर RBI के क़दम ये सुनिश्चित करने के लिए हैं कि बाज़ार की सामान्य कार्यप्रणाली हो, विकास की रफ़्तार को बढ़ावा मिले और वित्तीय स्थिरता बनी रहे. ये तीनों प्राथमिकता वाली कार्रवाई है.
RBI के क़दम यथार्थवादी हैं. ये सही है कि रिज़र्व बैंक दरों में और ज़्यादा कटौती कर सकता था लेकिन अब जबकि कच्चे तेल के वैश्विक दाम में गिरावट और खाने-पीने की चीज़ें सस्ती होने की उम्मीद में महंगाई कम होने की बात कही जा रही है, हम इस कटौती को एक हिस्से के तौर पर ले सकते हैं
ये क़दम उठाते हुए दास ने हमें आने वाली आर्थिक मंदी के बारे में सतर्क करके अच्छा किया है. ‘’ वैश्विक विकास में 2019 के दौरान 10 साल की सबसे कम बढ़ोतरी के मुक़ाबले 2020 में अच्छा करने की उम्मीद ध्वस्त हो गई है. अब उम्मीद पूरी तरह से महामारी की तीव्रता, फैलाव और अवधि पर टिक गई है. इस बात की ज़्यादा आशंका है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा मंदी में फिसल जाएगा.‘’
RBI के क़दम यथार्थवादी हैं. ये सही है कि रिज़र्व बैंक दरों में और ज़्यादा कटौती कर सकता था लेकिन अब जबकि कच्चे तेल के वैश्विक दाम में गिरावट और खाने-पीने की चीज़ें सस्ती होने की उम्मीद में महंगाई कम होने की बात कही जा रही है, हम इस कटौती को एक हिस्से के तौर पर ले सकते हैं. ब्याज दरों में कटौती और महंगाई में कमी की वजह से सिस्टम में पैसे की लागत कम होगी. होम लोन की EMI को लेकर छोटे असमंजस को छोड़ दें तो ये भी एक जवाब है. मोनिका हालन कहती हैं, ‘’हमें नहीं मालूम है कि ये पर्याप्त है लेकिन जो बात सुकून देने वाली है वो ये है कि सरकार और RBI कंधे से कंधा मिलाकर इस वायरस से लड़ रहे हैं.‘’
पांचवां, छठा और सातवां– सरकार के सभी तीनों अंग भी इस जंग में शामिल हैं. संसद और राज्य विधानसभा बंद हैं. कार्यपालिका इस बात को सुनिश्चित कर रही है कि ज़रूरी सेवाएं बनी रहें. शुरुआत में ज़रूरी सेवाओं को लेकर कुछ दिक़्क़त आई लेकिन अब ये ठीक है. यहां तक कि न्यायपालिका भी इसमें साथ है. सुप्रीम कोर्ट सिर्फ़ अत्यंत ज़रूरी मुद्दों की सुनवाई करेगा. पीठासीन जज ये तय करेंगे कि मामला वाकई अत्यंत ज़रूर है. सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए होगी. देश भर के हाई कोर्ट और निचली अदालतें भी इसे मान रही हैं.
आठवां– सरकार से बाहर गैर-सरकारी संस्थान भी अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं.
- ऐसी कंपनियों की संख्या लगातार बढ़ रही हैं जिन्होंने अपना ख़ज़ाना खोला है, स्वास्थ्य सेवा का बुनियादी ढांचा तैयार कर रही हैं और इसे सरकार को इस्तेमाल के लिए दे रही हैं.
- उत्पादक: सभी गैर-ज़रूरी उत्पादन फिलहाल बंद हैं. सिर्फ़ जरूरी सामान जैसे खाने-पीने और किराने के सामान का उत्पादन हो रहा है.
- वितरक: एक बार फिर बताना चाहूंगा कि शुरुआत परेशानियों के बाद ज़्यादातर खाने-पीने और किराने के सामान फिर से दुकान में मौजूद हैं. अगले कुछ दिनों में इनकी होम डिलीवरी भी होने लगेगी.
- बैंकिंग: ATM में पैसे हैं. लेकिन इससे भी बढ़कर पिछले कुछ सालों के दौरान इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट की जिस प्रणाली को हमने मज़बूत किया है, वो इस वक़्त हमारी मदद कर रहा है. जन-धन खाते वाले ग़रीबों से लेकर अमीरों तक- अलग-अलग भुगतान विकल्पों के ज़रिए पैसे का प्रवाह कोई समस्या नहीं है. उस वक़्त जब पैसे के ज़रिए कोविड-19 का जोखिम है, ये ढांचा हमारी काफ़ी मदद कर रहा है.
- गैर-सरकारी संगठन: ज़्यादातर गैर-सरकारी संगठन अपनी-अपनी टीमों के ज़रिए ये सुनिश्चित करने में लगे हुए हैं कि बुजुर्गों और हाशिए पर बैठी महिलाओं की देखभाल में कमी न रहे.
- मीडिया: इस बात की सराहना होनी चाहिए कि ग्राउंड रिपोर्ट के ज़रिए पता चल रहा है कि भारत किस तरह कोविड-19 से लड़ रहा है. कुछ इलाकों में अख़बार मिल रहे हैं, कुछ इलाक़ों में नहीं मिल रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद अलग-अलग माध्यमों के ज़रिए समाचार लोगों तक पहुंच रहा है.
- थिंक टैंक: आमने-सामने के सम्मेलन और सेमिनार को छोड़ दिया जाए तो हर थिंक टैंक पहले की तरह सक्रिय है. ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन की बात करें तो हमारी रिसर्च, टिप्पणी, कोविड-19 से लड़ने के विचार लगातार सामने आ रहे हैं.
कोविड-19 से जीतने की चुनौती ने भारत और भारतीयों को, संस्थाओं और व्यक्तियों को पहली बार इतना एकजुट किया है. हर कोई इसमें साथ है. कुछ सक्रिय लोग हैं जैसे स्वास्थ्य सेवाओँ और दूसरी ज़रूरी सेवाओं में लगे लोग. ज़्यादातर अपरोक्ष रूप से जैसे घर में बैठकर, बाहर के लोगों के साथ कम से कम मेल-मुलाक़ात के ज़रिए अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं. सरकार के सभी संस्थान एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं. ये अद्भुत घटना है क्योंकि ऐसा आम तौर पर देखने को नहीं मिलता. ठहराव ख़त्म हो गया है, लड़ाई नहीं हो रही है, पावर पॉलिटिक्स नहीं है. एक बार जब हम इस संकट से बाहर आ जाएंगे तो हमें इस बात पर सोचना चाहिए, अध्ययन करना चाहिए कि किस तरह इस एकता का इस्तेमाल सुशासन और बेहतर आर्थिक विकास में किया जा सकता है.
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