Author : Urvi Tembey

Published on Aug 04, 2023 Updated 0 Hours ago

जैसे कई देश संवेदनशील मामलों में दूसरों पर निर्भरता कम करने के लिए मूल्य श्रृंखलाओं को नए सिरे से नियोजित कर रहे हैं, भारत-अमेरिका की बैठक में हुए समझौते द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग को मजबूत बना रहे हैं .

भारत-अमेरिका शिखर सम्मेलनः द्विपक्षीय व्यापार लाभ से आगे बढ़ते हुए

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में वाशिंगटन में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात की. शानदार और उत्साह भरे माहौल में विभिन्न क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण समझौते हुए. इनमें से तीन मामले सकारात्मक रूप से द्विपक्षीय व्यापार को प्रभावित कर सकते हैं और भारत की व्यापार अनिवार्यताओं को आगे बढ़ा सकते हैं: i). विश्व व्यापार संगठन (WTO) में बकाया विवादों का समापन; ii). भारत का खनिज सुरक्षा साझेदारी (MSP) में शामिल होना; iii). अमेरिकी चिप निर्माताओं द्वारा भारत में निवेश.

पहले बात बहुपक्षीय मंच की, जहां दोनों देशों ने विश्व व्यापार संगठन में छह बकाया विवादों को समाप्त कर दिया. इनमें से तीन विवादों की शुरुआत भारत ने की थी और तीन विवाद की अमेरिका ने. इन विवादों का समापन द्विपक्षीय व्यापार और सहयोग में एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि कुछ मामले तो 2012 से लटके हुए थे. कुछ विवादों में, दोनों देशों ने अपने-अपने बाज़ार में आने वाले उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगाए थे ताकि कथित रूप से व्यापार में होने वाली गड़बड़ियों को दूर किया जा सके. इन अतिरिक्त शुल्कों को हटा देने से लागत कम होने के कारण द्विपक्षीय व्यापार को और बढ़ावा मिलेगा.

दोनों देशों ने अपने-अपने बाज़ार में आने वाले उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगाए थे ताकि कथित रूप से व्यापार में होने वाली गड़बड़ियों को दूर किया जा सके. इन अतिरिक्त शुल्कों को हटा देने से लागत कम होने के कारण द्विपक्षीय व्यापार को और बढ़ावा मिलेगा.

दोनों देश निम्न विवादों को ख़त्म करने पर राज़ी हुएः

अमेरिकाभारत से कुछ हॉट रोल्ड कार्बन स्टील फ्लैट प्रो़डक्ट्स (hot-rolled carbon steel flat products) पर प्रतिकारी कदम (डीएस436): इस विवाद को भारत ने अमेरिका के खिलाफ शुरू किया था, जो भारत से कुछ हॉट रोल्ड कार्बन स्टील फ्लैट प्रो़डक्ट्स पर अमेरिका के प्रतिकारी शुल्क थोपे जाने की वजह से था.

भारतसोलर सेल और सोलर मॉड्यूल के संबंधित कुछ कदम (डीएस456): इस विवाद की शुरुआत अमेरिका ने भारत के खिलाफ इसलिए की थी क्योंकि भारत ने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर योजना (एनएसएम) के तहत सोलर सेल और सोलर मॉड्यूल को लेकर घरेलू सामग्री आवश्यकताओं के संबंध में कुछ कदम उठाए थे.

अमेरिकानवीनीकरण ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित कुछ कदम (डीएस510): यह विवाद भारत ने अमेरिका के खिलाफ शुरू किया था, जिसमें भारत ने अमेरिका के कुछ कदमों का विरोध किया था, जो ऊर्जा क्षेत्र में वाशिंगटन, कैलिफोर्निया, मोंटाना, मैसाचुसेट्स, कनेक्टिकट, मिशिगन, डेलावेयर, और मिनेसोटा राज्यों की सरकारों द्वारा घरेलू सामग्री आवश्यकताओं और सब्सिडी के संबंध में उठाए गए थे.

भारतनिर्यात संबंधी कदम (डीएस541): यह विवाद अमेरिका द्वारा भारत के खिलाफ शुरू किया गया था, जिसमें अमेरिका ने भारत के विरोध में दावा किया कि निर्यात पर सब्सिडी विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सब्सिडी और प्रतिकारी कदमों पर अनुबंध (ASCM) के तहत आने वाले दायित्वों का उल्लंघन है.

अमेरिकास्टील और एल्युमीनियम उत्पादों पर उठाए गए कुछ कदम (डीएस547): इस विवाद में, भारत ने अमेरिका के खिलाफ विवाद समाधान की प्रक्रिया शुरू की, जिसमें अमेरिका ने स्टील और एल्युमिनियम के अमेरिका में आयात को नियंत्रित करने के लिए कुछ कदम उठाए थे.

भारत- अमेरिका से आने वाले कुछ उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क (डीएस585): अमेरिका ने भारत के खिलाफ इस विवाद की शुरुआत की थी, जिसमें भारत पर अमेरिका में बनने वाले कुछ उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने का आरोप लगाया गया था.

बहरहाल, दोनों देशों के बीच विवादों का समाधान आपस में मिलकर और सद्भावनापूर्ण बातचीत के साथ करने का असर दोनों देशों की इस इच्छा में भी प्रकट होता है कि वे विश्व व्यापार संगठन (WTO) के अपीलीय निकाय की अनुपस्थिति में सौहार्दपूर्ण ढंग से विवादों का निपटारा करेंगे.

दूसरी बात, द्विपक्षीय बैठकों के दौरान यह घोषणा की गई कि भारत खनिज सुरक्षा साझीदारी (Minerals Security Partnership- MSP) में शामिल होगा. इस “साझीदारी का उद्देश्य ऐसे महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति सुरक्षित करना है जो स्वच्छ ऊर्जा और अन्य तकनीकों के लिए आवश्यक हैं और जिनकी वैश्विक मांग बढ़ रही है”. एमएसपी का उद्देश्य “यह सुनिश्चित करना है कि महत्वपूर्ण खनिजों का उत्पाादन, संसाधन, और पुनर्चक्रण इस तरह किया जाएगा कि वह अपने भूवैज्ञानिक बंदोबस्त (geological endowments) के पूर्ण आर्थिक विकास के फ़ायदे को समझने की देशों की क्षमता को आधार प्रदान करे.” इन महत्वपूर्ण खनिजों का इस्तेमाल हरित प्रौद्योगिकी और स्वच्छ ऊर्जा का दोहन करने और परिष्कृत इलेक्ट्रॉनिक्स में किया जाता है. भारत की बात करें तो, आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 ने “दुर्लभ पृथ्वी तत्व धातुओं” (rare earth elements) के असमान वितरण से पैदा स्थिति का सामना करने के लिए एक बहुआयामी खनिज नीति” की आवश्यकता की ओर ध्यान खींचा था. भारत की हरित ऊर्जा में बदलाव को गति देने के लिए इन महत्वपूर्ण खनिजों तक सुरक्षित पहुंच बहुत ज़रूरी है. भारत ने 2070 तक शून्य-उत्सर्जन की स्थिति में पहुंचने का बेहद महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है और कहा है कि यह अपनी बिजली की ज़़रूरतों का 50 प्रतिशत 2030 तक अक्षय ऊर्जा स्रोतों से हासिल करने लगेगा. भारत ने हाल ही में महत्वपूर्ण खनिजों की सूची जारी की है, “ताकि आयात पर निर्भरता कम की जा सके, आपूर्ति श्रृंखला में लोचशीलता बढ़ाई जा सके और देश के शून्य उत्सर्जन के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके.” भारत की एमएसपी में सदस्यता से महत्वपूर्ण खनिजों तक पहुंच के लिए मज़बूत और विविधतापूर्ण आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण होगा जो भारत के स्वच्छ ऊर्जा पर स्थानांतरित होने के व्यापक लक्ष्य के अनुरूप ही है. एमएसपी की सदस्यता मिलना भारत के लिए महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि देश का लक्ष्य सेमीकंडक्टरों के उद्पादन का केंद्र बनना है और जिसके लिए महत्वपूर्ण खनिजों की आवश्यकता होती है. एमएसपी में अभी 14 सदस्य हैं जिनमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ़िनलैंड, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, स्वीडन, नॉर्वे, यूनाइटेड किंगडम (यूके), अमेरिका और यूरोपियन यूनियन शामिल हैं और अब भारत भी है.

भारत की हरित ऊर्जा में बदलाव को गति देने के लिए इन महत्वपूर्ण खनिजों तक सुरक्षित पहुंच बहुत ज़रूरी है. भारत ने 2070 तक शून्य-उत्सर्जन की स्थिति में पहुंचने का बेहद महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है और कहा है कि यह अपनी बिजली की ज़़रूरतों का 50 प्रतिशत 2030 तक अक्षय ऊर्जा स्रोतों से हासिल करने लगेगा.

तीसरी बात, भारत में अमेरिकी मेमोरी चिप निर्माता माइक्रॉन टेक्नोलॉजी (Micron Technology) और सेमीकंडक्टर उपकरण बनाने वाले (semiconductor toolmaker) एप्लाइड मैटेरियल्स (Applied Materials) का निवेश भारत में चिप निर्माण की मूल्य ऋंखला को संपूर्णता की ओर कुछ और ले जाएगा. अप्लाइड इलेक्ट्रॉनिक्स का निवेश जहां भारत में एक इंजीनियरिंग केंद्र स्थापित करने के काम में लाया जाएगा, जिससे भारत में “2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नियोजित निवेश होगा और इससे 500 नई उन्नत अभियांत्रिकी (advanced engineering) की नौकरियां पैदा होंगी “, माइक्रोन भारत में एक असेंबली, टेस्टिंग और पैकेजिंग का प्लांट लगाएगी. माइक्रोन द्वारा किया जा रहा निवेश बहुत निर्णायक साबित हो सकता है क्योंकि इससे भारत सेमीकंडक्टरों की आपूर्ति श्रृंखला में विश्व के नक्शे पर आ जाएगा . नए प्लांट में माइक्रॉन “द्राम (DRAM) और नंद (NAND) दोनों उत्पादों के लिए असेंबली और टेस्ट उत्पादन की क्षमताएं तैयार करेगा.” द्राम (DRAM) और नंद के सबसे बड़े उत्पादकों में सैमसंग (Samsung), एसके हाइनिक्स (SK Hynix) और माइक्रोन (Micron) शामिल हैं. ये चिप्स रोज़मर्रा के उपकरणों और इलेक्ट्रॉनिक्स में इस्तेमाल होती हैं जिनमें स्मार्टफ़ोन, पर्सनल कंप्यूटर और सर्वर शामिल हैं. आशा की जा रही है कि भारत में लगने वाला नया प्लांट घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में इन चिप्स की मांग पूरी करेगा. सेमीकंडक्टर्स की आपूर्ति श्रृंखला में भारत को शामिल करने के अलावा माइक्रोन के प्लांट का भारत के इलेक्ट्रॉनिक उद्योग पर व्यापक असर होने की भी उम्मीद है क्योंकि यह पुर्ज़ों का निर्माण स्थानीय स्तर पर ही करेगा.

आगे की राह

कई देश चिप निर्माण में निवेश बढ़ा रहे हैं और सब्सिडी दे रहे हैं ताकि उनकी दूसरों पर निर्भरता कम हो और आपूर्ति श्रृंखला में लगने वाले झटकों के ख़तरे को कम किया जा सके. चिप्स, जिन्हें यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने “हमारी आधुनिक अर्थव्यस्थाओं का मूल आधार” करार दिया था, आधुनिक तकनीकों में एक आधारभूत भूमिका निबाहती हैं और हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी के हर पहलू से जुड़ी हुई हैं. भारत का लक्ष्य सेमीकंडक्टर के निर्माण में आत्मनिर्भर होना और घरेलू क्षमता विकसित करना है. आने वाले सालों में सेमीकंडक्टरों के लिए भारत की मांग में भी वृद्धि होने की संभावना है, जिनमें अंतरिक्ष और रक्षा जैसे क्षेत्र भी शामिल हैं. इसे देखते हुए भारत अपनी निर्माण क्षमता तैयार कर दूसरों पर निर्भरता कम करना चाहता है. इस तरह एक असेंबली, टेस्टिंग और पैकेजिंग का प्लांट भारत में स्थापित किया जाना भारत में चिप्स के पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem- एक व्यावसायिक पारिस्थितिकी तंत्र संगठनों का नेटवर्क होता है. इसमें आपूर्तिकर्ता, वितरक, ग्राहक, प्रतिस्पर्धी, सरकारी एजेंसियां ​​​​आदि शामिल होते हैं, जो प्रतिस्पर्धा और सहयोग दोनों के माध्यम से एक विशिष्ट उत्पाद या सेवा की डिलीवरी में शामिल होते हैं) को तैयार करेगा. इसके अलावा चिप निर्माताओं के निवेश से यह भी पता चलता है कि एक संवेदनशील क्षेत्र में साझीदार के रूप में भारत की साख कैसी है.

भारत का लक्ष्य सेमीकंडक्टर के निर्माण में आत्मनिर्भर होना और घरेलू क्षमता विकसित करना है. आने वाले सालों में सेमीकंडक्टरों के लिए भारत की मांग में भी वृद्धि होने की संभावना है, जिनमें अंतरिक्ष और रक्षा जैसे क्षेत्र भी शामिल हैं. 

जैसे-जैसे कई देश संवेदनशील मामलों में दूसरों पर निर्भरता कम करने के लिए मूल्य श्रृंखलाओं को नए सिरे से नियोजित कर रहे हैं, नए गठजोड़ बना रहे हैं, भारत-अमेरिका की बैठक में हुए समझौते द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग को मजबूत बना रहे हैं. ऊपर जिन तीन समझौतों का उल्लेख किया गया है उनसे न केवल द्विपक्षीय व्यापार में सुधार होगा, बल्कि भविष्य के लिए मजबूत आपूर्ति श्रृंखलाएं भी बनेंगी और भारत की वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में स्थिति बेहतर होगी. भारत की विनिर्माण क्षमताओं को बल मिलने, रोज़गार सृजन, और दोनों देशों के बीच ज्ञान साझा करने में बढ़ोत्तरी होने के अलावा इन समझौतों से यह भी पता चलता है कि एक संवेदनशील क्षेत्र में भारत की साख एक भरोसेमंद सहयोगी की है.

“उर्वी टेंबे ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन इंटरनेशनल लॉ, व्यापार और बहुपक्षीय संगठनों- की एक सहायक अध्येता हैं.

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