Expert Speak Raisina Debates
Published on May 12, 2025 Updated 0 Hours ago

भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती नज़दीकी से चीन की चिंताओं के बीच, अमेरिका के उप-राष्ट्रपति जे डी वेंस ने भारत से अपील की है वो मैन्युफैक्चरिंग पर ज़ोर देने के अमेरिका के प्रयासों में मदद करें.

भारत के विनिर्माण अभियान से चीन चिंतित, अमेरिका का बढ़ता समर्थन

Image Source: Getty

अप्रैल 2025 में अपने भारत दौरे के दौरान अमेरिका के उप-राष्ट्रपति जे. डी. वेंस ने भारत के साथ अमेरिका के बेहतर संबंधों के साथ साथ, अपने देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भारत की अधिक भागीदारी की वकालत की थी. वेंस के इस दौरे ने दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार वार्ताओं और रक्षा सहयोग को नई धार दी है. जे. डी. वेंस ने भारत के सामने गोला बारूद का साथ मिलकर उत्पादन करने, ऑटोनॉमस सिस्टम के उद्योग का साझा गठबंधन बनाने और समुद्री सिस्टम विकसित करने प्रस्ताव भी रखे हैं. अमेरिकी उप-राष्ट्रपति ने चीन की तरफ़ इशारा करते हुए ये भी कहा कि कुछ ‘विरोधी ताक़तें’ हिंद प्रशांत क्षेत्र पर दबदबा क़ायम करने की कोशिश कर रही हैं.

अमेरिकी उप-राष्ट्रपति ने चीन की तरफ़ इशारा करते हुए ये भी कहा कि कुछ ‘विरोधी ताक़तें’ हिंद प्रशांत क्षेत्र पर दबदबा क़ायम करने की कोशिश कर रही हैं.

 चीन के ख़िलाफ़ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ युद्ध के बीच, भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने श्रम के हेरा-फेरी वाले मॉडल, छुपी हुई सब्सिडियों और अनैतिक व्यापारिक गतिविधियों का ठीकरा चीन के सिर फोड़ा था. पीयूष गोयल ने चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की तुलना भारत से मध्य पूर्व के रास्ते यूरोप के गलियारे की परियोजना (IMEC) से करते हुए कहा था कि IMEC किसी भी देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का उल्लंघन नहीं करता है. IMEC का ब्लूप्रिंट, भारत से सऊदी अरब होते हुए यूरोप जाने के लिए सड़कों, रेलवे लाइनों और समुद्री संपर्क मार्गों के एक नेटवर्क की परिकल्पना करता है. चीन के BRI को लेकर भारत का रुख़ हमेशा विरोध वाला रहा है. क्योंकि, BRI की एक परियोजना, चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर (POK) से होकर गुज़रता है, जिसे भारत अविभाजित जम्मू कश्मीर का हिस्सा मानता है.

 

चीन के लिए चुनौती 

चीन इन दावों को अमेरिका और भारत के हितों के मेल के तौर पर देखता है. इसी वजह से चीन के विश्लेषक मोदी के तीसरे और डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के दौरान भारत और अमेरिका के विकसित होते रिश्तों का आकलन कर रहे हैं.

 चीन के टिप्पणीकार इसके लिए, ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर को पहली क़तार में बिठाने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ़रवरी 2025 के अमेरिका दौरे को दोनों देशों के बीच बढ़ती नज़दीकी के तौर पर रेखांकित करते हैं. इसके बावजूद, चीन के विश्लेषक ये भी कहते हैं कि दोनों देशों के बीच कुछ मुद्दों पर मतभेद भी हैं. जैसे कि ट्रंप ज़्यादा टैरिफ के लिए अक्सर भारत पर निशाना साधते रहते हैं. इसी तरह जे डी वेंस को अपमानजनक तरीक़े से ‘भारत का दामाद’ भी कहा जाता है. चीनी भाषा में लिखे गए लेखों में ये दावा किया जाता है कि भारत को लेकर अमेरिका की हमदर्दी असल में सस्ते मज़दूर हासिल करने, उसके बड़े ग्राहक बाज़ार में पैठ बनाने और चीन पर क़ाबू पाने के लिए है.

 ये चीनी टिप्पणीकार अमेरिका और भारत की दोस्ती का आधार सॉफ्ट पावर को बताते हैं. उनका कहना है कि ये सॉफ्ट पावर, अप्रवास, तकनीकी क्षेत्र में नौकरियों, भारतीय मूल के अमरीकियों की सफलता, अंग्रेज़ी भाषा के दबदबे, भारत के थिंक टैंकों को पश्चिमी देशों की फंडिंग, भारत के मीडिया संगठनों में अमेरिकी निवेश और चीन और भारत के बीच तनाव पर आधारित है. हालांकि, एक सोच ये भी है कि इस सॉफ्ट पावर की अपनी सीमाएं हैं. क्योंकि अप्रवास का मसला अब अमेरिका में राजनीतिक रूप से बहुत विवादित हो गया है. चीनी जानकार इस बात की भविष्यवाणी कर रहे हैं, अमेरिका के अप्रवासी नीति को सख़्त बनाने, और डोनाल्ड ट्रंप के दक्षिणपंथी समर्थकों द्वारा भारत के अप्रवासियों को खलनायक के तौर पर पेश करने की वजह से दोनों देशों के बीच सॉफ्ट पावर की ये कड़ी ज़्यादा दिन टिकने वाली नहीं है.

चीन को लगता है कि अमेरिका के साथ उसके रिश्तों में अचानक जो तल्ख़ी आई है, उसकी वजह से भारत को बहुत ख़ुशी महसूस हो रही है. भारत हाल के वर्षों में अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को विकसित करने पर काफ़ी ज़ोर दे रहा है.

 चीन को लगता है कि अमेरिका के साथ उसके रिश्तों में अचानक जो तल्ख़ी आई है, उसकी वजह से भारत को बहुत ख़ुशी महसूस हो रही है. भारत हाल के वर्षों में अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को विकसित करने पर काफ़ी ज़ोर दे रहा है. लेकिन, चीन इन कोशिशों को ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान अपने ख़िलाफ़ छेड़े गए टैरिफ युद्ध से जोड़कर देखता है. चीन के रणनीतिकारों को लगता है कि चीन और अमेरिका के रिश्तों में आई इस दरार का फ़ायदा उठाने के लिए भारत बहुत बेक़रार था, ताकि अपने ‘मेक इन इंडिया’ अभियान में नई जान डाल सके और अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की संभावनाओं का दोहन कर सके. सबूतों के मुताबिक़, चीन के कमेंटेटर्स के लेखों में उन मीडिया ख़बरों का हवाला दिया गया है कि भारत सरकार ने अलग अलग राज्यों में औद्योगिक इकाइयां लगाने के लिए लग्ज़ेमबर्ग के क्षेत्रफल के बराबर ज़मीनें चिह्नित कर रखी थीं. इस पहल के पीछे भारत के कारोबारी घरानों की वो चिंता थी कि ज़मीन आवंटन में बहुत देरी हो जाती है. लेकिन, भारत द्वारा बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कारोबार के लिए मुफ़ीद नीतियों के ज़रिए आकर्षित करने के प्रयासों के पीछे चीन को एक बड़ी साज़िश नज़र आती है.

 

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ओर भारत

 कोविड-19 महामारी के दौरान चीन ने संक्रमण फैलने से रोकने के लिए अपने यहां कारख़ाने बंद कर दिए थे. इसकी वजह से सामानों की क़िल्लत हो गई और क़ीमतें आसमान छूने लगीं. वहीं, भारत ने इस दौरान ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान शुरू कर दिया था. वहीं, भारत के इस क़दम को चीन ने अपने यहां की औद्योगिक आपूर्ति श्रृंखलाओं को कहीं और ले जाने के क़दम के तौर पर देखा. चीन के विश्लेषकों का कहना है कि भारत ने इस दौर को 1980 और 1990 के दशक में चीन के औद्योगीकरण के प्रयासों की तर्ज पर मिल रहे अवसरों के तौर पर देखा. अब ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के टैरिफ युद्ध को देखकर चीन के टिप्पणीकार कह रहे हैं कि भारत को एक बार फिर से ये ‘ज़िंदगी में एक बार आने वाला मौक़ा’ दिख रहा है, जिस दौरान वो अंतरराष्ट्रीय उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखलाओं को अपने यहां ला सकता है और अपना औद्योगीकरण कर सकता है. भारत की इन लगातार कोशिशों के बारे में चीन का मानना है भारत की औद्योगिक संभावनाएं खिलौने और स्मार्ट फोन बनाने जैसी निर्माण क्षेत्र की बुनियादी प्रगति हासिल करने की ही है. ट्रंप के चीन को ख़ास तौर से निशाना बनाने की वजह से भारत पर तुलनात्मक रूप से कम टैरिफ लगा है और अब लोग ये मानने लगे हैं कि भारत इस मौक़े को अपने हित में भुनाने की कोशिश करेगा.

भारत ने इस दौरान ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान शुरू कर दिया था. वहीं, भारत के इस क़दम को चीन ने अपने यहां की औद्योगिक आपूर्ति श्रृंखलाओं को कहीं और ले जाने के क़दम के तौर पर देखा. 

 2024 में चीन की कुछ इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों के निवेश के प्रस्तावों को भारत ने मंज़ूरी दी थी. कुछ मामलों में निवेश के इन प्रस्तावों में भारत की कंपनी के साथ साझा परियोजनाएं शामिल थीं, जिनमें चीन की कंपनी की भागीदारी 50 प्रतिशत से कम थी. मंज़ूर किए गए कुछ प्रस्ताव ऐसे थे जिनमें हॉन्ग कॉन्ग में रजिस्टर्ड ताइवान की कंपनियां या फिर हॉन्ग कॉन्ग के निवेशकों के समर्थन वाली ऐसी कंपनियां शामिल थीं, जो ताइवान में दर्ज थीं. साझा उद्यमों के प्रस्ताव का मूल्यांकन करने वाले सरकारी पैनल ने मूल्य संवर्धन की शर्तें रखी थी. एक और शर्त के मुताबिक़ चीन के नागरिकों को किसी भी साझा उद्यम या भारत में कारोबार के लिए मंज़ूरी हासिल करने वाली कंपनी में कोई अहम पद हासिल करने पर रोक लगी रहेगी. इस तरह के साझा उद्यम भारत की आर्थिक सुरक्षा की एक प्रमुख ख़ूबी बन गई है. चीन के रणनीतिकारों को लगता है कि चीन की कंपनियों को कम भागीदारी के साथ भारतीय कंपनियों से मिलकर साझा उद्यम लगाने के लिए ‘बाध्य किया जाएगा’, जिससे भारत की कंपनियों को बहुत कम प्रयास करके भी तकनीक हासिल हो सकेगी. 

चीन के लेखक भारत और चीन के विकास के अलग अलग मार्गों पर चलने की तरफ़ भी इशारा करते हैं. उनको लगता है कि चीन की मूलभूत ताक़त मुख्य तकनीकों पर ज़ोर देने और उनमें महारत हासिल करने, ख्वावे, BYD और बाइटडांस जैसी स्थानीय बड़ी कंपनियों को पालने पोसने और घरेलू औद्योगिक संपदा विकसित करके अमेरिका के तकनीकी प्रतिबंधों से पार पाने की है. चीन के रणनीतिकार कहते हैं कि ‘सिलिकॉन वैली की आउटसोर्सिंग के ज़रिए समृद्धि’ हासिल करने की तथाकथित सनक भारत के लिए उपयोगी नहीं है और उसको अमेरिका का तकनीकी ग़ुलाम बना सकती है.

अब सवाल ये है कि चीन की इस सोच का हाल ही में चीन और भारत के रिश्तों में आई नई नई गर्माहट पर क्या असर पड़ेगा. क्योंकि चीन के रणनीतिक समुदाय के बीच ये सोच है कि चीन से संतुलन बनाने के लिए भारत को अन्य देशों के साथ आने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है. 

 चीन के रणनीतिकार अमेरिका के साथ अपने टैरिफ युद्ध के बीच भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती नज़दीकी से फ़िक्रमंद हैं. चीन को लगता है कि भारत का रवैया ‘मौजूदा अराजकता’ और ‘विश्व व्यवस्था की तबाही’ का फ़ायदा उठाने को लेकर बेक़रारी वाला है, जिसमें वो अमेरिका और दूसरे विकसित देशों के साथ धड़ाधड़ व्यापार समझौते कर रहा है. चीन के विश्लेषकों का ये मानना है कि भारत के ये व्यापार समझौते चीन के हितों को चोट पहुंचाने वाले और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहलों के माध्यम से भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने वाले हैं, जिनसे भारत की विकास गाथा को नई शक्ति प्राप्त होगी. चीन की नज़र में भारत विश्व व्यवस्था की उथल-पुथल से फ़ायदा उठाने की कोशिश है, ताकि वो बड़ी ताक़त बनने का अपना लक्ष्य हासिल कर सके. 

 आगे की राह 

 चीन को लगता है कि भारत और अमेरिका के बीच सहयोग का मिज़ाज उसके ख़िलाफ़ और रूस को चोट पहुंचाने वाला है. चीन के रणनीतिकारों का तर्क है कि अमेरिका की सुरक्षा रणनीति अमेरिकी हथियार बेचकर भारत की सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने और रूस के साथ सहयोग में अड़ंगा लगाने की है. उनको ये भी लगता है कि ट्रंप जिस तरह कच्चा तेल और गैस बेचने का प्रयास कर रहे हैं, वो भारत को रूस से तेल ख़रीदने से रोकने की कोशिश है. चीन के टिप्पणीकार भारत को चेतावनी देते हैं कि भारत को सतर्क रहना चाहिए और ‘एशिया का यूक्रेन’ नहीं बनना चाहिए.

 कुल मिलाकर, जहां चीन की आर्थिक मुश्किलें ट्रंप के टैरिफ युद्ध की वजह से और जटिल हो गई है. वहीं, अमेरिका और भारत के बीच बढ़ती नज़दीकी ने चीन की असुरक्षा को बढ़ा दिया है. चीन के रणनीतिकारों को लगता है कि भारत के उभार से चीन की महत्वाकांक्षा को चोट पहुंचेगी. अब सवाल ये है कि चीन की इस सोच का हाल ही में चीन और भारत के रिश्तों में आई नई नई गर्माहट पर क्या असर पड़ेगा. क्योंकि चीन के रणनीतिक समुदाय के बीच ये सोच है कि चीन से संतुलन बनाने के लिए भारत को अन्य देशों के साथ आने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है. इस तरह से देखें, तो चीन भारत पर दबाव बनाने के लिए सीमा विवाद को किसी न किसी रूप में ज़िंदा रखने की कोशिश करेगा. 

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.