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साहसिक नई नीतियों के साथ महत्वपूर्ण खनिजों के लिए दुनिया में चल रही रेस में भारत की सफलता अब महत्वाकांक्षा को प्रभावी और तालमेल वाले कार्यान्वयन में बदलने पर निर्भर करती है.
खान और खनिज (विकास एवं रेगुलेशन) अधिनियम (MMDR) 2025 महत्वपूर्ण खनिजों की सुरक्षा के लिए भारत की रणनीतिक योजना में एक महत्वपूर्ण क्षण है. राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (जिसमें 2030-31 तक 24 महत्वपूर्ण कमोडिटी की वैश्विक खोजबीन और अधिग्रहण शामिल है) के लिए 34,000 करोड़ रुपये का फंड आवंटित करने का सरकार का निर्णय एक साहसिक और दूरदर्शी दृष्टिकोण दिखाता है. ये कदम भारत को तकनीक, नवीकरणीय ऊर्जा और औद्योगिक विकास के लिए ज़रूरी महत्वपूर्ण संसाधनों तक पहुंच सुरक्षित करने के मामले में प्रतिस्पर्धा कर रही दुनिया की महत्वपूर्ण ताकतों के साथ खड़ा करता है. ये कानून प्रतिक्रियात्मक उपायों से सक्रिय कार्रवाई की ओर बदलाव का प्रतीक है जो कि “आत्मनिर्भर भारत” और “विकसित भारत” के राष्ट्रीय दृष्टिकोण से मेल खाता है. इसके बावजूद अकेले महत्वाकांक्षा ही पर्याप्त नहीं है. जैसे-जैसे महत्वपूर्ण खनिजों के लिए दुनिया की रेस तेज़ होती जा रही है, वैसे-वैसे भारत की सफलता एक मज़बूत रणनीति के प्रभावी कार्यान्वयन पर निर्भर करेगी. इसके लिए समन्वित दृष्टिकोण को मज़बूत करने की आवश्यकता है जो महत्वपूर्ण खनिजों की खोज, अधिग्रहण और वैल्यू चेन की श्रृंखला से जुडी चुनौतियों का समाधान करने के हिसाब से तैयार हो. इससे न केवल भारत सुरक्षित सप्लाई सुनिश्चित करेगा बल्कि वैश्विक नेतृत्व भी स्थापित करेगा.
भारत की खनिज संपदा की अभी भी ठीक ढंग से खोजबीन नहीं की गई है, विशेष रूप से लिथियम, कोबाल्ट, निकल और रेयर अर्थ तत्व जैसे महत्वपूर्ण खनिजों की. वैसे तो भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के पास बुनियादी मानचित्र तैयार करने की एक मज़बूत विरासत है लेकिन भारत के पास हाई-रेजोल्यूशन, 4D भूवैज्ञानिक डेटासेट की कमी है जो पूर्वानुमान वाली खोज के लिए ज़रूरी है. MMDR एक्ट 2025 खोज और सरकारी फंडिंग पर ज़ोर देकर भारत के खोजबीन इकोसिस्टम की परिकल्पना के लिए एक अवसर का निर्माण करता है. एक वैज्ञानिक, जानकारी से प्रेरित रणनीति इस स्तंभ की बुनियाद होनी चाहिए.
ये कदम भारत को तकनीक, नवीकरणीय ऊर्जा और औद्योगिक विकास के लिए ज़रूरी महत्वपूर्ण संसाधनों तक पहुंच सुरक्षित करने के मामले में प्रतिस्पर्धा कर रही दुनिया की महत्वपूर्ण ताकतों के साथ खड़ा करता है.
GSI को उन्नत जियोफिजिकल, जियोकेमिकल, आइसोटॉपिक और रिमोट सेंसिंग डेटासेट को एकीकृत करते हुए राष्ट्रीय खनिज प्रणाली मानचित्र कार्यक्रम की शुरुआत करनी चाहिए. इन प्रयासों का नतीजा व्यापक भूमिगत भूवैज्ञानिक मॉडल और खनिज उर्वरता मानचित्र के रूप में निकलना चाहिए जिन्हें पूरे देश में महत्वपूर्ण खनिजों के लिए रीजनल मिनरल टारगेटिंग (RMT) कार्यक्रम के ज़रिए सक्षम नोटिफाइड प्राइवेट एक्सप्लोरेशन एजेंसी (NPEA) के साथ मिलकर विकसित किया जाना चाहिए. GSI की भूमिका एक प्रमुख विज्ञान प्रदाता के रूप में विकसित होनी चाहिए जो खोज का मार्गदर्शन करने के लिए अच्छी क्वालिटी के पूर्व-प्रतिस्पर्धी डेटासेट मुहैया कराए. इसकी मदद करते हुए NPEA को नेशनल मिनरल एक्सप्लोरेशन ट्रस्ट (NMET) की फंडिंग का इस्तेमाल करते हुए अपनी चुस्ती और इनोवेशन का लाभ उठाना चाहिए ताकि व्यापक पूर्व-प्रतिस्पर्धा खोज की जा सके और खनिज उर्वरता विश्लेषण से उत्पन्न अधिक प्राथमिकता वाले लक्ष्यों का व्यवस्थित रूप से परीक्षण किया जा सके. सार्वजनिक और निजी क्षेत्र का ये तालमेल सरकार द्वारा समर्थित वैज्ञानिक बुनियादी ढांचे को निजी उद्यमों की क्षमता के साथ मिलाएगा जिससे खोजबीन की कुशलता में नाटकीय रूप से सुधार होगा, खोज में तेज़ी आएगी और भारत को कनाडा एवं ऑस्ट्रेलिया में देखी जाने वाली वैश्विक सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं के नज़दीक लाया जा सकेगा.
वैसे तो खोज के लाइसेंस (EL) और समग्र लाइसेंस (CL) की शुरुआत जैसे भारत के रेगुलेटरी सुधार प्रगति के बारे में बताते हैं लेकिन बड़े बदलाव वाली खोज के लिए आवश्यक जोखिम पूंजी के पैमाने को आकर्षित करने के लिए ये पर्याप्त नहीं हैं. कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे अग्रणी देश खोज करने वालों को स्वतंत्र रूप से ज़मीन का चयन करने की इजाज़त देते हैं. इसके साथ मज़बूत स्वामित्व एवं अधिकार की सुरक्षा का समर्थन भी देते हैं और खोज के अधिकार को व्यापार योग्य संपत्ति की तरह मानते हैं. इससे तरलता बढ़ती है, निजी निवेश को प्रोत्साहन मिलता है और खोज करने वाली कंपनियों को सार्वजनिक बाज़ार से फंड इकट्ठा करने की अनुमति मिलती है. भारत को भी इसी तरह के मॉडल को अपनाना चाहिए. खोजबीन करने वालों को उनकी खोज पर स्पष्ट अधिकार के साथ पर्यावरण और वन मंज़ूरी के लिए सुव्यवस्थित प्रक्रिया इस क्षेत्र में आने की बाधाओं को कम करेगी. निवेशकों का विश्वास बनाने के लिए एक संभावित, पारदर्शी और अच्छी तरह से समन्वित राज्य-केंद्र रेगुलेटरी व्यवस्था महत्वपूर्ण है.
सार्वजनिक और निजी क्षेत्र का ये तालमेल सरकार द्वारा समर्थित वैज्ञानिक बुनियादी ढांचे को निजी उद्यमों की क्षमता के साथ मिलाएगा जिससे खोजबीन की कुशलता में नाटकीय रूप से सुधार होगा, खोज में तेज़ी आएगी और भारत को कनाडा एवं ऑस्ट्रेलिया में देखी जाने वाली वैश्विक सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं के नज़दीक लाया जा सकेगा.
वित्तीय पक्ष देखें तो घरेलू महत्वपूर्ण खनिजों के व्यापार के एक प्लैटफॉर्म की स्थापना कीमत से जुड़ी पारदर्शिता ला सकती है, निवेश के जोखिम को कम कर सकती है और बचाव की व्यवस्था को सक्षम बना सकती है. भारत के खोजबीन क्षेत्र को वैश्विक रिपोर्टिंग मानकों के साथ जुड़ी भारतीय खनिज उद्योग संहिता (IMIC) से जोड़ने पर विश्वसनीयता में और बढ़ोतरी होगी. खोजबीन करने वालों को BSE और NSE में सूचीबद्ध होने के लिए प्रोत्साहन देने से बड़े पैमाने पर घरेलू पूंजी उपलब्ध होगी जिससे छोटे स्तर पर खोजबीन करने वालों और खनिकों को जोखिम पूंजी का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करने में मदद मिलेगी. ये सुधार भारत के खोजबीन क्षेत्र को सरकारी दबदबे से बाज़ार प्रेरित खोज के इंजन में बदल देंगे.
भारत के द्वारा सार्वजनिक उद्यमों (PSU) के माध्यम से विदेशों में खनिज संपदा सुरक्षित करने की कोशिशें नौकरशाही की अक्षमता, निर्णय लेने में देरी और वाणिज्यिक फुर्ती के अभाव के कारण ऐतिहासिक रूप से नाकाम रही हैं. लेकिन महत्वपूर्ण खनिजों के अधिग्रहण के लिए सरकारी फंड निर्धारित होने के साथ भारत की विदेशी अधिग्रहण की रणनीति का एक साहसिक पुनर्गठन आवश्यक है. सरकार के स्तर (G2G) पर भागीदारी के साथ PSU और प्रवासी भारतीयों के बीच साझेदारी का मॉडल एक व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करता है. कई तेज़-तर्रार भारतीय उद्यमियों ने पहले ही विदेशों में महत्वपूर्ण खनिज संपदा में हिस्सेदारी हासिल की है, विशेष रूप से अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में.
इन मौजूदा नेटवर्क का फायदा उठाते हुए सरकार समर्थित स्पेशल पर्पस व्हीकल (SPV) के रूप में भारत एक क्रिटिकल मिनरल्स ओवरसीज़ एक्विज़िशन अथॉरिटी (CMOAA) की स्थापना कर सकता है. ये संस्था एक रणनीतिक निवेश शाखा के रूप में काम करेगी जिसमें PSU वित्त, संप्रभु गारंटी एवं कूटनीतिक लाभ मुहैया कराएंगे जबकि वैश्विक स्तर पर अनुभवी प्रवासियों के नेतृत्व वाली कंपनियां परिचालन कार्यान्वयन, तकनीकी विश्लेषण और वाणिज्यिक बातचीत करेंगी. CMOAA के कामकाज की संरचना मिली-जुली होनी चाहिए जिसमें PSU की निगरानी और प्राइवेट सेक्टर की चुस्ती का मिश्रण हो. इसके बोर्ड में संबंधित मंत्रालयों एवं PSU के प्रतिनिधि, प्रवासी उद्यमी और उद्योग के जानकार शामिल हो सकते हैं जिससे रणनीति और गति का संतुलन सुनिश्चित हो सकेगा. ये संरचना SPV को नौकरशाही की रुकावटों को दरकिनार करते हुए निर्णायक रूप से काम करने और प्रतिस्पर्धी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में तुरंत जवाब देने में सक्षम बनाएगी.
इस तरह का नज़रिया न केवल कच्चा माल सुरक्षित करेगा बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन में भारत की स्थिति भी मज़बूत करेगा जिससे उसकी स्वच्छ ऊर्जा और उच्च तकनीकी महत्वाकांक्षाओं के लिए एक मज़बूत इकोसिस्टम का निर्माण होगा.
अधिग्रहण के आगे भारत को विदेशी परिसंपत्तियों को भारत में खनन की वैल्यू चेन से जोड़ने पर ध्यान देना चाहिए. इसमें मेज़बान देशों में प्रसंस्करण की साझेदारी बनाना, लॉजिस्टिक का बुनियादी ढांचा हासिल करना और भारत के उद्योगों को तकनीक के हस्तांतरण की सुविधा मुहैया कराना शामिल है. इस तरह का नज़रिया न केवल कच्चा माल सुरक्षित करेगा बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन में भारत की स्थिति भी मज़बूत करेगा जिससे उसकी स्वच्छ ऊर्जा और उच्च तकनीकी महत्वाकांक्षाओं के लिए एक मज़बूत इकोसिस्टम का निर्माण होगा. ये मॉडल चीन की रणनीति से प्रेरणा लेता है जहां सरकार द्वारा समर्थित निजी उद्यमों का विदेशों में अधिग्रहण के मामले में दबदबा है और वो कूटनीतिक समर्थन के साथ काम करते हैं. लेकिन भारत को इस मामले में एक अनोखी बढ़त है: उसके बेहद हुनरमंद और अच्छी तरह से जुड़े प्रवासी भारत और संसाधन संपन्न देशों के बीच एक स्वाभाविक सेतु के रूप में काम करते हैं जो परिचालन से जुड़े जोखिम को कम करते हुए भारत के भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाते हैं. सरकारी फंडिंग और संस्थागत समर्थन के माध्यम से इस नेटवर्क को सशक्त बनाकर भारत एक वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी अधिग्रहण का तौर-तरीका बना सकता है और महत्वपूर्ण खनिजों की दीर्घकालिक, अलग-अलग देशों से आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है.
महत्वपूर्ण खनिजों को सुरक्षित करने का दायरा कच्चा माल हासिल करने से कहीं आगे तक फैला हुआ है. इसमें वैल्यू चेन में प्रसंस्करण, शोधन और इनोवेशन की क्षमता भारत की रणनीतिक स्वायत्तता तय करेगी. वर्तमान में चीन लिथियम, रेयर अर्थ और कोबाल्ट जैसे प्रमुख खनिजों के लिए वैश्विक प्रसंस्करण क्षमता के लगभग 70 प्रतिशत पर नियंत्रण रखता है जो भारत को काफी असुरक्षित बनाता है. अनुसंधान और विकास पर MMDR एक्ट 2025 का ज़ोर सही है लेकिन दुनिया के प्रमुख देशों के समान बनने के लिए भारत को अपने प्रयासों के पैमाने और महत्वाकांक्षा में उल्लेखनीय रूप से बढ़ोतरी करनी होगी. लैब से फैक्ट्री तक की दूरी को भरने के लिए NMET बजट का 20-30 प्रतिशत खनन धातुशोधन के अनुसंधान एवं विकास के लिए आवंटित करना ज़रूरी है.
CSIR-IMMT और CSIR-NML जैसे प्रमुख राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों को हाल में स्थापित सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के साथ मिलकर किफायती, पर्यावरण के हिसाब से टिकाऊ खनन और प्रसंस्करण तकनीक तैयार करने और उनका वाणिज्यिक उपयोग करने के लिए प्राइवेट सेक्टर के साथ नज़दीकी साझेदारी में काम करना चाहिए. इन प्रयासों के तहत रेयर अर्थ को स्वच्छ तरीके से अलग करने, कम कार्बन वाले लिथियम खनन, बैटरी रीसाइक्लिंग और बुनियादी धातुओं के लिए हरित धातु शोधन को प्राथमिकता देनी चाहिए. भारत में पिछले दिनों 1,500 करोड़ रुपये की जिस शहरी खनन पहल को मंज़ूरी दी गई, वो ई-वेस्ट और खनन के बाद छूटी बेकार की सामग्रियों से रणनीतिक खनिज हासिल करने पर ध्यान देती है. ये सर्कुलर अर्थव्यवस्था बनाने की दिशा में एक और साहसिक कदम है.
हालांकि प्राथमिक और शहरी खनन से आगे भारत का वास्तविक प्रतिस्पर्धी लाभ एक विश्वस्तरीय माइनिंग इक्विपमेंट, टेक्नोलॉजी एंड सर्विसेज़ (METS) इकोसिस्टम विकसित करने में हो सकता है. METS सेक्टर का मतलब तकनीक मुहैया कराने वालों, इंजीनियरिंग कंपनियों और सर्विस कंपनियों के नेटवर्क से है जो खनन की पूरी वैल्यू चेन की मदद करते हैं. ऑस्ट्रेलिया का METS उद्योग (जो ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था में 90 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा योगदान दे रहा है) और कनाडा का संपन्न खनन इनोवेशन सेक्टर दिखाते हैं कि कैसे सार्वजनिक-निजी तालमेल एक घरेलू उद्योग को वैश्विक ताकत में बदल सकता है.
इस लेख में बताया गया समन्वित दृष्टिकोण- राष्ट्रीय खोजबीन की साझेदारी, निवेश समर्थक रेगुलेटरी एवं वित्तीय इकोसिस्टम, प्रवासी समुदाय के नेतृत्व में विदेशी अधिग्रहण की रणनीति और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी प्रोसेसिंग एवं METS इकोसिस्टम- भारत के बदलाव के लिए एक एकीकृत ब्लूप्रिंट तैयार करता है.
आधुनिक खोजबीन के उपकरणों और स्वायत्त खनन प्रणाली को विकसित करने के उद्देश्य से NPEA और स्टार्टअप्स के लिए भारत की METS रणनीति में NMET समर्थित इनोवेशन अनुदान होना चाहिए. साथ ही राष्ट्रीय खनन इनोवेशन क्लस्टर की स्थापना होनी चाहिए ताकि शैक्षिक जगत, उद्योग और तकनीकी कंपनियों को एक साथ लाया जा सके. इसके अलावा भारत के द्वारा विकसित खनन सॉफ्टवेयर और हरित प्रसंस्करण तकनीकों के निर्यात को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. प्रसंस्करण और METS में भारी निवेश करके भारत अधिक हुनरमंद नौकरियां तैयार कर सकता है और अपनी तकनीकी संप्रभुता को मज़बूत कर सकता है. ये कदम भारत को खनिज उत्पादक से दुनिया में खनन इनोवेशन प्रदान करने वाला देश बना सकता है जिससे महत्वपूर्ण खनिजों के लिए 21वीं सदी की रेस में भारत को निर्णायक बढ़त मिलेगी.
भारत के निर्णायक सुधार, महत्वाकांक्षी सरकारी फंडिंग और दूरदर्शी नीति महत्वपूर्ण खनिज की सप्लाई चेन को सुरक्षित करने के लिए एक मज़बूत बुनियाद मुहैया कराती है. अब चुनौती कार्यान्वयन में है. इस लेख में बताया गया समन्वित दृष्टिकोण- राष्ट्रीय खोजबीन की साझेदारी, निवेश समर्थक रेगुलेटरी एवं वित्तीय इकोसिस्टम, प्रवासी समुदाय के नेतृत्व में विदेशी अधिग्रहण की रणनीति और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी प्रोसेसिंग एवं METS इकोसिस्टम- भारत के बदलाव के लिए एक एकीकृत ब्लूप्रिंट तैयार करता है. ये नज़रिया भारत को न केवल एक खनिज उत्पादक के रूप में बल्कि खोज की तकनीक, प्रसंस्करण से जुड़े इनोवेशन और सतत खनन की प्रथाओं के मामले में वैश्विक रूप से एक अग्रणी देश के रूप में भी स्थापित करता है. महत्वपूर्ण खनिजों की सुरक्षा अब किसी एक क्षेत्र का एजेंडा नहीं है बल्कि ये भारत की औद्योगिक संप्रभुता, स्वच्छ ऊर्जा की तरफ बदलाव और आर्थिक प्रतिस्पर्धा के लिए महत्वपूर्ण है. भारत एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है. मज़बूत संस्थान बनाकर, इनोवेशन को प्रोत्साहन देकर और वैश्विक साझेदारियों को मज़बूत बनाकर भारत असुरक्षा को मज़बूती में बदल सकता है, अपने संसाधनों के आधार का विस्तार कर सकता है और दुनिया में खनिज अर्थव्यवस्था का नेतृत्व कर सकता है. आने वाला दशक भारत के लिए खोजबीन और इनोवेशन क्रांति का दशक होना चाहिए जो निर्भरता से नेतृत्व की ओर एक निर्णायक छलांग है.
बिप्लब चटर्जी Geovale Services के CEO और डायरेक्टर हैं. वो CII की राष्ट्रीय खनन समिति के तहत महत्वपूर्ण खनिजों पर उप समिति के अध्यक्ष के रूप में भी काम कर रहे हैं.
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Biplob Chatterjee is the CEO and Director of Geovale Services and serves as Chair of the Sub-Committee on Critical Minerals under CII’s National Committee on ...
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