वैसे तो फ्यूचर ऑफ वर्क की थीम पर आधारित GPAI के एक वर्किंग ग्रुप ने काम-काज की जगह पर AI के इस्तेमाल को गौर से देखने के लिए कई प्रोजेक्ट शुरू किए हैं लेकिन इसने ख़ास तौर पर इस मुद्दे का समाधान नहीं किया है. भारत इस मामले में पहल कर सकता है. अपनी विशाल श्रम शक्ति को देखते हुए भारत बाज़ार की तेज़ी से बदलती ज़रूरतों का मुकाबला करने के लिए श्रम कानून से जुड़े नए मानकों को विकसित कर सकता है. व्यापक रूप से नौकरी ख़त्म होने के ख़तरे को देखते हुए भारत को सामाजिक सुरक्षा का जाल विकसित करने की आवश्यकता है ताकि उन लोगों की मदद की जा सके जिनकी नौकरी चली गई है.
ग्लोबल साउथ के द्वारा AI का इस्तेमाल
29 GPAI सदस्यों में से अर्जेंटीना, ब्राज़ील, भारत और सेनेगल- ये चार देश ही ऐसे हैं जिनका संबंध ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) से है. भारत और चीन को छोड़कर GPAI के वर्किंग ग्रुप के साथ-साथ AI गवर्नेंस से जुड़े दूसरे वैश्विक मंचों में भी ग्लोबल साउथ की नुमाइंदगी कम है. भारत को इस दूरी को भरने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और ये सुनिश्चित करना चाहिए कि कम विकसित अर्थव्यवस्थाओं को भी इस तकनीकी बदलाव का फायदा मिले. उसे ये भी सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि कम विकसित अर्थव्यवस्थाएं “AI उपनिवेशवाद” का शिकार नहीं बनें. ग्लोबल साउथ से ज़्यादा सदस्यों को शामिल करने की दिलचस्पी जताने और 2022 के टोक्यो समिट के दौरान अर्जेंटीना एवं सेनेगल जैसे नए सदस्यों का स्वागत करने के बावजूद GPAI ने इस दिशा में अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. दुनिया में आर्थिक रूप से विकसित देश ही मुख्य रूप से ग्लोबल AI गवर्नेंस को तय कर रहे हैं और भारत को ये सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि भविष्य में ऐसी स्थिति न रहे. भारत ने AI के लिए अपनी राष्ट्रीय रणनीति में “सबके लिए AI” के लक्ष्य को शामिल करके अपनी भावनाओं को पहले ही व्यक्त कर दिया है.
गवर्नेंस और AI का जवाबदेह विकास
चैट GPT जैसे सॉफ्टवेयर के आने से AI टेक्नोलॉजी के संभावित उपयोग और इसकी सीमा को लेकर बातचीत को बढ़ावा मिला है. वैसे तो चैट GPT कई फायदे पेश करता है लेकिन ये भी साफ है कि इसके ख़तरे से बचाव के लिए कुछ उपाय करने की आवश्यकता है. चैट GPT जैसे एप्लिकेशन का इस्तेमाल हाल के दिनों में गलत पहचान, डेटा की चोरी और मालवेयर अटैक जैसे कई तरह के साइबर अपराधों को अंजाम देने के लिए किया गया है. अंतरिक्ष और परमाणु प्रौद्योगिकी को लेकर जहां कई तरह के बाध्यकारी समझौते हैं वहीं जब बात साइबर स्पेस और AI की होती है तो ऐसा कोई समझौता नहीं है.
GPAI के प्रमुख के तौर पर भारत के पास मौका है कि वो ऐसे एक समझौते को स्थापित करने का नेतृत्व करे जो इस टेक्नोलॉजी के गलत इस्तेमाल को सीमित करे और इसका सुरक्षित एवं समावेशी विकास सुनिश्चित करे. इस उद्देश्य के लिए भारत को समान विचार वाले साझेदारों जैसे कि अमेरिका, कनाडा और EU के साथ तालमेल करने की आवश्यकता है. भारत ने इस दिशा में एक कदम उठाया था जब उसने GPAI के टोक्यो शिखर सम्मेलन के दौरान सदस्य देशों से अनुरोध किया कि यूज़र को नुकसान से बचाने और इंटरनेट एवं AI की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए डेटा गवर्नेंस पर नियमों एवं गाइडलाइन की एक साझा रूप-रेखा पर मिलकर काम किया जाए.
निष्कर्ष
सॉयल एनेलिसिस जैसे खेती के काम से लेकर बेहतर हेल्थ डायग्नोस्टिक जैसे मेडिकल क्षेत्र में इस्तेमाल और सॉफ्टवेयर के ज़रिए कलाकृतियां बनाने तक AI टेक्नोलॉजी और इनोवेशन में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाने के कगार पर है. भारत को इस क्रांति में सबसे आगे रहने और AI तकनीक़ के सुरक्षित एवं न्यायसंगत विकास में सक्रिय भूमिका निभाने को सुनिश्चित करने की ज़रूरत है.
प्रतीक त्रिपाठी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्युरिटी, स्ट्रैटजी एंड टेक्नोलॉजी में प्रोबेशनरी रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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