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यह लेख “सागरमंथन एडिट 2024” निबंध श्रृंखला का हिस्सा है.
हिंद महासागर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है. अपनी भौगोलिक स्थिति और इससे होकर गुज़रने वाले व्यापारिक मार्गों पर समुद्री डकैती और क्षेत्रीय संघर्षों जैसे नए उभरते ख़तरों को देखते हुए हिंद महासागर की सामरिक अहमियत काफ़ी बढ़ गई है. यही नहीं, हाल के दशकों में जलवायु परिवर्तन ने समुद्री तूफ़ानों, बाढ़, सूखे और हीटवेव की समस्याओं को और बढ़ा दिया है. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के पैनल (IPCC) की 2021 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 1950 के दशक से हिंद महासागर, दुनिया के अन्य महासागरों की तुलना में कहीं अधिक तेज़ी से गर्म हो रहा है. इस वजह से दुनिया के लिए अहम इस महासागर और इसके इर्द गिर्द आबाद देशों के सामने खड़ी चुनौतियों में एक और आयाम जुड़ जाता है.
अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक हिंद महासागर क्षेत्र में दुनिया में सबसे ज़्यादा जनसंख्या घनत्व होगा और लगभग 34 करोड़ लोग इसके जोखिम वाले तटीय इलाक़ों में रह रहे होंगे.
अनुमान लगाया गया है कि 2030 तक हिंद महासागर क्षेत्र में दुनिया में सबसे ज़्यादा जनसंख्या घनत्व होगा और लगभग 34 करोड़ लोग इसके जोखिम वाले तटीय इलाक़ों में रह रहे होंगे. बंगाल की खाड़ी में दुनिया के केवल 5 प्रतिशत समुद्री तूफ़ान आते हैं. लेकिन, समुद्री तूफ़ानों से दुनिया भर में होने वाली मौतों में इसका 80 प्रतिशत हिस्सा है. तेज़ी से बढ़ती आबादी, समुद्र का बढ़ता स्तर और समुद्री तूफ़ानों की संख्या में बढ़ोत्तरी ने इस क्षेत्र की असुरक्षा और यहां रह रहे लोगों की नाज़ुक स्थिति में और इज़ाफ़ा कर दिया है. इसके अलावा बार बार आने वाली भयंकर हीटवेव का भी लोगों की सेहत पर गंभीर असर पड़ने वाला है. आब-ओ-हवा में आ रही इस गर्माहट और जलवायु परिवर्तन के अन्य दुष्प्रभावों से पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में मछलियों की तादाद में गिरावट आने की आशंका है. जिसका तुलनात्मक रूप से सबसे ज़्यादा बुरा असर हिंद महासागर के तटीय देशों पर बड़ेगा, जो मछली मारने पर निर्भर हैं और उनके पास जलवायु परिवर्तन के झटकों से निपट पाने की क्षमता बहुत सीमित है. इन देशों में भारत, इंडोनेशिया, मैडागास्कर, मोज़ांबिक, पाकिस्तान, श्रीलंका, तंज़ानिया और थाईलैंड शामिल हैं. हिंद महासागर के पर्यावरण और इसकी आब-ओ-हवा में आते बदलावों का ब्लू इकॉनमी, जहाजों की आवाजाही और भू-राजनीतिक पर भी गहरा असर पड़ने वाला है.
हिंद प्रशांत की महत्ता
विशाल समुद्र तटीय सीमा वाला देश होने की वजह से भारत की भौगोलिक स्थिति उसे हिंद महासागर में एक सामरिक दबदबे की हैसियत देती है. आज जब दुनिया के आर्थिक केंद्र पश्चिम से पूरब की तरफ़ आ रहे हैं, तो हिंद प्रशांत की भू-आर्थिक परिकल्पना हाल के दिनों में काफ़ी अहमियत हासिल करती जा रही है. हिंद प्रशांत क्षेत्र की परिकल्पना के दायरे में अमेरिका के पश्चिमी तट से लेकर पश्चिमी अफ्रीका का इलाक़ा आता है. इस इलाक़े में दुनिया की लगभग 65 प्रतिशत आबादी के साथ साथ दुनिया की 60 प्रतिशत से अधिक GDP आती है. दुनिया का क़रीब 46 प्रतिशत कारोबार इसी हिंद प्रशांत क्षेत्र से होकर गुज़रने वाले समुद्री मार्गों (SLOC) के ज़रिए किया जाता है. इस वजह से हिंद महासागर के समुद्री मार्गों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. इसी वजह से समुद्र क्षेत्र में दबदबा क़ायम करने की भारत की महत्वाकांक्षाएं उसकी एक क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति बनने की आकांक्षाओं से बड़ी नज़दीकी से जुड़ी हुई हैं.
समुद्र क्षेत्र में दबदबा क़ायम करने की भारत की महत्वाकांक्षाएं उसकी एक क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति बनने की आकांक्षाओं से बड़ी नज़दीकी से जुड़ी हुई हैं.
इन समुद्री व्यापारिक मार्गों को सुरक्षित बनाने और बहुपक्षीय सरकारी गठबंधनों और क्षेत्रीय बहुपक्षीय संगठनों के ज़रिए आर्थिक सहयोग बढ़ाने में भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. ख़ास तौर से भारत इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) और दि इंडियन ओशन नेवल सिंपोज़ियम (IONS) जैसे ढांचों के भीतर काम करते हुए क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और बाहरी ताक़तों की पैठ को चुनौती देने का काम करता है.
हिंद प्रशांत क्षेत्र में मलक्का की जलसंधि दुनिया के सबसे व्यस्त और सबसे अहम समुद्री मार्गों में से एक है और ये भू-राजनीतिक टकराव की आशंका वाले एक अहम ठिकाने के तौर पर भी देखा जाता है. लाल सागर को हिंद महासागर से जोड़ने वाली बाब-अल-मंदेब की जलसंधि भी वैश्विक समुद्री कारोबार और ऊर्जा के व्यापार के एक अहम मार्ग का कार्य करती है. यूरोप और एशिया के देशों को तेल निर्यात करने वाले खाड़ी देशों के लिए तो ये जलसंधि विशेष रूप से अहम है. यमन और हॉर्न ऑफ अफ्रीका में संघर्षों की वजह से इस क्षेत्र में पैदा हुई अस्थिरता, पहुंच और वस्तुओं की निर्बाध आवाजाही पर सीधा असर डालती है. इसी तरह होरमुज़ की जलसंधि, दुनिया के सामरिक रूप से सबसे संकुचित क्षेत्रों में से एक है, जो खाड़ी देशों से तेल के निर्यात का सबसे बड़ा समुद्री रास्ता है. संघर्ष हों या फिर सैन्य तनाव, किसी भी वजह से अगर होर्मुज की जलसंधि से जहाज़ों की आवाजाही रुकती है, तो इसके असर से पूरी दुनिया के तेल बाज़ार हिल जाते हैं, जिनसे पूरी दुनिया को ज़बरदस्त आर्थिक झटके लगते हैं.
इन समुद्री संधियों की सामरिक अहमियत ने दुनिया की बड़ी ताक़तों और विशेष रूप से भारत और चीन के बीच प्रतिद्वंद्विता को बढ़ा दिया है. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ भारत की क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग (QUAD) के ज़रिए सामरिक साझेदारी का मक़सद इन अहम समुद्री मार्गों के रास्ते व्यापारिक जहाज़ों की स्वतंत्र रूप से आवाजाही और सुरक्षा सुनिश्चित करना है, ताकि इस क्षेत्र में चीन की दख़लंदाज़ी न बढ़ सके. इस संदर्भ में क्वाड के अन्य सदस्यों के साथ भारत के गठबंधन इन समुद्री रास्तों की सुरक्षा के लिहाज़ से काफ़ी महत्वपूर्ण हो जाते हैं. क्योंकि, आज जब चीन की भौगोलिक उपस्थिति बढ़ रही है, तो इन समुद्री मार्गों की सुरक्षा बनाए रखने से क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक सुरक्षा बनाए रखने में मदद मिलती है.
भारत और चीन दोनों ही विश्व व्यवस्था बनाए रखने में भी काफ़ी दिलचस्पी ले रहे हैं, क्योंकि उभरती हुई ताक़तों के तौर पर दोनों को इसका ख़ूब लाभ मिला है.
हिंद महासागर, अमेरिका और उभरते हुए प्रतिद्वंदियों चीन व भारत के बीच ताक़त की होड़ के लिहाज़ से जंग का एक अहम मोर्चा है. चीन और भारत दोनों ही हिंद महासागर में अपनी नौसैनिक उपस्थिति बढ़ाना चाहते हैं. लेकिन, आपसी अविश्वास का उनका इतिहास दोनों देशों में एक दूसरे के प्रति भरोसा करने से रोकती है. ये आयाम ही ये तय करता है कि हर देश हिंद महासागर को किस नज़रिए से देखता है. जिसकी वजह से दोनों ही देश इस महासागर को अपनी विशेष स्थिति और ज़िम्मेदारियों की नज़र से देखते हैं. हो सकता है कि ये आने वाले समय में संघर्ष का एक कारण बन जाए. लेकिन, इससे ये भी पता चलता है कि भारत और चीन, दोनों ही समुद्री व्यापारिक मार्गों (SLOCs) की सुरक्षा बनाए रखने की अहमियत को स्वीकार करते हैं. हिंद महासागर क्षेत्र(IOR) में भारत और चीन के बीच प्रतिद्वंद्विता को लेकर चर्चाएं तो बहुत होती हैं. लेकिन अभी भी समुद्री संघर्ष के संभावित बिंदु प्रशांत क्षेत्र और विशेष रूप से साउथ चाइना सी, पूर्वी चीन सागर और ताइवान जलसंधि में ही केंद्रित हैं.
अमेरिका चाहता है कि भारत, दक्षिणी पूर्वी एशिया में ज़्यादा बड़ी भूमिका अदा करे. अमेरिका, भारत के साथ एक सामरिक साझेदारी विकसित करने में जुटा हुआ है, ताकि हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे का मुक़ाबला किया जा सके. हालांकि, अमेरिका के सामने पूरी दुनिया में तमाम चुनौतियां खड़ी हैं, जिनकी वजह से भारत के साथ उसकी ऐसी साझेदारी बढ़ाने की संभावनाओं में जटिलताएं आ सकती हैं. इसके बावजूद, भारत और चीन के बीच प्रतिद्वंद्विता के खुले संघर्ष में तब्दील होने की आशंका बहुत कम है. क्योंकि दोनों ही देश एक दूसरे पर अविश्वास करने के साथ ही साथ लंबे समय से अपने जटिल संबंधों को बख़ूबी संभालते भी आए हैं. भारत और चीन दोनों ही विश्व व्यवस्था बनाए रखने में भी काफ़ी दिलचस्पी ले रहे हैं, क्योंकि उभरती हुई ताक़तों के तौर पर दोनों को इसका ख़ूब लाभ मिला है.
ब्लू इकॉनमी
इस समुद्री क्षेत्र में अमेरिका की मज़बूत उपस्थिति से इलाक़े में स्थिरता बनी रहती है और चीन के इस क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव का जवाब दे पाने में भी मदद मिलती है. वैसे तो चीन, हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है. लेकिन जहां तक क्षमताओं की बात है, तो अमेरिकी नौसेना उससे बहुत आगे है. चूंकि, चीन सुरक्षित समुद्री व्यापारिक मार्गों पर आर्थिक रूप से बहुत अधिक निर्भर है. ऐसे में वो निकट भविष्य में हिंद महासागर में किसी बड़े नौसैनिक संघर्ष में नहीं उलझना चाहेगा.
नए उभरते भू-राजनीतिक समीकरणों और बड़ी ताक़तों के बीच होड़ के बीच हिंद महासागर में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी भयंकर चुनौतियां भारत के लिए चिंता का विषय बनी हुई हैं. विशेष रूप से हिंद महासागर के तटीय क्षेत्र में आबाद उन देशों को लेकर, जहां के लोगों की रोज़ी रोटी अपनी नई उभरती ब्लू इकॉनमी पर बहुत अधिक निर्भर है. इनमें से ज़्यादातर चुनौतियों का सीधा असर भारत पर पड़ेगा. ऐसे में भारत के लिए ब्लू इकॉनमी कूटनीति का ऐसा औज़ार हो सकती है, जिसका इस्तेमाल वो हिंद महासागर के इर्द गिर्द बसे देशों के साथ करना चाहेगा.
हिंद महासागर के इर्द गिर्द बसे देशों को ब्लू इकॉनमी से जुड़ी नीतियों पर काम करना होगा, ताकि इस समुद्री क्षेत्र के इकोसिस्टम की रक्षा करने के साथ साथ टिकाऊ विकास भी सुनिश्चित किया जा सके. इसके लिए, इलाक़ों को लेकर ऐसी योजनाएं बनानी होगी, जो पर्यावरण की चिंताओं का ध्यान रखे, मछली पकड़ने और समुद्री जीवों के पालन के साथ साथ स्थानीय स्तर पर उत्पादन, उभरते उद्योगों, व्यापार, पर्यटन, तकनीक और कौशल विकास को बढ़ावा दें. इसके अलावा, लॉजिस्टिक्स और जहाज़ों की आवाजाही के लिए मूलभूत ढांचे को बढ़ावा देने, अक्षय समुद्री ऊर्जा के विकास के अलावा रिसर्च और विकास को बढ़ावा देने पर लगातार ध्यान केंद्रित किए रहना होगा. इस इलाक़े की स्थिरता मोटे तौर पर ब्लू इकॉनमी की ऐसी नीतियों पर निर्भर करेगी, जो महासागरों की सामरिक अहमियत और अंतरराष्ट्रीय समुद्री सहयोग पर ज़ोर दे.
ब्लू इकॉनमी को लेकर भारत की नीति ठोस अवसर उपलब्ध करती है. इसका एक प्राथमिक लक्ष्य, भारत को जहाज़ों के रख-रखाव और मरम्मत के केंद्र के तौर पर विकसित करके दुनिया के शिपिंग उद्योग में भारत की उपस्थिति का विस्तार करना है, जिससे आर्थिक और भू-राजनीतिक दोनों ही लाभ हो सकते हैं.
ब्लू इकॉनमी को लेकर भारत की नीति ठोस अवसर उपलब्ध करती है. इसका एक प्राथमिक लक्ष्य, भारत को जहाज़ों के रख-रखाव और मरम्मत के केंद्र के तौर पर विकसित करके दुनिया के शिपिंग उद्योग में भारत की उपस्थिति का विस्तार करना है, जिससे आर्थिक और भू-राजनीतिक दोनों ही लाभ हो सकते हैं. समुद्र के तट पर सौर और पवन ऊर्जा के विकास में भी भारत की बढ़ती हुई ऊर्जा की मांग पूरी करने के लिहाज़ से काफ़ी संभावनाएं हैं इसके अतिरिक्त एक्वाकल्चर और मरीन बायोटेक्नोलॉजी से भारत की खाद्य सुरक्षा को बेहतर बनाया जा सकता है और समुद्र के अच्छे और स्वस्थ इकोसिस्टम को भी बढ़ावा दिया जा सकता है.
निष्कर्ष
हिंद प्रशांत क्षेत्र दुनिया के आर्थिक केंद्र के तौर पर उभरा है. जिसकी वजह से इस इलाक़े के सामने भू-राजनीतिक और भू-सामरिक अवसर भी पैदा हुए हैं और चुनौतियां भी. एक तरफ़ तो हिंद प्रशांत के आर्थिक विकास में सहयोग को बढ़ावा देने की भी संभावनाएं हैं, जिससे करोड़ों लोगों को ग़रीबी रेखा से बाहर निकालकर उनके रहन सहन को बेहतर बनाया जा सकता है. वहीं दूसरी तरफ़ इस क्षेत्र की बढ़ती आर्थिक और सैन्य शक्ति पास पड़ोस के देशों के बीच आपसी अविश्वास को भी बढ़ावा दे रही है, जिससे बड़ी तेज़ी से बदल रही दुनिया में मुक़ाबला करने के साथ साथ आपसी तालमेल को बढ़ावा देने के बीच संतुलन बनाने जैसी जटिलताएं भी बढ़ रही हैं. वैसे तो भारत एक सावधान समुद्री शक्ति बना हुआ है. लेकिन, उसका ज़ोर हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) अपने मूलभूत हितों को सुरक्षित करने पर है. भारत के हित सुरक्षा की पारंपरिक चुनौतियों के साथ साथ जलवायु परिवर्तन जैसी सुरक्षा की अपारंपरिक चुनौतियों से भी गहराई से जुड़े हैं.
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