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व्यापार में झटकों और आपूर्ति श्रृंखला के ज़ोखिमों ने देशों को पुराने मॉडलों पर फिर से विचार करने के लिए मज़बूर किया है. भारत और ऑस्ट्रेलिया के लिए गहरे आर्थिक संबंध एक मज़बूत, ज़्यादा लचीली और झटकों को सहने में सक्षम आपूर्ति श्रृंखला बनाने का रास्ता दिखाते हैं.
Image Source: Getty
व्यापार के पारंपरिक सिद्धांतों के बारे में कहा जाता है कि वो तुलनात्मक लाभ के सिद्धांत पर केंद्रित होते हैं. आम तौर पर देश उन वस्तुओं के उत्पादन में विशेषज्ञता रखते हैं, जिन्हें वो सबसे अधिक कुशलता से (कम लागत पर) बना सकते हैं. वहीं दूसरी तरफ उन वस्तुओं का आयात करते हैं जिन्हें वे नहीं बना सकते. हालांकि, हाल के वर्षों में वैश्विक व्यापार परिदृश्य में बड़ा बदलाव आया है. पारंपरिक आपूर्ति श्रृंखलाओं की कमज़ोरियां उजागर हुई हैं. कोविड-19 महामारी, भू-राजनीतिक संघर्ष, जलवायु संकट की समस्या और संरक्षणवादी नीतियों के उदय को इसकी बड़ी वजह माना जा रहा है. व्यापार में व्यवधान ये बताने के लिए काफ़ी हैं कि ट्रेड नेटवर्क में विविधता और लचीलापन कितना ज़रूरी है. ऐसा होने पर विशिष्ट उद्योगों, बाज़ारों या आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम होती है. जैसे-जैसे देश इस बदलते हुए परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे दीर्घकालिक आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक हो गया है. इसके लिए अनुकूल और मजबूत आपूर्ति श्रृंखलाओं को बढ़ावा देना एक रणनीतिक अनिवार्यता बन गई है. इस संदर्भ में देखें तो भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार सहयोग जैसी साझेदारियां व्यापार में बाहरी झटकों के खिलाफ़ लचीलापन बनाने और आपूर्ति नेटवर्क को सुरक्षित करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं.
इस संदर्भ में देखें तो भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार सहयोग जैसी साझेदारियां व्यापार में बाहरी झटकों के खिलाफ़ लचीलापन बनाने और आपूर्ति नेटवर्क को सुरक्षित करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं.
संरक्षणवादी नीतियों के फिर से उभरने से वैश्विक व्यापार परिदृश्य को नए सिरे से परिभाषित किया जा रहा है. इसकी शुरुआत ट्रंप प्रशासन ने की. नई टैरिफ व्यवस्था में कनाडा और मेक्सिको से आयात पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाया गया है. चीन की वस्तुओं पर 10 प्रतिशत टैरिफ और कनाडा के ऊर्जा निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है. जवाब में इन देशों ने भी टैरिफ दर बढ़ाई है. चीन ने अमेरिका के कृषि और विमानन निर्यात पर जवाबी शुल्क लगाया, जबकि कनाडा और मैक्सिको ने भी टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं के साथ जवाब दिया. इन व्यापार युद्धों ने उद्योगों की लागत बढ़ा दी है. जल्दी खराब होने वाली चीजें हो या फिर धातुओं से लेकर ऊर्जा तक की लागत बढ़ गई है. मध्यस्थता यानी समझौता कराने वाले भी बेअसर साबित हो रहे हैं, जिससे अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ गया है. इसी का नतीजा है कि अब आपूर्ति श्रृंखलाओं का वैश्विक स्तर पर पुनर्गठन हो रहा है. विभिन्न देशों को कारोबार से लेकर वैकल्पिक व्यापार मार्गों और नई सोर्सिंग रणनीतियों की तलाश करने पर मज़बूर होना पड़ रहा है.
उदाहरण के लिए, अमेरिका को एवोकाडो का सबसे बड़ा निर्यातक मेक्सिको है, लेकिन टैरिफ बढ़ने के बाद मेक्सिको अब होंडुरास और ग्वाटेमाला के साथ व्यापार संबंधों को मज़बूत कर विविधीकरण की संभावना तलाश रहा है. भारत की बात करें तो वो सबसे अधिक टैरिफ लगाने वाले देशों में से एक है, जिसकी औसत दर 12 प्रतिशत है. ट्रंप ने भारत की 'टैरिफ किंग' के रूप में ब्रांडिंग की थी. टैरिफ के मामले में अमेरिका ने भारत के खिलाफ़ जैसे को तैसा रुख़ अपनाना चाहता है. अमेरिकी टैरिफ बढ़ने की संभावना भारत के संरक्षणवादी रुख़ का पुनर्मूल्यांकन करने की मांग करती है. इस बीच भारत ने भी आर्थिक एकीकरण को मज़बूत करने के लिए टैरिफ में धीरे-धीरे कमी लाने की बात कही है. हालांकि, इस तरह के बदलाव में कुछ ऐसे समझौते भी करने होते हैं, जो शायद बहुत पसंद ना हों, विशेष रूप से आयात डंपिंग से बचाव और उभरते संभावित व्यापार रुख़ से जो भू-राजनीतिक संकेत सामने आते हैं, उसमें संतुलन बैठाना एक चुनौती होती है.
व्यापार में लगने वाले झटकों को मोटे तौर पर दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता. पूर्वानुमानित झटके, जैसे कि मौजूदा दौर में टैरिफ-संबंधी व्यवधान, और अप्रत्याशित झटके, जैसे कि प्राकृतिक आपदाएं. व्यवधान चाहे जिस भी प्रकार का हो, व्यापार प्रणालियां ऐसी होनी चाहिए, जो इन झटकों से पर्याप्त रूप से अलग रह सकें या उन्हें झेलने में सक्षम हों. आर्थिक सिद्धांत प्रतिक्रिया इसके लिए कई नीतिगत उपकरण प्रदान करती है, जिसमें आयात प्रतिस्थापन, निर्यात को प्रोत्साहन, उत्पादकों को सब्सिडी और विभिन्न गैर-टैरिफ संरक्षणवादी तरीके शामिल हैं. हालांकि, इन उपायों के वित्तीय प्रभाव मिश्रित हो सकते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि व्यापार के पैटर्न और आपूर्ति श्रृंखलाओं को फिर से व्यवस्थित किए जाने की ज़रूरत है, चाहे वह सक्रिय रूप से (घटना से पूर्व) हो या प्रतिक्रियात्मक रूप से (घटना के बाद). भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच विकसित हो रहे व्यापार संबंध ऐसी ही अनुकूल रणनीतियों का एक बेहतरीन उदाहरण है.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि व्यापार के पैटर्न और आपूर्ति श्रृंखलाओं को फिर से व्यवस्थित किए जाने की ज़रूरत है, चाहे वह सक्रिय रूप से (घटना से पूर्व) हो या प्रतिक्रियात्मक रूप से (घटना के बाद). भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच विकसित हो रहे व्यापार संबंध ऐसी ही अनुकूल रणनीतियों का एक बेहतरीन उदाहरण है.
भारत और ऑस्ट्रेलिया मुख्य रूप से खनिजों, मोतियों, धातुओं और अयस्कों के द्विपक्षीय व्यापार में संलग्न हैं. वित्त वर्ष 2023-24 तक द्विपक्षीय व्यापार 24 अरब डॉलर है. भारत का ऑस्ट्रेलिया के साथ ट्रेड सरप्लस करीब 8.2 अरब डॉलर है. व्यापार संबंधों को मज़बूत करने और भारत-ऑस्ट्रेलिया आपूर्ति श्रृंखलाओं में लचीलापन और स्पष्टता बढ़ाने के लिए कई सहकारी और एकीकृत पहल की गई हैं. मुक्त व्यापार समझौते, अनुदान, बहु-स्तरीय वार्ता, नए व्यापार क्षेत्रों की रणनीतिक खोज, कौशल और मानव पूंजी का हस्तांतरण जैसे तरीके द्विपक्षीय व्यापार संबंधों को मज़बूत करते हैं. इतना ही नहीं ये वैश्विक व्यापार झटकों और उभरते नए व्यापारिक समीकरणों के विरुद्ध सुरक्षा भी प्रदान करते हैं. अमेरिका के साथ व्यापार में भारत को टैरिफ झटकों लग सकते हैं. वैश्विक व्यापार में भी अस्थिर माहौल दिख रहा है. इस सबके बीच भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार संबंध और नीतियां भारत के अन्य व्यापारिक भागीदारों को नए संकेत दे सकती हैं. व्यापार के लिए ये देश ‘सार्वभौमिक’ के बजाय ‘देश-विशिष्ट’ नीति अपनाने के लिए प्रेरित हो सकते हैं.
भारत अब एकल-बाज़ार, एकल-उत्पाद व्यापार मॉडल से हटकर एकीकृत मूल्य श्रृंखलाओं को बढ़ावा देता है. इससे आर्थिक झटकों का सामना करने में मदद मिलती है. सुदूर पूर्व के देशों और ऑस्ट्रेलिया के साथ सहयोग ने आर्थिक साझेदारी को गहरा करने के साथ ही आपूर्ति-श्रृंखला सुरक्षा को मज़बूत किया है। भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के बीच आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन पहल (एससीआरआई) का उद्देश्य व्यापार साझेदारी, डिजिटल व्यापार और ज़ोखिम का सामना करने की रणनीतियों को बढ़ावा देना है. इससे आपूर्ति श्रृंखलाओं को मज़बूती मिलेगी. इस त्रिपक्षीय पहल में आपूर्ति-श्रृंखला दक्षता को अनुकूलित करने के लिए तेज़ी से डिजिटल तकनीक अपनाई जा रही है. इससे व्यापार और निवेश विविधीकरण को बढ़ावा देकर लचीलापन लाने में मदद मिलेगी.
ऑस्ट्रेलिया-भारत आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (ईसीटीए) ने दोनों देशों के बीच वस्तुओं की शुल्क-मुक्त आवाजाही को और भी आसान बना दिया है. इस समझौते के कार्यान्वयन के बाद सोने से जड़े हीरे और टर्बोजेट जैसी नई निर्यात श्रेणियों के उभरने से द्विपक्षीय व्यापार दोगुना हो गया है. व्यापार में आई इस विविधता ने आपूर्ति श्रृंखलाओं को व्यापक आर्थिक झटकों से बचाया है, जिससे निरंतर विकास सुनिश्चित हुआ है. इसी रास्ते पर आगे बढ़ते हुए भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (सीईसीए) के लिए बातचीत भी चल रही है. ये समझौता भविष्य में व्यापार उदारीकरण और क्षेत्रीय विस्तार का वादा करता है. इसका उद्देश्य एनर्जी सेक्टर में एकल-स्रोत ऊर्जा आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता को कम करना है. भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच महत्वपूर्ण खनिज निवेश साझेदारी पर भी काम चल रहा है. इसका मक़सद खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित और विविधतापूर्ण बनाना है. इसे चीन पर निर्भरता कम होगी, साथ ही बाजार में डंपिंग और आर्थिक दबाव का ज़ोखिम भी कम होगा.
आपूर्ति श्रृंखला के लचीलेपन में सरकारी नीति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. ऑस्ट्रेलिया की ‘मेड एट होम’ मुहिम घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और अर्थव्यवस्था को वैश्विक व्यापार व्यवधानों से बचाने की कोशिशों का उदाहरण है. इसी तरह ‘मेड इन ऑस्ट्रेलिया’ रणनीति अक्षय ऊर्जा यानी रिन्यूएबल एनर्जी के विकास पर ज़ोर देती है और स्थानीय उत्पादन क्षमताओं को मजबूत करती है. ऐसे में भारत के लिए ये आवश्यक होगा कि वो प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजनाओं, डिजिटल व्यापार समझौते और द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते जैसी पहलों का लाभ उठाकर आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क को मज़बूत करें. भारत के पास उन्नत डिजिटल बुनियादी ढांचा है. इसके साथ ही लॉजिस्टिक्स के आधुनिकीकरण और व्यापार सुविधा का आसान बनाने के उपाय खोजे जाने चाहिए. ये सब तरीके ट्रेड इकोसिस्टम की अनुकूलनशीलता और लचीलापन सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.
इसके साथ ही लॉजिस्टिक्स के आधुनिकीकरण और व्यापार सुविधा का आसान बनाने के उपाय खोजे जाने चाहिए. ये सब तरीके ट्रेड इकोसिस्टम की अनुकूलनशीलता और लचीलापन सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.
अंत में ये याद रखना ज़रूरी है कि मौजूदा दौर व्यापार व्यवधानों, आर्थिक झटकों और भू-राजनीतिक समीकरणों में बदलाव का है. ऐसे समय में लचीली और विविधतापूर्ण आपूर्ति श्रृंखलाओं का निर्माण करना महत्वपूर्ण है. भारत-ऑस्ट्रेलिया साझेदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आपूर्ति श्रृंखला का लचीलापन बढ़ाने में सबसे आगे है. स्वच्छ ऊर्जा, प्रौद्योगिकी और उन्नत विनिर्माण में सहयोग की पहल ये सुनिश्चित करेगी कि भारत और ऑस्ट्रेलिया लगातार बदलते और विकसित होती वैश्विक व्यापार व्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभाते रहें.
सौम्या भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक पॉलिसी में फेलो और लीड हैं.
मनीष वैद्य ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.
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Soumya Bhowmick is a Fellow and Lead, World Economies and Sustainability at the Centre for New Economic Diplomacy (CNED) at Observer Research Foundation (ORF). He ...
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