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Published on Jul 05, 2025 Updated 0 Hours ago

खाद्य असुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसी बढ़ती चुनौतियों के बीच कृषि और खाद्य सुरक्षा में भारत-अफ्रीका साझेदारी बहुत महत्वपूर्ण हो गई है. लेकिन भारत का 3A ढांचा क्या है और ये अफ्रीका की वास्तविकताओं के अनुरूप लचीला एवं किफायती समाधान कैसे प्रदान करता है?

भारत के "3A मॉडल" से बदलेगा अफ्रीका का कृषि भविष्य

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खाद्य असुरक्षा एवं जलवायु परिवर्तन जैसी बढ़ती चुनौतियों और कृषि परिवर्तन की तत्काल आवश्यकता के बीच कृषि और खाद्य सुरक्षा में भारत-अफ्रीका की साझेदारी तेज़ी से महत्वपूर्ण हो गई है. इस क्षेत्र में दोनों पक्षों के बीच तालमेल का पुराना इतिहास रहा है. 

एक तरफ तो अफ्रीका में औद्योगीकरण और ग़रीबी उन्मूलन के लिए खेती बुनियाद है, वहीं दूसरी तरफ ये जलवायु से जुड़े ख़तरों, कमज़ोर बुनियादी ढांचे और वित्त एवं तकनीक तक सीमित पहुंच की वजह से बेहद असुरक्षित है.

विरोधाभास का सामना कर रहा अफ्रीका 

पिछले कुछ दशकों के दौरान सूखा, अनिश्चित बारिश, तेज़ गर्मी और तूफान समेत मौसम से जुड़ी चरम घटनाओं ने अफ्रीका की कृषि को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. 1970 और 2020 के बीच सूखा और भारी बारिश बार-बार जलवायु से जुड़ा ख़तरा लेकर आई है. ये इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अफ्रीका में खेती का ज़्यादातर हिस्सा सिंचाई की तुलना में बारिश पर ज़्यादा निर्भर करता है. मौसम से जुड़ी ये अनिश्चितता उत्पादन में तेज़ गिरावट का कारण बनती है. 

एक तरफ तो अफ्रीका में औद्योगीकरण और ग़रीबी उन्मूलन के लिए खेती बुनियाद है, वहीं दूसरी तरफ ये जलवायु से जुड़े ख़तरों, कमज़ोर बुनियादी ढांचे और वित्त एवं तकनीक तक सीमित पहुंच की वजह से बेहद असुरक्षित है.

इसके अलावा, किसानों को अक्सर आधुनिक बुनियादी ढांचे, बाज़ार के विश्वसनीय डेटा, वित्तीय सेवाओं और कृषि विस्तार में सहायता के मामले में जूझना पड़ता है. जलवायु परिवर्तन के नतीजे किसानों तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि उनका विस्तार पूरी कृषि मूल्य श्रृंखला के आगे तक है जिनमें संसाधक (प्रोसेसर), वितरक और उपभोक्ता शामिल हैं. इन चुनौतियों को हल करने के लिए एक एकीकृत, मूल्य श्रृंखला (वैल्यू चेन) आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो जलवायु अनुकूलन और राहत का समर्थन करता है ताकि प्रतिस्पर्धा और स्थिरता सुनिश्चित की जा सके.

अफ्रीका एक विरोधाभास का सामना करता है. कृषि जहां अफ्रीका के कुल वर्कफोर्स में से 65 प्रतिशत लोगों को रोज़गार देती है, वहीं अफ्रीका की GDP में उसका योगदान कम, लगभग 15 प्रतिशत, बना हुआ है. इसके अलावा, खाद्य आयात पर अफ्रीका की निर्भरता बहुत ज़्यादा है. साल 2000 से सब-सहारन अफ्रीका (सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित इलाका) में खाद्य के घरेलू उत्पादन की तुलना में आयात में तेज़ बढ़ोतरी हुई है. पिछले साल तक अफ्रीका ने हर साल लगभग 50 अरब अमेरिकी डॉलर का खाद्य आयात किया और पूरे विश्व में संघर्ष को देखते हुए ये आंकड़ा इस साल के अंत तक 90-110 अरब डॉलर पहुंचने वाला है.

प्रमुख पहल के माध्यम से कृषि विकास 

खाद्य आयात पर अफ्रीका की निर्भरता उसे बाहरी उथल-पुथल से विशेष तौर पर असुरक्षित बनाती है. उदाहरण के लिए, कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष ने अफ्रीका की फूड सप्लाई चेन को गंभीर रूप से बाधित किया. रूस-यूक्रेन युद्ध, जिसकी वजह से गेहूं और उर्वरक के वैश्विक निर्यात में रुकावट आई, से पूरे अफ्रीका के बाज़ार में खाद्य के दाम में पर्याप्त बढ़ोतरी दर्ज की गई. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार 2020 और 2022 के बीच सब-सहारन अफ्रीका में खाने-पीने के सामान की कीमत में लगभग 24 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ. 

इसलिए फसल कटने के बाद के नुकसान, जो अक्सर 30 प्रतिशत के पार चला जाता है, का समाधान करना और जलवायु के अनुकूल कृषि पद्धतियों को आगे बढ़ाना इस क्षेत्र को मज़बूत करने और अफ्रीका की बढ़ती युवा जनसंख्या के लिए स्थिर रोज़गार के अवसरों का निर्माण करने के उद्देश्य से आवश्यक है. 

कृषि के महत्व को स्वीकार करते हुए अफ्रीकन यूनियन (AU) और अफ्रीकन डेवलपमेंट बैंक (AfDB) ने प्रमुख पहलों के माध्यम से कृषि विकास को प्राथमिकता दी है. AU के “प्रमुख 5” एजेंडा में से एक “फीड अफ्रीका” पहल है जिसका उद्देश्य कमोडिटी (वस्तुओं) का मूल्य बढ़ाकर कृषि को व्यवसाय में बदलना है. इस पहल का एक और लक्ष्य अफ्रीका के कृषि व्यवसाय की क्षमता, जो कि एक अनुमान के मुताबिक इस साल के अंत तक 100 अरब डॉलर के पार हो जाएगी, को बढ़ावा देते हुए 32 करोड़ लोगों को ग़रीबी से बाहर निकालना है. 

इसी तरह, एजेंडा 2063 के तहत व्यापक अफ्रीका कृषि विकास कार्यक्रम (CAADP) का लक्ष्य टिकाऊ भूमि एवं जल प्रबंधन को बढ़ावा देकर, बाज़ार तक पहुंच में सुधार करके, खाद्य उपलब्धता बढ़ाकर और कृषि अनुसंधान एवं तकनीक हस्तांतरण को आगे बढ़ाकर भूखमरी का उन्मूलन और ग़रीबी में कमी है. 

अफ्रीका में कृषि क्षेत्र के कायापलट में भारत की भूमिका 

खेती के मामले में अफ्रीका के कायापलट में भारत एक रणनीतिक साझेदार बन गया है. वैसे तो ये साझेदारी धीरे-धीरे विकसित हुई लेकिन हाल के वर्षों में कृषि विकास, खाद्य प्रसंस्करण, प्रशिक्षण, तकनीक हस्तांतरण और निजी निवेश जैसे क्षेत्रों में सहयोग में काफी बढ़ोतरी देखी गई है. ये तालमेल मुख्य रूप से द्विपक्षीय सरकारी सहयोग और निजी क्षेत्र के साथ हिस्सेदारी के माध्यम से काम करता है.  

सरकारी स्तर पर देखें तो भारत ने अफ्रीका के कई देशों को सॉफ्ट लोन, प्रशिक्षण कार्यक्रम और तकनीकी सहायता प्रदान की है. इन प्रयासों का लक्ष्य खेती की पद्धतियों, सिंचाई प्रणाली, मिट्टी की गुणवत्ता और मशीनीकरण में सुधार करना है.  

सरकारी स्तर पर देखें तो भारत ने अफ्रीका के कई देशों को सॉफ्ट लोन (बिना ब्याज या बाज़ार दर से कम ब्याज पर कर्ज़), प्रशिक्षण कार्यक्रम और तकनीकी सहायता प्रदान की है. इन प्रयासों का लक्ष्य खेती की पद्धतियों, सिंचाई प्रणाली, मिट्टी की गुणवत्ता और मशीनीकरण में सुधार करना है.  

उदाहरण के लिए, अंगोला को ट्रैक्टर और खेती की मशीन ख़रीदने के साथ-साथ एक फूड प्रोसेसिंग बिज़नेस इनक्यूबेशन सेंटर स्थापित करने की योजना के लिए भारत के एग्ज़िम बैंक से 23 मिलियन डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट (LoC) प्राप्त हुई. ज़िम्बाब्वे को रूरल टेक्नोलॉजी पार्क, फूड टेस्टिंग लैबोरेटरी और वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर स्थापित करने में सहायता मिली.  

इसी तरह, लेसोथो को कृषि उपकरण के लिए 5 मिलियन डॉलर की LoC मिली जबकि मलावी को बिज़नेस इनक्यूबेशन सेंटर विकसित करने के लिए 1 मिलियन डॉलर मिला. ये सेंटर फसल प्रसंस्करण, कम्पोस्ट निर्माण और ईंट उत्पादन के लिए कम समय का प्रशिक्षण प्रदान करेगा. 

भारत का निजी क्षेत्र 

भारत-अफ्रीका कृषि सहयोग को मज़बूत करने में भारत का निजी क्षेत्र भी निर्णायक रहा है. भारत की कई कंपनियों ने अफ्रीका के अलग-अलग देशों में खाद्य प्रसंस्करण के बुनियादी ढांचे में निवेश किया है. उदाहरण के लिए, ज़िम्बाब्वे के इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन और भारत की मिडेक्स ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड के बीच साझा उपक्रम सरफेस विलमर ने हरारे के नज़दीक खाद्य तेल के उत्पादन की फैक्ट्री का निर्माण करने के लिए लगभग 1.5 मिलियन डॉलर का निवेश किया. ये फैक्ट्री दक्षिणी अफ्रीका में खाद्य तेल का सबसे बड़ा उत्पादक बन गई है. 

अफ्रीका के कृषि क्षेत्र में सक्रिय अन्य उल्लेखनीय भारतीय कंपनियों में ETG (एक्सपोर्ट ट्रेडिंग ग्रुप) शामिल है. तंज़ानिया, केन्या, मलावी, मोज़ाम्बिक, नाइजीरिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में काम करने वाली ये कंपनी सबसे बड़े एकीकृत कृषि समूहों में से एक है. अफ्रीकन डेवलपमेंट बैंक ने पिछले दिनों ETG की महिला उद्यमिता एवं रोजगारपरकता परियोजना की सहायता करने के लिए 1.4 मिलियन डॉलर के अनुदान को मंज़ूरी दी. इसके ज़रिए मोज़ाम्बिक, तंज़ानिया और ज़ाम्बिया में महिलाओं के नेतृत्व वाले 600 व्यवसायों को सशक्त बनाया जाएगा. 

ज़िमगोल्ड ने ज़िम्बाब्वे के खाद्य तेल और कृत्रिम मक्खन उत्पादन क्षेत्र में 40 मिलियन डॉलर का निवेश किया है जिसमें 500 से ज़्यादा लोगों को रोज़गार मिला है. वरुण बेवरेज ने ज़िम्बाब्वे में बॉटलिंग प्लांट और प्यूरी प्रसंस्करण में 250 मिलियन डॉलर के निवेश का वादा किया है. राहा कुकिंग ऑयल ने ज़िम्बाब्व के नॉर्टन में एक प्रोसेसिंग प्लांट शुरू किया है. एशियन टी कंपनी, प्योर डाइट्स, राजारामबाबू ग्रुप और एचके जलान ग्रुप जैसी भारतीय कंपनियां अफ्रीका में वाणिज्यिक कृषि में और निवेश के अवसर का पता लगा रही है. 

मानवीय सहायता और महिला सशक्तिकरण 

इसके अलावा, अफ्रीका में भारत की कृषि भागीदारी में USAID, यूनाइटेड किंगडम के अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग (DFID) जैसी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों और सपोर्टिंग इंडियाज़ ट्रेड प्रीफरेंस फॉर अफ्रीका (SITA) कार्यक्रम के साथ त्रिपक्षीय सहयोग की भूमिका बढ़ती जा रही है. उदाहरण के लिए, खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के साथ त्रिपक्षीय समझौते के माध्यम से भारत ने लेसोथो में खाद्य सुरक्षा और सिंचाई योजना में सुधार का समर्थन करने के लिए कृषि निर्यात भेजा. 

आर्थिक सहयोग से आगे, अफ्रीका में भारत मानवीय सहायता और क्षमता निर्माण में भी योगदान करता है. 

आर्थिक सहयोग से आगे, अफ्रीका में भारत मानवीय सहायता और क्षमता निर्माण में भी योगदान करता है. ज़िम्बाब्वे में सूखा के दौरान भारत ने 2003 में 50,000 टन और 2015 में 500 टन चावल समेत खाद्य सहायता भेजी. इसी तरह, मलावी में 2020 में फसल पैदावार संकट के दौरान 1 मिलियन डॉलर मूल्य के कृषि उपकरण और 1,000 मीट्रिक टन चावल की मदद की गई थी. डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो ने भी भारत की तरफ से दान में भेजे गए ट्रैक्टर और सहायक उपकरणों का लाभ उठाया. 

भारत के सेल्फ-एम्प्लॉयड वुमेंस एसोसिएशन (SEWA) जैसे गैर-सरकारी संगठनों ने ज़मीनी स्तर पर जानकारी के आदान-प्रदान के माध्यम से भारत-अफ्रीका भागीदारी को और गहरा किया है. महिलाओं के स्तर पर SEWA की सशक्तिकरण पहल अफ्रीका की महिलाओं को समर्थ और आत्मनिर्भर बनाने के लिए ग्रामीण भारत के सफल मॉडल को अपनाती है और इस तरह समुदाय आधारित कृषि विकास को मज़बूत बनाती है. 

एकजुट होकर अवसरों का फायदा उठाना 

जलवायु परिवर्तन के असर, जनसांख्यिकीय विकास और भू-राजनीतिक अस्थिरता से निपटने के लिए भारत और अफ्रीका- दोनों एक जैसी चुनौतियों का सामना करते हैं. 2030 तक अफ्रीका का खाद्य बाज़ार बढ़कर 1 ट्रिलियन डॉलर होने की संभावना है और 2050 तक खाद्य की मांग दोगुनी होने का अनुमान है. ये स्थिति खेती के मशीनीकरण, सिंचाई, खाद्य प्रसंस्करण, पोषण प्रबंधन और कृषि अनुसंधान एवं विकास में टिकाऊ निवेश के लिए अपार अवसर प्रस्तुत करती है. 

भारत का अनुभव अफ्रीका के लिए एक महत्वपूर्ण मॉडल पेश करता है. भारत का “3A” ढांचा- यानी एफोर्डेबल (सस्ती), एप्रोप्रिएट (उपयुक्त) और एडेप्टेबल (अनुकूलनीय) तकनीकों को बढ़ावा देना- अफ्रीका की वास्तविकताओं के अनुरूप लचीला, किफायती समाधान प्रदान करता है. 

छोटी जोत वाले किसानों को आधुनिक वैल्यू चेन से जोड़ने, फसल कटने के बाद नुकसान को कम करने और किसानों की आमदनी बढ़ाने में भारत का अनुभव अफ्रीका के लिए एक महत्वपूर्ण मॉडल पेश करता है. भारत का “3A” ढांचा- यानी एफोर्डेबल (सस्ती), एप्रोप्रिएट (उपयुक्त) और एडेप्टेबल (अनुकूलनीय) तकनीकों को बढ़ावा देना- अफ्रीका की वास्तविकताओं के अनुरूप लचीला, किफायती समाधान प्रदान करता है. 

इसके बावजूद, भारत-अफ्रीका कृषि संबंधों को मज़बूत करने के लिए गहरी द्विपक्षीय एवं त्रिपक्षीय साझेदारी, निजी क्षेत्र की ज़्यादा भागीदारी और मज़बूत जानकारी साझा करने वाले मंचों (नॉलेज-शेयरिंग प्लैटफॉर्म) की आवश्यकता होगी. इस तरह का तालमेल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है, समावेशी विकास को बढ़ावा दे सकता है और पूरे महादेश में समर्थ एवं टिकाऊ कृषि-खाद्य प्रणाली का निर्माण कर सकता है. 

भारत की कृषि विशेषज्ञता को अफ्रीका के विशाल प्राकृतिक एवं मानव संसाधनों से मिलाकर ये साझेदारी भविष्य में लोगों को खाना मुहैया कराने, भुखमरी को कम करने और दोनों महादेशों में आर्थिक समृद्धि बढ़ाने में एक आधारशिला बन सकती है. 

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