बीते दिनों चीन ने अपने भूमि सीमा कानून में परिवर्तन किया. अपने आंतरिक कानून में कोई बदलाव करना किसी भी देश का विशेषाधिकार है, लेकिन यदि किसी आंतरिक कानून से क्षेत्रीय अशांति और अस्थिरता की आशंका बढ़े, तो उस पर चिंता होना स्वाभाविक है. चीन के मामले में बिल्कुल ऐसा ही है. यही कारण है कि चीन के इस कदम पर कड़ी प्रतिक्रिया देने में भारत ने कोई विलंब नहीं किया. भारतीय विदेश मंत्रलय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि चीन का यह एकपक्षीय फैसला हमारे लिए चिंता का कारण है, जिसका असर सीमा प्रबंधन को लेकर द्विपक्षीय व्यवस्था और समझ पर पड़ सकता है.
दरअसल, चीन के अतीत और संदिग्ध रवैये के कारण उसके प्रति ऐसी शंकाएं निराधार नहीं लगतीं. इसमें कोई संदेह नहीं कि नए सीमा कानून के पीछे चीन की मंशा सीमावर्ती इलाकों में सरकारी नियंत्रण को और सख्त करना है. अतीत में भी वह ऐसा ही करता रहा है. मिसाल के तौर पर उसने अरुणाचल प्रदेश के आसपास तिब्बत सीमा पर कुछ गांव बसाए. ऐसी बस्तियों को बसाने के पीछे चीन के दो उद्देश्य होते हैं. पहला तो यह कि वह सैन्य और खुफिया पृष्ठभूमि वाले नागरिकों को ऐसे स्थानों पर बसाने के साथ अपनी रणनीतिक क्षमताओं को धार देता है. इससे उसका दूसरा मकसद यह सिद्ध होता है कि सीमा के आसपास की घनी बस्तियों के दम पर वह विवादित क्षेत्रों पर मजबूती से अपना दावा करता है. यह काम वह केवल भारत से सटी सीमा पर ही नहीं करता. दक्षिण चीन सागर इसका एक बड़ा उदाहरण है. अपनी इंजीनियरिंग क्षमताओं से चीन ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों का निर्माण कर उसका तानाबाना ही बिगाड़ दिया है. इस कारण उसका कई पड़ोसियों से विवाद भी जारी है, जिन पर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के फैसले को भी वह मानने से इन्कार करता आया है.
अपनी इंजीनियरिंग क्षमताओं से चीन ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों का निर्माण कर उसका तानाबाना ही बिगाड़ दिया है. इस कारण उसका कई पड़ोसियों से विवाद भी जारी है, जिन पर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के फैसले को भी वह मानने से इन्कार करता आया है.
वैश्विक ढांचे और संस्थाओं में भी भारत का कद लगातार ऊंचा हो रहा है
चीन अब यही दांव भारत से लगी सीमा पर आजमा रहा है. इसके पीछे भी कई कारण हैं. पहला कारण तो यही है कि इस समय दुनिया कोरोना संकट और उससे उपजी दुश्वारियों से जूझने में जुटी है. कई देशों की अर्थव्यवस्था बदहाल है और उनका पूरा ध्यान उसे पटरी पर लाने में लगा हुआ है. ऐसे में चीन को लगता है कि इस स्थिति में वह भारत के साथ आसानी से टकराव मोल ले सकता है और विश्व समुदाय को भी इससे कोई खास सरोकार नहीं होगा. दूसरी वजह भारत की लगातार बढ़ती आर्थिक एवं सैन्य ताक़त है. इसके दम पर वैश्विक ढांचे और संस्थाओं में भी भारत का कद लगातार ऊंचा होता जा रहा है. आज कई महत्वपूर्ण मसलों पर भारत की राय को अहमियत दी जाती है. यह सिलसिला भविष्य में और बढ़ेगा. ऐसे में चीन को लगता है कि इसी समय भारत को पीछे धकेल देना कहीं ज़्यादा आसान और उपयुक्त होगा. अन्यथा भविष्य में और सशक्त हुए भारत की राह रोक पाना उसके लिए मुश्किल हो जाएगा. इस मामले में चीन की सेना, साम्यवादी दल और सरकार में मतैक्य नजर आता है. पिछले एक-डेढ़ साल के दौरान चीनी गतिविधियां इसकी पुष्टि भी करती हैं.
भारत का बढ़ता रुतबा; भूटान पर डोरे डालता चीन
यह भारत का बढ़ता हुआ रुतबा ही है, जिसके कारण चीन अब भूटान जैसे उन देशों पर भी डोरे डालने में जुट गया है, जो पारंपरिक रूप से भारत के प्रगाढ़ मित्र रहे हैं. दोनों देशों के रिश्तों की डोर इतनी मजबूत है कि भूटान अपनी सुरक्षा के लिए भी सामरिक रूप से भारत पर भरोसा करता आया है. चीन के साथ हुए डोकलाम विवाद के मूल में एक तरह से भूटान ही था. इस मामले में भारत ने चीन को पिछले पांव पर धकेलने में सफलता प्राप्त की थी. यह समकालीन दौर में चीन के रक्षात्मक होने का विरला उदाहरण था. अब उसी भूटान को अपने पाले में लाने के मकसद में जुटा चीन इसके माध्यम से कई निशाने लगाना चाहता है. इसमें पहला तो यही कि भूटान भारत के पाले से छिटक जाए. दूसरा उद्देश्य कहीं ज्यादा रणनीतिक है और वह यह कि अगर चीन किसी प्रकार भूटान को साध ले तो इससे भारत के घटते रुतबे का संदेश जाएगा कि उसके घनिष्ठ मित्र भी भारत पर भरोसा करने से कतराने लगे हैं और चीन ही इस क्षेत्र का निर्विवाद बादशाह है, जिसे कोई चुनौती नहीं दे सकता.
यह दुनिया के भारत में बढ़ते भरोसे का ही संकेत है. दूसरी ओर चीनी तानाशाह शी चिनफिंग हैं, जो अविश्वास और असुरक्षा के कारण पिछले 22 महीनों के दौरान चीन से बाहर ही नहीं निकले हैं. यहां तक कि उन्होंने जी-20 और काप-26 जैसे महत्वपूर्ण मंचों की वैश्विक बैठक में भी भाग लेना मुनासिब नहीं समझा.
22 महीनों के दौरान चीन से बाहर नहीं निकले जिनपिंग
हाल के दिनों में अग्नि-5 के सफल परीक्षण से भारत ने एक स्पष्ट संदेश दिया है कि वह अपनी सामरिक तैयारी को नए आयाम दे रहा है. साथ ही सामरिक रणनीति में बदलाव करते हुए चीन से लगी सीमा पर पारंपरिक संसाधनों के बजाय तकनीकी आधारित समाधानों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने में भी भारत पूरी तन्मयता से जुटा है, ताकि किसी संभावित संघर्ष की स्थिति में अपनी मारक क्षमता को और धार दे सके. कूटनीतिक स्तरों पर भी चीन की काट के प्रयास जारी हैं. कई तरह की क्वाड साङोदारियां इसकी उदाहरण हैं. यह दुनिया के भारत में बढ़ते भरोसे का ही संकेत है. दूसरी ओर चीनी तानाशाह शी चिनफिंग हैं, जो अविश्वास और असुरक्षा के कारण पिछले 22 महीनों के दौरान चीन से बाहर ही नहीं निकले हैं. यहां तक कि उन्होंने जी-20 और काप-26 जैसे महत्वपूर्ण मंचों की वैश्विक बैठक में भी भाग लेना मुनासिब नहीं समझा.
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