Author : Prateek Tripathi

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Published on Dec 07, 2024 Updated 0 Hours ago

क्वांटम टेक्नोलॉजी मानवता के भविष्य को नया आकार दे सकती है लेकिन इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों में बदलाव की आवश्यकता है. वैसे तो सहयोग को आसान बनाने के लिए प्रयास किए गए हैं लेकिन वो पर्याप्त नहीं हैं. 

वैश्विक क्वांटम सहयोग के लिए प्रमुख चुनौतियां और उनके समाधान

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दुनिया भर में क्वांटम टेक्नोलॉजी (QT) को विकसित करने की कोशिश ज़ोर पकड़ रही है. इसकी अधिक लागत और विशिष्ट प्रकृति को देखते हुए इसके विकास में अंतर्राष्ट्रीय तालमेल एक प्रमुख कारक रहा है और आगे भी रहेगा. लेकिन अलग-अलग कारणों से इस क्षेत्र में सहयोग सीमित रहा है. इनमें निर्यात नियंत्रण, बौद्धिक संपदा (IP) की सुरक्षा और सप्लाई चेन की मजबूरियां प्रमुख कारक हैं. 

निर्यात नियंत्रण 

निर्यात नियंत्रण से जुड़े प्रतिबंध क्वांटम टेक्नोलॉजी में वैश्विक सहयोग और जानकारी के निर्बाध आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण चुनौती पेश करते हैं, विशेष रूप से तकनीक के ट्रांसफर और हार्डवेयर कंपोनेंट (घटक) से जुड़ी पाबंदियां. दुनिया भर के कई देशों, जिनमें अमेरिका, चीन, यूनाइटेड किंगडम (UK) और यूरोपियन यूनियन के कई सदस्य देश जैसे कि फ्रांस, स्पेन और नीदरलैंड शामिल हैं, ने QT पर निर्यात नियंत्रण से जुड़े नियम लागू किए हैं. इसके पीछे प्राथमिक कारण क्वांटम कम्युनिकेशन और क्वांटम सेंसर का संभावित सैन्य इस्तेमाल है जिसकी वजह से निर्यात को अधिक सरकारी छानबीन और नियमों से गुज़रना पड़ता है. क्वांटम कंप्यूटिंग (QC) भी सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं बढ़ाती है क्योंकि बड़े पैमाने पर क्वांटम कंप्यूटर मौजूदा एन्क्रिप्शन प्रोटोकॉल को तोड़ने में सक्षम हैं. QT में चीन का बढ़ता कौशल भी एक चिंता की बात है, विशेष रूप से अमेरिका के लिए जो पहले से ही साइबर जासूसी से जुड़े चीन के कई अभियानों का शिकार रहा है. इस तरह चीन के पास क्वांटम कंप्यूटर होने की संभावना अमेरिका के लिए सुरक्षा से जुड़ी एक गंभीर चिंता है. 

क्वांटम कंप्यूटिंग (QC) भी सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं बढ़ाती है क्योंकि बड़े पैमाने पर क्वांटम कंप्यूटर मौजूदा एन्क्रिप्शन प्रोटोकॉल को तोड़ने में सक्षम हैं.

सितंबर 2024 में अमेरिका के ब्यूरो ऑफ इंडस्ट्री एंड सिक्युरिटी (BIS) ने अस्थायी रूप से एक अंतिम नियम जारी किया था जिसके तहत QC, उन्नत सेमीकंडक्टर उत्पादन, गेट ऑल-अराउंड फील्ड-इफेक्ट ट्रांज़िस्टर्स (GAAFET) और एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग जैसी उभरती तकनीकों के निर्यात नियंत्रण का विस्तार किया गया. QC को लेकर नियम के तहत तय एरर रेट पर 34 या उससे अधिक फिज़िकल क्यूबिट वाले क्वांटम कंप्यूटर पर निर्यात नियंत्रण लागू किया जाता है क्योंकि ये कंप्यूटर “तकनीकी अनुभव के उच्च स्तर का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसकी वजह से राष्ट्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता और आतंकवाद विरोधी नियंत्रण ज़रूरी हो जाता है.” इसके अलावा जहां माना गया निर्यात और पुनर्निर्यात ज़्यादातर इन नियंत्रणों से बाहर है वहां भी कुछ पाबंदियां फिर भी लागू होती हैं. UK, फ्रांस, स्पेन, नीदरलैंड्स और कनाडा ने भी लगभग इसी तरह का निर्यात नियंत्रण नियम लागू किया है.  

क्वांटम सेंसिंग के सैन्य इस्तेमाल, जैसे कि क्वांटम सेंसिंग आधारित ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS), की वजह से अमेरिका का इंटरनेशनल ट्रैफिक इन आर्म्स रेगुलेशन (ITAR) भी सीमा पार निवेश और तालमेल के लिए इसी तरह की बाधा पेश करता है, विशेष रूप से तकनीक के ट्रांसफर के संबंध में.   

सुरक्षा के दृष्टिकोण से जहां QT के निर्यात पर कुछ प्रतिबंध निश्चित रूप से आवश्यक हैं लेकिन ज़्यादातर देशों के द्वारा QT के निर्यात को लेकर बनाए गए नियम अभी तक पूरी तरह मनमाने  लगते हैं. उदाहरण के लिए, बड़े पैमाने के क्वांटम कंप्यूटर निश्चित रूप से मौजूदा एन्क्रिप्शन प्रोटोकॉल को तोड़ने में सक्षम हैं लेकिन उन्हें अरबों नहीं तो लाखों फिज़िकल क्यूबिट की ज़रूरत होती है जिसे हासिल करने में एक दशक से ज़्यादा समय लगने की संभावना है. इस तरह ये बिल्कुल भी साफ नहीं है कि उन पर मौजूदा समय में प्रतिबंध क्यों लगाए जा रहे हैं.    

बौद्धिक संपदा की सुरक्षा 

QT को लेकर सहयोग के मामले में बौद्धिक संपदा (IP) की सुरक्षा भी एक बड़ी बाधा रही है. ये अमेरिका में प्रमुख रूप से प्रदर्शित किया जाता है जहां QT में ज़्यादातर विकास का नेतृत्व प्राइवेट सेक्टर ने किया है जो IP सुरक्षा को लेकर विशेष रूप से सावधान है. “थाउजेंड टैलेंट प्लान” जैसी चीन की पहल से हालात और ख़राब हुए हैं क्योंकि इस योजना के तहत दुनिया भर के वैज्ञानिकों को अपनी रिसर्च चीन में लाने के लिए लुभाने के उद्देश्य से भारी वेतन बढ़ोतरी की पेशकश की गई थी. इसकी वजह से वैज्ञानिक अवैध रूप से चीन को तकनीक और रिसर्च की जानकारी प्रदान करने लगे जिसके बाद अमेरिका ने चीन पर IP की चोरी का आरोप लगाया.  

क्वांटम कम्युनिकेशन को सुपरकंडक्टिंग नैनोवायर सिंगल-फोटोन डिटेक्टर जैसे कंपोनेंट की भी ज़रूरत होती है जिसका उत्पादन जर्मनी, जापान, अमेरिका और रूस जैसे गिने-चुने देशों में ही होता है.

QT की बहुमुखी और विविध प्रकृति एक चुनौती पेश करती है. QC, क्वांटम कम्युनिकेशन, पोस्ट-क्वांटम क्रिप्टोग्राफी (PQC) और क्वांटम सेंसिंग जैसी अलग-अलग तकनीकों के लिए ख़ास IP प्रावधान की आवश्यकता होती है जिससे उनके बीच सामंजस्य एक समस्या बन जाती है. अलग-अलग देशों में IP अधिकारों का समन्वय भी एक मुश्किल काम है क्योंकि हर देश का कानून और परंपरा अलग-अलग होती है. 

सप्लाई चेन की परेशानियां 

QT हार्डवेयर के विकास और उत्पादन के लिए अक्सर दुर्लभ और विदेशी कच्ची सामग्रियों की आवश्यकता होती है जिनकी सप्लाई सीमित है. इनमें सेमीकंडक्टर जैसे महत्वपूर्ण खनिज और सिलिकॉन, जर्मेनियम, कोबाल्ट, लिथियम और इंडियम जैसी दुर्लभ पृथ्वी धातुएं शामिल हैं. ये कमी  सप्लाई चेन की गंभीर परेशानी पेश करती है क्योंकि ये खनिज दुनिया में केवल चुनिंदा जगहों पर ही पाए जाते हैं. इसके अलावा, चीन दुनिया की लगभग 80 प्रतिशत दुर्लभ पृथ्वी धातुओं का प्रसंस्करण करता है. हर तरह की QT को अपनी विशेष सामग्री की भी आवश्यकता होती है. उदाहरण के लिए, क्वांटम कम्युनिकेशन के लिए KTP और LiNbO3 जैसे उच्च गुणवत्ता वाले समय-समय पर ध्रुवित नॉनलीनियर क्रिस्टल की आवश्यकता होती है जिनका उत्पादन केवल तकनीकी रूप से विकसित देशों जैसे कि चीन में होता है. क्वांटम कम्युनिकेशन को सुपरकंडक्टिंग नैनोवायर सिंगल-फोटोन डिटेक्टर जैसे कंपोनेंट की भी ज़रूरत होती है जिसका उत्पादन जर्मनी, जापान, अमेरिका और रूस जैसे गिने-चुने देशों में ही होता है. सुपरकंडक्टिंग क्यूबिट आधारित क्वांटम कंप्यूटर को भी इसी तरह कुछ विशेष कंपोनेंट की आवश्यकता होती है जो कुछ ख़ास जगहों पर ही उत्पादित और असेंबल किए जाते हैं. क्वांटम सेंसर इंटीग्रेटेड फोटोनिक्स का इस्तेमाल करते हैं जो नॉनलीनियर क्रिस्टल और नए मैटेरियल वेफर्स जैसी सामग्रियों का उपयोग करते हैं. इनका उत्पादन भी कुछ सीमित देशों में ही होता है.                                                   

क्वांटम टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में चुनौतियों से पार पाने के लिए प्रयास 

वैसे तो ऊपर बताए गए मुद्दे QT के क्षेत्र में प्रगति की राह में बड़ी बाधाएं पेश करते हैं लेकिन इन चुनौतियों से निपटने के लिए कई पहल की गई है. क्वॉड क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी वर्किंग ग्रुप (2021), क्वॉड इन्वेस्टर नेटवर्क (QUIN) (2023) और क्वांटम सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन क्वांटम साइंस (2023) जैसी पहल के माध्यम से क्वॉड QT के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का उदाहरण पेश करने में सफल रहा है.

जैसे-जैसे तकनीक विकसित होती है, वैसे-वैसे इसके विनियमन के लिए आवश्यक अंतर्राष्ट्रीय मानकों और समझौतों को भी विकसित होना चाहिए.

अमेरिका में क्वांटम इकोनॉमिक डेवलपमेंट कंसोर्टियम (QED-C) और भारत में क्वांटम इकोसिस्टम टेक्नोलॉजी काउंसिल ऑफ इंडिया (QETCI) जैसे संगठन QT में अंतर्राष्ट्रीय तालमेल को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं. 2022 के अमेरिका के चिप्स एंड साइंस एक्ट  और 2023 के यूरोपियन चिप्स एक्ट को सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन को मज़बूत करने के लिए लागू किया गया है जो कि QT के विकास में एक महत्वपूर्ण तत्व हैं. क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नोलॉजी पर अमेरिका-भारत की पहल (iCET) सेमीकंडक्टर फेब्रिकेशन प्लांट की स्थापना और QT में व्यापक सहयोग समेत कई मोर्चों पर तकनीकी तालमेल के एक अच्छे उदाहरण के रूप में काम करती है.  

क्वांटम टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सहयोग का भविष्य 

QT पूरी तरह से अलग-अलग विषयों जैसे कि क्वांटम थ्योरी, कंडेंस्ड मैटर फिज़िक्स और कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग के बीच में स्थित है. इस वजह से इस क्षेत्र में प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने और प्रशिक्षण देने का काम विशेष रूप से मुश्किल हो जाता है. इसके अलावा, ज़रूरी तकनीकों की नई और विशिष्ट प्रकृति के कारण QT में बहुत ज़्यादा निवेश की आवश्यकता होती है. इसके साथ-साथ चिकित्सा, स्वास्थ्य देखभाल एवं कृषि से लेकर क्वांटम भौतिकी और रसायन विज्ञान में सिमुलेशन के ज़रिए ब्रह्मांड के मूल ढांचे को सुलझाने तक मानवता के भविष्य के लिए QT ढेर सारे अवसर पेश करती है. इसलिए QT को विकसित करने का प्रयास हर किसी की राय में महत्वपूर्ण है, इस पर किसी देश की सीमा का बंधन लागू नहीं होता है. 

लेकिन ऊपर जिन रुकावटों का ज़िक्र किया गया है, उसे देखते हुए किसी भी देश के लिए अलग-थलग होकर QT के क्षेत्र में आगे बढ़ना व्यावहारिक नहीं होगा. इस तरह QT के विकास और प्रसार के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एक आवश्यक तत्व हो जाता है. इसके लिए मौजूदा प्रोटोकॉल और नियमों में कुछ बदलाव की ज़रूरत है. 

अलग-अलग देशों में निर्यात नियंत्रण नियमों और IP कानून के बीच सामंजस्य इस मामले में महत्वपूर्ण होगा. क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी पर अमेरिका-भारत पहल (iCET) और चिप्स (क्रिएटिंग हेल्पफुल इंसेंटिव्स टू प्रोड्यूस सेमीकंडक्टर्स) एक्ट जैसी पहल को बढ़ावा देना भी सप्लाई चेन को मज़बूत करने के लिए आवश्यक होगा. क्वांटम इकोनॉमिक डेवलपमेंट कंसोर्टियम (QED-C) और क्वांटम इकोसिस्टम टेक्नोलॉजी काउंसिल ऑफ इंडिया (QETCI) जैसे संगठन अलग-अलग देशों में प्रयासों के समन्वय में महत्वपूर्ण बने रहेंगे. कुछ बाधाओं को दूर करने में इस तरह के संस्थानों की स्थापना काफी उपयोगी होगी. 2007 में शुरू ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के संगठन क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग (क्वॉड) जैसी पहल के माध्यम से अलग-अलग देशों में साझा अनुसंधान एवं विकास (R&D) और प्रकाशन को बढ़ावा भी तालमेल को आगे ले जाने की दिशा में लाभदायक होगा. 

QT में तेज़ प्रगति के साथ ये उसके विकास के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण के रूप में काम करता है. जैसे-जैसे तकनीक विकसित होती है, वैसे-वैसे इसके विनियमन के लिए आवश्यक अंतर्राष्ट्रीय मानकों और समझौतों को भी विकसित होना चाहिए. वैसे तो तालमेल की दिशा में रुकावटों को कम करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं लेकिन वो पर्याप्त नहीं हैं. इस दिशा में और ज़्यादा कोशिशें सुनिश्चित करेंगी कि QT उम्मीद के मुताबिक गति से बढ़ना जारी रखे. इस तरह मानवता के विकास और कल्याण के लिए एक क़ीमती औज़ार के रूप में QT अपनी स्थिति मज़बूत करेगी.


प्रतीक त्रिपाठी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्युरिटी, स्ट्रैटजी एंड टेक्नोलॉजी में जूनियर फेलो हैं. 

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