Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 28, 2023 Updated 0 Hours ago

LAC पर चीन की भूमिका को तूल ना देते हुए चीनी विमर्श ये संकेत दे रहे हैं कि भारत इस मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण कर अमेरिका-चीन के बीच गहराती प्रतिद्वंदिता से लाभ हासिल करने का इरादा रखता है.

LAC पर भारत-चीन द्विपक्षीय वार्ताओं का ताज़ा दौर: चीन इसे कैसे देखता है?

2 मार्च 2023 को G20 के विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के नवनियुक्त विदेश मंत्री चिन गांग से मुलाक़ात की. दोनों विदेश मंत्रियों की बैठक पर चीनी सामरिक बिरादरी क़रीब से निग़ाह बनाए हुए थी. बहरहाल, इस मुलाक़ात के नतीजतन चीनी सामरिक हलकों में काफ़ी चिंता पसर गई. चीनी पर्यवेक्षकों को लगा कि इस क़वायद से दोनों पक्षों में रज़ामंदी से ज़्यादा विरोधाभास पैदा होते दिखाई दिए. इस बैठक के बाद मुख्यधारा का चीनी विमर्श यही रहा कि "चीन को LAC पर बद से बदतर हालात के लिए तैयारी करने की ज़रूरत है".

चीन का कहना है कि वो सीमा विवाद से परे दोनों देशों के बीच साझा अहमियत वाले मसलों की तलाश कर रहा है. वो भारत के साथ रक्षा के मोर्चे पर आदान-प्रदान में हिस्सेदारी करना चाहता है. साथ ही शंघाई सहयोग संगठन जैसे ढांचों में भारत के साथ सहयोग करने को तत्पर है. 

चीनी नज़रिए के मुताबिक बैठक में भारत ने सकारात्मक रुख़ नहीं दिखाया और न ही चीन के तथाकथित "नेकदिल रुख़" का कोई रचनात्मक जवाब दिया. चीन का कहना है कि वो सीमा विवाद से परे दोनों देशों के बीच साझा अहमियत वाले मसलों की तलाश कर रहा है. वो भारत के साथ रक्षा के मोर्चे पर आदान-प्रदान में हिस्सेदारी करना चाहता है. साथ ही शंघाई सहयोग संगठन जैसे ढांचों में भारत के साथ सहयोग करने को तत्पर है. चीनी पर्यवेक्षकों की ओर से दलील दी गई कि बैठक महज़ 45 मिनटों तक चली जिसमें जयशंकर ने सीमा मसले पर "बड़ा बतंगड़" बना दिया. भारतीय विदेश मंत्री ने सीमा विवाद को उचित स्थान पर रखने के चिन गांग के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. चीनी पक्ष के मुताबिक चिन गांग ने विभिन्न क्षेत्रों में आदान-प्रदान और सहयोग बहाली की रफ़्तार बढ़ाने का अनुरोध किया था. इनमें सीधी उड़ान सेवा की बहाली, व्यक्तिगत आदान-प्रदान की सहूलियतें देना आदि शामिल हैं. इसकी बजाए भारतीय पक्ष यही दोहराता रहा कि चीन-भारत संबंधों में सामान्यीकरण के लिए सीमा पर हालात का सामान्य होना पूर्व-शर्त है. चीनी विदेश मंत्री की तुलना में भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर के इस क़दम की मोटे तौर पर "अक्खड़पन" के तौर पर व्याख्या की गई. 

यहां एक बात पर ग़ौर करना दिलचस्प हो जाता है. दरअसल "दोनों देशों के बीच मौजूदा संधियों का पालन करने से मुकरने की चीनी चाल" को लेकर भारतीय चिंताओं को चीनी पक्ष अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए ऐसा नया घुमाव दे रहा है. ख़ासतौर से सीमा पर सुरक्षा बलों का जमावड़ा नहीं करने और एकतरफ़ा रूप से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) में बदलाव करने की कोशिशें ना करने से जुड़े समझौतों की चीन धज्जियां उड़ाता रहा है. भारत का विचार है कि चीन की इन्हीं करतूतों की वजह से LAC पर संकट के मौजूदा हालात बने हैं. भारत सैद्धांतिक रूप से "वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) में बदलाव लाने की चीन की एकतरफ़ा कोशिशों" के बिलकुल ख़िलाफ़ है. भारत ने साफ़ कर दिया है कि वो "मुख्य मसलों पर किसी तरह का समझौता" करने को कतई तैयार नहीं है. भारत का विचार है कि "सरहद पर बने हालातों से ही दोनों देशों के रिश्तों की दशा-दिशा तय होगी". 

कोरोना काल में अस्थिरता

जब कोरोना महामारी शिखर पर थी उस वक़्त चीन ने LAC पर हालात को अस्थिर बनाने में एकतरफ़ा भूमिका अदा की थी. ज़ोर-ज़बरदस्ती वाली इस हरकत के ज़रिए वो भारत को संगीन होती चीन-अमेरिकी प्रतिद्वंदिता और उसके चलते वैश्विक व्यवस्था में आए गतिरोध का लाभ लेने से रोकना चाह रहा था. हालांकि, अब वो अपनी करतूतों को कमतर करके पेश कर रहा है. उलटे चीनी पक्ष ने भारत पर द्विपक्षीय रिश्तों के सामान्यीकरण के बदले आसमान जैसी ऊंची क़ीमत मांगने का इल्ज़ाम मढ़ दिया है. चीन LAC पर अपनी ओर से स्थापित नई यथास्थिति स्वीकार करने से इनकार करने के लिए भारत की आलोचना कर रहा है. कुल मिलाकर चीन की “राष्ट्रीय और सैन्य शक्ति भारत से कहीं ज़्यादा बड़ी है”. इसके बावजूद वो भारत पर सीमा मसले पर अपने दावे मनवाने और उसको मान्यता देने के साथ-साथ भारत द्वारा सुझाई गई सीमा संधि को स्वीकार करने का दावा करने का इल्ज़ाम लगाता है. चीन की घरेलू जनता के लिए दुष्प्रचार से भरा अभियान भी चलाया जा रहा है. दावा किया जा रहा है कि भारत की चाहत ये है कि “अगर भारत मानता है कि LAC पर कोई भू-भाग उसका है तो चीन को अंतरराष्ट्रीय तौर पर अपनी श्रेष्ठ शक्ति और हैसियत के बावजूद उसकी मांग मान लेनी चाहिए, वरना भारत दोनों देशों के बीच रिश्तों में सामान्यीकरण को बढ़ावा देने के लिए रज़ामंद नहीं होगा”.

चीन LAC पर अपनी ओर से स्थापित नई यथास्थिति स्वीकार करने से इनकार करने के लिए भारत की आलोचना कर रहा है. कुल मिलाकर चीन की “राष्ट्रीय और सैन्य शक्ति भारत से कहीं ज़्यादा बड़ी है”.

दरअसल, भारत पूरी तात्कालिकता के साथ सीमा पर तैनाती में मज़बूती ला रहा है. इसके साथ ही LAC पर सैन्य कार्रवाइयों में भी चुस्ती लाई जा रही है. यही बात चीन को और परेशान कर रही है. चीन में इस बात पर चिंता के साथ ग़ौर किया गया है कि भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की मुलाक़ात के महज़ 24 घंटे से भी कम समय के भीतर भारत द्वारा अमेरिका के साथ हथियारों की ख़रीद से जुड़े समझौते पर दस्तख़त की ख़बर सामने आई. इस कड़ी में अमेरिका से 18 से 24 उन्नत US MQ-9B हथियारबंद ड्रोन्स की ख़रीद का समझौता हुआ है. इस क़रार के अमल में आ जाने से हालिया वर्षों में ये दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग की सबसे बड़ी योजना बन जाएगी. इतना ही नहीं चीन ये भी दलील देता है कि भारत ने पिछले कुछ वर्षों में लगातार जापान के साथ क़रीबी रिश्ते बनाने की जुगत लगाई है. इस साल पहली बार दोनों पक्षों ने वास्तव में युद्धक अभ्यास की शुरुआत की है. कुल मिलाकर चीनी पक्ष में इस वक़्त भारी कुंठा का माहौल है. उसे लग रहा है कि अतीत की तरह अब भारतीय पक्ष सीमा विवाद पर या चीन की शर्तों पर LAC पर शांति स्थापना को लेकर कोई अतिरिक्त पहल करके चीन को ख़ुश करने की मजबूरी या प्रेरणा महसूस नहीं कर रहा. इसकी बजाए भारत अंतरराष्ट्रीय दबाव और फौजी दांवों के ज़रिए सीमा विवाद पर चीन को रियायत देने पर मजबूर करने के प्रयास कर रहा है.

चीनी आकलन के मुताबिक चीन को लेकर भारत कुछ कारकों की वजह से सख़्त रुख़ अपना रहा है. पहला, चीन का कहना है कि भारतीय पक्ष चीन से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की ताक़त का इस्तेमाल कर रहा है. सीमा विवाद पर चीन के साथ सौदेबाज़ी करने के लिए सिर्फ़ अपनी ताक़त पर निर्भर रहने की बजाए वो इस मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की उम्मीद कर रहा है. इस प्रकार अनेक पक्षों को इस मसले में हिस्सा लेने का मौक़ा मिल जाएगा जिससे चीन के साथ सौदेबाज़ी करने की भारत की क्षमता बढ़ जाएगी. क्वॉड से जुड़ने के भारत के फ़ैसला और चीन के लिए अहम मसलों (जैसे ताइवान और दक्षिण चीन सागर) पर अमेरिका, जापान और अन्य देशों के साथ सक्रियता से जुड़ाव बनाने की हिंदुस्तान की कोशिशों को भारत की चीननीति में स्पष्ट परिवर्तन के उदाहरण के तौर पर देखा जा रहा है.

पश्चिमी जगत भारत में जितना ज़्यादा निवेश करेगा, भारत का अभिमान उतना बढ़ता चला जाएगा. इससे सीमा मसले पर भारत की स्थिति और मज़बूत हो जाएगी.

दूसरा, ये दलील भी दी जा रही है कि चीन पर कठोर रुख़ बरक़रार रखने की नीति भारत को अमेरिका और पश्चिमी जगत की नज़रों में बेहतर बनाए रखने और उनसे लाभ लेने में मदद कर रही है. आख़िरकार मोदी सरकार पश्चिम द्वारा चीन से औद्योगिक श्रृंखला को हस्तांतरित किए जाने की चाहत रखे हुए है. ये क़वायद भारत के भावी विकास के लिए एक बड़ा अवसर बन सकती है.

तीसरा, चीनी पक्ष का कहना है कि भारत ने चीन की कमज़ोरी की पहचान कर ली है: चीनी पक्ष चीन-भारत रिश्तों में एक हद से ज़्यादा बिगाड़ नहीं चाहता ताकि वो अन्य मसलों पर अपना सामरिक ज़ोर क़ायम रख सके. इनमें दक्षिण-पूर्व, ताइवान मसला, चीन-अमेरिका मुद्दा आदि शामिल हैं. इस प्रकार चीन खुद को “दो मोर्चों पर चुनौती” के जंजाल में फंसने से रोक सकेगा.

चीनी आकलनों के मुताबिक, भारत दो-परतों वाली नीति अपना रहा है: 1) वो चीन के साथ रिश्तों में सामान्यीकरण करने और उसपर “दो मोर्चों” पर दबाव वाले हालात में नरमी लाने के बदले चीन-भारत सीमा मसले पर चीन से ज़्यादा से ज़्यादा रियायतें पाने की जुगत लगा रहा है. इस कड़ी में चीन-भारत सीमा मसले पर उसे बाहरी ताक़तों को अवसर देने से भी कोई परहेज़ नहीं है; 2) हालांकि भारत को चीन के साथ निम्न-दर्जे का सीमित तनाव बरक़रार रखने से भी कोई गुरेज़ नहीं है. इस तरह वो पश्चिम के साथ अपने सहयोग से मुनाफ़ा हासिल कर सकेगा. साथ ही चीन से बाहर निकलती पश्चिमी पूंजी को भी अपने यहां समेट सकेगा. कुछ चीनी पर्यवेक्षकों को ख़ासतौर से इस बात की चिंता है कि भारत एक माकूल अवसर पर सीमा विवाद को पूरे ज़ोरशोर से हवा दे सकता है. हो सकता है कि जब चीन, ताइवान जलसंधि मसले के निपटारे के लिए सैन्य बलों के इस्तेमाल का फ़ैसला करे ठीक उसी वक़्त भारत ऐसी क़वायद को अंजाम दे, ताकि चीन की सैन्य मज़बूती के सामने पेचीदगियां पैदा की जा सकें.

चीन की संभावित चाल

इन हालातों में चीन कैसी चाल चलना पसंद करेगा? चीनी विद्वानों की राय है कि पहले चीन को नेकदिली दिखानी चाहिए, उसके बाद फौज भेजनी चाहिए. उनके मुताबिक चीन को निश्चित रूप से सबसे पहले सामान्य शिष्टाचार या नेकदिली दिखाते हुए (जैसे भारत की G20/SCO अध्यक्षता का समर्थन करना आदि) भारत के साथ रिश्तों को सामान्य बनाने की पहल करनी चाहिए. बेशक़ उसे सीमा विवाद या भारत की चिंताओं वाले दूसरे अहम मसलों पर साफ़-साफ़ किसी भी तरह की रियायत देने से परेहज़ करना चाहिए. हालांकि इन क़वायदों के साथ-साथ चीन को पश्चिमी सीमा पर सैन्य निर्माण में मज़बूती लाते हुए दो-मोर्चों पर टकराव वाले हालात की भी तैयारी करनी चाहिए. ऐसा ना हो कि उसके “नेकदिल अंदाज़” को कपटपूर्ण और हवा-हवाई बताकर उसकी आलोचना हो और ये पूरी क़वायद भारत के साथ रिश्तों में जमी बर्फ़ पिघलाने में नाकाम साबित हो जाए.

दूसरा, चीन को भारतीय औद्योगिक श्रृंखला को उन्नत बनाने की प्रक्रिया और उसमें निवेश से जुड़ी क़वायद में विलंब करने या उसको सीमित करने की कोशिशें करनी चाहिए. दरअसल, पश्चिमी जगत भारत में जितना ज़्यादा निवेश करेगा, भारत का अभिमान उतना बढ़ता चला जाएगा. इससे सीमा मसले पर भारत की स्थिति और मज़बूत हो जाएगी. तीसरा, चीन को रूस का बेहतर ढंग से इस्तेमाल करना चाहिए जो यूक्रेन संकट के चलते “पूरी तरह से चीन की ओर मुखातिब” हो चुका है. उसे चीन-भारत सीमा मसले पर रूस के साथ सर्वसम्मति तक पहुंचनी चाहिए. चीन-भारत सीमा मसले में बाहरी ताक़तों द्वारा दख़ल दिए जाने का विरोध करने के लिए रूस को तैयार करना चाहिए. इस प्रकार रूस दक्षिणपूर्व दिशा से चीन पर भूराजनीतिक दबावों को घटाने में अहम भूमिका निभा सकता है. नतीजतन दक्षिण-पूर्व में किसी भी हालात से बेहतर ढंग से निपटने के लिए चीन के हाथ खुल जाएंगे.        

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