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वेनेज़ुएला में 28 जुलाई को हुए चुनाव के लगभग एक महीने बाद दुनिया को अभी भी इस सवाल के जवाब का इंतज़ार है कि वहां के तानाशाह नेता निकोलस मादुरो सत्ता से चिपके रहने की अपनी कोशिश में सफल होंगे या नहीं. मादुरो की सरकार का दावा है कि उसे 51 प्रतिशत वोट मिले हैं जबकि विपक्ष को 43 प्रतिशत. वहीं विपक्षी गठबंधन का दावा है कि उसे 67 प्रतिशत वोट मिले हैं जबकि मादुरो को सिर्फ 30 प्रतिशत मतदाताओं ने चुना है. ज़्यादातर अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों, जिनमें संयुक्त राष्ट्र (UN) और अमेरिका के कार्टर सेंटर के द्वारा भेजे गए कुछ चुनावी पर्यवेक्षक शामिल हैं, ने चुनाव को धांधली से भरा बताया है. ‘हाउ डेमोक्रेसीज़ डाई’ के लेखक और राजनीतिक जानकार स्टीवन लेवित्सकी ने इस चुनाव को “आधुनिक लैटिन अमेरिका के इतिहास में सबसे भयंकर चुनावी धोखाधड़ी में से एक” बताया है. इसके बावजूद केवल लोकतंत्र के नज़रिए और चुनाव की कवायद से इस स्थिति को देखना एक भूल होगी. इसके बदले हमें हालात को इस दायरे में देखना चाहिए कि तानाशाही कैसे ख़त्म होती है.
स्टीवन लेवित्सकी ने इस चुनाव को “आधुनिक लैटिन अमेरिका के इतिहास में सबसे भयंकर चुनावी धोखाधड़ी में से एक” बताया है.
इतिहास ने हमें सिखाया है कि तानाशाह कई कारणों के मेल की वजह से सत्ता छोड़ते हैं. 1946 से 2014 तक तानाशाही शासन व्यवस्था पर नज़र रखने वाली विद्वान एरिका फ्रांत्ज़ के अनुसार तानाशाह आम तौर पर सात अलग-अलग तरीकों से सत्ता से बाहर होते हैं. ये सात तरीके हैं सैन्य विद्रोह, चुनाव, लोगों का उठ खड़ा होना, उग्रवाद, सत्ताधारी संगठन की संरचना को बदलने वाला नियम, किसी विदेशी शक्ति को थोपना और देश का विघटित होना. 1946 से 2014 के बीच 239 निरंकुश सरकारों में से लगभग 80 प्रतिशत को सैन्य बग़ावत, चुनाव या लोगों के उठ खड़े होने की वजह से सत्ता छोड़नी पड़ी. इस बात की पड़ताल करना महत्वपूर्ण होगा कि सत्ता से बाहर होने का इनमें से कोई तरीका क्या आज के समय के वेनेज़ुएला पर लागू हो सकता है या नहीं.
वेनेज़ुएला में तानाशाह शासन व्यवस्था
पहला तरीका है सैन्य विद्रोह. मौजूदा समय में वेनेज़ुएला में इसकी संभावना बहुत कम है. वेनेज़ुएला के सशस्त्र बलों ने स्पष्ट रूप से मादुरो का समर्थन किया है. 28 जुलाई के चुनाव के बाद से वेनेज़ुएला के रक्षा मंत्री व्लादिमीर पाडरिनो लोपेज़, जो कि वर्तमान फोर-स्टार जनरल हैं, मादुरो का बचाव करने में प्रतिबद्ध रहे हैं. यहां तक कि उन्होंने विपक्ष को ‘फासीवादी’ तक कह दिया और दावा किया कि वो तख्तापलट के माध्यम से मादुरो को सत्ता से बाहर करने की कोशिश कर रहा है. सेना के समर्थन का कारण समझना आसान है: मादुरो ने देश के सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों और कई मंत्रालयों का नियंत्रण सेना को सौंप रखा है. वेनेज़ुएला में पिछले दशक से ही लगभग एक-तिहाई सरकारी मंत्रालयों को सेना में काम कर रहे अधिकारी चला रहे हैं. इनमें ऊर्जा और कृषि मंत्रालय शामिल हैं. राष्ट्रीय विकास फंड (स्पेनिश में फोंडो डि डेसारोलो नेशनल या आसान शब्दों में FONDEN) के ज़रिए एक बड़े फंड पर मादुरो का नियंत्रण है जिसे वो दूसरी एजेंसियों की निगरानी के बिना सेना को सौंप सकते हैं.
तानाशाहों के लिए बाहर होने का दूसरा सबसे सामान्य तरीका है चुनाव. जुलाई के चुनाव की बात करें तो मादुरो के द्वारा इस रास्ते के ज़रिए सत्ता छोड़ने की संभावना नहीं लगती. अपनी चुनावी जीत को सही साबित करने के लिए उन्होंने हर मुमकिन कोशिश की है. यहां तक कि उन्होंने कुछ चौंकाने वाले दावे भी किए हैं जैसे कि इलॉन मस्क पर ये आरोप लगाना कि उन्होंने कंप्यूटर को ‘हैक’ करके राष्ट्रीय चुनाव परिषद की वेबसाइट और डेटा को निशाना बनाया है. विपक्ष की तरफ से चुनाव जीतने के दावे को लेकर उनका जवाब उन्हें सार्वजनिक रूप से फासीवादी बताना और प्रदर्शनकारियों एवं सभी तरह के विरोध के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई फिर से शुरू करना रहा है. इसे मादुरो ने ऑपरेशन ‘टुन टुन’ का नाम दिया है जो दरवाजों पर दस्तक देने की आवाज़ है क्योंकि किसी के भी द्वारा सरकार का विरोध करने पर सुरक्षा बल उसे हिरासत में लेने के लिए उसके घर पहुंच जाते हैं.
तानाशाहों के लिए बाहर होने का दूसरा सबसे सामान्य तरीका है चुनाव. जुलाई के चुनाव की बात करें तो मादुरो के द्वारा इस रास्ते के ज़रिए सत्ता छोड़ने की संभावना नहीं लगती.
सत्ता से बाहर होने का तीसरा रास्ता बड़ी संख्या में लोगों का उठ खड़ा होना है. हालांकि वेनेज़ुएला में इसकी भी संभावना कम है क्योंकि सशस्त्र बलों के साथ मादुरो के मज़बूत संबंध हैं और देश में प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ सेना दमन की नीति अपनाती है. इसके अलावा वेनेज़ुएला में विपक्ष ऐसे नेताओं से भरा है जो महत्वाकांक्षी हैं और चुनाव में मुकाबला करने एवं शासन करने की इच्छा रखते हैं. ये विपक्षी नेता बाग़ी नहीं हैं जो मादुरो को सत्ता से हटाने की कोशिश करेंगे और अगर कोई नेता ऐसा है भी तो उसे सरकार के द्वारा तुरंत जेल भेज दिया जाता है.
शायद इकलौता दूसरा पैरामीटर जो वेनेज़ुएला की मौजूदा स्थिति के लिए प्रासंगिक हो सकता है, वो विदेशी शक्तियों के साथ सरकार का आदान-प्रदान है. वेनेज़ुएला की सरकार को लेकर अपनी नापसंदगी के बारे में अमेरिका का रवैया साफ रहा है. यहां तक कि अमेरिका ने मादुरो की गिरफ्तारी के लिए सूचना देने पर 15 मिलियन अमेरिकी डॉलर का इनाम भी घोषित कर रखा है. लेकिन इसके बावजूद चीन और रूस की तरफ से मादुरो के लिए समर्थन की वजह से अमेरिका का दबाव संतुलित हो जाता है. चीन ने वेनेज़ुएला को 50 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा कर्ज़ दे रखा है. वेनेज़ुएला इसका एक बड़ा हिस्सा तेल के रूप में रूप में चुका रहा है. रूस आज के समय में भारी मात्रा में वेनेज़ुएला को सैन्य साजो-सामान और हथियार मुहैया करा रहा है. हैरानी की बात नहीं है कि जुलाई के चुनाव के तुरंत बाद मादुरो के ‘फिर से जीतने’ पर उन्हें बधाई देने के लिए चीन और रूस- दोनों उत्सुक थे.
निष्कर्ष
एक और महत्वपूर्ण हिस्सा है वो नतीजे जिनका सामना सरकार में बदलाव की स्थिति में मादुरो और उनके नज़दीकी लोगों को करना पड़ेगा. क्या मादुरो और उनके क़रीबियों को किसी दूसरे देश में शरण मिलेगी और मुकदमों का सामना करने से माफी मिलेगी या उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा और आपराधिक आरोपों का सामना करने के लिए उन्हें संभवत: अमेरिका प्रत्यर्पित किया जाएगा? अगर दूसरी स्थिति है तो ये कल्पना करना मुश्किल होगा कि मादुरो अपनी ज़िंदगी का बाकी हिस्सा जेल में बिताने के लिए अपनी मर्ज़ी से सत्ता छोड़ देंगे.
ये कल्पना करना मुश्किल होगा कि मादुरो अपनी ज़िंदगी का बाकी हिस्सा जेल में बिताने के लिए अपनी मर्ज़ी से सत्ता छोड़ देंगे.
फिलहाल के लिए तो ये संभावना नहीं लगती कि इनमें से कोई भी फैक्टर इतना मज़बूत होगा कि कम हफ्तों से लेकर कुछ महीनों तक यथास्थिति में बदलाव कर सके. लगता है कि 2013 से सत्ता पर काबिज़ मादुरो ने दूसरे नाकाम तानाशाहों से सबक सीखा है और इसलिए ऐसे काम में लगे हुए हैं जिसे एरिका फ्रांत्ज़ ‘तख्तापलट से बचना’ कहती हैं.
हरि सेशासायी कॉन्सिलियम ग्रुप के को-फाउंडर और ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में विज़िटिंग फेलो हैं.
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