Author : Alexis A. Crow

Published on Apr 09, 2020 Updated 0 Hours ago

हर अव्यवस्था में एक अवसर होता है. उभरते हुए बाज़ार में कोविड-19 की वजह से बनी छोटी और मध्यम अवधि की अव्यवस्था वैकल्पिक संपत्ति के निवेशकों के लिए पूंजी लगाने का एक फ़ायदेमंद मौक़ा है.

कोविड-19 के कारण एशिया में हो रहे आर्थिक तबाही का सामना कैसे करें?

जहां उभरते हुए बाज़ार कोरोना वायरस महामारी की वजह से पैदा स्वास्थ्य संकट का सामना करने के लिए ख़ुद को तैयार कर रहे हैं, वहीं नीति निर्माता अपने-अपने देशों में इसके आर्थिक दुष्परिणामों को काबू करने में लगे हुए हैं. जहां कोविड-19 की गूंज पूरी दुनिया में है, हिन्द-प्रशांत महासागर के देश वायरस के बढ़ते मामलों से लड़ने में लगे हुए हैं. संभवत: विदेशों के ज़रिए वायरस इन देशों में आया है.

कुछ मामलों में उभरते हुए बाज़ार बाहरी चुनौतियों से निपटने में 90 के दशक के एशियाई संकट के मुक़ाबले बेहतर हालात में हैं क्योंकि इस दौरान कई क़दम उठाए गए.[3] इनमें फिक्स्ड से फ्लोटिंग एक्सचेंज रेट पर जाना, वित्तीय घाटा कम करना और विदेशी एक्सचेंज के फ्लो को बढ़ावा देना शामिल है

चीन में आर्थिक अस्थिरता के साथ उभरते हुए बाज़ार अक्सर पूंजी का अच्छा-ख़ासा आउटफ्लो देखते हैं.[1] चीन के ज़्यादातर हिस्सों में गतिविधियां ठप होने और तेल की क़ीमत 18 साल में सबसे कम होने के साथ 2020 की शुरुआत से उभरते हुए बाज़ार में पहली तिमाही के दौरान कैपिटल आउटफ्लो में भारी-भरकम बढ़ोतरी हुई है. IIF के मुताबिक़ ये संख्या अभूतपूर्व है और ग्रेट फ़ाइनेंशियल क्राइसिस, 2013 के संकट और 2015 में चीन के बाज़ार में अस्थिरता के दौरान के आउटफ्लो से बढ़कर है.[2]

कुछ मामलों में उभरते हुए बाज़ार बाहरी चुनौतियों से निपटने में 90 के दशक के एशियाई संकट के मुक़ाबले बेहतर हालात में हैं क्योंकि इस दौरान कई क़दम उठाए गए.[3] इनमें फिक्स्ड से फ्लोटिंग एक्सचेंज रेट पर जाना, वित्तीय घाटा कम करना और विदेशी एक्सचेंज के फ्लो को बढ़ावा देना शामिल है. हालांकि कोरोना वायरस से जुड़ा कैपिटल आउटफ्लो काफ़ी हद तक अस्थिर करने वाला है और इसका नतीजा महंगाई के साथ-साथ सरकार के कर्ज़ की लागत में बढ़ोतरी के रूप में सामने आ सकता है.

वास्तविक अर्थव्यवस्था को देखें तो यूरो ज़ोन में आर्थिक गतिविधियां बंद होने से उभरते बाज़ारों के विकास पर बेहद ख़राब असर होगा. यूरोप में डिमांड घटने का सीधा असर चीन, वियतनाम और भारत जैसे बाज़ारों के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर पड़ता है

इससे भी बढ़कर जहां विकसित देशों में सेंट्रल बैंक और सरकारें बड़े पैमाने पर मौद्रिक और वित्तीय नीतियां घोषित कर रही हैं वहीं ज़्यादातर उभरते बाज़ारों के पास ऐसा करने का साधन नहीं है जिसकी वजह से वो इस तरह के क़दम नहीं उठा रहे हैं. पैसे की सप्लाई में ज़्यादा बढ़ोतरी होने पर महंगाई बढ़ सकती है जो उभरते बाज़ारों के लिए जोखिम है. कुछ देशों में कैपिटल मार्केट शुरुआती अवस्था में है और दूसरे देशों में लिक्विडिटी का संकट आ सकता है जिसका नतीजा अमेरिकी डॉलर की कमी के रूप में सामने आ सकता है. महत्वपूर्ण बात ये है कि उभरते बाज़ारों में गैर-वित्तीय कॉरपोरेट बैलेंस शीट का कर्ज़ 31.3 ट्रिलियन डॉलर हो गया है.[4] इसमें बड़ा हिस्सा हाल के वर्षों में अमेरिकी डॉलर जारी करने का है. पश्चिमी देशों में बाज़ार के उतार-चढ़ाव में बदलाव की वजह से उभरते बाज़ार के कई कॉरपोरेट भारी दबाव में आ सकते हैं और उनकी लागत में नाटकीय बढ़ोतरी हो सकती है.

वास्तविक अर्थव्यवस्था को देखें तो यूरो ज़ोन में आर्थिक गतिविधियां बंद होने से उभरते बाज़ारों के विकास पर बेहद ख़राब असर होगा. यूरोप में डिमांड घटने का सीधा असर चीन, वियतनाम और भारत जैसे बाज़ारों के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर पड़ता है. ये ऐसे देश हैं जिन्होंने पिछले दशक के दौरान यूरोप को निर्यात में बढ़ोतरी की है. इसके अलावा विकसित अर्थव्यवस्थाओं की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा लॉकडाउन में होने की वजह से पर्यटन- जो फिलीपींस के GDP का 24% और थाईलैंड के GDP का 21% है[5]– ठप है और इसके साथ टैक्स राजस्व भी.

IMF आने वाले दिनों में कम आमदनी वाले देशों और उभरते बाज़ारों को क़रीब 50 बिलियन डॉलर बांटने वाला है.[6] विश्व बैंक ने भी आपात कर्ज़ के रूप में 14 बिलियन डॉलर बांटने का फ़ैसला किया है.

इस पृष्ठभूमि में रेटिंग एजेंसियों की तरफ़ से डाउनग्रेडिंग की आशंका है और ऐसे में बहुपक्षीय विकास बैंक से मदद स्वीकार करने को ग़लत ढंग से नहीं देखना चाहिए. IMF आने वाले दिनों में कम आमदनी वाले देशों और उभरते बाज़ारों को क़रीब 50 बिलियन डॉलर बांटने वाला है.[6] विश्व बैंक ने भी आपात कर्ज़ के रूप में 14 बिलियन डॉलर बांटने का फ़ैसला किया है.[7] ये रक़म स्वास्थ्य संकट से मुक़ाबला करने (जैसे कि फिलीपींस को स्वास्थ्य उपकरण ख़रीदने के लिए फंड देना) के साथ-साथ पर्यटन और मैन्युफैक्चरिंग जैसे अर्थव्यवस्था के सेक्टर में नौकरी को बढ़ावा देने के लिए है.

ब्रॉडबैंड क्षमता को बनाए रखना भी बेहद अहम है ताकि छात्र बिना किसी दिक़्क़त के अपनी पढ़ाई जारी रख सकें. मलेशिया के सक्रिय नीति निर्माता सौर ऊर्जा परियोजनाओं की नीलामी पर काम कर रहे हैं ताकि नौकरी के नये अवसर पैदा किए जा सकें. साथ ही पर्यटन सेक्टर को देर से टैक्स भुगतान का भी आदेश जारी किया जा रहा है. वियतनाम में अधिकारियों ने कुछ ट्रांज़ैक्शन चार्ज में कमी की है ताकि स्थानीय शेयर बाज़ारों को मज़बूत किया जा सके.[8] वास्तव में जैसे-जैसे संकट का महीना बीत रहा है, शायद सरकारी अधिकारी भी ज़रूरत वाले सेक्टर में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश लाने के लिए वित्तीय नीति में बदलाव करेंगे.

हर अव्यवस्था में एक अवसर होता है. उभरते हुए बाज़ार में कोविड-19 की वजह से बनी छोटी और मध्यम अवधि की अव्यवस्था वैकल्पिक संपत्ति के निवेशकों के लिए पूंजी लगाने का एक फ़ायदेमंद मौक़ा है. निश्चित रूप से जहां कई एग्ज़ीक्यूटिव फिलहाल अपने काम-काज और लिक्विडिटी से जुड़े मामलों में फंसे हुए हैं लेकिन उनसे लंबे समय के निवेश की उम्मीद ज़्यादा है. साथ ही कम दाम में ख़रीद कर ज़्यादा दाम में बेचने की उम्मीद भी.

ऐसा कहा जाता है कि सेनापति हमेशा आख़िरी युद्ध लड़ता है और अर्थशास्त्री हमेशा आख़िरी संकट का सामना करते हैं. अगर कोरोना वायरस वाकई सौ साल में एक बार वाली महामारी है,[9] अर्थव्यवस्थाओं पर युद्ध जैसी चोट पहुंचाने वाली बीमारी है तब विकासशील एशिया में लंबी अवधि के विकास की क्या उम्मीद है ? कुछ देशों को जनसंख्या का फ़ायदा होने से इनकार नहीं किया जा सकता और इसमें अगर कुशल कामगारों और रिसर्च एंड डेवलपमेंट के अच्छे केंद्रों के साथ ख़रीदारी की ताक़त में बढ़ोतरी को जोड़ दिया जाए तो ये इलाक़ा प्राइवेट इक्विटी, रियल एस्टेट और बुनियादी ढांचे में लंबे वक़्त के निवेश के लिए सही है. आगे आने वाले महीनों में नीति निर्माताओं, एग्ज़ीक्यूटिव और निवेशकों के लिए ज़रूरी है कि वो मिल-जुलकर भविष्य के लिए योजना तैयार करें जिसमें हर किसी का हिस्सा है.


[1] It should be noted that the plunge in oil prices is also a boon for net oil importers in EMs — including Indonesia and India — and thus affords for more fiscal space for governments to potentially curtail subsidies in the power sector.

[2] https://www.iif.com/Publications/ID/3802/Economic-Views-The-COVID-19-Shock-to-EM-Flows;

[3] https://www.bis.org/publ/arpdf/ar2019e.pdf

[4] https://www.iif.com/Publications/ID/3710/January-2020-Global-Debt-Monitor–Sustainability-Matters

[5] https://knoema.com/atlas/topics/Tourism/Travel-and-Tourism-Total-Contribution-to-GDP/Contribution-of-travel-and-tourism-to-GDP-percent-of-GDP

[6] https://www.imf.org/en/About/FAQ/50-billion-rapid-disbursing-emergency-financing-facilities

[7] https://www.worldbank.org/en/news/press-release/2020/03/17/world-bank-group-increases-covid-19-response-to-14-billion-to-help-sustain-economies-protect-jobs

[8] https://asia.nikkei.com/Spotlight/Coronavirus/Asia-turns-on-the-fiscal-taps-to-cushion-coronavirus-impact

[9] https://www.nejm.org/doi/full/10.1056/NEJMp2003762

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.