Author : Sameer Patil

Expert Speak Raisina Debates
Published on Oct 01, 2024 Updated 0 Hours ago

हिज़्बुल्लाह के आपसी बातचीत वाले उपकरणों में सेंध लगाने और आम नागरिकों को निशाना बनाने से साइबर युद्ध का असर अब वास्तविक जीवन तक पहुंच गया है.

हिज़्बुल्लाह के फटते पेजर: आक्रामक साइबर अभियानों के लिए क्या है इसका मतलब?

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17 सितंबर 2024 को एक अभूतपूर्व घटनाक्रम के तहत, पूरे लेबनान में हिज़्बुल्लाह के हज़ारों सदस्यों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पेजर में धमाके हुए. ये विस्फोट बड़े पैमाने पर और पूरे तालमेल के साथ किए गए लग रहे थे. इनमें 40 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई और हज़ारों लोग घायल हो गए. एक दिन बाद, स्पष्ट रूप से हमलों के नए दौर में लेबनान की राजधानी बेरूत के पूर्वी और दक्षिणी इलाक़ों में हिज़्बुल्लाह के मज़बूत गढ़ कहे जाने वाले क्षेत्रों में वाकी टॉकी में विस्फोट हुए. हिज़्बुल्लाह और लेबनान दोनों ने इनके लिए इज़राइल को ज़िम्मेदार ठहराया. ये हमले, पश्चिम एशिया के मौजूदा संघर्ष में एक नए टकराव की शुरुआत हैं. हालांकि, इन हमलों से इलेक्ट्रॉनिक तोड़-फोड़ और हमलावर साइबर अभियानों के एक नए अध्याय की भी शुरुआत हो गई है. 

 शुरुआती ख़बरें बताती हैं कि इज़राइल की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने हिज़्बुल्लाह द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पेजर्स में उत्पादन के वक़्त ही छेड़खानी करके उसमें विस्फोटकों की थोड़ी मात्रा डाल दी थी. हिज़्बुल्लाह ने इस मॉडल के पेजर का ऑर्डर, गोल्ड अपोलो नाम की एक ताइवानी कंपनी को दिया था. 

शुरुआती ख़बरें बताती हैं कि इज़राइल की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने हिज़्बुल्लाह द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पेजर्स में उत्पादन के वक़्त ही छेड़खानी करके उसमें विस्फोटकों की थोड़ी मात्रा डाल दी थी. हिज़्बुल्लाह ने इस मॉडल के पेजर का ऑर्डर, गोल्ड अपोलो नाम की एक ताइवानी कंपनी को दिया था. वहीं, कुछ अन्य ख़बरों में कहा गया कि जिन पेजर्स में धमाके हुए, उन्हें हंगरी की बीएसी नाम की एक कंपनी ने ताइवान की गोल्ड अपोलो कंपनी के साथ लाइसेंस के एक समझौते के तहत बनाया था. इसके बाद इन पेजर्स में डाले गए विस्फोटकों को किसी कोड या गड़बड़ी के मैसेज के ज़रिए एक्टिवेट किया गया.

 

युद्ध के दौरान तमाम देश न जाने किस ज़माने से ऐसे नए नए तरीक़े तलाश करते आए हैं, ताकि जंग के मैदान के भीतर और बाहर हैरान करने वाले दांव से अपने दुश्मन को चौंका सकें. इसके बावजूद, हिज़्बुल्लाह के संचार उपकरणों को हैक करके उनमें विस्फोटक डालने ने एक बार फिर ये दिखा दिया है कि इज़राइल की सुरक्षा और ख़ुफ़िया एजेंसियों के हाथ कितने दूर तक पहुंच सकते हैं. इसका प्रतीकात्मक संदेश ये है कि सात अक्टूबर के हमलों की ख़ुफ़िया जानकारी न हासिल कर पाने की नाकामी के बावजूद, इज़राइल के पास इस बात की क्षमता है कि वो अपनी पसंद के तरीक़े और चुने हुए वक़्त के मुताबिक़ अपने दुश्मनों को निशाना बना सकता है.

 

इज़राइल द्वारा साइबर और दूसरी उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल  

इससे पहले के दशकों में भी इज़राइल, कई बार ग़ैर पारंपरिक रणनीति और उन्नत तकनीकों की मदद से अपने दुश्मनों पर बड़े हमले करता आया है.

 

पहले, 2010 में इज़राइल और अमेरिका ने स्टक्सनेट नाम का एक वायरस ईरान के परमाणु कार्यक्रम में डाल दिया था. इस वायरस से ईरान के परमाणु कार्यक्रम में इतनी बड़ी तबाही मची कि इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी के मुताबिक़, 2009 से 2010 के बीच ईरान को स्टक्सनेट से हुए नुक़सान की वजह से अपने नतांज़ के परमाणु केंद्र में लगभग एक हज़ार सेंट्रीफ्यूज बदलने को मजबूर होना पड़ा था, जिससे ईरान की एटमी महत्वाकांक्षाओं को गहरा आघात लगा था. इस घटना ने पहली बार दुनिया के सामने साइबर हथियारों के भयानक भौतिक असर की मिसाल पेश की थी. इसके बाद इज़राइल के सैन्य बलों ने 2019 में ग़ज़ा पट्टी में हमास की तकनीकी इकाई पर बमबारी की थी, ताकि एक संभावित साइबर हमले को रोका जा सके. इज़राइल के इस वार ने एक नई मिसाल क़ायम की थी, जिसके तहत किसी संघर्ष के दौरान साइबर हमला रोकने के लिए पहली बार सेना का इस्तेमाल किया गया था.

 इज़राइल पर इल्ज़ाम लगता रहा है कि वो पिछले कई दशकों से ईरान के उन वैज्ञानिकों को निशाना बनाने का अभियान चलाता रहा है, जो ईरान के परमाणु हथियारों और बैलिस्टिक मिसाइलों के कार्यक्रम की अगुवाई कर रहे होते हैं.

इसके अलावा, इज़राइल पर इल्ज़ाम लगता रहा है कि वो पिछले कई दशकों से ईरान के उन वैज्ञानिकों को निशाना बनाने का अभियान चलाता रहा है, जो ईरान के परमाणु हथियारों और बैलिस्टिक मिसाइलों के कार्यक्रम की अगुवाई कर रहे होते हैं. ऐसी हत्या का सबसे बड़ा उदाहरण 2021 में ईरान के अबसार्द में देखने को मिला था, जब इज़राइल की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से लैस और रिमोट से संचालित एक स्नाइपर मशीन गन से ईरान के बड़े एटमी वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़देह की हत्या कर दी थी. ये किसी दूर तक मार करने वाले उपकरण का पहला दस्तावेज़ी इस्तेमाल था.

 

हालांकि, हिज़्बुल्लाह के कम्युनिकेशन उपकरणों को जिस तरह इज़राइल द्वारा निशाना बनाने की बातें की जा रही हैं, वो साइबर दुनिया में भू-राजनीतिक प्रतिद्वंदिताओं में बढ़त बनाने की कोशिशों के नए दौर के आग़ाज़ का संकेत है.

 

साइबर हमलों की सीमारेखा को कमतर करना

 

दुश्मन देशों और ग़ैर सरकारी संगठनों द्वारा किसी देश के अहम मूलभूत ढांचों में खलल डालने वाले हमले, जिसमें डिस्ट्रीब्यूटेड डिनायल ऑफ सर्विस, वायरस या फिर वसूली की नीयत से किए जाने वाले साइबर हमले, साइबर दुनिया में नियमित रूप से होते रहे हैं. इज़राइल और इसके दुश्मन- ईरान, हिज़्बुल्लाह और हमास नियमित रूप से एक दूसरे के अहम मूलभूत ढांचों को निशाना बनाकर हमले करते रहे हैं. हालांकि, संचार के उपकरणों में सेंध लगाकर उनके ज़रिए हमले करने से साइबर हमलों का स्तर और नीचे आएगा और इससे आक्रामक साइबर अभियानों में एक नए अध्याय की शुरुआत होगी. ये पहली बार ही हुआ है, जब हमने इलेक्ट्रॉनिक घुसपैठ और साइबर रणनीति से इतने बड़े पैमाने पर जान माल का नुक़सान होते देखा जा रहा है. आतंकवादी संगठनों समेत नॉन स्टेट एक्टर के लिए शायद अपने इरादों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए ये दांव आकर्षक लगे और वो बड़े पैमाने पर भारी तबाही मचाने वाले आतंकवादी हमले कर सकें.

 

इससे भी अहम बात ये है कि इन हमलों ने युद्ध लड़ने वालों और आम लोगों को निशाना बनाने के बीच के फ़र्क़ से जुड़े जटिल सवाल भी खड़े किए हैं. पिछली कई सदियों से देश और उनकी सेनाएं आम लोगों और लड़ाकों के बीच के अंतर का आम तौर पर पालन करते आए हैं. लेकिन, इसी वजह से आधुनिक युद्ध में उन्नत तकनीक के इस्तेमाल को कमज़रो बना दिया है. जहां तक साइबर क्षेत्र की बात है, तो अंतरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून (IHC) स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है कि, ‘साइबर हमले किसी भी स्थिति में आम नागरिकों या असैन्य लक्ष्यों पर नहीं किए जाने चाहिए.’ ये बात माननी होगी कि इस बार इज़राइल ने विशेष लक्ष्यों को निशाने पर लिया था: केवल हिज़्बुल्लाह द्वारा इस्तेमाल किए गए पेजर और वॉकी टॉकी में सेंध लगाई गई थी. फिर भी, जैसा कि ज़मीनी ख़बरें बताती हैं कि इनका असर केवल हिज़्बुल्लाह के कार्यकर्ताओं तक सीमित नहीं रहा था. संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकारों के एक विशेषज्ञ पैनल ने पेजर्स को हैक करने को, ‘बदनीयती से की गई हेरा-फेरी’ और ‘अंतरराष्ट्रीय क़ानून का भयावाह उल्लंघन’ क़रार दिया है.

 

आपूर्ति श्रृंखलाओं की कमज़ोरियां

 

देश तो लगातार अपने दुश्मनों के संचार समेत दूसरे अहम मूलभूत ढांचों में सेंध लगाने और ख़लल डालने की कोशिशें करते आए हैं. मिसाल के तौर पर अमेरिका लंबे समय से ये इल्ज़ाम लगाता आया है कि चीन की सरकार ने हुआवेई के संचार उपकरणों में जासूसी चिप लगा रखे हैं. हालांकि, हिज़्बुल्लाह के द्वारा इस्तेमाल किया जा रहे सभी पेजर में छेड़खानी का ये मामला ऐसा पहला उदाहरण है, जब उत्पादन के वक़्त ही हार्डवेयर में छेड़छाड़ की गई. इससे ये पता चलता है कि आपूर्ति श्रृंखलाओं की कमज़ोरियों को किस तरह इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसके परिणाम तबाही लाने वाले साबित हो सकते हैं. आपूर्ति श्रृंखलाओं की दूर दूर तक फैली और कई बार कुछ गिने चुने देशों के हाथों में बंद अपारदर्शिता इस चिंता को और गंभीर बना देती है.

 

ऐसी कमज़ोरियों के सामरिक और रणनीतिक लाभ उठाने की कोशिशों पर बहस तो शुरू हो गई है. हालांकि, ख़लल डालने और तबाही मचाने की इसकी ताक़त को देखते हुए, कम से कम छोटी अवधि में तो ज़्यादा से ज़्यादा संगठन, देश या फिर सरकारी एजेंसियां अपने दुश्मनों को निशाना बनाने के लिए इसके लालच में पड़ सकते हैं. यही नहीं, वैसे तो नॉन स्टेट एक्टर्स के लिए किसी उपकरण के निर्माण के वक़्त ऐसी पहुंच हासिल करना शायद मुश्किल हो. पर, मज़बूत इच्छाशक्ति वाली सरकारें और एजेंसियां सही संसाधनों के ज़रिए ऐसा करने में बिल्कुल सफल हो सकती हैं.

 2023 तक एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ दुनिया में IoT से जुड़े 43 अरब उपकरण इस्तेमाल किए जा रहे थे. ये उपकरण अक्सर साधारण तकनीक और एनक्रिप्शन की अपर्याप्त क्षमताओं के साथ बनाए जाते हैं. ऐसे में इनके साइबर हमले का शिकार होने की आशंका बढ़ जाएगी.

इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) की आमद और स्मार्ट इलेक्ट्रॉनिक और संचार उपकरणों की बढ़ती तादाद के साथ ही ऐसी आशंकाओं को कम करना साइबर सुरक्षा की एक बड़ी चुनौती बनने वाली है. 2023 तक एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ दुनिया में IoT से जुड़े 43 अरब उपकरण इस्तेमाल किए जा रहे थे. ये उपकरण अक्सर साधारण तकनीक और एनक्रिप्शन की अपर्याप्त क्षमताओं के साथ बनाए जाते हैं. ऐसे में इनके साइबर हमले का शिकार होने की आशंका बढ़ जाएगी.

 

निष्कर्ष

 

हिज़्बुल्लाह के संचार उपकरणों में सेंध और उनसे आम नागरिकों को निशाना बनाने की वजह से साइबर हमलों के परिणाम लोगों की भौतिक ज़िंदगी तक पहुंच गए हैं. अगर दूसरे संगठन और देश भी ऐसा करने का फ़ैसला करते हैं, तो साइबर क्षेत्र की स्थिरता पर इसका बहुत व्यापक असर पड़ेगा. ऐसी कोशिशों के मनोवैज्ञानिक असर भी होंगे, और आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इस्तेमाल करने से जुड़ी कमियों में और इज़ाफ़ा हो जाएगा. ऐसे में इस जोखिम को कम करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक सेंध लगाने के उपायों के साथ साथ, आपूर्ति श्रृंखलाओं को अधिक सुरक्षित और मज़बूत बनाना होगा और संवेदनशील तकनीक किसी और को देने के लिए निर्यात पर नियंत्रण के नियमों को और सख़्त बनाना होगा और साइबर क्षेत्र में देशों द्वारा ज़िम्मेदारी भरा बर्ताव करना सुनिश्चित करने के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करनी पड़ेगी.

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