ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीस ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर 8 मार्च से 11 मार्च 2023 तक भारत का दौरा किया. प्रधानमंत्री अल्बनीस की यात्रा का मक़सद "भारत के साथ रणनीतिक, आर्थिक और पीपल टू पीपल कॉन्टैक्ट (लोगों के बीच संबंधों) को और मज़बूत करना है, जो ऑस्ट्रेलिया का एक क़रीबी दोस्त और भागीदार है”. अपनी यात्रा से पहले ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी एक बयान में उल्लेख किया गया कि प्रधानमंत्री अल्बनीस नई दिल्ली में ऑस्ट्रेलिया-भारत नेताओं के वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. इस बयान में आगे कहा गया कि "प्रधानमंत्रियों के बीच व्यापार और निवेश, रिन्यूएबल एनर्जी (नवीकरणीय ऊर्जा), तकनीक़, रक्षा और सुरक्षा सहयोग, मज़बूत शैक्षिक और सांस्कृतिक संबंधों पर चर्चा होगी." इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री अल्बनीस के साथ व्यापार और पर्यटन मंत्री डॉन फैरेल और संसाधन मंत्री मेडेलिन किंग के साथ वरिष्ठ स्तर के अधिकारी और एक हाई-प्रोफाइल व्यापार प्रतिनिधिमंडल भी भारत आया. मई 2022 में उनकी लेबर पार्टी के सत्ता में आने के बाद ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री की यह पहली द्विपक्षीय यात्रा है. पीएम अल्बनीस के अनुसार, “भारत-ऑस्ट्रेलिया की एक मज़बूत साझेदारी हमारे क्षेत्र की स्थिरता के लिए अच्छी है. इसका मतलब अधिक अवसर और ज़्यादा व्यापार और निवेश के साथ हमारी अर्थव्यवस्थाओं को मज़बूती देना और हमारे लोगों को सीधे लाभ पहुंचाना है.”
ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी एक बयान में उल्लेख किया गया कि प्रधानमंत्री अल्बनीस नई दिल्ली में ऑस्ट्रेलिया-भारत नेताओं के वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. इस बयान में आगे कहा गया कि "प्रधानमंत्रियों के बीच व्यापार और निवेश, रिन्यूएबल एनर्जी (नवीकरणीय ऊर्जा), तकनीक़, रक्षा और सुरक्षा सहयोग, मज़बूत शैक्षिक और सांस्कृतिक संबंधों पर चर्चा होगी.
9 मार्च 2023 को, पीएम अल्बनीस ने मुंबई में भारत के स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत का दौरा किया और बताया कि, “ऑस्ट्रेलिया के लिए भारत एक शीर्ष स्तरीय सुरक्षा साझेदार है. हिंद महासागर दोनों देशों की सुरक्षा और समृद्धि का केंद्र है. दोनों देशों के इतिहास में कभी भी ऐसा कोई दौर नहीं रहा जहां मौज़ूदा समय की तरह हमारे बीच इतना मज़बूत सामरिक संबंध बना हो. हम दोनों अपने व्यापार और आर्थिक बेहतरी के लिए हिन्द-प्रशांत में समुद्री गलियारे(सी लेन) तक मुक्त और खुली पहुंच पर निर्भर हैं. उन्होंने आगे कहा कि, "भारत की मेरी यात्रा भारत-प्रशांत और उससे आगे ऑस्ट्रेलिया के दृष्टिकोण के केंद्र में भारत को शामिल करने के लिए मेरी सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है" उन्होंने घोषणा की कि भारत इस साल ऑस्ट्रेलिया में टैलिसमैन सैबर वॉर गेम में शामिल होगा, जो हर दो साल में क्वींसलैंड और कोरल सागर के आसपास के क्षेत्रों में नामित(डेजिग्नेटेड) ऑस्ट्रेलियाई डिफेंस फोर्स ट्रेनिंग फैसिलिटी में आयोजित किया जाता है. ऑस्ट्रेलिया इस साल भी भारत, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) और ऑस्ट्रेलिया की नौ सेनाओं की साझा वॉर ड्रिल मालाबार एक्सरसाइज की मेज़बानी करेगा. दोनों नेताओं ने "हिंद महासागर में मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (समुद्री क्षेत्र जागरूकता) के लिए दोनों देशों द्वारा की जा रही पहल का स्वागत किया, रक्षा सूचना साझा करने में बढ़ोतरी और आपसी पहुंच को मजबूत बनाने के लिए परिचालन रक्षा सहयोग को और मजबूत करने पर प्रतिबद्धता दोहराई." दोनों देशों के बीच जुड़ाव का स्तर "पहले से कहीं ज्यादा एक्सरसाइज, संवाद, संचालन" के साथ और मज़बूत हुआ है. न केवल सुरक्षा के क्षेत्र में कई अहम डेवलपमेंट हुए हैं बल्कि क्लीन एनर्जी, रेयर अर्थ मिनरल्स (पृथ्वी पर मिलने वाले दुर्लभ खनिज), शिक्षा जैसे अन्य क्षेत्रों में भी इस साझेदारी को और मज़बूत करने के उद्देश्य से काम किया गया है.
भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध
भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय संबंधों में पिछले पांच वर्षों में तेजी से बदलाव आया है और इसका श्रेय दोनों पक्षों की मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ-साथ साझा चिंताओं, हितों और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को मुक्त, समावेशी और नियम-आधारित बनाने के साझा दृष्टिकोण की वज़ह से है. स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र की आवश्यकता दोनों देशों की विदेश नीतियों का केंद्र है. भारत और ऑस्ट्रेलिया ने हिंद-प्रशांत में एक स्थिर क्षेत्रीय व्यवस्था बनाए रखने की दिशा में एक साथ काम करने के महत्व और क्षमता को महसूस किया है. दृष्टिकोण में यह परिवर्तन निस्संदेह उस बदलाव की वज़ह से भी है जो चीन की बढ़ती चुनौती को लेकर दोनों देशों की नीति और एक्शन लेने के तरीक़े में इन दिनों देखा जा रहा है. भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों की चीन नीति में स्पष्ट रूप से बदलाव आया है. चीन की चुनौती से निपटने में दोनों देश मुख्य रूप से आर्थिक क्षेत्र में अपनी साझेदारी में विविधता लाने की कोशिश करते थे लेकिन इसके साथ अब रक्षा, स्वच्छ ऊर्जा के साथ अहम और रेजिलिएंट (लचीली) सप्लाई चेन में भी बदलाव लाने की कोशिश है. इसने स्वाभाविक रूप से भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूती प्रदान की है.
भारत और ऑस्ट्रेलिया ने हिंद-प्रशांत में एक स्थिर क्षेत्रीय व्यवस्था बनाए रखने की दिशा में एक साथ काम करने के महत्व और क्षमता को महसूस किया है. दृष्टिकोण में यह परिवर्तन निस्संदेह उस बदलाव की वज़ह से भी है जो चीन की बढ़ती चुनौती को लेकर दोनों देशों की नीति और एक्शन लेने के तरीक़े में इन दिनों देखा जा रहा है.
ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के गहरे होते संबंधों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की अपनी महत्वाकांक्षाओं और नीतियों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. दोनों देश क्वाड - भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ बना एक रीज़नल मिनिलैटरल ग्रुपिंग (क्षेत्रीय लघु-पक्षीय समूह) - के अभिन्न अंग हैं और इस समूह के एज़ेंडे को भी आकार दे रहे हैं. हालांकि मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत और क्वाड का विचार शुरू में मुख्य रूप से जापान द्वारा सामने लाया गया था. हालांकि ऑस्ट्रेलिया और भारत दोनों की साझेदारी के साथ अमेरिका की इसमें सक्रिय भागीदारी ने इसे हिंद-प्रशांत में एक संभावित सहकारी ढांचा बना दिया है. ऑस्ट्रेलिया और भारत दोनों ही क्वाड 1.0 का हिस्सा बनने और इस साल ऑस्ट्रेलिया में होने वाले क्वाड लीडर्स समिट और मालाबार एक्सरसाइज़ में हिस्सा लेने से हिचकिचा रहे हैं, ऐसे में ऑस्ट्रेलिया की अपनी विदेश नीति के दृष्टिकोण में वास्तव में बड़ा बदलाव आया है. यह भारत की ख़ुद की यात्रा की तरह है, जहां भारत क्वाड समूह में कम सक्रिय होने के बाद अब पूरी तरह सक्रिय है और समूह को मज़बूती प्रदान करने के लिए क्वाड साझेदार देशों के साथ मिलकर काम करते हुए मुखर रूप से अपने स्वयं के राष्ट्रीय हितों को सामने रख रहा है. यह तथ्य कि भारत की स्थिति हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उल्लेखनीय और मुख्य है इसे ऑस्ट्रेलिया ने भी स्वीकारा है और यह ऑस्ट्रेलिया और अन्य क्वाड देशों की इस स्वीकार्यता में भी परिलक्षित होता है कि वैश्विक मुद्दों पर भारत का स्टैंड अलग हो सकता है जो उसके हित के लिए ज़रूरी है. क्वाड का हिस्सा होने के बावज़ूद भारत के अपने राष्ट्रीय हित हैं. इसका एक उदाहरण यूक्रेन संकट पर भारत का तटस्थ रुख़ है.
यात्रा का महत्त्व
यह यात्रा स्पष्ट रूप से ऑस्ट्रेलिया की ओर से एक संदेश भी है कि इस संबंध को केवल रणनीतिक और सुरक्षा मुद्दों से कहीं अधिक गहरा करने की आवश्यकता है. 10 मार्च 2023 को आयोजित पहले भारत-ऑस्ट्रेलिया वार्षिक शिखर सम्मेलन का एज़ेंडा स्पष्ट रूप से उसी का प्रतिबिंब है. इसके अलावा, प्रधान मंत्री अल्बनीस ने रिन्यूएबल एनर्जी (नवीकरणीय ऊर्जा), व्यापार और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने वाली कई प्रमुख बैठकों की अध्यक्षता की. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची के अनुसार, "अर्थव्यवस्था और व्यापार, रक्षा और सुरक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, शिक्षा, गतिशीलता और डायस्पोरा के साथ-साथ क्षेत्रीय और बहुपक्षीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक व्यापक एज़ेंडा सामने है".
ईसीटीए के परिणामस्वरूप पहले ही ऑस्ट्रेलिया को किए जाने वाले भारतीय निर्यात के 96 प्रतिशत पर शुल्क घटाकर शून्य कर दिया गया है और भारत को ऑस्ट्रेलिया के निर्यात पर 85 प्रतिशत शुल्क कर दिया गया है.
लेकिन इस द्विपक्षीय बैठक का केंद्र बिंदु व्यापार रहा. दिसंबर 2022 में दोनों देशों ने भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (ईसीटीए) पर हस्ताक्षर किए थे. लक्ष्य अब ईसीटीए को एक व्यापक सामरिक आर्थिक साझेदारी समझौते के रूप में आगे बढ़ाना है. ईसीटीए के परिणामस्वरूपपहले ही ऑस्ट्रेलिया को किए जाने वाले भारतीय निर्यात के 96 प्रतिशत पर शुल्क घटाकर शून्य कर दिया गया है और भारत को ऑस्ट्रेलिया के निर्यात पर 85 प्रतिशत शुल्क कर दिया गया है. भारतीय विश्लेषकों के अनुसार, ईसीटीए पर हस्ताक्षर के साथ अगले पांच वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 50 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की संभावना है. इस यात्रा से पहले सिडनी में, पीएम अल्बनीस ने कहा था, "हम जिनके साथ व्यापार करते हैं उनमें अधिक विविधता - और हम जो व्यापार करते हैं उसमें अधिक विविधता लाना जिसका मतलब है कि हमारी अर्थव्यवस्था अधिक लचीली और सुरक्षित है". अभी तक ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों द्वारा भारतीय व्यवसायों में बहुत अधिक निवेश नहीं किया गया है लेकिन यह महसूस किया जा रहा है कि ऑस्ट्रेलियाई कॉर्पोरेट क्षेत्र को भारत में और अधिक निवेश करने की आवश्यकता है. इस संदर्भ में मुंबई में आयोजित भारत-ऑस्ट्रेलिया सीईओ फोरम सही दिशा में एक कदम है. शिखर सम्मेलन के बाद जारी संयुक्त बयान में उल्लेख किया गया कि सीईओ फोरम ने "उभरते आर्थिक और निवेश के अवसरों की तलाश करने और दोनों अर्थव्यवस्थाओं की महत्वपूर्ण पूरकताओं का लाभ उठाने" पर ध्यान केंद्रित किया है. स्वच्छ और हरित ऊर्जा क्षेत्र सबसे अधिक क्षमता प्रस्तुत करता है - "कच्चे माल को लेकर ऑस्ट्रेलिया की तुलनात्मक ताक़त, महत्वपूर्ण खनिजों और इनोवेटिव रिसर्च के साथ भारत के स्केल, बाज़ार का आकार और कम लागत वाले विनिर्माण स्थान के साथ भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों के बीच साझेदारी का लाभकारी परिणाम निकल सकता है”.ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान के बीच सप्लाई चेन रेजिलिएशन इनिशिएटिव (एससीआरआई) जैसे मौज़ूदा तंत्र को मज़बूत करने के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है. इसलिए नेताओं ने "स्वच्छ ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन, सेमीकंडक्टर, एयरोस्पेस और रक्षा के लिए आवश्यक सुरक्षित, रेजिलिटेंट और टिकाऊ महत्वपूर्ण खनिजों की सप्लाई चेन बनाने" की आवश्यकता पर जोर दिया.
सहयोग के अभी भी कई क्षेत्र हैं जहां दोनों देश आपसी भागीदारी को तलाश सकते हैं. पहला, दक्षिण प्रशांत में कैसे ऑस्ट्रेलिया भारत की भागीदारी को बढ़ा सकता है; दूसरा, जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चुनौतियों से निपटने में ऑस्ट्रेलिया हिंद महासागर द्वीप देशों के साथ काम करने में भारत की मदद कैसे कर सकता है, जिसमें हिंद-प्रशांत द्वीप राष्ट्रों के साथ ऑस्ट्रेलिया के अपने अनुभव से क्या सबक सीख सकता है जो ऐसी ही कठिनाइयों का सामना करने पर मज़बूर है; तीसरा, यह देखते हुए कि ऑस्ट्रेलिया गठबंधन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर इनिशिएटिव (सीडीआरआई) का एक हिस्सा है, कैसे ऑस्ट्रेलिया पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में इस पहल के एक हिस्से के तौर पर भारत के साथ काम कर सकता है; चौथा, भारत और ऑस्ट्रेलिया दक्षिण पूर्व एशिया में एक साथ क्या पहल कर सकते हैं, कैसे दोनों देश पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) जैसे आसियान के नेतृत्व वाले समूह में अपनी सक्रियता बढ़ा सकते हैं;पांचवां, ऑस्ट्रेलिया पहले से ही भारत के इंडो-पैसिफिक इनिशिएटिव के समुद्री संसाधन को लेकर अग्रणी है, लिहाज़ा इसका हिस्सा बनने के लिए और अधिक आसियान देशों और इंडियन ओसन रिम (हिंद महासागर रिम) देशों को एक साथ लाने के लिए दोनों देश और क्या कर सकते हैं. इसके साथ ही आख़िर में ; दोनों देश हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (आईओआरए) को और अधिक प्रभावी और सार्थक कैसे बना सकते हैं. निःसंदेह दोनों देश के बीच संबंध काफी लंबा सफर तय कर चुका है लेकिन व्यापक रणनीतिक साझेदारी के वास्तविक मूल्य को महसूस करने में अभी बहुत किया जाना बाकी है.
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