Author : Reji K. Joseph

Published on Sep 18, 2019 Updated 0 Hours ago

जीडीपी के प्रतिशत के रूप में भारत आरएंडडी पर ख़र्च बढ़ाने में क्यों नाकाम रहा है, इसकी वजहों का पता लगाया जाना चाहिए.

ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स रिपोर्ट में भारत के लिए छिपे सबक

ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (GII) की 12वीं रिपोर्ट भारत में इस साल 24 जुलाई को जारी की गई. इस इंडेक्स यानी सूचकांक में भारत ने तेजी से अपनी रैंकिंग में सुधार किया है. इसके लिए उसकी काफी तारीफ हुई है. पिछले पांच साल में ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भारत ने 29 पायदान की छलांग लगाई है. 2015 में वह इस इंडेक्स में 81वें नंबर पर था, जबकि आज वह 52वीं पोजिशन पर पहुंच चुका है. इसके साथ भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है, जिनकी रैंकिंग में पिछले 9 साल से लगातार सुधार हो रहा है. यहां यह समझना जरूरी है कि GII रैंकिंग में सुधार का भारत के लिए क्या मतलब है?

इनोवेशन के बहुआयामी पहलुओं पर गौर करते हुए ऐसा जरिये पेश करना है, जिनसे लंबी अवधि में प्रोडक्शन ग्रोथ को बढ़ावा देने, प्रॉडक्टिविटी यानी उत्पादकता में सुधार और रोज़गार बढ़ाने की नीतियां बनाने में मदद मिले.

कोर्नेल यूनिवर्सिटी, INSEAD और वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन (WIPO) ने मिलकर GII को तैयार किया है. उसे कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) जैसे नॉलेज पार्टनर्स का सहयोग भी हासिल है. इस इंडेक्स में इनोवेशन के कई पहलुओं के आधार पर देशों को नंबर दिए जाते हैं. इसका मकसद ‘इनोवेशन के बहुआयामी पहलुओं पर गौर करते हुए ऐसा जरिये पेश करना है, जिनसे लंबी अवधि में प्रोडक्शन ग्रोथ को बढ़ावा देने, प्रॉडक्टिविटी यानी उत्पादकता में सुधार और रोज़गार बढ़ाने की नीतियां बनाने में मदद मिले.’ 80 मानकों के आधार पर इंडेक्स के लिए नंबर दिए जाते हैं, जिन्हें सात वर्गों में बांटा गया है. इनमें से पांच को इनोवेशन इनपुट सब-इंडेक्स में रखा गया है, जबकि दो को इनोवेशन आउटपुट सब-इंडेक्स में. सभी सात वर्गों के लिए स्कोर उनके तहत आने वाले संकेतकों के औसत के आधार पर कैलकुलेट किया जाता है. इसलिए GII स्कोर असल में इनोवेशन इनपुट और आउटलुक सब-इंडेक्स का औसत है. कई बार GII स्कोर सीधे तौर पर नीतिगत मसलों की तरफ इशारा नहीं करता. मिसाल के लिए, 2019 के GII में सिंगापुर को 8वीं और चीन को 14वीं रैंकिंग मिली थी. इससे ऐसा लगता है कि सिंगापुर इनोवेशन में काफी आगे है और वह चीन से बेहतर है. इनोवेशन इनपुट सब-इंडेक्स यानी उप-सूचकांक में सिंगापुर को पहली रैंकिंग और चीन को 8वीं रैंकिंग मिली है. दूसरी तरफ, इनोवेशन आउटपुट सब-इंडेक्स में चीन पांचवें नंबर पर है, जबकि इसमें सिंगापुर को 15वीं रैंकिंग मिली है. पिछले साल तक GII इनपुट को आउटपुट में बदलने को लेकर आसान और असरदार मानक का इस्तेमाल करता था, जिसे इनोवेशन एफिशिएंसी रेश्यो कहते हैं. यह इनपुट सब-इंडेक्स और आउटलुक सब-इंडेक्स का रेश्यो है. जो देश इनोवेशन के मामले में काफी आगे हैं, उनके लिए यह रेश्यो एक के करीब होना चाहिए. अगर चीन और सिंगापुर के 2019 इनोवेशन एफिशिएंसी रेश्यो की तुलना करें तो चीन 0.93 के साथ एक के काफी करीब है. दूसरी तरफ, सिंगापुर के लिए यह रेश्यो 0.62 है. फिर आप इन दोनों में किस देश को अधिक इनोवेटिव कहेंगे?

जब जीडीपी के अनुपात में आरएंडडी पर ख़र्च घट रहा हो, तब क्या किसी देश के लिए ग्लोबल इनोवेशन रैंकिंग में तेजी से सुधार करना संभव है?

सिंगापुर जो अधिक इनोवेशन इनपुट का इस्तेमाल करता है या चीन, जो कम इनपुट के साथ अधिक इनोवेटिव आउटपुट देता है? कहने का मतलब यह है कि GII की ओवरऑल रैंकिंग पर नीति-निर्माण के संकेतकों के लिए बहुत हद तक आश्रित नहीं रहा जा सकता. इस साल की ग्लोबल इनोवेशन रैंकिंग के मुताबिक, भारत उन चार देशों में शामिल है, जहां प्रति व्यक्ति जीडीपी की तुलना में इनोवेशन अधिक हुआ है. इसमें वियतनाम को 42वीं रैंकिंग मिली है. उसने रिसर्च और डिवेलपमेंट पर ख़र्च में अच्छी-ख़ासी बढ़ोतरी की है. 2012 में वह अपने जीडीपी का 0.2 प्रतिशत हिस्सा इस पर ख़र्च कर रहा था, जबकि 2019 में यह बढ़कर 0.5 प्रतिशत हो गया. केन्या को इस साल 64वीं रैंकिंग मिली है. उसने भी 2012 के 0.4 प्रतिशत की तुलना में रिसर्च एंड डिवेलपमेंट पर ख़र्च बढ़ाकर जीडीपी का 0.8 प्रतिशत कर दिया है. हालांकि, इस दौरान भारत का आरएंडडी पर ख़र्च 0.8 प्रतिशत से घटकर 0.6 प्रतिशत हो गया है (फिगर 1). इन आंकड़ों से यह सवाल उठता है कि जब जीडीपी के अनुपात में आरएंडडी पर ख़र्च घट रहा हो, तब क्या किसी देश के लिए ग्लोबल इनोवेशन रैंकिंग में तेजी से सुधार करना संभव है? यह बात सही है कि आरएंडडी, इनोवेशन का सिर्फ एक इनपुट है, लेकिन यह किसी देश की इनोवेशन की क्षमता दिखाने वाला सबसे निर्णायक इंडिकेटर है.

इसे देखते हुए GII 2019 में भारत के लिए तीन सबक छिपे हैं. पहला, भारत को सावधानी से इसकी पड़ताल करनी चाहिए कि क्या आरएंडडी ख़र्च पर भारत के आंकड़े सही हैं. डिपार्टमेंट ऑप साइंस एंड टेक्नोलॉजी (DST) देश में आरएंडडी ख़र्च के आंकड़े जुटाता है. कंपनियां अपने इन-हाउस आरएंडडी की मान्यता के लिए डिपार्टमेंट ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (DSIR) के पास जो आवेदन देती हैं, वह उनसे ये आंकड़े हासिल करता है. दूसरी कंपनियों के मामले में वह उनकी सालाना रिपोर्ट से इस बारे में जानकारी जुटाता है. इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज इन इंडस्ट्रियल डिवेलपमेंट (ISID) की शोध से यह बात सामने आई है कि कई कंपनियां रिसर्च एंड डिवेलपमेंट ख़र्च नहीं दिखाती. [1] साल 2004 से 2016 के बीच रिसर्च एंड डिवेलपमेंट में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) हासिल करने वाली 46 कंपनियों (इनमें से 32 विदेशी इकाइयां हैं) [2] की हालिया सालाना रिपोर्ट के विश्लेषण से पता चला कि इनमें से सिर्फ तीन कंपनियों (6.5 प्रतिशत) ने आरएंडडी ख़र्च की जानकारी दी थी. [3] इसका मतलब यह नहीं है कि दूसरी कंपनियां आरएंडडी नहीं कर रही हैं. इनमें से कइयों ने पेटेंट हासिल किए हैं और SCOPUS पत्रिकाओं में वे इससे संबंधित चीजें प्रकाशित करा चुकी हैं. हालांकि, GII 2019 से पता चलता है कि भारत में विदेश में ख़र्च किए गए रिसर्च एंड डिवेलपमेंट वर्क पर आंकड़ों का अभाव है. दूसरी बात यह है कि इंफॉर्मेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजीज (ICT) की ग्रोथ से कई आरएंडडी कामकाज उसमें शिफ्ट हो गए हैं. हालांकि, आंकड़ों के अभाव में भारत में इनोवेशन की क्षमता पर आरएंडडी सर्विसेज इंडस्ट्री के बढ़ते असर के बारे में पक्के तौर पर कुछ भी कहना संभव नहीं है.

ब्रिटिश अख़बार फ़ाइनेंशियल टाइम्स के FDI मार्केट्स डेटा के मुताबिक, निवेश करने वाली कंपनियों की संख्या, प्रोजेक्ट्स की संख्या और रोज़गार पैदा करने के लिए लिहाज़ से 2003 से 2018 के बीच डिज़ाइन, डिवेलपमेंट एंड टेस्टिंग (DDT) के आरएंडडी में भारत सबसे आगे है

अमेरिका की सरकारी संस्था, नेशनल साइंस फ़ाउंडेशन (NSF) के 2018 साइंस एंड इंजीनियरिंग इंडिकेटर्स बताते हैं कि 2014 में अमेरिकी कंपनियों ने भारत में दो तिहाई आरएंडडी सेवा क्षेत्र यानी गैर-मैन्युफैक्चरिंग कामकाज में किए थे. ऊपर जिस ISID रिसर्च का जिक्र किया गया है, उसमें भी बताया गया है कि 2004 से 2016 के बीच आरएंडडी में जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ, वह सर्विस सेक्टर यानी सेवा क्षेत्र के लिए था. इनमें ICT, नेचुरल साइंस एंड इंजीनियरिंग (NSE) और क्लिनिकल रिसर्च शामिल हैं. भारत का सेवा क्षेत्र में निर्यात 2011-12 में 79.3 करोड़ डॉलर था, जो 2017-18 में बढ़कर 316.3 करोड़ डॉलर हो गया था. GII 2019 रिपोर्ट में भी इसका जिक्र है कि ICT सेवाओं के निर्यात में भारत दुनिया में पहले नंबर पर है. कई अन्य रिपोर्ट्स से भी संकेत मिलता है कि आरएंडडी में विदेशी निवेश के लिहाज से भारत दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल हो गया है. ब्रिटिश अख़बार फ़ाइनेंशियल टाइम्स के FDI मार्केट्स डेटा के मुताबिक, निवेश करने वाली कंपनियों की संख्या, प्रोजेक्ट्स की संख्या और रोज़गार पैदा करने के लिए लिहाज़ से 2003 से 2018 के बीच डिज़ाइन, डिवेलपमेंट एंड टेस्टिंग (DDT) के आरएंडडी में भारत सबसे आगे है (टेबल 1). [4] इसलिए भारत में सेवा क्षेत्र में बढ़ रहे आरएंडडी और देश में इनोवेशन की क्षमता पर इसके असर को समझना जरूरी है, तभी इसका लाभ उठाने के लिए सही नीतियां बनाई जा सकेंगी.

टेबल 1: जनवरी 2003 से दिसंबर 2018 के बीच डिज़ाइन, डवलेपमेंट और टेस्टिंग में ग्रीनफील्ड इनवेस्टमेंट के शीर्ष 5 ठिकाने

Destination Country No. of Projects Capital Expenditure ($mn.) No. of Jobs Created No. of Companies Investing
India 1,995 60,442.7 5,61,712 1,296
China 1,606 70,322.2 2,96,752 1,012
United States 1,341 37,827.3 1,27,478 974
United Kingdom 990 18,697.3 63,955 745
Germany 605 9,670.4 30,165 501
Grand Total 13,753 4,02,249.6 18,71,395 6,539

स्रोत: FDI मार्केट्स, फ़ाइनेंशियल टाइम्स

अंत में, जीडीपी के प्रतिशत के रूप में भारत आरएंडडी पर ख़र्च बढ़ाने में क्यों नाकाम रहा है, इसकी वजहों का पता लगाया जाना चाहिए. सरकार ने निजी क्षेत्र के सहयोग से आरएंडडी ख़र्च को जीडीपी के 2 प्रतिशत तक ले जाने के लिए साइंस, टेक्नोलॉजी और इनोवेशन पॉलिसी का ऐलान किया था, लेकिन अभी तक इसमें सफलता नहीं मिली है. ग्रॉस आरएंडडी एक्सपेंडिचर पर निजी क्षेत्र का ख़र्च आधे से कम है, जो GII में शीर्ष रैंकिंग हासिल करने वाले अन्य देशों की तुलना में कम है. GII की रिपोर्ट्स से पता चलता है कि 2013 से 2019 के बीच ‘बिज़नेस वर्ग में आरएंडडी ख़र्च’ में भारत की रैंकिंग 49 से घटकर 42 हो गई है.


References

[1] FDI in R&D and Development of National Innovation Capabilities: A Case Study of India funded by Indian Council of Social Science Research (ICSSR), Ministry of Human Resource Development, Government of India. Part of this study is published as a working paper of ISID titled FDI in R&D in India: An Analysis of Recent Trends.

[2] 17 firms in ICT sector, 19 firms in Natural Science and Engineering and 10 firms in Pharmaceuticals.

[3] Among the 32 foreign subsidiaries, only one reported R&D expenditure. Firms either mention R&D expenditure as ‘nil’ or does not mention anything about R&D.

[4] This data has been compiled based on the announcements made by investors. It is not necessary that all the announcements have been materialised. However, this data is useful in understanding the trends.

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