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Published on Sep 17, 2024 Updated 0 Hours ago

जैव खतरे के सामने महिलाओं की बिल्कुल अलग किस्म की असुरक्षा और योगदान का समाधान करने के उद्देश्य से नीति तैयार करने के लिए जैव सुरक्षा के नेतृत्व में लैंगिक दूरी को ख़त्म करना बेहद ज़रूरी है.

‘बायो-सिक्योरिटी’ में लीडरशिप की भूमिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व!

मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी की दस्तक ने दुनिया को अप्रत्याशित ढंग से प्रभावित किया. जलवायु संकट और कम खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ वायरस के ख़राब नतीजों को लेकर महिलाएं संवेदनशील थीं. UNDP और UN वूमन की 2022 की एक रिपोर्ट में 226 देशों और क्षेत्रों के द्वारा लागू किए गए 5,000 उपायों का विश्लेषण किया गया. रिपोर्ट में इलाज, नीति निर्माण में प्रतिनिधित्व और नेतृत्व के मामले में अग्रिम पंक्ति में महिलाओं की लगातार ख़राब स्थिति पर प्रकाश डाला गया. भारत में ये कोविड-19 के लिए राष्ट्रीय टास्क फोर्स में केवल 12.5 प्रतिशत महिलाओं की सदस्यता के रूप में दिखा. 

बायोसेफ्टी, स्वास्थ्य और यहां तक कि जैव सुरक्षा (बायो-सिक्योरिटी) में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है, विशेष रूप से तेज़ी से बदलते जैव सुरक्षा के परिदृश्य को देखते हुए.

बायोसेफ्टी, स्वास्थ्य और यहां तक कि जैव सुरक्षा (बायो-सिक्योरिटी) में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है, विशेष रूप से तेज़ी से बदलते जैव सुरक्षा के परिदृश्य को देखते हुए. परमाणु सुरक्षा जैसे सुरक्षा के दूसरे क्षेत्रों में पुरुषों के वर्चस्व को जहां व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है और इन क्षेत्रों में अधिक महिला प्रतिनिधित्व की आवश्यकता पर अक्सर प्रकाश डाला जाता है, वहीं इस तरह की ज़रूरत को जैव सुरक्षा के मामले में लागू नहीं किया गया है. ये चूक महत्वपूर्ण है क्योंकि कम प्रतिनिधित्व वाले लिंग के लिए जैव सुरक्षा के अनूठे निहितार्थ हैं जो काफी हद तक अनसुलझे रहते हैं. निर्णय लेने की भूमिकाओं में लैंगिक विविधता की अनुपस्थिति नीतिगत विकास में कमज़ोरी की तरफ ले जा सकती है जहां जेंडर के हिसाब से विशिष्ट असुरक्षाओं और पहलुओं को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है. जैव सुरक्षा के संदर्भ में ये कमी विशेष रूप से चिंताजनक है जहां महामारियों और जैविक हमलों जैसे ख़तरों का असर अलग-अलग लिंगों के हिसाब से काफी अलग हो सकता है. 

महिलाओं को सुरक्षा में शामिल करने का वैश्विक प्रयास

सुरक्षा में महिलाओं की हिस्सेदारी के मुद्दे का समाधान करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने कुछ कदम उठाए हैं. महिलाओं और सुरक्षा पर इस ध्यान को सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1325 (UNSCR 1325) के साथ अक्टूबर 2000 में आगे बढ़ाया गया. इस ऐतिहासिक प्रस्ताव ने सदस्य देशों को संघर्षों की रोक-थाम, उनसे निपटने और उनका हल करने के लिए ज़िम्मेदार संस्थानों में सभी निर्णय लेने के स्तर में महिलाओं की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने को कहा. सुरक्षा और संघर्ष के समाधान में महिलाओं के महत्वपूर्ण योगदान को स्वीकार करने में UNSCR 1325 को अभूतपूर्व कदम के रूप में माना गया. इसके बाद इससे संबंधित सुरक्षा परिषद के कई प्रस्तावों, जिनमें UNSCR का 1820, 1888, 1889, 1960, 2106, 2122, 2242 और 2467 शामिल हैं, ने शांति और सुरक्षा से जुड़ी पहल में महिलाओं को जोड़ने के महत्व को और मज़बूत किया.  

UNSCR 1325 और उसके बाद के प्रस्तावों ने इस बात में बड़े परिवर्तन का प्रतिनिधित्व किया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय सुरक्षा में महिलाओं की भूमिका को कैसे दिखता है. शुरुआत में ध्यान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने पर था यानी शांति प्रक्रियाओं के दौरान मंच पर महिलाओं की भागीदारी पर था. लेकिन जैसे-जैसे चर्चा आगे बढ़ती गई, वैसे-वैसे UNSCR 1889 जैसे प्रस्तावों को लाया गया और इस तरह महिलाओं की सक्रिय हिस्सेदारी पर ज़ोर दिया गया. प्रतिनिधित्व से भागीदारी की तरफ ये बदलाव शांति निर्माण में ज़रूरी किरदार के रूप में महिलाओं की बढ़ती मान्यता को दिखाता है जो न केवल निष्क्रिय लाभार्थी हैं बल्कि सार्थक ढंग से नतीजों को आकार देने में सक्षम परिवर्तन की गतिशील एजेंट भी हैं. हाल के वर्षों में 2019 में UNSCR ने प्रस्ताव 2493 पेश किया जिसमें पूर्व के सभी प्रस्तावों की फिर से पुष्टि की गई और विशेष रूप से महिलाओं के लिए सुरक्षा के सभी क्षेत्रों में सक्रिय हिस्सेदारी पर चर्चा की गई. साथ ही संघर्ष के क्षेत्रों में यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के लिए उत्तरजीवी (सर्वाइवर) केंद्रित दृष्टिकोण की पुष्टि की गई.  

लेकिन इन घटनाक्रमों के बावजूद रसायनिक, जैविक, परमाणु और रेडियोलॉजिकल (CBRN) हथियारों के महिलाओं पर असर के बारे में स्पष्ट प्रस्ताव का उल्लेख अप्रसार पर UNSCR के सबसे हालिया प्रस्ताव 2663 में नहीं किया गया है.  

इन अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र ने अपने सदस्य देशों को UNSCR 1325 और इससे संबंधित प्रस्तावों को लागू करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय कार्य योजना (NAP) विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया है. 56 देशों ने कम-से-कम एक NAP तैयार की है. लेकिन कुल तैयार NAP में से 30 प्रतिशत से अधिक 2022 में समाप्त होने वाली थीं. भारत ने शांति और सुरक्षा में महिलाओं (WIPS) के लिए एक भी NAP तैयार नहीं किया है. 

शांति स्थापना, सुरक्षा और कूटनीति में दुनिया के एक महत्वपूर्ण किरदार के रूप में भारत को शांति और सुरक्षा में महिलाओं पर एक राष्ट्रीय कार्य योजना विकसित करने से बहुत कुछ हासिल करना है. 

शांति स्थापना, सुरक्षा और कूटनीति में दुनिया के एक महत्वपूर्ण किरदार के रूप में भारत को शांति और सुरक्षा में महिलाओं पर एक राष्ट्रीय कार्य योजना विकसित करने से बहुत कुछ हासिल करना है. NAP और विशेष रूप से जैव सुरक्षा पर राष्ट्रीय कार्य योजना के ज़रिए शांति और सुरक्षा में महिलाओं को शामिल करने वाला एक वैश्विक किरदार अमेरिका है. ये अमेरिका की 2022 की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में देखा जा सकता है जो अर्थव्यवस्था से लेकर शिक्षा तक सुरक्षा से जुड़े कई क्षेत्रों में महिलाओं और दूसरे अल्पसंख्यक समूहों में निवेश और उन्हें शामिल करने पर ध्यान देती है. 2010 के क्वॉड्रेनियल डिप्लोमेसी एंड डेवलपमेंट रिव्यू (चतुष्कोणीय कूटनीति एवं विकास समीक्षा या QDDR) के बाद अमेरिकी सरकार में कई महिलाओं को हथियार नियंत्रण, निरस्त्रीकरण और अप्रसार, विशेष रूप से जैव सुरक्षा, में नेतृत्व की भूमिकाओं में देखा गया. 

राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति तैयार करने और उसे प्रकाशित करने में भारत ने झिझक दिखाई है. ऐसे में NAP दस्तावेज की कमी अप्रत्याशित नहीं है. हालांकि ऐसे दस्तावेज के परिणामों को शामिल किया जाना चाहिए. अमेरिका में महिलाओं के पास मौजूद नेतृत्व के अवसरों से सीखकर भारत दुनिया की सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों को जोड़ सकता है और इस तरह अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मज़बूत कर सकता है और महिलाओं के लिए संवेदनशील शासन व्यवस्था का नेतृत्व करने वाले देश के रूप में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ा सकता है. जैसा कि पहले बताया गया है, बायो-सिक्योरिटी और बायोसेफ्टी में महिलाओं की भागीदारी बेहद आवश्यक है. जैव सुरक्षा में महिलाओं को शामिल करने की ज़रूरत है क्योंकि महामारी विज्ञान की रिसर्च को जैविक युद्ध के शिकार लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर ज़्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है. साथ ही रिसर्च को ये भी देखना पड़ता है कि जैविक हमले लिंग के आधार पर अलग-अलग ढंग से कैसे प्रभावित करते हैं. बायोलॉजिकल एजेंट लिंग के आधार पर अलग-अलग इम्यून प्रतिक्रिया और इलाज के नतीजे पैदा कर सकते हैं. इसके अलावा, उभरती तकनीकों और संभावित एजेंट की वजह से जैविक युद्ध के दायरे का विस्तार हो रहा है जो जेंडर की पहचान और वर्ग एवं संसाधन की पहुंच के साथ उसके एकीकरण के आधार पर विशेष समूहों को निशाना बना सकता है. 

साथ ही, क्षेत्रीय संघर्षों से लेकर आंतरिक उग्रवाद तक भारत की अनूठी सुरक्षा चुनौतियां शांति और सुरक्षा के लिए लैंगिक रूप से जवाबदेह दृष्टिकोण की आवश्यकता पर ज़ोर देती हैं. भारत में महिलाएं, विशेष रूप से संघर्ष से प्रभावित क्षेत्रों में, अक्सर हिंसा और अस्थिरता का खामियाजा भुगतती हैं. महिलाओं की नुमाइंदगी स्वास्थ्य देखभाल की उपलब्धता को सुनिश्चित करने और मोर्चे पर मौजूद लोगों को प्राथमिकता देने वाली नीतियां तैयार करने में निर्णय लेने की प्रक्रिया को तेज़ करने में मदद कर सकती है, विशेष रूप से जैव सुरक्षा में. महिलाओं का प्रतिनिधित्व लक्ष्य आधारित नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करने की सुविधा प्रदान करेगा जो संघर्ष और संघर्ष के बाद की स्थिति में महिलाओं के सामने मौजूद अनूठी आवश्यकताओं और चुनौतियों का समाधान करते हैं. ऐसा दृष्टिकोण सुनिश्चित करेगा कि सुरक्षा से जुड़ी पहल अधिक व्यापक हों और ज़मीनी वास्तविकताओं को लेकर जवाबदेह हों. अंत में ये अधिक टिकाऊ शांति और स्थिरता की ओर ले जाएगा. 

घरेलू सरकारों के लिए परिवर्तन को लागू करना 

भारत में बायो-सिक्योरिटी और बायोसेफ्टी को अक्सर एक साथ रखा जाता है और जैव तकनीक विभाग के तहत इनकी निगरानी की जाती है. शासन व्यवस्था से जुड़े अधिकतर दूसरे संगठनों की तरह इस विभाग के पास भी महिला नेतृत्व की कमी है और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के साथ ये विभाग बहुत कम या बिल्कुल भी नहीं मिलता है. निर्णय लेने वाले पदों में अधिक महिलाओं के साथ समावेशिता की तरफ ये बदलाव जोड़ने के एक अधिक महत्वपूर्ण हिस्से का वादा करता है- ये देखते हुए कि जैविक एजेंट का असर लिंग विशिष्ट हो सकता है या लिंग के आधार पर अलग-अलग हो सकता है- जिस पर अतीत में विचार नहीं किया गया था और जो जैव सुरक्षा जवाबदेही को बढ़ा सकता है. ये लिंग विशिष्ट कमज़ोरियां अलग-अलग तरीके से दिख सकती हैं. उदाहरण के लिए, महिलाएं देखभाल के मामले में अक्सर सबसे आगे होती हैं. इसकी वजह से परिवार के बीमार सदस्यों की देखभाल करते समय उन्हें संक्रामक बीमारियां होने या ख़तरनाक सामग्रियों के संपर्क में उनके आने की आशंका अधिक हो जाती है. इसके अलावा, महिलाओं की सेहत से जुड़ी आवश्यकताओं जैसे कि प्रजनन स्वास्थ्य को जैव सुरक्षा संकट के दौरान विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता पड़ सकती है. 

निर्णय लेने वाले पदों में अधिक महिलाओं के साथ समावेशिता की तरफ ये बदलाव जोड़ने के एक अधिक महत्वपूर्ण हिस्से का वादा करता है- ये देखते हुए कि जैविक एजेंट का असर लिंग विशिष्ट हो सकता है या लिंग के आधार पर अलग-अलग हो सकता है

इसके लिए, भारत और इस तरह के दृष्टिकोण की कमी वाली किसी भी दूसरी सरकार के पास नीति बनाने की प्रक्रिया में लैंगिक नज़रिया ज़रूर होना चाहिए. अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के द्वारा पहले ही सरकारी स्तर के बदलावों का संकेत दिया गया है, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र के द्वारा राष्ट्रीय कार्य योजना की वकालत, ऐसे में अलग-अलग सरकारों को घरेलू स्तर पर नीचे से ऊपर तक भागीदारी को ज़रूर सुनिश्चित करना चाहिए. इसकी शुरुआत बायो-सिक्योरिटी, बायोसेफ्टी और स्वास्थ्य के लिए ट्रेनिंग कार्यक्रमों के साथ होगी जिनमें लैंगिक संवेदनशीलता और जागरूकता पर मॉड्यूल होने चाहिए. लैंगिक पहलुओं के महत्व पर कर्मियों को शिक्षित करने से एक अधिक समावेशी और प्रभावी जवाबदेह ढांचा तैयार करने में मदद मिलेगी. इसके अलावा, महिलाओं को स्कॉलरशिप, मेंटॉरशिप और आउटरीच कार्यक्रमों के ज़रिए इन क्षेत्रों में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करने से लैंगिक रूप से एक अधिक व्यापक वर्कफोर्स तैयार करने में मदद मिल सकती है.  

लिंग के आधार पर विभाजित डेटा इकट्ठा करना विभिन्न जेंडर पर जैव सुरक्षा के ख़तरों और CBRN की घटनाओं के अलग-अलग प्रभावों को समझने के लिए ज़रूरी है. रिसर्च को लिंग विशिष्ट कमज़ोरियों और उनके समाधान के लिए व्यावहारिक रणनीतियों की पहचान करने पर ध्यान देना चाहिए. ये डेटा नीति बनाने में मदद कर सकता है और सुनिश्चित कर सकता है कि प्रतिक्रियाएं सभी लिंगों की आवश्यकताओं के अनुरूप हों. 

समुदायों, विशेष रूप से महिला समूहों, को जोड़ने से जैव सुरक्षा संकट के दौरान महिलाओं की ज़रूरतों और चुनौतियों के बारे में कीमती जानकारी मिल सकती है. समुदाय आधारित दृष्टिकोण सुनिश्चित कर सकता है कि प्रतिक्रिया के प्रयास सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील हैं. 

दूसरे CBRN हथियारों के विपरीत जैविक हथियार और एजेंट किसी व्यक्ति की जैविक संपूर्णता को निशाना बनाते हैं. ये बात प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाले वायरस और पैथोजेन के लिए भी सच है. नीति बनाने में महिलाओं की भागीदारी जहां इस वजह से आवश्यक है कि वो दुनिया की आधा आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं, वहीं ये एक ज़रूरत भी है जिसे तेज़ किया जाना चाहिए और नीति निर्माण के उच्च स्तर के द्वारा इसका समाधान किया जाना चाहिए ताकि अगली पंक्ति में मौजूद लोगों की रक्षा की जा सके. 


श्राविष्ठा अजय कुमार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्युरिटी, स्ट्रैटजी एंड टेक्नोलॉजी में एसोसिएट फेलो हैं. 

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