Author : Hari Seshasayee

Expert Speak Raisina Debates
Published on May 09, 2025 Updated 0 Hours ago

भारत के व्यापार रडार पर लैटिन अमेरिका का महत्व बढ़ रहा है. लैटिन अमेरिका वैश्विक अस्थिरता के ख़िलाफ़ सुरक्षा प्रदान करता है, अहम संसाधनों तक पहुंच उपलब्ध कराता है और ऊर्जा, खनिज और निर्यात संपर्क को मज़बूत बनाता है. 

भारत के आर्थिक विकास में लैटिन अमेरिका की भूमिका: व्यापार से रणनीति तक

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जिस समय बेहद चर्चित ‘व्यापार के शस्त्रीकरण’ का युग शुरू हो रहा है, उस समय भारत अपने आर्थिक साझेदारों का दायरा बढ़ाने के लिए अच्छी स्थिति में है. ये भारत के लिए ऐसे क्षेत्रों की समीक्षा करने का एक नया अवसर प्रस्तुत करता है जिन पर अभी तक कम ध्यान दिया गया था जैसे कि लैटिन अमेरिका. 20वीं शताब्दी के ज़्यादातर समय के दौरान भारत ने लैटिन अमेरिका को अनदेखा किया लेकिन पिछले दो दशकों के दौरान भारत और लैटिन अमेरिका के बीच राजनीतिक संबंधों में फिर से मज़बूती आई है. ये बदलाव 21वीं सदी में व्यापार और निवेश के संबंधों में धीरे-धीरे लेकिन लगातार विस्तार के अनुरूप है. ये कुछ विशेष क्षेत्रों में अधिक स्पष्ट है जैसे कि ऑटोमोबाइल. लैटिन अमेरिका कार, मोटरसाइकिल और ऑटो पार्ट्स के लिए भारत के सबसे महत्वपूर्ण निर्यात बाज़ार में से एक है. 2024 में भारत के मोटरसाइकिल निर्यात का लगभग आधा और कार निर्यात का एक-चौथाई लैटिन अमेरिकी क्षेत्र को भेजा गया. वास्तव में पिछले चार वर्षों के दौरान भारत ने अमेरिका की तुलना में चिली को अधिक कार का निर्यात किया. चिली के बाद पेरू आता है. 

आपको ये जानकर आश्चर्य हो सकता है कि पेरू- जो कि भारत से 15,000 किलोमीटर दूर है- के साथ भारत का व्यापार पड़ोसी देश श्रीलंका के साथ हमारे व्यापार से ज़्यादा है जबकि श्रीलंका के साथ साल 2000 से भारत का मुक्त व्यापार समझौता है.

लैटिन अमेरिका की भूमिका

चिली और पेरू- दोनों ने पिछले दो महीनों के दौरान भारत का ध्यान खींचा है. चिली के राष्ट्रपति गैब्रियल बोरिक ने अप्रैल में भारत का ऐतिहासिक दौरा किया. उनके साथ 50 सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु की यात्रा की. इस यात्रा के दौरान छह मंत्री, चिली की सबसे बड़ी कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEOs), एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल और वाणिज्य मंडलों, फिल्म उद्योग, हेल्थकेयर सेक्टर, स्टार्टअप एवं विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधि भी राष्ट्रपति बोरिक के साथ थे. वैसे तो दोनों देशों ने कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए लेकिन उनमें सबसे उल्लेखनीय था दुनिया की सबसे बड़ी तांबा उत्पादक कंपनी चिली की कोडेल्को के द्वारा कच्छ कॉपर को तांबा (कॉपर कन्सन्ट्रेट) बेचने का फैसला. कच्छ कॉपर अदाणी ग्रुप की एक कंपनी है जिसके पास दुनिया में किसी एक जगह पर सबसे बड़ा गलाने वाला (स्मेल्टर) प्लांट है. इस यात्रा की समाप्ति एक आशाजनक घोषणा के साथ हुई: भारत और चिली जल्द ही एक व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) पर हस्ताक्षर करेंगे. ये संयुक्त अरब अमीरात, जापान और दक्षिण कोरिया के साथ भारत के समझौतों की तर्ज पर एक व्यापक समझौता है. 

भारतीय कंपनियां मुक्त व्यापार समझौतों से भी लाभ उठा सकती हैं क्योंकि अमेरिका ने लैटिन अमेरिका क्षेत्र के 11 देशों के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.

चिली के अलावा पेरू भी सुर्खियों में था. 38 साल के इंतज़ार के बाद पेरू के विदेश मंत्री एल्मर शियालेर सेल्सेडो ने मार्च 2025 में भारत की द्विपक्षीय यात्रा की. उनके साथ विदेश व्यापार और पर्यटन मंत्री के अलावा एक विशाल व्यावसायिक प्रतिनिधिमंडल भी था. भारत और पेरू के द्वारा इस साल एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है. इस समझौते पर बातचीत की शुरुआत 2017 में ही हुई थी. भारत-पेरू के संबंधों के मामले में अब राजनीति अर्थशास्त्र का अनुसरण करती है. आपको ये जानकर आश्चर्य हो सकता है कि पेरू- जो कि भारत से 15,000 किलोमीटर दूर है- के साथ भारत का व्यापार पड़ोसी देश श्रीलंका के साथ हमारे व्यापार से ज़्यादा है जबकि श्रीलंका के साथ साल 2000 से भारत का मुक्त व्यापार समझौता है. नवंबर 2024 में कुछ समय के लिए पेरू सबकी आंखों का तारा बना हुआ था क्योंकि दूसरे देशों के अलावा अमेरिका और चीन के राष्ट्रपति ने एशिया-पैसिफिक आर्थिक सहयोग (APEC) शिखर सम्मेलन के लिए पेरू की राजधानी लीमा का दौरा किया था. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन के द्वारा तैयार चैनके मेगापोर्ट का भी उद्घाटन किया जो पेरू को चीन और एशिया महादेश के व्यापक हिस्से से जोड़ता है. वैसे तो चैनके बंदरगाह का निर्माण चीन ने किया है लेकिन इससे एशिया और लैटिन अमेरिका के बीच व्यापार करने वाले एक बड़े वर्ग को लाभ होगा. इसका एक उदाहरण पेरू की कृषि क्षेत्र की बड़ी कंपनी कैंपोसोल के द्वारा ब्लूबेरी का निर्यात है जिसने फरवरी 2025 में पहली बार चैनके से भारत को इस फल का निर्यात किया. चिली की तरह पेरू के पास भी ऊर्जा परिवर्तन के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण खनिज प्रचुर मात्रा में है और भारतीय कंपनियों ने इस पर ध्यान देना शुरू कर दिया है. भारत की तकनीकी और दवा कंपनियों ने पेरू में अपनी मौजूदगी बढ़ा दी है. पेरू और चिली- दोनों देशों में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज 2,000-2,000 लोगों को रोज़गार देती है. 

आगे की राह 

वैसे तो पेरू और चिली लैटिन अमेरिकी क्षेत्र के नए देश हैं जिन्होंने भारत का ध्यान खींचा है लेकिन बहुत बड़े फलक में ये केवल छोटे उदाहरण हैं. बड़ी तस्वीर ये है: लैटिन अमेरिका भारत के लिए आर्थिक सुरक्षा के रूप में काम कर सकता है और उसे ये करना भी चाहिए. इस संदर्भ में दो रुझान हैं जिनका हमें पालन करना चाहिए. पहला रुझान भारत के तात्कालिक हितों पर आधारित है जहां भारत की ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा के अनुमान में लैटिन अमेरिका एक महत्वपूर्ण तत्व है. इस सूची में एक नया तत्व जोड़ा गया है- महत्वपूर्ण खनिज. लैटिन अमेरिकी क्षेत्र से भारत अपने पेट्रोलियम आयात का लगभग 15 से 20 प्रतिशत हिस्सा मंगवाता है. साथ ही लैटिन अमेरिका भरपूर मात्रा में भारत को वनस्पति तेल एवं कृषि उत्पादों की आपूर्ति करता है. इस क्षेत्र में तांबा, लिथियम, निकेल, कोबाल्ट और दुर्लभ पृथ्वी धातु (रेयर अर्थ मेटल) का भंडार प्रचुर मात्रा में है. भारत की कंपनियां लैटिन अमेरिका से अभी तक केवल तांबा की बड़ी आपूर्ति सुरक्षित करने में सफल हो पाई हैं. दूसरा रुझान इस क्षेत्र के वैल्यू चेन में प्रवेश करना है ताकि भारतीय कंपनियों को दूसरे देशों या क्षेत्रों में उत्पन्न अनिश्चितताओं से बचाया जा सके. ऑटोमोबाइल, फार्मास्युटिकल, कृषि व्यवसाय और सूचना तकनीक क्षेत्रों की भारतीय कंपनियां पहले से ही लैटिन अमेरिका में क्षेत्रीय वैल्यू चेन का हिस्सा हैं. इसका विस्तार किया जाना चाहिए ताकि अमेरिका के द्वारा लागू किए जाने वाले टैरिफ के लिए तैयारी की जा सके क्योंकि लैटिन अमेरिकी देशों पर अमेरिका किसी अन्य क्षेत्र की तुलना में बहुत कम टैरिफ लगाता है. लैटिन अमेरिका में पहले से ही भारत की फार्मास्युटिकल और ऑटोमोबाइल कंपनियों (ऑटो पार्ट्स कंपनियों समेत) की उत्पादन इकाइयां है. भारतीय कंपनियां अब इन इकाइयों से अमेरिका को निर्यात कर सकती हैं और भारत से निर्यात की तुलना में यहां से निर्यात करने पर उन्हें कम टैरिफ का सामना करना पड़ेगा. भारतीय कंपनियां मुक्त व्यापार समझौतों से भी लाभ उठा सकती हैं क्योंकि अमेरिका ने लैटिन अमेरिका क्षेत्र के 11 देशों के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. पिछले तीन दशकों से व्यापार भारत-लैटिन अमेरिका संबंधों का आधार रहा है. लेकिन अब राजनीति और आर्थिक कूटनीति को आगे बढ़ाने का समय आ गया है. 


हरि सेशासायी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में विज़िटिंग फेलो और कॉन्सिलियम ग्रुप के सह-संस्थापक हैं. 

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