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अपने चुनाव प्रचार के दौरान मुइज़्ज़ू ने “इंडिया आउट” नारा दिया था, लेकिन जब उन्हें आर्थिक और सामरिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा तो हकीक़त जल्द समझ आ गई. मालदीव के राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू ने अब भारत के साथ व्यावहारिक कूटनीति की ओर कदम बढ़ाया है.
Image Source: Getty
9 जून 2025 को मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू की पहली भारत यात्रा को एक साल पूरा हो गया. 9 जून 2024 को वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीसरी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने दिल्ली आए थे. मालदीव का राष्ट्रपति बनने के बाद ये उनका पहला भारत दौरा था. हालांकि ऊपरी तौर पर देखने से उनका ये दौरान औपचारिक यानी शपथ ग्रहण के लिए था, लेकिन दोनों देशों के बीच कई महीनों तक चले तनाव के बाद मुइज़्ज़ू का ये दौरा एक सुधार का संकेत था. भारत और मालदीव के बीच तनाव की सबसे बड़ी वजह चुनाव के दौरान मुइज़्ज़ू द्वारा चलाए गई 'इंडिया-आउट' मुहिम थी. मालदीव में चुनाव के दौरान ये मुद्दा एक राष्ट्रवादी राजनीतिक अभियान के रूप में शुरू हुआ, जो 2024 आते-आते एक पूर्ण राजनीतिक और राजनयिक विवाद में तब्दील हो गया. इसने मालदीव को अर्थव्यवस्था और रणनीतिक रूप से एक संवेदनशील स्थिति में डाल दिया. हालांकि जैसे-जैसे वक्त गुज़रा, मुइज़्ज़ू के रुख़ और भारत-मालदीव संबंधों की दिशा में एक सकारात्मक बदलाव सामने आया. ये बदलाव एक लोकप्रिय चुनावी अभियान से व्यावहारिक नीति के पुनर्गठन की ओर इशारा करता है. पिछले एक साल में दोनों देशों ने संबंधों को सामान्य करने की दिशा में जो काम किया है, वो ये साबित करता है कि मालदीव जैसे छोटे देशों के लिए विदेश नीति लोकप्रिय चुनावी नारों से नहीं बल्कि आर्थिक निर्भरता और क्षेत्रीय रणनीतिक आवश्यकताओं से अधिक प्रभावित होती है.
पिछले एक साल में दोनों देशों ने संबंधों को सामान्य करने की दिशा में जो काम किया है, वो ये साबित करता है कि मालदीव जैसे छोटे देशों के लिए विदेश नीति लोकप्रिय चुनावी नारों से नहीं बल्कि आर्थिक निर्भरता और क्षेत्रीय रणनीतिक आवश्यकताओं से अधिक प्रभावित होती है.
दोनों देशों के बीच विवाद 2024 की शुरुआत में पैदा हुआ. मालदीव सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना बनाते हुए सोशल मीडिया पर एक के बाद एक कई भड़काऊ पोस्ट किए. ये टिप्पणियां मोदी की लक्षद्वीप यात्रा के जवाब में की गई थी. इन सोशल मीडिया पोस्ट्स के ज़रिए पीएम मोदी का व्यक्तिगत रूप से मज़ाक उड़ाया गया और अपमानित किया गया. हालांकि, ये पोस्ट आधिकारिक तौर पर नहीं बल्कि व्यक्तिगत क्षमता में किए गए थे, लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दा ये था कि इन पोस्ट्स को करने वाले मुइज़्ज़ू प्रशासन से जुड़े शीर्ष अधिकारी थे. इसके जवाब में भारत की प्रतिक्रिया और भी तेज़ और गंभीर थी. लोगों ने मालदीव में पर्यटन का बहिष्कार करने की मांग की. ये कहा गया कि भारतीयों को घूमने के लिए मालदीव जाने से बचना चाहिए. आखिरकार मालदीव सरकार ने कदम पीछे खींचते हुए अपने अधिकारियों और नागरिकों से सार्वजनिक टिप्पणी में संयम बरतने की अपील की, जिससे कूटनीतिक संबंधों में तनाव और ज्यादा न बढ़े.
हालांकि, मुइज़्ज़ू ने शुरुआत में खेद प्रकट नहीं किया. जनवरी 2024 में चीन की राजकीय यात्रा से लौटने के बाद उन्होंने इसे संप्रभुता का मुद्दा बताया. मुइज़्ज़ू ने संकेत दिया कि भारत “एक बुली यानी दादागिरी करने वाले देश” के तौर पर बर्ताव कर रहा है. मुइज़्ज़ू के ये शब्द उनके "इंडिया-आउट" मुहिम के अनुरूप थे, जो 2023 के चुनावी अभियान में उनकी रणनीति का मुख्य आधार था.
मुइज़्ज़ू की सरकार ने भी अपनी स्वतंत्रता दिखाने के लिए कुछ कदम उठाए, जैसे कि भारतीय सैनिकों को हवाई मंचों का संचालन बंद करने के लिए कहा. लेकिन कुछ ही दिनों में ये स्पष्ट हो गया कि भारत से संबंध बिगाड़ने की मालदीव को ज़्यादा कीमत चुकानी होगी.
हालांकि, मालदीव पहले भी कई बार भारत विरोधी बयानबाज़ी कर चुका था, लेकिन तब उसके लिए इसके नतीजे इतने गंभीर नहीं थे. इस बार भारत के लोगों ने मालदीव के बहिष्कार का जो आह्वान किया, उसके तत्काल और ठोस परिणाम दिखे, विशेष रूप से अर्थव्यवस्था पर इसका असर दिखा. हालांकि, मुइज़्ज़ू की सरकार ने भी अपनी स्वतंत्रता दिखाने के लिए कुछ कदम उठाए, जैसे कि भारतीय सैनिकों को हवाई मंचों का संचालन बंद करने के लिए कहा. लेकिन कुछ ही दिनों में ये स्पष्ट हो गया कि भारत से संबंध बिगाड़ने की मालदीव को ज़्यादा कीमत चुकानी होगी.
हालांकि भारत के साथ चल रहे तनाव के बीच मालदीव ने चीन और खाड़ी देशों के साथ वैकल्पिक साझेदारियां बनाने की कोशिश की, लेकिन बात बनी नहीं और मालदीव सरकार जल्द ही मुश्किल वित्तीय स्थिति में पहुंच गई. मालदीव को विदेशी सहायता उस पैमाने पर नहीं मिली, जैसे उसने उम्मीद लगा रखी थी. चीन से मदद की रफ्तार धीमी रही, क्योंकि मालदीव ने मौजूदा ऋण बोझ के पुनर्गठन की मांग की थी. चीन के इस ऋण बोझ की वजह से मालदीव को नए लोन लेने में दिक्कत आ रही थी. वही दूसरी तरफ, सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों की प्रतिक्रियाएं भी ज़्यादा उत्साहजनक नहीं रही. हालांकि इसकी एक वजह खराब तरीके से की गए बातचीत और कूटनीतिक प्रोटोकॉल में कमियों को भी बताया गया. आर्थिक संकट की आशंका को देखते हुए मुइज़्ज़ू प्रशासन के पास फिर से भारत के साथ जुड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. भारत इस क्षेत्र में मालदीव का सबसे बड़ा विकास और व्यापारिक भागीदार है.
पहले भी कूटनीतिक विवाद के बावजूद, भारत ही ऐसा इकलौता देश बना रहा, जो मालदीव को तुरंत और ठोस सहायता प्रदान करता है. मई 2024 में, भारत ने 50 मिलियन डॉलर के ट्रेजरी बिल का पुनर्भुगतान स्थगित किया. इसके बाद मई 2025 में इसका दूसरे वर्ष के लिए विस्तार दिया. सितंबर 2024 में भी दूसरे ट्रेजरी बिल के लिए एक साल का विस्तार भी दिया गया. इससे मालदीव को अपनी वित्तीय स्थिति को स्थिर करने में मदद मिली.
हालांकि, मालदीव ने भारत के साथ सहयोग के कुछ क्षेत्रों को कम किया, जैसे कि हाइड्रोग्राफी समझौते को समाप्त करना, लेकिन उसने कुछ क्षेत्रों में कटौती के बजाय संतुलित समायोजन का विकल्प चुना. उदाहरण के लिए, भारत द्वारा संचालित विमानन प्लेटफार्मों को ख़त्म करने के बजाय, भारतीय सैनिकों के स्थान पर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के नागरिक तकनीशियनों को लाने पर सहमति बनी, जिससे संचालन जारी रखा जा सके.
9 जून 2024 को प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण में मुइज़्ज़ू की मौजूदगी ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया. हालांकि, उनकी ये यात्रा औपचारिक थी, लेकिन दोनों नेताओं के बीच गर्मजोशी से बातचीत हुई. मुइज़्ज़ू अक्टूबर 2024 में भारत की राजकीय यात्रा पर आए. इससे दोनों देशों के संबंधों में तनाव में और सुधार किया जाएगा.
रिश्तों में सुधार की इस प्रक्रिया को अक्सर उच्च स्तर की यात्राओं से मज़बूती मिली, विशेष रूप से मालदीव के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री का भारत आना काफ़ी फायदेमंद रहा.
दोनों देशों ने आर्थिक विकास और समुद्री सुरक्षा पर केंद्रित द्विपक्षीय सहयोग के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की घोषणा की. ये मुइज़्ज़ू प्रशासन के शुरुआती महीनों की संघर्ष भरे रुख़ में एक बदलाव का प्रतीक है. ये फैसला दिखाता है कि दोनों देश आपसी विश्वास पर आधारित कार्यात्मक संबंध स्थापित करने की दिशा में बढ़ रहे हैं. रिश्तों में सुधार की इस प्रक्रिया को अक्सर उच्च स्तर की यात्राओं से मज़बूती मिली, विशेष रूप से मालदीव के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री का भारत आना काफ़ी फायदेमंद रहा.
संबंधों मं सुधार का एक संकेत मालदीव के उत्तुरु थिलाफालु की एक परियोजना से भी मिला. पहले यहां चीन की मदद से एक कृषि परियोजना स्थापित करना प्रस्तावित था. इस लैगून में भारत की सहायता से बना एक तटरक्षक बंदरगाह भी है. बाद में इस प्रोजेक्ट को दूसरी जगह स्थानांतरित किया गया. हालांकि, मालदीव सरकार ने सार्वजनिक रूप से ऐसा करने के कारणों का उल्लेख नहीं किया, लेकिन माना जा रहा है कि उसने भारत की नाराज़गी को कम करने के लिए ये फैसला लिया.
घरेलू स्तर पर, मुइज़्ज़ू प्रशासन ने प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधने वाली और अपमानजनक टिप्पणियां करने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की. इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों को बर्खास्त किया गया. हालांकि, उन्हें जल्द ही सरकारी उपक्रमों में वरिष्ठ पदों पर नियुक्त किया गया और मुइज़्ज़ू की पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस (पीएनसी) में भी लगातार राजनीतिक गतिविधियों में भागीदारी की अनुमति दी गई. हालांकि, मुइज़्ज़ू सरकार की ये कार्रवाई अनुशासनात्म से ज़्यादा प्रतीकात्मक थी, लेकिन फिर भी इसने तनाव कम करने में मदद की.
भारतीय मीडिया के साथ एक साक्षात्कार में श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने मुइज़्ज़ू को लेकर एक दावा किया, विक्रमसिंघे के मुताबिक मुइज़्ज़ू ने स्वीकार किया कि 'इंडिया आउट' अभियान मुख्य रूप से चुनावी जीत के लिए एक उपकरण था. पिछले 2 साल में दोनों देशों के बीच जो कुछ हुआ है, उसे देखते हुए विक्रमसिंघे की बात सही लगती है.
मुइज़्ज़ू और उनकी सरकार के वरिष्ठ अधिकारी खुद को “इंडिया आउट” अभियान से जुड़ी भड़काऊ घटनाओं से दूर रखने की कोशिश कर रहे हैं. ज़्यादातर आरोप मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की ओर मोड़ दिए गए, जो मुइज़्ज़ू के पूर्व बॉस हैं, और अब राजनीतिक रूप से उनसे अलग हो चुके हैं. हालांकि, मुइज़्ज़ू प्रशासन के रवैये में आए इस बदलाव को घरेलू राजनीति में नोटिस किया जा चुका है. “इंडिया आउट” अभियान में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले कई व्यक्तियों को अब उन बयानों के विपरीत विदेश नीति में बदलाव का प्रबंधन करने का काम सौंपा गया है
भारत के नज़रिए से देखें तो मालदीव के रुख़ में निरंतरता की कमी कुछ सवाल उठा सकती है, लेकिन भारत की प्रतिक्रिया अब तक संयमित रही है. भारत का मानना है कि क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखना सार्वजनिक आरोप-प्रत्यारोप में शामिल होने की तुलना में बेहतर है. इसी का नतीजा है कि द्विपक्षीय जुड़ाव फिर से शुरू हुआ है, जिसमें पिछले साल के विवाद पर कम ध्यान दिया गया है. भारत ने दो करेंसी अदला-बदली के रूप में मालदीव को 757 मिलियन डॉलर के बराबर मदद दी है. मालदीव के लिए ये सहायता एक लाइफलाइन की तरह है. भारत से 800 मिलियन डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट के तहत बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के विकास कार्य भी जारी है. इसमें उत्तरी मालदीव में एक नया अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, दक्षिणी मालदीव में एक पुल और सड़क परियोजना, राजधानी माले में एक बड़ी आवास विकास परियोजना, और माले द्वीप को उसके पश्चिमी उपनगरीय द्वीपों से जोड़ने वाला एक नया पुल जैसी परियोजनाएं शामिल हैं.
हाल ही में दोनों देशों ने उच्च प्रभाव सामुदायिक विकास परियोजनाओं के फेज़-3 के तहत तेरह समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके ज़रिए देशव्यापी नौका नेटवर्क को बढ़ाने के लिए 100 मिलियन एमवीआर यानी 6.4 मिलियन डॉलर की अनुदान राशि वितरित की जाएगी.
हालांकि, भारत के साथ मालदीव के संबंध अब ज़्यादा स्थिर दिख रहे हैं, लेकिन मुइज़्ज़ू प्रशासन ने अपनी रणनीतिक साझेदारियों के विविधीकरण की कोशिशों को पूरी तरह से छोड़ा नहीं है. मुइज़्ज़ू ने चुनाव के दौरान मालदीव की स्वतंत्र सैन्य क्षमता विकसित करने का वादा किया था. यही वजह है कि अपने चुनावी वादों के मुताबिक, मुइज़्ज़ू सरकार ने निगरानी, खोज और बचाव के लिए भारतीय हेलीकॉप्टरों के स्थान पर तुर्की निर्मित ड्रोन खरीदे. मालदीव के ध्वज वाहक विमान को अब एयर एंबुलेंस में तब्दील कर दिया गया है. शुरुआती संकोच के बावजूद, मुइज़्ज़ू सरकार ने मालदीव में भारतीय विमानन प्लेटफार्मों का इस्तेमाल फिर से शुरू कर दिया. मालदीव को जल्द ही तुर्की से डोगन-क्लास पोत और अगले साल ऑस्ट्रेलिया से गार्जियन-क्लास गश्ती नौका मिलने जा रही है.
इन नई सैन्य खरीदारियों को संप्रभुता स्थापित करने और दूसरे देशों पर सुरक्षा निर्भरता को कम करने के व्यापक प्रयास के हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि, ये रणनीतिक हेजिंग का एक रूप भी हैं, जो भारतीय हितों की पूरी तरह अनदेखी किए बिना मालदीव को अपने विदेशी संबंधों को नए सिरे से संतुलित करने की अनुमति देते हैं.
भारत भी अपनी तरफ से मालदीव के इन कदमों के प्रति सहिष्णु रुख़ अपनाता दिख रहा है. भारत का मानना है कि एक संप्रभु राष्ट्र को अपनी भागीदारी में विविधता लाने का अधिकार है. इसे किसी के विरोध के तौर पर नहीं देखना चाहिए. व्यापक दिशा-निर्देश ये सुझाव दे रहे हैं कि दोनों देश राष्ट्रीय हितों और क्षेत्रीय स्थिरता को संतुलित करने के लिए काम कर रहे हैं. बिना किसी भी पक्ष के लिए अस्थिरता का परिणाम देने वाली संवेदनाओं का उल्लंघन किए बिना ऐसा किया जा सकता है.
मुइज़्ज़ू के कार्यालय में पहले वर्ष के दौरान भारत-मालदीव संबंध ये दिखाते हैं कि घरेलू चुनावी बयानबाजी अलग होती है और अंतर्राष्ट्रीय हकीक़त अलग. चुनाव अभियान में जो शब्द या नारे हानिरहित दिखते हैं, वो भू-राजनीतिक और आर्थिक वास्तविकताओं के सामने झुक सकते हैं. “इंडिया आउट” नारा चुनावी प्रचार में प्रभावी साबित हो सकता है, लेकिन सरकार चलाने के लिए व्यावहारिकता की आवश्यकता होती है. आर्थिक निर्भरता, सामरिक भूगोल, और आपसी हितों ने संबंधों को एक बार फिर से संतुलित करने की ज़रूरत पैदा की. दोनों देशों की सरकारें अब ऐसा ही कर रही हैं, लेकिन इस बार वो इसमें सावधानी भी बरत रही हैं.
मालदीव की कुछ भड़काऊ कार्रवाइयों के बावजूद, भारत ने रणनीतिक संयम चुनने का निर्णय लिया. सार्वजनिक टकराव के बिना आर्थिक और कूटनीतिक जुड़ाव को जारी रख कर भारत ने मालदीव पर अपने क्षेत्रीय प्रभाव और हितों को बनाए रखा. इसने मुइज़्ज़ू को भी अपनी छवि को नुकसान पहुंचाए बिना संबंधों को बेहतर करने का मौका दिया.
जहां तक मुइज़्ज़ू प्रशासन का सवाल है, पिछले एक साल के मुश्किल हालातों ने उसे ये सबक सिखाया है कि एक क्षेत्रीय शक्ति के ख़िलाफ़ लड़ाई का दिखावा करना घरेलू रूप से लोकप्रिय हो सकता है लेकिन इसके महंगी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
जहां तक मुइज़्ज़ू प्रशासन का सवाल है, पिछले एक साल के मुश्किल हालातों ने उसे ये सबक सिखाया है कि एक क्षेत्रीय शक्ति के ख़िलाफ़ लड़ाई का दिखावा करना घरेलू रूप से लोकप्रिय हो सकता है लेकिन इसके महंगी कीमत चुकानी पड़ सकती है. एक साल पहले मोदी- मुइज़्ज़ू की पहली बैठक ने दोनों देशों को संबंध सुधारने और मज़बूत करने की प्रतिबद्धता में एक मोड़ का संकेत दिया. कुछ भारतीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी बहुत जल्द मालदीव की राजकीय यात्रा कर सकते हैं. दोनों देशों के लिए आपसी सम्मान बरकरार रखते हुए संबंध सुधारने का ये एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम होगा.
इब्राहिम माहिल मोहम्मद मालदीव में लेखक और पत्रकार हैं. उन्हें मालदीव के इतिहास, राजनीति और शासन के साथ-साथ हिंद महासागर क्षेत्र की जियोपॉलिटिक्स और दक्षिण एशिया के इतिहास जैसे विषयों में भी रुचि है.
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Ibrahim Maahil Mohamed is a journalist and writer from the Maldives. His interests include Maldivian history, politics, and governance, as well as Indian Ocean geopolitics ...
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