अर्दोआन की पुतीन बनने की चाहत..
वैसे तो आज की तारीख़ में तुर्की की विदेश नीति का संदेश लीबिया से लेकर कश्मीर तक दिखता है लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था में इस तरह की महत्वाकांक्षा को लंबे वक़्त तक पालने-पोसने की मज़बूती नहीं है. 2020 की बात करें तो तुर्की का रक्षा बजट सिर्फ़ 17 अरब डॉलर से कुछ ज़्यादा है जो 2019 के आवंटन के मुक़ाबले 5 प्रतिशत कम है. वैसे ये कमी बड़ी चुनौतियों को दिखाती है लेकिन कुल मिलाकर 2010 से 2020 के बीच रक्षा पर तुर्की के खर्च में 77 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. तुर्की ने अपनी महत्वाकांक्षा और लागत को कम करने की कोशिश की है. अब वो अपनी सेना की महंगी, व्यापक विदेशी तैनाती की जगह अक्सर “प्राइवेट सैन्य ठेकेदारों” के द्वारा अपने हितों की नुमाइंदगी करने की फिराक में रहता है. तुर्की ने ‘भाड़े के सैनिकों का मॉडल’ सीधे रूस से उठाया है जिसमें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन माहिर हैं और जिनको ख़ुद भी रूस के सीमित आर्थिक संसाधनों, असीमित विदेश नीति से जुड़े हित, ऐतिहासिक तौर पर पश्चिमी देशों के साथ ज़बरदस्त वैचारिक लड़ाई और अक्सर रूस के ख़ज़ाने से ज़्यादा महत्वाकांक्षा का सामना करना पड़ता है.
आख़िर में, तुर्की किस तरह एफएटीएफ की पाबंदियों का जवाब देता है, पश्चिमी देशों के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को किस तरह संभालता है और विश्व व्यवस्था में एक ज़िम्मेदार देश होने के नाते अपने अलग-अलग दायित्वों को निभाता है- ये वो कारण हैं जो तय करेंगे कि घर में आर्थिक और राजनीतिक तनाव को संभालते हुए भूराजनीति पर संघर्ष के एक साथ कई मुद्दों को बर्दाश्त कर पाने में अर्दोआन की कितनी दिलचस्पी है.
तुर्की ने ‘भाड़े के सैनिकों का मॉडल’ सीधे रूस से उठाया है जिसमें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन माहिर हैं और जिनको ख़ुद भी रूस के सीमित आर्थिक संसाधनों, असीमित विदेश नीति से जुड़े हित, ऐतिहासिक तौर पर पश्चिमी देशों के साथ ज़बरदस्त वैचारिक लड़ाई और अक्सर रूस के ख़ज़ाने से ज़्यादा महत्वाकांक्षा का सामना करना पड़ता है.
अर्दोआन ‘नये ऑटोमन’ से ज़्यादा ‘नया पुतिन’ बनना चाहते हैं लेकिन ये देखा जाना बाक़ी है कि एक देश के रूप में तुर्की की आकांक्षा अर्दोआन की अपनी आकांक्षा और शक्ति, और कभी-कभी जुनून भी, से मेल खाती है या नहीं.
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