पिछले महीने मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम भारत की पहली राजकीय यात्रा पर आए थे. उनका ये दौरा कई मायनों में ऐतिहासिक था. पिछले छह वर्षों में ये पहला मौक़ा था, जब मलेशिया का कोई प्रधानमंत्री भारत के दौरे पर आया था, और अनवर इब्राहिम के दौरे को हमें 2019 में दोनों देशों के बीच थोड़े समय के लिए पैदा हुए कूटनीतिक तनाव के बाद संबंधों को दोबारा ठीक करने के प्रयासों के परिणाम के तौर पर देखना चाहिए. पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत और मलेशिया के रिश्ते लगातार बेहतर हो रहे हैं, और दोनों देशों के बीच मंत्रियों के उच्च स्तरीय दौरों जैसी कूटनीतिक यात्राओं में भी बढ़ोत्तरी हो रही है. मलेशिया के पूर्व विदेश मंत्री पिछले साल के अंत में संयुक्त आयोग की बैठक के लिए भारत आए थे. वहीं, अभी हाल ही में भारत के विदेश मंत्री डॉक्टर एस जयशंकर 18वीं लोकसभा के चुनाव के ठीक पहले मलेशिया के दौरे पर गए थे.
पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत और मलेशिया के रिश्ते लगातार बेहतर हो रहे हैं, और दोनों देशों के बीच मंत्रियों के उच्च स्तरीय दौरों जैसी कूटनीतिक यात्राओं में भी बढ़ोत्तरी हो रही है.
अनवर इब्राहिम और नरेंद्र मोदी के बीच शिखर वार्ता के दौरान मलेशिया और भारत ने अपने संबंधों को बढ़ी हुई सामरिक साझेदारी (ESP) से एक दर्जा ऊपर बढ़ाते हुए व्यापक सामरिक साझेदारी (CSP) में तब्दील किया था, जो दोनों देशों के रिश्तों में एक नए युग की शुरुआत है. ये क़दम तब उठाया गया है, जब अगले साल दोनों देशों के बीच ESP के दस वर्ष पूरे होने जा रहे हैं. रिश्तों को व्यापक सामरिक साझेदारी में तब्दील करना उन चिंताओं को दूर करने वाला है, जिनमें ये कहा जा रहा था कि द्विपक्षीय सहयोग में मौजूद भू-राजनीतिक हक़ीक़तों की न तो झलक दिखती है और न ही ये पता चलता है कि दोनों देशों ने इन नई सच्चाइयों को स्वीकार किया है. ये बात कुछ हद तक सही है. ऐसे में व्यापक सामरिक साझेदारी के प्रमुख लक्ष्य और प्रावधानों को न तो स्पष्ट किया गया है और न ही उन पर मुहर लगाई गई है. लेकिन, अगर हम इस क्षेत्र के लिहाज़ से दोनों देशों के रिश्तों को देखें, तो अब ये तथ्य ही काफ़ी अहम संकेत देता है कि मलेशिया और भारत व्यापक सामरिक साझीदार हैं और उनके बीच इतने उच्च स्तर की भागीदारी है.
चीनी ‘चश्मा’
आज की जटिल भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए मलेशिया और भारत के रिश्तों में आए ये सकारात्मक बदलाव केवल उनके आपसी संबंधों के नज़रिए से नहीं देखे जा रहे हैं. आज अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती होड़ और इस क्षेत्र में चीन द्वारा आक्रामकता के प्रदर्शन में बढ़ोत्तरी के बीच, भारत के साथ मलेशिया के बेहतर संबंधों को पूरी तरह से सिर्फ़ ‘चीन के चश्मे’ से देखा जा रहा है. बदक़िस्मती से हाल के वर्षों में दक्षिणी पूर्वी एशिया के देशों को इस दुविधा का सामना करना पड़ रहा है. सभी सामरिक संबंधों को या तो चीन के व्यवहार का नतीजा या उससे निपटने के क़दम के तौर पर देखा जा रहा है. ये नज़रिया ऐसे संबंध क़ायम कर रहे देशों की हैसियत को कम करके आंकने का काम करता है, जबकि ये देश अपने स्वतंत्र अस्तित्व को दिखाने की उम्मीद में ही ये क़दम उठा रहे हैं.
ऐसे में ये बात साफ़ कर देनी उचित रहेगी कि भारत और मलेशिया के मज़बूत रिश्तों का ताल्लुक़ चीन से बिल्कुल नहीं है. ये सोच बचकानी है कि मलेशिया और भारत चीन की वजह से ही क़रीब आ रहे हैं. ये सोच रखने वालों को लेकर हमें मलेशिया और भारत के रिश्तों के सफर और मलेशिया द्वारा चीन के साथ संबंधों को निभाने के तौर तरीक़ों को लेकर अज्ञानता का एहसास होता है. ये बात ध्यान रखने योग्य है कि चीन के साथ मलेशिया के रिश्ते हमेशा से ही अच्छे रहे हैं. अभी हाल ही में दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों की स्थापना की 50वीं वर्षगांठ पर जब चीन के प्रधानमंत्री ली छियांग मलेशिया के दौरे पर आए थे, तो दोनों देशों के अच्छे रिश्तों का सबूत साफ़ तौर पर दिखा था. सच तो ये है कि चीन और मलेशिया के संबंध हमेशा ही दोस्ताना रहे हैं और साउथ चाइना सी में सीमा विवाद के बावजूद दोनों के रिश्तों में कोई कड़वाहट नहीं आई. ऐसे मसलों से निपटने के लिए मलेशिया, चीन के साथ ‘ख़ामोश कूटनीति’ के रास्ते पर चलता रहा है और उसका ये नुस्खा अब तक काफ़ी कारगर साबित होता आया है. इससे पता चलता है कि चीन के साथ अपने रिश्तों के अलग अलग पहलुओं को मलेशिया अलग खांचों में रख पाने में सक्षम रहा है.
ये बात ध्यान रखने योग्य है कि चीन के साथ मलेशिया के रिश्ते हमेशा से ही अच्छे रहे हैं. अभी हाल ही में दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों की स्थापना की 50वीं वर्षगांठ पर जब चीन के प्रधानमंत्री ली छियांग मलेशिया के दौरे पर आए थे, तो दोनों देशों के अच्छे रिश्तों का सबूत साफ़ तौर पर दिखा था.
निश्चित रूप से मलेशिया का ये रवैया वियतनाम और फिलीपींस जैसे देशों से अलग है. इन दोनों देशों की नीति रणनीति में हाल के वर्षों में भारत की काफ़ी चर्चा होती रही है. भारत ने फिलीपींस और वियतनाम, दोनों ही देशों के साथ अपने सैन्य और कूटनीतिक संबंधों को विस्तार दिया है और इस बात की पूरी संभावना है कि भारत, साउथ चाइना सी में अपनी उपस्थिति को और बढ़ाएगा, जिसको लेकर चीन की नाराज़गी भी जगज़ाहिर है. अभी ये स्पष्ट नहीं है कि भारत, साउथ चाइना सी में अपनी दूरगामी भूमिका को कैसे देखता है. वहीं, अपने सामरिक संदर्भों के तहत मलेशिया अपने दावों को मज़बूती देने के लिए किसी तीसरे पक्ष से समर्थन जुटाने का प्रयास नहीं करेगा. भले ही यहां पर वो तीसरा पक्ष उसका ‘व्यापक सामरिक साझीदार’ ही क्यों न हो. इसीलिए, उस लिहाज़ से मलेशिया और भारत के रिश्ते, साउथ चाइना सी के हालात से अलग और स्वतंत्र होंगे. भले ही दोनों देश चीन के व्यापक इलाक़ाई दावों को लेकर एक ही राय क्यों न रखते हों.
जब हम भारत और मलेशिया के मज़बूत होते संबंधों को सिर्फ़ ‘चीन के चश्मे’ से देखते हैं, तो दोनों देशों द्वारा पांच साल पहले हुए टकराव के बाद से आपसी रिश्ते मज़बूत बनाने की पुरज़ोर कोशिशों को पर्याप्त श्रेय नहीं मिल पाता है. उस तनाव के बाद से मलेशिया और भारत ने धीरे धीरे आपसी सहयोग बढ़ाने और आपसी निर्भरता निर्मित करने, संबंधों में तनाव के कारणों से दूरी बनाने (ताकि उनसे बाद में निपटा जा सके) के प्रयास करते रहे हैं. इसीलिए दोनों देशों द्वारा इस साल व्यापक सामरिक साझेदारी (CSP) की शुरुआत, आपसी रिश्तों के लिहाज़ से एक बड़ी उपलब्धि है, जो मलेशिया की विदेश नीति की बड़ी जीत है और भारत की एक्ट ईस्ट नीति की दसवीं सालगिरह के मौक़े पर हासिल किया गया मील का बड़ा पत्थर है.
दिल्ली के सप्रू हाउस में इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स में अपने स्पेशल लेक्चर में मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने अपने देश के ब्रिक्स प्लस (BRICS+) का हिस्सा बनने के इरादों के बारे में चर्चा करते हुए, इस बात पर ज़ोर दिया था कि उनकी नज़र में ब्रिक्स के भीतर ‘भारत की अनूठी और प्रभावशाली भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण है और हमारे मज़बूत आपसी संबंध इस समूह के आयामों के लिए काफ़ी मूल्यवान साबित होंगे.’ ये इस बात का मज़बूत संकेत है कि भारत के साथ अपने संबंध को मलेशिया कितनी अहमियत देता है, ख़ास तौर से BRICS जैसे सहयोगात्मक ढांचों के भीतर, जिसे अब ज़्यादातर लोग ‘चीन की अगुवाई वाला क्षेत्रीय संगठन’ मानने लगे हैं. मलेशिया के लिए BRICS+ में भारत की मौजूदगी उसको संतुलित बनाती है और उसको पूरी तरह से ‘पश्चिम विरोधी समूह’ या फिर चीन और रूस की अगुवाई वाले संगठन की छवि से मुक्ति दिलाने में मदद करती है. प्रधानमंत्री मोदी ने भी मलेशिया के BRICS+ में शामिल होने का समर्थन किया है. ऐसे में ये स्पष्ट है कि मलेशिया और भारत के आपसी संबंधों की मज़बूती की छाप, अमेरिका बनाम चीन, या फिर चीन बनाम भारत के नज़रिए से आगे बढ़कर क्षेत्रीय समीकरणों पर भी असर डाल रही है.
और शायद यही सबसे अहम बिंदु है. दक्षिणी पूर्वी एशिया के ज़्यादातर देश अमेरिका और चीन की प्रतिद्वंदिता से अक्सर परेशान होते हैं. लेकिन, वो भारत और चीन के जटिल समीकरणों से बहुत कम ही प्रभावित होते हैं. ये एक ऐसा जोखिम है, जिसे दक्षिणी पूर्वी एशिया के देश निश्चित रूप से नहीं मोल ले सकते हैं. दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों और भारत के संबंधों से जुड़े हर मामले में ‘चाइना फैक्टर’ जोड़ देने वाले पर्यवेक्षकों और विश्लेषकों के उतावलेपन और इन अनूठे और बारीक़ रिश्तों को लेकर नासमझी का उदाहरण है. सच तो ये है कि ऐसे विश्लेषकों का अपनी समीक्षा में भारत द्वारा अपने स्वतंत्र अस्तित्व को मज़बूत बनाने के लिए आपसी और बहुपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के प्रयासों कों हमेशा चीन के चश्मे से देखना भारत के लिए भी नुक़सानदेह है.
प्रधानमंत्री मोदी ने भी मलेशिया के BRICS+ में शामिल होने का समर्थन किया है. ऐसे में ये स्पष्ट है कि मलेशिया और भारत के आपसी संबंधों की मज़बूती की छाप, अमेरिका बनाम चीन, या फिर चीन बनाम भारत के नज़रिए से आगे बढ़कर क्षेत्रीय समीकरणों पर भी असर डाल रही है.
मलेशिया के लिए भारत के साथ मज़बूत आपसी संबंध ऐसे ही हैं. इनके भीतर कुछ निहित नहीं है. ये दोनों देशों के ऐतिहासिक, बहुआयामी और अनूठे रिश्ते को बेहतर से बेहतर तरीक़ों से आगे बढ़ाने का ही प्रयास है. द्विपक्षीय संबंधों को चीन का प्रभाव या फिर अमेरिका और चीन की प्रतिद्वंदिता का नतीजा बताना इस सच्चाई की अनदेखी करने वाला है कि मलेशिया और भारत आपनी संबंधों को मूल्यवान समझते हैं, इसलिए रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इस सच्चाई की अनदेखी करना परेशान करने वाला है. आगे चलकर, दोनों ही देशों के नीति निर्माताओं को ये सुनिश्चित करना होगा कि व्यापक सामरिक साझेदारी वास्तव में व्यापक और स्थायी दस्तावेज़ हो, जो इन संबंधों को नया आकार ले रही भू-राजनीतिक सच्चाइयों के मुताबिक़ ढाले. यहां से आगे रिश्तों की गति में आने वाली कोई भी कमी नुक़सान ही पहुंचाएगी और रिश्तों को संकुचित सोच से देखने वालों के नैरेटिव को बढ़ावा देगी.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.