Author : Pooja Pandey

Expert Speak Raisina Debates
Published on Oct 17, 2024 Updated 4 Days ago

महामारी के दौरान Ed-Tech का तेज़ विकास क्वॉलिटी, कानूनी रूप-रेखा और बच्चों के अधिकार में खामियों को उजागर करता है. भारत को इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए उचित उपायों को अपनाना चाहिए.

भारत में Ed-Tech: स्कूली बच्चों की निजता व उनके हित का ध्यान रखने की ज़रूरत!

Image Source: Getty

भूमिका 

पिछले दशक में तकनीक को शिक्षा में जोड़ने की मांग में भारी बढ़ोतरी देखी गई है. भारत में एजुकेशन टेक्नोलॉजी यानी Ed-Tech सेक्टर के लिए महत्वपूर्ण अवसर कोविड महामारी के दौरान आया जिसने इसके सही होने और व्यापकता की पुष्टि की. महामारी के दौरान एड-टेक सेवाओं की तेज़ी से हुई बढ़ोतरी और उसे अपनाने वालों की संख्या के साथ-साथ उसकी आवश्यकता ने कुछ मामलों में क्वॉलिटी की सीमाओं, कानूनी रूप-रेखा और मानकों से जुड़ी ज़रूरतों की तरफ ध्यान कम किया. इसका नतीजा बच्चों के अधिकारों और भलाई पर पड़ा.

मुख्यधारा की शिक्षा में Ed-Tech के एकीकरण को लेकर दिलचस्पी बढ़ती जा रही है. इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) (खंडं 23 और 24) भी स्वीकार करता है, प्राथमिकता देता है और सक्रिय रूप से बढ़ावा देता है. 

मुख्यधारा की शिक्षा में Ed-Tech के एकीकरण को लेकर दिलचस्पी बढ़ती जा रही है. इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) (खंडं 23 और 24) भी स्वीकार करता है, प्राथमिकता देता है और सक्रिय रूप से बढ़ावा देता है. हालांकि ये मुख्य रूप से सेवाओं की डिलीवरी, पाठ्यक्रम, शिक्षा शास्त्र, इनोवेशन और असर के दृष्टिकोण से है. चिंता की बात ये है कि एड-टेक के प्रमुख लाभार्थियों में से एक यानी बच्चों को लेकर Ed-Tech से जुड़े विमर्श में सबसे कम चर्चा होना जारी है. इसमें अन्य बातों के साथ प्राइवेसी, प्रतिनिधित्व और विकास से जुड़े बच्चों के अधिकारों के संबंध में एड-टेक के मानक पहलू और प्रभाव शामिल हैं. 

Ed-Tech और बच्चों की भलाई 

बच्चों की डेटा प्राइवेसी बारीकी से उनके अधिकारों और कल्याण की रक्षा करती है. एड-टेक पर डेटा की चोरी करने और बच्चों को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगे हैं. हाल के दिनों में अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट ने बार-बार, बिना सहमति के बच्चो की निगरानी को उजागर किया है. ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब ज़बरन और गलत ढंग से बच्चों के डेटा का इस्तेमाल किया गया है. वैसे तो किसी गतिविधि को Ed-टेक की श्रेणी में रखने की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है लेकिन सामान्य बात ये है कि इसमें ऐसे प्लैटफॉर्म शामिल होते हैं जो भारी मात्रा में व्यक्तिगत डेटा इकट्ठा करते हैं, उसे प्रोसेस करते हैं और इस्तेमाल करते हैं. बच्चों का अलग-अलग डेटा अक्सर पहले से मंज़ूरी के बिना हासिल किया जाता है और उनका इस्तेमाल उनकी पूरी प्रोफाइल बनाने के लिए किया जा सकता है. इसमें पहचान, लोकेशन, बायोमीट्रिक, पसंद और क्षमता जैसी महत्वपूर्ण जानकारी शामिल होती है. 

ऊपर बताए गए डेटा का इस्तेमाल या तो एड-टेक ‘उत्पादों’ को तैयार करने और उनकी कीमत तय करने के लिए किया जा सकता है या डेटा ब्रोकर, विज्ञापन देने वालों या तीसरे पक्षों के साथ उस डेटा को साझा किया जा सकता है. इस तरह व्यवहार से जुड़े आकलन, निगरानी, अनचाहे विज्ञापन, ज़बरन वसूली, संवेदनशील एवं उम्र के हिसाब से अनुचित कंटेंट के संपर्क में आने, इत्यादि का ख़तरा बढ़ जाता है. ये नतीजे सीमाओं के दायरे में नहीं होते हैं. इससे अंतर्राष्ट्रीय रेगुलेशन का उल्लंघन और बच्चों के डेटा का पूरी दुनिया में व्यावसायीकरण हो सकता है जिनकी निगरानी और रोकथाम मुश्किल हो सकती है. सबूतों से पता चलता है कि निगरानी का दायरा परिवारों और शिक्षण संस्थानों तक भी हो सकता है, विशेष रूप से डिवाइस साझा करने या होम नेटवर्क की स्कैनिंग के मामलों में. Ed-Tech में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के जुड़ने से सीखने वालों में मनोवैज्ञानिक जोड़-तोड़ की स्थिति पैदा हो सकती है जिससे छात्र का व्यवहार नियंत्रित या परिवर्तित हो सकता है. मिसाल के तौर पर, कुछ एड-टेक प्लैटफॉर्म AI-आधारित प्रोड और व्यक्तिगत सीखने के अवसर पेश करते हैं जो माता-पिता और बच्चों को अत्याधुनिक पढ़ाई-लिखाई के विकल्पों की तरफ ले जाते हैं और उनके पढ़ाई-लिखाई से जुड़े व्यवहार और सीखने के पैटर्न में बदलाव लाते हैं.   

परिदृश्य की समीक्षा 

एक क्षेत्र और एक सेवा के रूप में ‘Ed-Tech’ में क्या-क्या शामिल हैं, इसको लेकर निश्चित रूप से एक अस्पष्टता बनी हुई है. कानूनी रूप से एड-टेक को विशेष मान्यता नहीं मिली हुई है और ये टुकड़ों में अलग-अलग कानूनों के दायरे में आता है. इनमें नया बना डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) एक्ट 2023, सूचना एवं तकनीक अधिनियम 2000, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 शामिल हैं. DPDP अधिनियम, जो आंशिक रूप से बाल सुरक्षा और डेटा प्राइवेसी के पहलुओं पर ध्यान देता है, को छोड़कर बाकी दूसरे कानून अपने दायरे में बाहरी हैं. 

इसके अलावा भारत में Ed-Tech सेवा अलग-अलग प्रोवाइडर के द्वारा प्रदान किया जाता है जो बड़े और छोटे हैं; सरकारी और गैर-सरकारी हैं; लाभ कमाने वाले और बिना लाभ वाले हैं. हालांकि एड-टेक सेवा प्रदान करने वालों और उनकी सेवाओं या पेशकश के स्वरूप का व्यापक सर्वे होना अभी तक बाकी है. 

एक क्षेत्र और एक सेवा के रूप में ‘Ed-Tech’ में क्या-क्या शामिल हैं, इसको लेकर निश्चित रूप से एक अस्पष्टता बनी हुई है. कानूनी रूप से एड-टेक को विशेष मान्यता नहीं मिली हुई है और ये टुकड़ों में अलग-अलग कानूनों के दायरे में आता है.

जहां तक गवर्नेंस की बात है तो ऐसा लगता है कि Ed-Tech और उसके ढांचे को रेगुलेट करने के लिए ज़िम्मेदार मुख्य मंत्रालय (मंत्रालयों) या निकायों की पहचान में स्पष्टता की कमी है. वैसे तो केंद्र सरकार ने एड-टेक के दुरुपयोग के ख़िलाफ़ चेतावनी देने के लिए अतीत में संसदीय प्रतिक्रिया और सलाह जारी की है लेकिन उनको लागू करने का काम सीमित रहा है. अनिश्चित रेगुलेटरी रुख ने और भी चुनौतियां तैयार की हैं जैसे कि भारत में हाशिए पर रहने वाले बच्चों के डेटा में सेंध, आर्थिक शोषण और डिजिटल बहिष्कार

चुनौतियां 

कई चुनौतियां Ed-टेक में बच्चों की निजता और कल्याण को रोकती हैं. नियामक अस्पष्टता के अलावा ये क्षेत्र रजिस्ट्रेशन, वर्गीकरण और मान्यता को लेकर भी अनिश्चित है. गोपनीयता और अधिकारों के उल्लंघन की सीमा और तौर-तरीकों को तय करने वाले तकनीकी और सामाजिक-कानूनी साक्ष्यों में बड़ी खामियां बनी हुई हैं. तकनीकी साक्ष्य काम करने की समझ में कमी के संबंध में हैं. सामाजिक-कानूनी साक्ष्य एड-टेक के गवर्नेंस की सीमित रेगुलेटरी और अनुभव से जुड़ी समझ और Ed-Tech को अपनाने एवं बच्चों की प्राइवेसी पर इसके असर के बारे में है.  

वैश्विक तकनीकी कंपनियों के द्वारा अन्य सहायक संगठनों के साथ शक्ति का एक जगह इकट्ठा होना तेज़ी से भारत के शिक्षा क्षेत्र को निर्धारित कर रहा है. एड-टेक सेवा प्रदान करने वालों एवं उनकी डेटा प्रथाओं और सभी दूसरे हितधारकों के बीच शक्ति और सूचना में एक महत्वपूर्ण असंतुलन है जिसे समझना अक्सर मुश्किल होता है. भविष्य की शिक्षा संबंधी सेवाओं का डिज़ाइन और फॉर्मेट निर्धारित करने के लिए व्यक्तिगत डेटा का लाभ उठाकर Ed-Tech सेवा प्रदान करने वाले अक्सर पाठ्यक्रम और शिक्षा शास्त्र के पहलुओं में फेरबदल करते हैं, भले ही वो इन बदलावों को सरकार के द्वारा पाठ्यक्रम और शिक्षा शास्त्र को नियंत्रित करने वाली ज़रूरी रूप-रेखा के साथ जोड़ते हैं या नहीं जोड़ते हैं. इस तरह की रूप-रेखा का साफ तौर पर पालन करने को लेकर सूचना की कमी ऐसी तकनीकों को प्रभावी ढंग से व्यवस्थित करने की सरकार और शिक्षण संस्थानों की निगरानी और क्षमता को कमज़ोर कर सकती है. इसका परिणाम न केवल प्राइवेसी और सुरक्षा पर पड़ता है बल्कि पढ़ाई-लिखाई के नतीजों पर भी. 

एक और महत्वपूर्ण चुनौती माता-पिता, शिक्षकों और शिक्षा प्रणाली के बीच एड-टेक को लेकर जागरूकता और सोच के संबंध में है. ये हितधारक अक्सर एड-टेक में डेटा के दुरुपयोग की प्रकृति, ख़तरे और असर को समझने में नाकाम हो जाते हैं. हितधारक आम तौर पर शिक्षा शास्त्र संबंधी, पाठ्यक्रम से जुड़े या वित्तीय पहलुओं का पक्ष लेते हैं और इस तरह बच्चों की गोपनीयता और कल्याण की चिंताओं को सक्रिय रूप से प्राथमिकता नहीं देते हैं. Ed-Tech अपनाने को अक्सर शिक्षा में नयापन लाने की उसकी कथित क्षमता के कारण सही ठहराया जाता है. हालांकि इस तरह के दावों के पक्ष में निर्णायक सबूत मौजूद नहीं हैं. इसके विपरीत एड-टेक सेवाएं अक्सर शिक्षा शास्त्र से जुड़े संदिग्ध मूल्यों का प्रदर्शन करती हैं और पूर्वाग्रहों एवं मान्यताओं को मज़बूत करने की जानकारी भी मिली है. ये विशेष रूप से भारतीय संदर्भ में नुकसानदेह है जो सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और भेदभाव से ग्रस्त है. 

आगे का रास्ता 

बच्चों की डेटा प्राइवेसी और सुरक्षा के मुद्दों का समाधान करने के लिए मानक, रेगुलेटरी, संस्थागत और डिज़ाइन के स्तर पर प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है. शिक्षा के असली लक्ष्यों और उद्देश्यों को समझना पहला कदम है जो Ed-Tech के ‘Ed’ यानी शिक्षा से जुड़े पहलुओं को तय करेगा और इसे किसी दूसरी सेवा या लाभ केंद्रित व्यावसायिक प्रयास से अलग करेगा. जो आज बच्चा है वो भविष्य का सक्रिय नागरिक और उपभोक्ता है. इन बच्चों के व्यक्तिगत डेटा का किसी भी तरह से बदलाव, दुरुपयोग या हेरफेर का उनके आगे के जीवन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है. इनमें उच्च शिक्षा, नौकरी के अवसर, दुनिया को लेकर दृष्टिकोण और मान्यताएं शामिल हैं. उनके शिक्षा से जुड़े अनुभवों की रक्षा करना महत्वपूर्ण है. 

जो आज बच्चा है वो भविष्य का सक्रिय नागरिक और उपभोक्ता है. इन बच्चों के व्यक्तिगत डेटा का किसी भी तरह से बदलाव, दुरुपयोग या हेरफेर का उनके आगे के जीवन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है. इनमें उच्च शिक्षा, नौकरी के अवसर, दुनिया को लेकर दृष्टिकोण और मान्यताएं शामिल हैं.

इस उद्देश्य के लिए पहला कदम कठोर नियामक सुधार शुरू करना होगा जिसमें शामिल हैं: ए) भारत में “एड-टेक” और इसके घटकों की परिभाषा; बी) Ed-Tech के नियमों और मानकों का संहिताकरण (कोडिफिकेशन) और सी) सभी एड-टेक संगठनों/व्यक्तियों को मान्यता देने एवं उनके रजिस्ट्रेशन के उद्देश्य से संस्थान के रूप में काम करने वाले और उनकी शिकायत का समाधान प्रदान करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार (सरकारों) की वैधानिक एजेंसी/बोर्ड/संगठन की स्थापना. इस तरह के निकाय को किसी Ed-Tech सेवा के लिए डिजिटल एकीकृत इंटरफेस भी प्रदान करना चाहिए ताकि ऐसी सेवा की गुणवत्ता और सेवा लेने वाले लोगों की गोपनीयता से जुड़ी चिंताओं को जांचा जा सके. इस इंटरफेस में एंड-टू-एंड एनक्रिप्शन, ऑटो-रेकॉग्निशन और स्पष्ट शब्दों एवं व्यक्तिगत जानकारी को लेकर संवेदनशीलता जैसी विशेषताएं होनी चाहिए.  

एक बदलता सेक्टर होने की वजह से सेल्फ-रेगुलेशन की तरफ ज़ोर देने की मांग भी की जा रही है. इस पर सावधानी से विचार किया जाना चाहिए और इसे अंत में संहिताबद्ध प्रथाओं के समूह (कोडिफाइड सेट ऑफ प्रैक्टिस) से जोड़ा जाना चाहिए ताकि एक जैसी निगरानी और जांच सुनिश्चित की जा सके. शिक्षा मंत्रालय के द्वारा नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम (NETF) जैसे स्वायत्त निकायों की स्थापना एक स्वागत योग्य कदम है जो अन्य बातों के साथ एड-टेक पर राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय साक्ष्य उत्पन्न कर सकते हैं. 

दूसरी बात ये है कि माता-पिता और शिक्षकों की जागरूकता के साथ डेटा के उपयोग और प्रोसेसिंग की जटिलताओं और बच्चों की गोपनीयता एवं भलाई पर इसके पड़ सकने वाले असर को समझने की महत्वपूर्ण आवश्यकता है. माता-पिता के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए Ed-Tech ऑडिट या प्राइवेसी के उपायों पर आधारित एड-टेक की रैंकिंग जैसे कदम उठाए जा सकते हैं. हाल के दिनों में दूसरे संदर्भ में व्यापक और बड़े पैमाने पर अध्ययन Ed-Tech की डेटा प्राइवेसी की धारणाओं और जोखिम मूल्यांकन के बारे में बताते हैं. भारत में इसी तरह के मूल्यांकन की आवश्यकता है ताकि एड-टेक का उपयोग करने वाले हितधारकों के अनुभवों और जागरूकता के बारे में पता किया जा सके. व्यापक जागरूकता को बढ़ावा देने और सूचना को फैलाने में मीडिया भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. 

स्कूलों और संस्थानों को बच्चों के लिए एड-टेक प्लैटफॉर्म शुरू करने से पहले व्यापक आकलन करना चाहिए और सुरक्षा के उपायों को लागू करना चाहिए. साथ ही ज़िम्मेदारी से छात्रों का डेटा व्यवस्थित करने के लिए माता-पिता, शिक्षकों और प्रशासकों को ट्रेनिंग भी देनी चाहिए. 

तीसरी बात ये है कि Ed-Tech सेवा मुहैया कराने वालों को ये निर्देश दिया जाना चाहिए कि वो डिज़ाइन से जुड़े मज़बूत उपाय अपनाएं जो डेटा प्रैक्टिस के किसी भी दुरुपयोग और हेर-फेर को रोक सकते हैं. डिज़ाइन से जुड़े इन उपायों को मूल रूप से व्यापक शिक्षा के डिज़ाइन के सिद्धांतों के साथ जोड़ा जाना चाहिए और डिज़ाइन से जुड़ी किसी भी ख़तरनाक विशेषता को रोकना चाहिए जो बच्चों को नुकसान पहुंचा सकती हैं. पूरी जानकारी के आधार पर बच्चों और उनके माता-पिता की सहमति अनिवार्य होनी चाहिए. इसका एक उपयोगी उदाहरण गूगल का मामला है जिसने बार-बार की दलीलों और दबावों के बाद Ed-Tech प्लैटफॉर्म पर अपनी डिज़ाइन से जुड़ी ख़ासियतों में फेरबदल किया जो बच्चों की सुरक्षा और गोपनीयता का समर्थन करते हैं. स्कूलों और संस्थानों को बच्चों के लिए एड-टेक प्लैटफॉर्म शुरू करने से पहले व्यापक आकलन करना चाहिए और सुरक्षा के उपायों को लागू करना चाहिए. साथ ही ज़िम्मेदारी से छात्रों का डेटा व्यवस्थित करने के लिए माता-पिता, शिक्षकों और प्रशासकों को ट्रेनिंग भी देनी चाहिए. 

अंत में,  एड-टेक के संबंध में सरकार का एजेंडा और दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से व्यक्त करने और बताने की आवश्यकता है जिससे बाद में किसी उपाय का मार्गनिर्देशन किया जा सके. इस तरह के हस्तक्षेप को भारतीय सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ और असमानताओं को ध्यान में रखना चाहिए ताकि सबसे ज़्यादा हाशिए पर रहने वाले बच्चों को नुकसान की घटनाओं को कम किया जा सके और शिक्षा, सुरक्षा एवं विकास के उनके अधिकारों को साकार किया जा सके.  


पूजा पांडेय दिल्ली स्थित विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी में सीनियर रेजिडेंट फेलो इन एजुकेशन हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.