पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) हिंद-प्रशांत क्षेत्र के बड़े शिखर सम्मेलनों में से एक है. यह सामान्यत: साल के दूसरे आसियान शिखर सम्मेलन के ठीक बाद होता है, जहां आसियान सदस्य अपने संवाद साझेदारों के साथ बातचीत करते हैं. आसियान की केंद्रीयता की स्वीकृति के रूप में आसियान का अध्यक्ष ईएएस की भी अगुवाई करता है. ऐसी सभी क्षेत्रीय संस्थाओं को अपने साझेदारों के साथ जुड़ाव की बदलती बारीकियों से चुनौती मिल रही है. इन चुनौतियों में शामिल हैं – आम सहमति आधारित सुधार में कठिनाइयां, क्रियान्वयन और उम्मीदों के बीच अंतराल, और विकसित होता वह रणनीतिक वातावरण जिसके भीतर वे सह-अस्तित्व में हैं.
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के सृजन पर चर्चा आसियान के मौजूदा स्तरों तक विस्तार से पहले हुई थी. 1990 के दशक में, एक पूर्वी एशियाई समूह या संघ के बारे में सबसे पहले मलेशिया ने सोचा था. इसे 1989 में स्थापित एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग (एपेक) पर आधारित होना था.
पूर्वी एशिया अध्ययन समूह ईएएस को आसियान प्लस थ्री (एपीटी) तक सीमित रखना चाहता था. ख़ासकर मलेशिया और चीन सीमित सदस्यता चाहते थे; वहीं आसियान में शामिल इंडोनेशिया और सिंगापुर तथा जापान ने चाहा कि सदस्य लिये जाने का दायरा बड़ा हो.
पूर्वी एशिया अध्ययन समूह ईएएस को आसियान प्लस थ्री (एपीटी) तक सीमित रखना चाहता था. ख़ासकर मलेशिया और चीन सीमित सदस्यता चाहते थे; वहीं आसियान में शामिल इंडोनेशिया और सिंगापुर तथा जापान ने चाहा कि सदस्य लिये जाने का दायरा बड़ा हो. 2002 में, भारत ने आसियान के साथ अपनी साझेदारी सेक्टर आधारित संवाद से बढ़ाकर शिखर स्तर तक कर ली. भारत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को 2015 में ईएएस में आमंत्रित किया गया. ईएएस का पहला शिखर सम्मेलन 11वें आसियान शिखर सम्मेलन के साथ ही 14 दिसंबर 2005 को हुआ, और तब से यही पैटर्न चल रहा है.
पूरे मामले में चीन का पहलू
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चीन ने ईएएस में अपनी शुरुआती दिलचस्पी इसलिए खो दी कि वह कार्यवाहियों की अगुवाई नहीं कर सका. चीन एपीटी पर अपने दबदबे के ज़रिये ईएएस का नेतृत्व करना चाहता था, हालांकि आसियान ने ईएएस को चीन-नीत संस्था की जगह आसियान-केंद्रित संस्था में बदल दिया.
2011 में, रूस और अमेरिका को ईएएस में दाखिल किया गया. आसियान की दृष्टि में, यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच में से तीन स्थायी सदस्यों (पी5) समेत सभी बड़ी शक्तियों को एक आसियान-केंद्रित संस्था में ले आया. इसने आसियान नेताओं को वैश्विक बड़ी शक्तियों से हर साल मिलने का एक विशिष्ट अवसर प्रदान किया. ईएएस की बैठकों में, अमेरिकी राष्ट्रपति को मुख्य आकर्षण माना गया. ओबामा ने ईएएस 2011 में, जब अमेरिका को शामिल किया गया, और उसके बाद शिरकत की. वह केवल 2013 के शिखर सम्मेलन में शामिल नहीं हुए. हालांकि, ट्रंप अपने कार्यकाल के दौरान ईएएस से बचते रहे. रूस ने हमेशा अपने प्रधानमंत्री को भेजा. इसमें केवल 2018 अपवाद है, जब पुतिन ने सिंगापुर में शिरकत की. चीन ने भी अपने प्रधानमंत्री को भेजा, जबकि चीनी प्रधानमंत्री शी जिनपिंग एपेक में शिरकत करने वाले थे.
आसियान इस बात पर अड़ा रहा कि ईएएस को चीनी गतिविधियों पर चर्चा नहीं करनी चाहिए; उनका मानना था कि वे चीन से अलग से निपट सकते हैं. इस क्षेत्र में असंतुलन के एक बड़े कृत्य, नाइन-डैश लाइन पर चीनी दावे, को आसियान द्वारा ईएएस की चर्चाओं से बाहर रखा गया.
आसियान ने राहत की सांस ली कि क्षेत्रीय सुरक्षा अब केवल अमेरिका की ज़िम्मेदारी थी. ईएएस के हिस्से के बतौर रूस और चीन क्षेत्रीय स्थिरता बनाये रखने में अपना योगदान दे सकते थे. आसियान के कामकाज की प्रकृति को इस सुरक्षा संतुलन की ज़रूरत थी. ईएएस के आपसी सहयोग के प्राथमिकता क्षेत्रों में ऊर्जा, शिक्षा, वित्त, महामारियों समेत वैश्विक स्वास्थ्य, पर्यावरण, और आपदा प्रबंधन शामिल थे.
2012 तक, दक्षिण चीन सागर (एससीएस) में चीन के शत्रुतापूर्ण व्यवहार के चलते आसियान-चीन संबंध तनावग्रस्त हो गये. इसने कंबोडिया की अध्यक्षता के तहत 2012 में एक आसियान संकट को जन्म दिया. आसियान इस बात पर अड़ा रहा कि ईएएस को चीनी गतिविधियों पर चर्चा नहीं करनी चाहिए; उनका मानना था कि वे चीन से अलग से निपट सकते हैं. इस क्षेत्र में असंतुलन के एक बड़े कृत्य, नाइन-डैश लाइन पर चीनी दावे, को आसियान द्वारा ईएएस की चर्चाओं से बाहर रखा गया. 2013 में, शी जिनपिंग ने जकार्ता में बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) का ऐलान किया जिसने क्षेत्र में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का वादा किया. इसने आसियान की चिंताओं को शांत किया, लेकिन इसने ईएएस के दूसरे साझेदारों, ख़ासकर क्वॉड, के बीच चिंता पैदा की. चीन का प्रतिवाद करने में आसियान की अक्षमता इसके ईएएस साझेदारों पर प्रतिकूल असर डालती है. ईएएस में ख़ुद को अप्रभावित रखने के लिए चीन ने आसियान से संपर्क बढ़ाया और आसियान क्षेत्रीय फोरम (एआरएफ) से ध्यान को भटकाया.
ईएएस ने मुख्यत: बीमारियों, हरित अर्थव्यवस्था, लोक स्वास्थ्य, और मानसिक स्वास्थ्य जैसे कामकाजी मुद्दों पर ध्यान दिया और रणनीतिक मुद्दों से कन्नी काट ली. इसे ‘आपदा प्रबंधन पर मानवीय सहायता के लिए आसियान के समन्वय केंद्र’ (एएचए सेंटर) जैसी ईएएस की संलग्नताओं में देखा गया. इस केंद्र को ईएएस से समर्थन मिला. जिस ‘पूर्वी एशिया निम्न कार्बन विकास साझेदारी संवाद’ के ज़रिये जापान ने ‘ज्वाइंट क्रेडिटिंग मेकेनिज्म’ को बढ़ावा दिया, वह भी ईएएस की एक सफलता है. ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी’ (आरसीईपी) के उदय में ईएएस की सहायक भूमिका थी, हालांकि अमेरिका व रूस इसमें नहीं थे और भारत 2019 में इससे बाहर आ गया.
2012 में, जब चीन ने एससीएस के कुछ हिस्सों को हथिया लिया, तो ईएएस द्वारा एक हिंद-प्रशांत नीति पेश किये जाने की कोशिशें लड़खड़ा गयीं. इंडोनेशिया, भारत और रूस ने एक ईएएस समूह को मसौदा कागज़ात पेश किये, लेकिन ये किसी नतीज़े तक नहीं पहुंचे, जैसा कि ईएसएस में रणनीतिक पहल क़दमियों को लेकर हुआ.
मूल्य उन अनौपचारिक परामर्शों में था जिन्हें ईएएस ने मुहैया कराया. 2020 में वैश्विक महामारी ने शिखर सम्मेलनों को वर्चुअल बना दिया, जिसने इनसे इनका मुख्य मूल्य ही छीन लिया. जड़ क़िस्म के बयानों ने वर्चुअल मोड में ज़बानी जमा ख़र्च खूब किया, लेकिन ज़्यादा कुछ होता नज़र नहीं आया.
ख़तरे में है आसियान की केंद्रीयता?
अपनी केंद्रीयता सुनिश्चित करने के वास्ते ईएएस को दुरुस्त करने के लिए आसियान जूझ रहा था. ईएएस के साझेदार चीन से सावधान थे, जिसके चलते जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया ने हिंद-प्रशांत नीतियों को स्वीकार किया और 2021 में बाइडेन के तहत क्वॉड का पुनरुत्थान हुआ. यह आसियान को तुष्ट करने में जुटे चीन को मात करने का एक क़दम था.
2012 में, जब चीन ने एससीएस के कुछ हिस्सों को हथिया लिया, तो ईएएस द्वारा एक हिंद-प्रशांत नीति पेश किये जाने की कोशिशें लड़खड़ा गयीं. इंडोनेशिया, भारत और रूस ने एक ईएएस समूह को मसौदा कागज़ात पेश किये, लेकिन ये किसी नतीज़े तक नहीं पहुंचे, जैसा कि ईएसएस में रणनीतिक पहल क़दमियों को लेकर हुआ. 2019 में, आसियान अंतत: ‘हिंद प्रशांत के लिए आसियान दृष्टिकोण’ (एओआईपी) के साथ सामने आया. इसका मसौदा चीन को शांत करने और ईएएस के साझेदारों को उसके गंभीर इरादे के बारे में बताने के लिए तैयार किया गया था. चीन ने एओआईपी पर आपत्ति नहीं की, क्योंकि ‘हिंद-प्रशांत’ शब्द का इस्तेमाल केवल शीर्षक में था, दस्तावेज में नहीं. एओआईपी के सिद्धांत साझेदारों के साथ आसियान के सहयोग का मूलाधार बन चुके हैं और वह उन्हें व्यापक प्रसार और स्वीकृति के लिए ईएएस में लाना चाहता है, और नतीजतन अपनी केंद्रीयता बनाये रखना चाहता है.
ईएएस के साझेदारों को आसियान की केंद्रीयता से कोई समस्या नहीं है. वे इस केंद्रीयता के प्रति आसियान की ज़िम्मेदारी और इस बात को लेकर चिंतित हैं कि क्या यह तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद वह अपनी एकता बनाये रख पायेगा. क्वॉड ज्यादा मुखर है, जो आसियान को चीन की प्रतिक्रिया को लेकर चिंता में डाल रहा है. आसियान यह नहीं देख पाया कि क्वॉड सदस्य ईएएस का बाक़ायदा हिस्सा थे और क्वॉड का उदय ईएएस की प्रभावकारिता में आयी कमी का प्रतिबिंब था.
2015 में ईएएस में सुधार के एक प्रयास के बावजूद, कोई कार्यक्रम लागू नहीं किया गया. ऐसी कोशिशों का ईएएस को अपने निर्धारित शिखर वार्ता मोड से बाहर निकालने में बहुत कम प्रभाव पड़ा.
ईएएस, 2022 में, हिंद-प्रशांत के एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है. यह आसियान-केंद्रित निकायों में सबसे बड़ा है, जहां वैश्विक नेता एकत्र होते हैं, लेकिन चूंकि यह बहुत कुछ नहीं कर रहा है, इसका मूल्य कम हो गया है, क्योंकि, वर्षों से, ईएएस अवैध ढंग से मछली पकड़े जाने, मानवीय सहायता व आपदा राहत (एचएडीआर), आप्रवासन इत्यादि सहित गैर-पारंपरिक ख़तरों पर ज़्यादा ध्यान देता रहा है. ईएएस इस क्षेत्र को अपने घर का पिछवाड़ा समझने की चीन की दृष्टि और अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया व अन्य द्वारा मुक्त एवं खुले हिंद प्रशांत को बढ़ावा देने की इच्छा के बीच ज़बरदस्त प्रतिस्पर्धा देख रहा है. जब क्वॉड साझेदारों के बीच नयी पहलों के ज़रिये बीआरआई को चुनौती देने की कोशिश की जाती है, तो यह रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता और तीखी हो जाती है. इसके अलावा, चीन की वैक्सीन कूटनीति को भी क्वॉड की वैक्सीन पहल द्वारा चुनौती दी जा रही है.
2015 में ईएएस में सुधार के एक प्रयास के बावजूद, कोई कार्यक्रम लागू नहीं किया गया. ऐसी कोशिशों का ईएएस को अपने निर्धारित शिखर वार्ता मोड से बाहर निकालने में बहुत कम प्रभाव पड़ा. इसके ‘नेताओं की अगुवाई वाले’ इरादे में प्रभावकारिता जोड़ने और आसियान की अगुवाई वाली दूसरी कामकाजी प्रणालियों (एपीटी, एआरएफ, एडीएमएम-प्लस और एएमएफ समेत) के साथ साझा तत्वों को प्रबंधित करने के ज़रिये ईएएस को गोलबंद करने की कोई सचेत कोशिश नहीं की गयी. एक गैर-आसियान देश की सह-अध्यक्षता इसमें मदद कर सकती है, लेकिन आसियान इसके लिए अनिच्छुक रहता है.
अब किधर?
ईएएस के निर्माता के बतौर, आसियान को ईएएस द्वारा सामना की जा रही ‘क्षरण की चुनौतियों’ का एहसास करने की ज़रूरत है. ‘आसियान-केंद्रित क्षेत्रीय संरचना के शीर्ष पर’ इसकी जो स्थिति है, उसके कायाकल्प की ज़रूरत है. जिस आधार पर ईएएस बनाया गया था, अब उसमें भूरणनीतिक सच्चाइयों की घुसपैठ हो चुकी है. कामकाजी और आर्थिक बहुध्रुवीयता हासिल की जा रही है, लेकिन अमेरिका और चीन व रूस के बीच द्वि-ध्रुवीयता की ओर एक बड़ा रुझान है.
क्या आसियान इस वक़्त ईएएस को प्रासंगिक बनाये रखने की दिशा में ले जा सकता है, जबकि उसके साझेदार बंटे हुए हैं और आसियान की एकता भी कमज़ोर हुई है (जैसा कि म्यांमार और यूक्रेन संकट पर इसके रवैये में देखा गया)? ईएएस को सार्थक बनाये रखने के लिए आसियान और उसके साझेदारों को भरोसे का एक नया भाव पैदा करने और विश्वास बहाली के लिए मिलकर काम करना होगा. आचार संहिता पर चीन अपने पैर पीछे खींचता रहता है. अमेरिकी सहयोगी आकुस और क्वॉड के ज़रिये ख़ुद को मज़बूत कर रहे हैं. क्वॉड ने सुरक्षा से लेकर आसियान को लुभाने तक के लिए अपने को दोबारा फोकस किया है. आसियान के सदस्य ज्यादा देशों के साथ जुड़ाव का पहले से बड़ा इरादा दिखा रहे हैं. जून 2022 में क्वॉड शिखर सम्मेलन के साथ घोषित ‘हिंद-प्रशांत आर्थिक फ्रेमवर्क’ में सात आसियान देश शामिल हुए. आसियान को अपने सभी ईएएस साझेदारों के साथ ज़्यादा दृढ़संकल्पित तरीक़े से जुड़ाव बढ़ाने की ज़रूरत होगी. ईएएस की ओर उसका ज़िम्मेदारी का भाव मज़बूत किया जाना चाहिए.
जून 2022 में क्वॉड शिखर सम्मेलन के साथ घोषित ‘हिंद-प्रशांत आर्थिक फ्रेमवर्क’ में सात आसियान देश शामिल हुए. आसियान को अपने सभी ईएएस साझेदारों के साथ ज़्यादा दृढ़संकल्पित तरीक़े से जुड़ाव बढ़ाने की ज़रूरत होगी.
अक्सर, पूरा आसियान समवेत रूप में काम नहीं कर पाता है. आसियान के लिए समय आ गया है कि वह दूसरे ईएएस साझेदारों के साथ अलग-अलग देशों के रूप में जुड़े. भारत-ऑस्ट्रेलिया-इंडोनेशिया और भारत-वियतनाम-जापान के बीच त्रिपक्षीय संबंध अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्धा से पार पाने और रचनात्मक रिश्ते रखने में मददगार हो सकते हैं. भारत की ‘हिंद-प्रशांत महासागरीय पहल’ (आईपीओआई) ऐसा ही एक मौक़ा पेश करता है. इंडोनेशिया और सिंगापुर दो आसियान देश हैं जो आईपीओआई के स्तंभों से जुड़े हैं. अगर वियतनाम और फिलीपीन्स भी आईपीओआई के साथ काम करने के लिए आगे आते हैं, तो यह ईएएस के पार सहयोग को मज़बूत करेगा. आसियान के सदस्यों का यह ‘आसियान प्लस’ दृष्टिकोण ईएएस में आसियान की केंद्रीयता और आसियान के निर्देशन को सशक्त बना सकता है.
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