दुनिया ख़ुशी-ख़ुशी डिजिटल युग को स्वीकार कर रही है. प्रौद्योगिकी का प्रयोग समाज के हर पहलू पर दूरगामी असर दिखा रहा है. प्रौद्योगिकी ने दुनिया की सबसे नाज़ुक सामाजिक समस्याओं से निपटने में मदद की है. इनमें साक्षरता की निम्न दरें, खाद्य असुरक्षा और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं. वित्तीय समावेश के मोर्चे पर प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल आज के संदर्भ में बेहद अहम हो गया है. इसके ज़रिए समाज के पिछड़े तबक़ों को आगे बढ़ाना मुमकिन हो पाता है और समावेशी विकास का रास्ता साफ़ होता है.
वित्तीय समावेश का अर्थ है व्यक्तियों और कंपनियों- दोनों के लिए उपयोगी और सस्ती दरों वाले वित्तीय साज़ोसामानों और सेवाओं की उपलब्धता. इनमें भुगतान, लेन-देन, बचत, साख और बीमा शामिल हैं, जो टिकाऊपन और नैतिकता के अनुरूप मुहैया कराए जाते हैं. वित्तीय समावेश इसलिए अहम है क्योंकि ये सामाजिक गतिशीलता की सहूलियत देते हैं. इन संसाधनों से व्यक्तियों को सशक्त बनाने में मदद मिलती है और समुदायों को सहारा दिया जाता है.ऐसे उपायआर्थिक विकास को बढ़ावा देने में मददगार साबित हो सकते हैं. साथ हीखाताधारकों द्वारा अतिरिक्त वित्तीय सेवाओं के इस्तेमाल की संभावना भी बढ़ जाती है. इनमें उद्यमों की स्थापना और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए साख और बीमा, अपने बच्चों या ख़ुद के स्वास्थ्य या शिक्षा में निवेश करना, जोख़िम प्रबंधन करना और वित्तीय झटकों से उबरने की क़वायद शामिल हैं. कुल मिलाकर इन सब उपायों से उनके जीवन की गुणवत्ता में इज़ाफ़ा हो सकता है.
वित्तीय समावेश इसलिए अहम है क्योंकि ये सामाजिक गतिशीलता की सहूलियत देते हैं. इन संसाधनों से व्यक्तियों को सशक्त बनाने में मदद मिलती है और समुदायों को सहारा दिया जाता है.ऐसे उपायआर्थिक विकास को बढ़ावा देने में मददगार साबित हो सकते हैं. साथ हीखाताधारकों द्वारा अतिरिक्त वित्तीय सेवाओं के इस्तेमाल की संभावना भी बढ़ जाती है.
वित्तीय समावेश की प्रक्रिया बहुत आगे बढ़ गई है. 2011 में वैश्विक स्तर पर 51 प्रतिशत वयस्कों के पास बैंक या मोबाइल खाते थे. अब ये आंकड़ा बढ़कर 76 प्रतिशत हो गया है. दुनिया के 80 से भी ज़्यादा देशों ने डिजिटल वित्तीय सेवाओं की शुरुआत कर दी है. इनमें से कुछ ने तो एक बड़ा बाज़ार भी हासिल कर लिया है. इनमें मोबाइल उपकरणों का इस्तेमाल करने वाले भी शामिल हैं. नतीजतन अतीत में इस दायरे से बाहर रहे करोड़ों लोग अब औपचारिक वित्तीय लेनदेन के लिए नक़दी इस्तेमाल करने की बजाए मोबाइल फ़ोन और दूसरे उपकरणों से डिजिटल बैंकिंग सेवाओं का प्रयोग शुरू कर चुके हैं.
वित्तीय समावेश के सामने अड़चनें
वैसे तो हाशिए पर खड़े निम्न आय वर्ग के वित्तीय समावेशन की दिशा में बड़े कदम उठाए गए हैं, लेकिन इस मोर्चे पर भी विषमता साफ़ दिखाई देती है. इसका सक्रिय रूप से निपटारा किए जाने की ज़रूरत है. भारत की लगभग 80 फ़ीसदी आबादी के पास बैंक खाते हैं, लेकिन तक़रीबन 18 प्रतिशत बैंक खाते (8.14 करोड़) “ज़ीरो बैलेंस” के साथ बंद पड़े (inoperative) हैं. इसके अलावा क़रीब38 फ़ीसदी खाते निष्क्रिय (inactive) हैं, इसका मतलब ये है कि पिछले साल इसमें कोई जमा या निकासी नहीं हुई है. इससे पता चलता है कि कई भारतीय अब तक औपचारिक बैंकिंग प्रणाली के साथ पूरी तरह से जुड़ नहीं पाए हैं.
इस मसले का जड़ से निपटारा करने के लिए डिजिटल विषमताओं की वजहें समझना निहायत ज़रूरी है. दरअसल,भारत को अब भी स्थिर ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्शन के साथ दूरसंचार के ठोस बुनियादी ढांचे की दरकार है. रफ़्तार में बढ़ोतरी के साथ प्रौद्योगिकीय स्वरूप में इज़ाफ़े के बावजूद पूरे देश में इन नवाचारों को अपनाने की नाकामी से ये खाई और बढ़ गई है.
भारत में 31 करोड़ से भी ज़्यादा लोगों के पास बेसिक सेल फ़ोन नहीं है. लिहाज़ा देश के सामने नागरिकों को ऑनलाइन माध्यमों पर लाने की चुनौतीबरक़रार है. इससे खाताधारकों के सामने अहम सूचनाएं हासिल करने का सवाल भी खड़ा होता है.इनमें खाते में लेन-देन से जुड़ी जानकारियों शामिल हैं. साथ ही वित्तीय संस्थाओं द्वारा छोटे आकार वाले लेनदेन के संदेश देने की भी ज़रूरत है. इन कारकों ने स्थानीय एजेंटों पर निर्भरताएं बढ़ा दी हैं. ज़ाहिर तौर पर भारत में शहरी और ग्रामीण इलाक़ों में खाई मौजूद है, जो खुलकर नज़र भी आती है. शहरी क्षेत्रों के14.4 फ़ीसदी परिवारों के मुक़ाबले ग्रामीण इलाक़ों में महज़ 4.4 प्रतिशत परिवारों के पास कंप्यूटर मौजूद है. इसी तरह देहाती इलाक़ों में सिर्फ़ 14.9 फ़ीसदी घरों में ही इंटरनेट की पहुंच है जबकि महानगरीय क्षेत्रों ये आंकड़ा 37 फ़ीसदी है.
भारत में 31 करोड़ से भी ज़्यादा लोगों के पास बेसिक सेल फ़ोन नहीं है. लिहाज़ा देश के सामने नागरिकों को ऑनलाइन माध्यमों पर लाने की चुनौतीबरक़रार है. इससे खाताधारकों के सामने अहम सूचनाएं हासिल करने का सवाल भी खड़ा होता है.इनमें खाते में लेन-देन से जुड़ी जानकारियों शामिल हैं.
ऐसी विषमताएं वित्तीय क्षेत्र के अनेक कारकों से जुड़ी हुई हैं. छोटी मियाद वाले ऋणदाताओं द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में ऊंची ब्याज़ दरें वसूलने की घटनाएं आम हैं. साख तक पहुंच से जुड़े मसले का हल अबतकनहीं हो सका है. ग्रामीण इलाक़ों में ऋण की उपलब्धता को प्रभावी रूप से सुधारने के लिए सरकारी कार्यक्रमों का बेहद दूरदराज़ के इलाक़ों तक पहुंचना अब भी बाक़ी है. लोगों को महसूस हो रहा है कि भरोसेमंद वित्तीय संस्थानों और डिजिटल ऋण देने वाली इकाइयों की ओर से ऑनलाइन ऋणों को लेकर ज़्यादा विकल्प दिए जाने की दरकार है. साथ ही ग्रामीण उपभोक्ताओं को बैंकिंग से जुड़े जटिल प्रावधानों की वजह से संभावित वित्तीय सेवाओं तक पहुंच बनाने में मदद की दरकार होती है. इनमें पहचान से जुड़ी जानकारियां जुटाने और खाते में एक ख़ास बैलेंस बनाए रखने की ज़रूरत शामिल हैं.
डिटिजल खाईके लिएकंप्यूटर और संचार प्रौद्योगिकियों तक सीमित पहुंच भी ज़िम्मेदार है. भारत में डिजिटल सूचना जुटाने के लिए ज़रूरी उपकरणों तक पहुंच बनाने की क्षमता कुछ ही लोगों को हासिल है. यहां अलग-अलग इलाक़ों में लोगों की मातृभाषाएं अलग-अलग हैं, लिहाज़ा भारत में विभिन्न क्षेत्रों में विविधतापूर्ण सामग्रियां उपलब्ध कराने की अतिरिक्त चुनौती भी मुंह बाए खड़ी है. इसके साथ ही कंप्यूटर तक पहुंच हासिल कर चुके लोगों और इंटरनेट का इस्तेमाल करने की योग्यता रखने वाली आबादी का अनुपात भीविभिन्न राज्यों में अलग-अलग है. लिहाज़ा देश भर में एक जैसा रुख़ नहीं अपनाया जा सकता.
भारतीय नागरिकों में प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेपों को अधिकतम स्तर पर ले जाने की क्षमता का अभाव है. यहां तक़रीबन 26.6 करोड़ वयस्क अनपढ़ हैं. वित्तीय साक्षरता के अभाव से भी वित्तीय समावेशन के विकास के रास्ते में काफ़ी अड़चनें आई हैं. साइबर वित्तीय अपराध बढ़ रहे हैं और उसी अनुपात में ग्रामीण निवासियों में अविश्वास का भाव भी बढ़ता जा रहा है, यही वजह है कि देहाती इलाक़ों में आधुनिक वित्तीय प्रणाली को अपनाने की दर नीची बनी हुई है. 2021 में साइबर अपराधों में 6 प्रतिशत का उछालआया है. पर्सनल आइडेंटिफ़िकेशन इन्फ़ॉर्मेशन (PII) दिशानिर्देशों पर अमल और उनके अनुपालन की क़वायद को सख़्ती से अंजाम नहीं दिया जा रहा है.नतीजतन डेटा के विशाल भंडार तक अनाधिकृत पक्षों की पहुंच आसानी से हो रही है. इससे डेटा निजता को लेकर गंभीर चिंताएं उभर रही हैं. मोबाइल नंबरों और ग्राहकों की जानकारियों (KYC) से जुड़े डेटा व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जा रहे हैं.ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते रहे हैं जब कुछ बिज़नेस कॉरेस्पॉन्डेंट्स के एजेंटों ने चोरी-छिपे बायोमेट्रिक सूचनाएं रिकॉर्ड कर बाद में धोखाधड़ी के मक़सद से उनका इस्तेमाल कर लिया.
डिजिटल कुशलताओं और वित्तीय साक्षरता पर ज़ोर देने की व्यवस्थागत रणनीति को हर क्षेत्र में अमल में लाया जाना चाहिए. इस कड़ी में भाषा से जुड़ी बाधाओं और प्रौद्योगिकी तक पहुंच की क़वायद को ज़ेहन में रखा जाना चाहिए.
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भारत में ई-गवर्नेंस की अनेक योजनाओं के ज़रिए तमाम तरह की प्रौद्योगिकीय प्रगति की दिशा में निरंतर कार्य हो रहा है. इस कड़ी में समाज के भीतर की खाई पर और ज़्यादा तवज्जो दिए जाने की दरकार है. लाज़िमी तौर पर इन सामाजिक विषमताओं के निपटारे की दिशा में काम करते वक़्त मौजूदा दरारों को ज़ेहन में रखा जाना चाहिए. सामाजिक समावेशन नीति पर अमल करना सरकार के हाथ में होता है. इसके अलावा वित्तीय मोर्चे पर अलग-थलग पड़ने की वजहों की पड़ताल करना और उनका प्रभावी रूप से निपटारा करने की ज़िम्मेदारी भी सरकार की ही होती है. सूचना और संचार प्रौद्योगिकी नीतियां प्राथमिक रूप से ऊपर से नीचे की ओर प्रवाह वाली और आपूर्ति-केंद्रित होती हैं. लिहाज़ा नागरिकों और पिछड़े तबक़ों की ज़रूरतों को तवज्जो देने वाले वित्तीय साज़ोसामान और सेवाएं तैयार करना ज़रूरी है. इन नीतियों का ज़ोर डिजिटल समावेश रणनीतियों पर होना चाहिए ताकि ग्रामीण इलाक़ों में उचित रूप से इंटरनेट कनेक्टिविटी की पहुंच हो सके.
डिजिटल वित्तीय समावेशन सुनिश्चित करने के लिए सरकार को मध्यम आयु वाली आबादी को पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित करना चाहिए ताकि वो सरकार द्वारा मुहैया कराई जा रही विभिन्न सेवाओं का इस्तेमाल कर सकें. सरकारी वेबसाइटों में आमतौर पर हिन्दी और अंग्रेज़ी में सूचनाएं होती हैं, इससे एक बड़े तबक़े को इनका लाभ नहीं मिल पाता. डिजिटल कुशलताओं और वित्तीय साक्षरता पर ज़ोर देने की व्यवस्थागत रणनीति को हर क्षेत्र में अमल में लाया जाना चाहिए. इस कड़ी में भाषा से जुड़ी बाधाओं और प्रौद्योगिकी तक पहुंच की क़वायद को ज़ेहन में रखा जाना चाहिए.
वित्तीय धोखाधड़ी से निपटने के लिए आमने-सामने वित्तीय सेवाओं के प्रबंधन (MFS) से जुड़े एजेंट मेंटरशिप कार्यक्रम पर अमल किया जाना चाहिए. इसमें कमज़ोर वर्गों को मोबाइल से जुड़ी बुनियादी बातें सिखाए जाने के साथ-साथ ऑनलाइन संवाद मुमकिन बनाया जाना चाहिए. लेन-देन की लागत घटाकर निम्न-आय वाले व्यक्तियों के लिएवित्तीय सेवाओं तक पहुंच बनाने की बाधाएं दूर किए जाने से इस दिशा में भागीदारी को बढ़ाया जा सकता है. नेपाल में ऐसा ही देखने को मिला है. वहां मुफ़्त और आसानी से उपलब्ध हो जाने वाले खातों की महिलाओं में अच्छी-ख़ासी तादाद देखने को मिली है. प्रौद्योगिकी तक पहुंच के अभाव से समाज में पहले से मौजूद अलगाव और गहरा हो सकता है. इससे लोग ज़रूरी संसाधनों तक पहुंच से वंचित रह सकते हैं. डिजिटल डिवाइड जीवन के हर क्षेत्र पर असर डालता है. इनमें साक्षरता, सेहत, गतिशीलता, सुरक्षा, वित्तीय सेवाओं तक पहुंच आदि शामिल हैं. लिहाज़ा भारत जैसे तेज़ी से आगे बढ़ते देश में सामान्य आर्थिक वृद्धि से हटकर न्यायपूर्ण और समावेशी विकास पर ध्यान दिए जाने की दरकार है.
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