प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा का हालिया भारत दौरा, 2022 में उनके पिछले दौरे से लगभग एक साल बाद हुआ है. किशिदा ऐसे मौक़े पर भारत आए हैंजब जापान के वैश्विक और क्षेत्रीय नज़रिए में क्रांतिकारी बदलाव आ चुका है. जापान के प्रधानमंत्री के भारत दौरे से ठीक पहले ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्रीएंथनी अल्बनीस भारत आ चुके थे. इससे पता चलता है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र के ये तीन प्रमुख देश एक दूसरे के साथ नज़दीकी और बढ़ा रहे है.
शुरू से ही ये बात स्पष्ट थी कि किशिदा के भारत दौरे की थीम G7 और G20 के बीच सहयोग को बढ़ाने पर केंद्रित रहेगी (जापान इस वक़्त G7 समूहका अध्यक्ष है). इसके अतिरिक्त जापान के प्रधानमंत्री इस दौरे के माध्यम से जापान और भारत की सामरिक साझेदारी और वैश्विक भागीदारी को औरगहरा बनाना चाह रहे थे. इस लक्ष्य की प्राप्ति फूमियो किशिदा के ‘मुक्त एवं खुले हिंद प्रशांत’ के दृष्टिकोण के साथ ‘भारत को अपरिहार्य साझेदार’ बताने से और आसान हो गई.
किशिदा के भारत दौरे की थीम G7 और G20 के बीच सहयोग को बढ़ाने पर केंद्रित रहेगी (जापान इस वक़्त G7 समूह का अध्यक्ष है). इसके अतिरिक्त जापान के प्रधानमंत्री इस दौरे के माध्यम से जापान और भारत की सामरिक साझेदारी और वैश्विक भागीदारी को और गहरा बनाना चाह रहे थे.
आधिकारिक प्रवक्ता के मुताबिक़, 20 मार्च को हुई आधिकारिक स्तर की बातचीत के दौरान आर्थिक सहयोग एवं वाणिज्य, जलवायु और ऊर्जा, रक्षाऔर सुरक्षा, दोनों देशों की जनता के रिश्तों और कौशल विकास जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई. इस दौरे के ‘निष्कर्षों की सूची’ में मुंबई अहमदाबाद के बीच हाईस्पीड रेल के लिए 300 अरब जापानी येन (JPY) की चौथी किस्त और भारत में जापानी भाषा की शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग का सहमति पत्र भी शामिलथा.
इसी के तहत फूमियो किशिदा ने इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स में अपने सार्वजनिक भाषण का इस्तेमाल करते हुए, चीन की बढ़ती क्षेत्रीयआक्रामकता को रोकने के लिए जापान के नेतृत्व में एक नई पहल का ऐलान भी किया. फूमियो किशिदा का भाषण काफ़ी हद तक अपने उस्ताद शिंजोआबे के 2007 के भाषण से मिलता जुलता था, जिसमें आबे ने कहा था कि, ‘प्रशांत और हिंद महासागर अब आज़ादी एवं समृद्धि के गतिशील समंदरोंके तौर पर जुड़ रहे हैं.’ इस भाषण के एक दशक बाद 2016 में कीनिया में एक भाषण के दौरान शिंजो आबे ने पहली बार, ‘मुक्त एवं खुले हिंद प्रशांत’ के जुमले का इस्तेमाल किया था.
हिंद प्रशांत पर किशिदा के भाषण में भारत की केंद्रीयता की अनदेखी करना बहुत मुश्किल है. इसी तरह ‘यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस की आक्रामकता’ कीबात भी अहम है, जिससे दुनिया के सामने शांति की रक्षा करने की बुनियादी चुनौती पैदा हुई है. किशिदा ने कहा कि उनकी ये नई सोच विकासशीलविश्व और भारत जैसे देशों के उभार के कारण पैदा हुई है.
वैसे तो भाषण में कहीं भी चीन का ज़िक्र नहीं किया गया था. लेकिन, समुद्रों में क़ानून के राज के अपने सिद्धांत के बारे में बात करते हुए, उन्होंने उल्लेखकिया कि देशों को चाहिए कि वो अपने दावे अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के दायरे में रहते हुए उठाएं और ‘अपने दावों को मज़बूती देने के लिए ज़बरदस्ती बलप्रयोग न करें’ और विवादों का समाधान शांति से करें.
उन्होंने कहा कि इसी के तहत जापान अपनी आधिकारिक विकास सहायता (ODA) का इस्तेमाल सामरिक रूप से करेगा और इसे कई तरीकों से विस्तारभी देगा. एक नई रूपरेखा, जो निजी पूंजी जुटाने में भी मददगार साबित होगी, से 2030 तक निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों को मिलाकर 75 अरब डॉलर कीरक़म जुटाने में मदद मिलेगी.
साझा प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने G7-G20 के जुड़ाव की बात की. उन्होंने ये भी बताया कि भारत, जापान की आधिकारिक विकास सहायताका क्या इस्तेमाल कर रहा है और किशिदा के 2022 के वादों के तहत आ रहे जापानी निवेशों में कितनी प्रगति हुई है. उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों ने रक्षाउपकरण एवं तकनीकी सहयोग, व्यापार, स्वास्थ्य एवं डिजिटल साझेदारी को लेकर अपने विचार साझा किए हैं. इसके अतिरिक्त 2019 की एक भारत- जापान पहल का इस्तेमाल भारत, अपने उद्योगों की प्रतिद्वंदिता कर पाने की क्षमता बढ़ाने के लिए कर रहा है.
पृष्ठभूमि
भारत में फुमियो किशिदा के बयान और जापान में पिछले एक साल में उनके द्वारा उठाए गए क़दम ये संकेत दे रहे हैं कि भारत और जापान के रिश्तों केसंदर्भों को पिछले साल जापान द्वारा उठाए गए क़दमों के अनुरूप बदला जाएगा. वैसे ये हो सकता है कि इनकी वजह यूक्रेन पर रूस का हमला हो. लेकिन, इसकी वास्तविक वजह असल में उत्तरी पूर्वी एशिया में ताक़त के संतुलन को लेकर जापान की चिंता है. क्योंकि इस क्षेत्र में रूस, उत्तरी कोरियाऔर चीन के साथ जापान के रिश्ते मुश्किल भरे हैं. जून 2022 में किशिदा ने कहा भी था कि, ‘जो आज यूक्रेन में हो रहा, वो कल को पूर्वी एशिया में भीहो सकता है.’
यूरोप में हुई घटनाओं ने एक तरह से जापान के निर्णय लेने की प्रक्रिया में उत्प्रेरक का ही काम किया है. पिछले एक साल में जापान ने आने वाले वर्षों केलिए अपनी नई रक्षा एवं सुरक्षा की नीतियों की बुनियाद रखी है. इस प्रक्रिया में जापान ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद अपने ऊपर ख़ुद से थोपी गई सैन्यसीमाओं से मुक्ति पाने की लंबी छलांग भी लगाई है. किशिदा ने जापान के रक्षा बजट को 1 प्रतिशत तक सीमित रखने की पाबंदी हटा दी है, जो अबबढ़कर 2 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी, जिसके बाद जापान, भारत को पीछे छोड़ते हुए अमेरिका और चीन के बाद रक्षा व्यय के मामले में दुनिया का तीसरासबसे बड़ा देश बन जाएगा.
दिसंबर में किशिदा सरकार ने क्षेत्र में अपने सुरक्षा दृष्टिकोण से संबंधित तीन अहम दस्तावेज़ों में संशोधन किया था. ये दस्तावेज़, नई राष्ट्रीय सुरक्षारणनीति (NSS), राष्ट्रीय आत्मरक्षा रणनीति (NDS) और डिफेंस बिल्डअप प्रोग्राम, हैं. तीनों को मिलाकर देखें तो ये नए क्षेत्रों और चुनौतियों का सामनाकरने के लिहाज़ से तैयार किए गए हैं और इनमें अंतरिक्ष, साइबर सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षा को शामिल किया गया है.
नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति कहती है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद से जापान ‘सबसे भयंकर और पेचीदा सुरक्षा माहौल का सामना कर रहा है.’ एक बड़ी चिंता इस बात की है कि आने वाले समय में चीन, ताक़त के बल पर ताइवान को अपने में मिलाने का प्रयास कर सकता है. अभी तो जापान खुलकर चीन को एक ‘ख़तरा’ नहीं कहता है. इसके बजाय जापान ने चीन के ख़तरे को ‘अपने इतिहास में सबसे बड़ी सामरिक चुनौती’ का नाम दिया है.
इसके एक महीने बाद यानी जनवरी 2023 में किशिदा अमेरिका गए, ताकि वो जापान के लिए सहसे अहम संबंध यानी अमेरिका के साथ रिश्तों कोमज़बूती दे सकें. इस दौरे से पहले दोनों देशों ने साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के समझौते पर दस्तख़त किए और अपने सुरक्षा सलाहाकरसमिति की बैठक की. जो अमेरिका और जापान के रक्षा और विदेश मंत्रियों के बीच संवाद (2+2) होता है. रिश्तों में ताज़गी भरने से जापान केओकिनावा में तैनात अमेरिकी मरीन रेजिमेंट को और फुर्तीला बनाने में मदद मिलेगी, जिससे वो ताइवान के क़रीब स्थित जापानी द्वीपों की निगरानी करसकेंगे. किशिदा के दौरे के दौरान जापान की अंतरिक्ष की संपत्तियों की रक्षा को लेकर अमेरिका ने अपना वादा दोहराया. दोनों देशों के बीच रक्षा के क्षेत्रमें अनुसंधान एवं विकास और आपूर्ति श्रृंखलाओं की सुरक्षा को लेकर भी समझौते हुए.
लेकिन, इस दौरे की शायद सबसे अहम घटना तो जो बाइडेन और फुमियो किशिदा द्वारा जारी साझा बयान का वो वाक्य था, जिसमें कहा गया था कि नकेवल दोनों देशों का गठबंधन अपनी सबसे मज़बूत स्थिति में है बल्कि दोनों देश ‘दुनिया में किसी भी जगह ताक़त या दबाव के दम पर यथास्थिति मेंकिसी भी तरह के इकतरफ़ा बदलाव का कड़ा विरोध करते हैं.’ किसी भी अन्य क़दम से ज़्यादा, ये वाक्य ही जापान के वैश्विक रुख़ में बदलाव का प्रतीकहै.
भारत और जापान
जापान और भारत दोनों के बीच मज़बूत आपसी संबंध भी हैं और दोनों देश क्वाड के सदस्य भी हैं. जापान के नज़रिए में आया ये नया बदलाव भारत कोआर्थिक और सैन्य, दोनों क्षेत्रों में नए अवसर प्रदान करने वाला है. उच्च तकनीक के उद्योगों को चीन से कहीं और ले जाने के जापान के प्रयासों का लाभभारत उठा सकता है. इसके साथ साथ वो हिंद प्रशांत क्षेत्र में नई सुरक्षित एवं लचीली आपूर्ति श्रृंखलाएं स्थापित करने के विचार का फ़ायदा भी उठासकता है.
जापान के रक्षा व्यय में बड़ी तादाद में वृद्धि और उससे भी अहम उसका अपनी शांतिवादी नीतियों से दूरी बनाने से जापान इस क्षेत्र में अधिक सैन्य शक्तिहासिल करेगा. अभी भी जापान की नौसेना या समुद्री आत्मरक्षा बल दुनिया में सबसे ताक़तवर नौसेनाओं में से एक है. आने वाले समय में आप इस बातको लेकर निश्चिंत हो सकते हैं कि जापान की नौसेना अधिक सक्षम होगी और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र और संभवत: हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थितिको और बढ़ाएगी.
भारत और जापान के रक्षा संबंध बहुत मंथर गति से आगे बढ़ रहे है. 2010 के दशक में भारत के साथ मिलकर एम्फीबियस वायुयान बनाने के क्षेत्र मेंसहयोग की कोशिश नाकाम हो गई थी. इसी तरह जापान से पनडुब्बी की तकनीक हासिल करने की कोशिश भी परवान नहीं चढ़ सकी. लेकिन दोनोंदेशों ने 2013 के बाद से ही समुद्री मामलों में संवाद करने और साझा अभ्यासों में हिस्सा लेने के प्रयास जारी रखे हैं.
नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति कहती है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद से जापान ‘सबसे भयंकर और पेचीदा सुरक्षा माहौल का सामना कर रहा है.’ एक बड़ी चिंता इस बात की है कि आने वाले समय में चीन, ताक़त के बल पर ताइवान को अपने में मिलाने का प्रयास कर सकता है.
जून 2021 में भारत और जापान ने एक दूसरे को आपूर्ति करने के द्विपक्षीय प्रावधानों के समझौते (RPSS) पर दस्तख़त किए थे. इससे जापान औरभारत की सेनाएं एक दूसरे को फौरन और आसानी से संसाधन और सेवाएं प्रदान कर सकें. इससे भी पहले जापान और भारत के बढ़ते नज़दीकी रिश्तों कासंकेत उस वक़्त मिला था, जब 2019 में दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों के बीच 2+2 की बैठकें शुरू हुई थीं.
इसी साल की शुरुआत में भारत के चार सुखोई 30 MKI लड़ाकू विमान, भारतीय वायुसेना के दो C-17 ग्लोबमास्टर और IL-78 टैंकर के साथ टोक्योके पास एक हवाई अड्डे पर हुए वीर गार्जियन वायु सेना युद्धाभ्यास में हिस्सा लेने गए थे. वैसे तो ये युद्धाभ्यास 2020 में करने की योजना बनाई गई थी. लेकिन, बाद में इसे स्थगित कर दिया गया था. जापान और भारत, पिछले कई वर्षों से अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर मालाबार नौसैनिकअभ्यास में हिस्सा लेते आए हैं.
2022 में अपने दौरे के दौरान प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने भारत में 5 ख़रब येन (3 लाख 20 हज़ार करोड़ रुपए) का निवेश करने के लक्ष्य का ऐलानकिया था. प्रेस के सामने साझा बयान में प्रधानमंत्री मोदी ने संकेत दिया था कि भारत इस पहल का बख़ूबी इस्तेमाल कर रहा है.
भारत, हाल के वर्षों में जापान की आधिकारिक विकास सहायता (ODA) पाने वाला सबसे बड़ा देश रहा है. जापान, विकास की अपनी योजनाओं केतहत भारत के उत्तरी पूर्वी क्षेत्रों में सड़कें, पुल, वन प्रबंधन और क्षमता निर्माण जैसे विकास की परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करता रहा है. दोनों देशों नेएशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर को आगे बढ़ाने का प्रयास भी किया है. जापान और भारत, ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर त्रिपक्षीय आपूर्ति श्रृंखलाओं कोलचीला बनाने की पहल का भी हिस्सा है.
जापान की कंपनियों की भारत में काफ़ी अहम उपस्थिति रही है और देश में पहले ही जापान की 11 औद्योगिक टाउनशिप काम कर रही है. जापान कीमदद से चलाई जा रही मूलभूत ढांचे की बड़ी परियोजनाओं में मुंबई अहमदाबाद के बीच हाईस्पीड ट्रेन की परियोजना, कई मेट्रो परियोजनाएं औरडेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर शामिल है.
लेकिन, दोनों देशों के बीच आर्थिक मोर्चे पर संबंध अपनी संभावनाओं से काफ़ी कम हैं, और भारत को चीन की बराबरी पर आने के लिए अभी बहुत कुछकरना होगा. जैसा कि द इकॉनमिस्ट ने इशारा किया है कि, जापान के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी 24 प्रतिशत और निर्यात में 22 फ़ीसद है. जबकि जापान के कुल आयात में भारत का हिस्सा 0.8 प्रतिशत और निर्यात में केवल 1.7 प्रतिशत है.
भारत, हाल के वर्षों में जापान की आधिकारिक विकास सहायता (ODA) पाने वाला सबसे बड़ा देश रहा है. जापान, विकास की अपनी योजनाओं के तहत भारत के उत्तरी पूर्वी क्षेत्रों में सड़कें, पुल, वन प्रबंधन और क्षमता निर्माण जैसे विकास की परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करता रहा है. दोनों देशों ने एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर को आगे बढ़ाने का प्रयास भी किया है.
जापान और भारत के बीच सहयोग का लक्ष्य, चीन के बर्ताव पर क़ाबू पाकर हिंद प्रशांत क्षेत्र को स्थिर बनाना है. भौगोलिक स्थिति के लिहाज़ से दोनोंदेशों की प्रतिक्रिया अलग अलग तरह की होती हैं. जहां जापान अपनी समुद्री क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, वहीं भारत थल क्षेत्र में. दोनों देशों केबीच मतभेद भी हैं. जैसे कि क्वाड के सदस्य जापान और ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका के सैन्य साझीदार हैं, जबकि भारत नहीं है. लेकिन, नई पहलों औरभूमिकाओं को आकार देने के पीछे चीन को लेकर भय है और इस मामले में जापान और भारत मिलकर मुक्त एवं खुले हिंद प्रशांत क्षेत्र के दो अहम स्तंभहैं.
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