Author : Nisha Holla

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Published on May 08, 2025 Updated 0 Hours ago

डीप टेक कोई स्प्रिंट नहीं है, यानी यह कोई कम दूरी वाली दौड़ नहीं है कि तेज़ दौड़कर मुक़ाबला जीत लिया जाए. यह तो ऐसा खेल है, जो लगातार चलता रहेगा. ऐसे में, भारत को लंबे समय तक निवेश करने, लगातार नीतियां बनाने और प्रतिस्पर्धी राष्ट्रीय नेतृत्व बनाने की ज़रूरत है. 

डीप टेक: भारत के तकनीकी भविष्य के लिए एक अनंत खेल

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भारत अपनी सोच बदल ले, तो विश्व की तकनीकी दुनिया में होड़ लेने की उसकी महत्वाकांक्षा पूरी हो सकती है. इसके लिए उसे डीप टेक को एक ‘इनफाइनाइट गेम’ मानना होगा, यानी उद्योग, अर्थव्यवस्था और आम जीवन को बड़े पैमाने पर बदलने वाली इस उन्नत तकनीक (डीप टेक) को ऐसा क्षेत्र मानना होगा, जो हमेशा महत्वपूर्ण बने रहने वाला है और जिस पर लगातार काम करने की ज़रूरत है. कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, यानी AI), क्वांटम कंप्यूटिंग और सेमीकंडक्टर जैसे प्रमुख क्षेत्रों को अपने में समेटने वाला डीप टेक कोई कम समय तक बने रहने वाला उद्यम नहीं है. इसमें लगातार निवेश करने, नीतियों में निरंतरता लाने, कॉरपोरेट को प्रोत्साहित करने के लिए सुरक्षा देने, अत्याधुनिक शोध को बढ़ावा देने वाले पारिस्थितिकी तंत्र को आगे बढ़ाने और लंबे समय तक राज्य द्वारा इसका प्रबंधन किए जाने की ज़रूरत है. 

 

इनफाइनाइट गेम थ्योरी और डीप टेक

खेल के सिद्धांतों के मुताबिक ही यह तय होता है कि कौन खेल निश्चित समय (फाइनाइट) का है और कौन अनिश्चित समय (इनफाइनाइट) का. खेल प्रतियोगिताएं और चुनाव निश्चित समय में पूरे हो जाते हैं, इसलिए ये ‘फाइनाइट गेम’ हैं और इसके नियम, सिद्धांत व अंत तय होते हैं. इनफाइनाइट गेम में शामिल हैं- वैज्ञानिक प्रगति और भू-राजनीतिक रुतबा, जिनकी कोई सीमा नहीं होती. इसमें लक्ष्य 'जीतना' नहीं होता, बल्कि लगातार खेलते रहना होता है. इसमें स्थायी सफलता पाने के लिए खेल में शामिल होना पड़ता है, लगातार निवेश करना होता है और रणनीति बदलनी पड़ती है.

डीप टेक को विकसित करना भी एक इनफाइनाइट गेम है. कोई भी देश सिर्फ़ एक प्रयास में AI, सेमीकंडक्टर या क्वांटम में दबदबा नहीं बना सकता. इसके बजाय, अमेरिका और चीन जैसे बड़े देश डीप टेक को ऐसा क्षेत्र मानते हैं, जिसमें अनुसंधान और विकास (R&D) को आर्थिक मदद देने, ख़ास नीतियां बनाने, उद्योगों का का समर्थन करने और वैज्ञानिकों की प्रतिभा को आगे बढ़ाने की ज़रूरत बार-बार पड़ती है. विश्व में मुक़ाबला करने के लिए भारत को भी राष्ट्रीय प्राथमिकता व नीति के रूप में डीप टेक को महत्व देना चाहिए और सरकारों, पक्षपातपूर्ण रवैयों, प्रशासनिक बदलावों, बाज़ार के उतार-चढ़ाव, नौकरशाहों की विशेषज्ञता की सीमाओं और कम समय वाली आर्थिक प्राथमिकताओं जैसी समस्याओं का समाधान निकालना चाहिए.

 विश्व में मुक़ाबला करने के लिए भारत को भी राष्ट्रीय प्राथमिकता व नीति के रूप में डीप टेक को महत्व देना चाहिए और सरकारों, पक्षपातपूर्ण रवैयों, प्रशासनिक बदलावों, बाज़ार के उतार-चढ़ाव, नौकरशाहों की विशेषज्ञता की सीमाओं और कम समय वाली आर्थिक प्राथमिकताओं जैसी समस्याओं का समाधान निकालना चाहिए.

भारत- बढ़ते कदम, पर निरंतरता की कमी

हाल के नीतिगत बदलाव सकारात्मक इरादे के संकेत देते हैं. 2025-26 के केंद्रीय बजट में AI, परमाणु ऊर्जा, क्वांटम और सेमीकंडक्टर जैसे महत्वपूर्ण डीप टेक क्षेत्रों में अच्छा-ख़ासा पैसा आवंटित किया गया है. इसके अलावा, निजी क्षेत्र में अनुसंधान और विकास (R&D) को बढ़ावा देने के लिए बजट में 20,000 करोड़ रुपये (2.35 अरब अमेरिकी डॉलर) देने और शोध के लिए 10,000 फेलोशिप दिए जाने की बात भी कही गई है. हालांकि, अमेरिका, चीन जैसे बड़े देशों में प्रौद्योगिकियों में नवाचार (इनोवेशन) के लिए जितनी रक़म दी जाती है, उसके आसपास भी यह आवंटन नहीं है. 

भारत में, निवेश करने के फ़ैसले को लागू करने के लिए भी कई बजट की ज़रूरत होती है. चैटजीपीटी इसका उदाहरण है. यह एक जेनरेटिव एआई चैटबॉट है, जिसने इंसानी भाषा की समझ को नई ऊंचाई दी है, सभी लोगों तक विकसित AI को पहुंचाया है और उद्योगों में नवाचार को आगे बढ़ाया है. इसकी शुरुआत 2022 में हुई थी. इसे नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (NLP), क्लाउट कंप्यूटिंग और अन्य मौलिक बौद्धिक संपदा में चार दशकों से अधिक समय से अमेरिका द्वारा नेतृत्व किए जाने का फ़ायदा मिला है. मगर भारत की सरकार ने इस साल (2025 में) ‘भारत एआई मिशन’ और एक स्वदेशी ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट (GPU) में पूंजी निवेश करने का फ़ैसला किया, यानी वैश्विक स्तर पर जेनरेटिव AI मुक़ाबला शुरू होने के तीन साल के बाद। इससे पहले भी, भारत ने स्वदेशी इंटरनेट प्रोटोकॉल (IP) को विकसित करने में कोई महत्वपूर्ण निवेश नहीं किया था. यह संकेत है कि डीप टेक के महत्व को समझने में भारत अब भी पीछे है. आज जब प्रौद्योगिकियों में इतनी तेज़ी से बदलाव हो रहे हैं, तब महत्वपूर्ण तीन साल एक जीवन-काल की तरह होते हैं और आधार बनाए बिना शीर्ष पर मौजूद देश को टक्कर देना लगभग असंभव होता है. साफ़ है, भारतीय नवाचार को अत्याधुनिक स्तर पर ले जाने के लिए प्रशासन को अब अलग ढंग से सोचना होगा.

इसी तरह, नीतियों को लागू करने में भी भारत को वर्षों लग जाते हैं. जुलाई 2023 में राष्ट्रीय डीप टेक स्टार्टअप नीति का मसौदा जारी किया गया था, जिसमें नीति, आर्थिक व संसाधनों की मदद, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), ख़रीद व उप-अनुबंध, मानव पूंजी और स्टार्टअप के लिए एक व्यापक योजना तैयार की गई थी. तब से अब तक एक अंतरिम बजट और दो पूर्ण बजट पेश किए जा चुके हैं, लेकिन यह नीति अब तक लागू नहीं हो सकी है.

इसके अलावा, सरकार के भीतर यह सोच है कि प्रौद्योगिकी का विकास देश के निजी क्षेत्र को करना चाहिए. उद्योग और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में आयोजित स्टार्टअप महाकुंभ, 2025 में कहा कि चीन इलेक्ट्रिक गाड़ी (EV) और एआई जैसी विकसित तकनीक के साथ आगे बढ़ रहा है, जबकि भारतीय स्टार्टअप फूड ऐप और किराने के सामान की डिलीवरी करने वाले ऐप पर ध्यान लगा रहे हैं. मगर ऐसा कहते हुए वाणिज्य मंत्री शायद इस तथ्य को भूल गए कि अपने लक्ष्य को पाने के लिए चीन की सरकार ने दशकों तक कितने पैसे इसमें निवेश किए हैं.

भारत का आर्थिक सर्वेक्षण 2025 बताता है कि सरकार निजी क्षेत्र में अनुसंधान और विकास (R&D) पर कम ख़र्च को लेकर काफ़ी चिंतित है. मगर हमारे नौकरशाहों और वित्त मंत्रालय ने शायद यह अध्ययन नहीं किया कि दशकों से चल रहे अमेरिका के सार्वजनिक अनुसंधान और विकास वित्तपोषण कार्यक्रम कितने महत्वपूर्ण साबित हुए हैं, जो निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिए अनुदान देने और बाज़ार बनाने का काम करते हैं. यह सही है कि भारत ने निजी क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने के लिए 2.35 अरब डॉलर आवंटित किए हैं, लेकिन इससे तीन गुना अधिक पैसे अमेरिका में एक कंपनी (2024 में इंटेल को 7.9 अरब डॉलर आवंटित किए गए थे) को दिए गए थे. ऐसे में, भारत भला कैसे मुक़ाबला कर सकता है, जब उसका पूरा आवंटन अमेरिका में एक कंपनी के मिलने वाली मदद का बहुत छोटा हिस्सा है?

ऐसे में, भारत भला कैसे मुक़ाबला कर सकता है, जब उसका पूरा आवंटन अमेरिका में एक कंपनी के मिलने वाली मदद का बहुत छोटा हिस्सा है?

दरअसल, अमेरिका और चीन जैसे देश सरकारी पैसों का रणनीति बनाकर उपयोग करते हैं, इसके लिए बाज़ार तैयार करते हैं और अपने नागरिकों के साथ मिलकर ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाते हैं, जो उनके यहां सरकार बदलने के बाद भी बने रहते हैं. हां, यह सही है कि दोनों ही देश काफ़ी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं, जिनमें निवेश करने की क्षमता अधिक है, लेकिन उन्होंने यह उपलब्धि दशकों तक लगातार आवंटन करके हासिल की है. भारत को मुक़ाबले में उतरने के लिए किसी अन्य देश की डीप टेक नीति के अनुसार आगे बढ़ने के बजाय इसे अपनी राष्ट्रीय नीति में शामिल करना चाहिए. इसे राजनीति से दूर रखना होगा और राज्य के नियोजन व आर्थिक नीति में इसे शामिल करना होगा. इस पर शायद ही किसी को ऐतराज होगा कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था के अस्तित्व के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता का मुद्दा है. 

 

निजी क्षेत्र क्यों अपने दम पर डीप टेक में अगुआ नहीं बना सकते

भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था में उसके निजी क्षेत्र की बड़ी हिस्सेदारी रही है. सूचना प्रौद्योगिकी सेवा उद्योग 200 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक बड़ा हो चुका है और हम निर्यात में ‘पावरहाउस’ बन चुके हैं, जिसमें लाखों लोगों को रोजगार मिला है और दुनिया के सॉफ्टवेयर डिलीवरी बाज़ार पर हमारा दबदबा बन गया है. आज प्रौद्योगिकी-संचालित स्टार्टअप 16,000 से अधिक स्टार्टअप के साथ आईटी उद्योग को मज़बूती दे रहा है. भारत का निजी निवेश क्षेत्र फल-फूल रहा है और 2014 से मार्च, 2025 तक इसका संचयी निवेश बढ़कर 132 अरब डॉलर हो चुका है. हालांकि, जहां निजी क्षेत्र व्यावसायिक रूप से उपयोगी तकनीकों को आगे बढ़ाने पर ज़ोर दे रहे हैं, वहीं डीप टेक की चुनौती अलग है.

दरअसल, कई डीप टेक कंपनियां अब भी बाज़ार के हिसाब से व्यावसायिक जगह नहीं बना सकी हैं. फिनटेक या SaaS (सॉफ्टवेयर एज़ अ सर्विस) के विपरीत, जहां कंपनियां सीधे उपभोक्ताओं या व्यवसायों को बेचकर तेज़ी से तरक्क़ी कर सकती हैं, डीप टेक इनोवेशन अक्सर राष्ट्रीय स्तर पर रणनीतिक हितों को पूरा करता है. इस उद्योग में शोध और विकास अंततः ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) जैसे दोहरे उपयोग वाले ऐप के माध्यम से उपभोक्ताओं और उद्यमों तक पहुंच सकते हैं. फिर भी, वे मुख्य रूप से अब भी रणनीतिक क्षेत्रों में ही विकसित होते हैं. इन क्षेत्रों में निवेश करने वाले पूंजीपति केवल उन उद्यमों पर विचार कर सकते हैं, जो फंडिंग के सात से दस साल के भीतर मांग बढ़ाते हुए व्यावसायिक बाज़ार से फ़ायदा कमा सके. लंबे समय की फंडिंग वाले उद्यम में, सरकार न केवल सुविधा देती है, बल्कि सबसे बड़ी और आमतौर पर एकमात्र ग्राहक भी होती है.

यह असमानता नीतियों की मदद से दूर करनी चाहिए और जहां निजी क्षेत्र पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं देते, वहां कदम उठाना चाहिए. सरकारों को दोनों भूमिका अपनानी होगी- एक, सहारा देने वाले की और दूसरी, बाज़ार बनाने वाले की. उसे नवाचार को प्रेरित करने और स्वदेशी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए ज़रूरी पूंजी उपलब्ध करानी होगी. साथ ही, उसे स्थायित्व देना होगा और दिशा-निर्देश भी जारी करने होंगे. 

 

बाज़ार-निर्माता की भूमिका में सरकार

जब तक भारत सरकार व प्रशासन स्वदेशी डीप टेक के लिए सक्रिय रूप से घरेलू बाज़ार नहीं बनाते और उसका प्रबंधन नहीं करते, तब तक यह क्षेत्र फल-फूल नहीं पाएगा. सच्चाई यही है कि किसी भी देश ने उल्लेखनीय व लगातार सरकारी ख़र्च करके और प्रथम ग्राहक के रूप में सक्रिय समर्थन देकर विकसित डीप टेक का इकोसिस्टम बनाया है. इसका एक बड़ा उदाहरण अमेरिकी रक्षा उद्योग है, जहां लॉकहीड मार्टिन और रेथियॉन जैसी कंपनियां इसलिए आगे बढ़ सकीं, क्योंकि उनको रक्षा विभाग से बड़े पैमाने पर, लगातार और ज़रूरी आर्थिक मदद मिलती रही. इस व्यवस्था का लाभ पाने वाला सबसे हालिया स्टार्टअप एंडुरिल है, जिसने फरवरी, 2025 में 22 अरब अमेरिकी डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट किया है, जो DRDO के 3.15 अरब डॉलर के सालाना आवंटन से सात गुना बड़ी राशि है.

जब तक भारत सरकार व प्रशासन स्वदेशी डीप टेक के लिए सक्रिय रूप से घरेलू बाज़ार नहीं बनाते और उसका प्रबंधन नहीं करते, तब तक यह क्षेत्र फल-फूल नहीं पाएगा.

कंपनियों को अगर बजट से महत्वपूर्ण आवंटन मिले और उनके साथ लंबे समय वाले अनुबंध किए जाएं, तो वे जो कर सकती हैं-

  1. अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों में ज़्यादा जोखिम वाला और लंबे समय वाला निवेश कर सकती हैं
  2. राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करने वाले मालिकाना IP पोर्टफोलियो बना सकती हैं.
  3. आर्थिक मुश्किलों के बिना रणनीतिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अपना उत्पादन बढ़ा सकती हैं. 
  4. लाभप्रद और उद्यम को सफलतापूर्वक चलाने के लिए सरकार से अनुमानित राजस्व पा सकती हैं, क्योंकि राजस्व और अनुमानित लाभ के बिना, कंपनियां निजी निवेश को आकर्षित नहीं कर सकतीं.

इसी तरह, सरकार क्वांटम कंप्यूटिंग, अंतरिक्ष, अक्षय ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा में भी बाज़ार-निर्माता है. इन सभी क्षेत्रों में अमेरिकी सरकार की महत्वपूर्ण आर्थिक प्रतिबद्धताओं के कारण निजी निवेश पर कोई ख़तरा नहीं रहा, जिस कारण कंपनियों के सहयोग से चलने वाले स्टार्टअप दस वर्षों में विश्व का नेतृत्व करने लगे हैं.

 

भारत को भी यही करना चाहिए

भारत को विश्व स्तर पर प्रमुख क्षेत्रों में दबदबा बनाने के लिए अपनी मज़बूत इच्छाशक्ति दिखानी चाहिए. सरकार को मूल्य श्रृंखला में पर्याप्त निवेश करना चाहिए, फिर चाहे वह मौलिक अनुसंधान में हो, प्रोटोटाइपिंग (किसी उत्पाद का शुरुआती मॉडल बनाना) में, उत्पाद के विकास में, IP को सुरक्षित करने में, उत्पादन सुविधाओं को बनाने में और कारोबारी प्रयास को समर्थन देने में. उसका मक़सद नवाचार को आगे बढ़ाना और स्वदेशी तकनीक के लिए बड़े पैमाने पर बाज़ार व ख़रीद की श्रृंखला तैयार करना होना चाहिए. रणनीतिक डीप टेक क्षेत्रों में उभरती प्रौद्योगिकियों की अगली पीढ़ी के लिए निवेश का यह चक्र बार-बार दोहराया जाना चाहिए, ताकि इस महत्वपूर्ण तकनीक में लगातार विकास हो सके और मुक़ाबले में हम बने रह सकें.

सीधे और बड़े पैमाने पर सरकारी ख़र्च के बिना भारत के डीप टेक इकोसिस्टम में विश्व स्तर पर मुक़ाबला करने के लिए पैसों की कमी बनी रहेगी. निजी क्षेत्र किसी ऐसी तकनीक पर लंबे समय तक दांव नहीं लगा सकता, जिसका अभी तक कोई कारोबारी बाज़ार नहीं है. ऐसे में, सरकार को न सिर्फ़ अनुदान देना होगा, बल्कि ऐसा ख़रीदार भी बनना होगा, जो बार-बार ख़रीदने के लिए आगे आए. उसे यह भी तय करना होगा कि घरेलू डीप टेक कंपनियों के पास नवाचार के लिए मौका हो और उसे सुरक्षा मिले.

 

खेल में बने रहने के लिए खेलना

डीक टेप का विकास करना कोई ऐसा मुक़ाबला नहीं है, जिसका कोई अंतिम लक्ष्य तय है. यह तो एक एनफाइनाइट गेम है, जिसका एकमात्र मक़सद होता है- नवाचार करके और हो रहे बदलाव का इस्तेमाल करके खेल में टिके रहना. भारत के सामने दो विकल्प हैं- वह अपनी राष्ट्रीय नीति में डीप टेक को शामिल करे या फिर लगातार तकनीक पर निर्भर रहने का ख़तरा उठाए. भारत 200 वर्षों से तकनीक पर निर्भर रहा है, पर आज डिजिटल दुनिया में सही सोच के साथ आगे बढ़ने का हमारे पास मौका है, क्योंकि यहां जल्दी कदम बढ़ाने वाले वैश्विक बाज़ार पर दबदबा बनाते हैं.

निजी क्षेत्र किसी ऐसी तकनीक पर लंबे समय तक दांव नहीं लगा सकता, जिसका अभी तक कोई कारोबारी बाज़ार नहीं है. ऐसे में, सरकार को न सिर्फ़ अनुदान देना होगा, बल्कि ऐसा ख़रीदार भी बनना होगा, जो बार-बार ख़रीदने के लिए आगे आए.

ऐसे में, सरकार को आगे बढ़कर साहसपूर्वक नेतृत्व करना चाहिए. इसके लिए उसे अपने नागरिकों पर भरोसा करना होगा, इसमें निवेश करना होगा, लोगों के साथ जोखिम उठाना होगा, निवेश को लगातार बनाए रखना होगा, बुनियादी ढांचा बनाना होगा और नीतिगत समर्थन करना होगा. सवाल यह नहीं है कि डीप टेक में क्या भारत बड़ा निवेश कर सकता है. असल सवाल तो यह है कि क्या भारत ऐसा नहीं करने का अब ख़तरा उठा सकता है?


(निशा होला ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में विजिटिंग फेलो हैं)

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