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Published on Jul 03, 2025 Updated 1 Days ago

महत्वपूर्ण खनिजों पर चीन के वर्चस्व के जवाब में अमेरिका रणनीतिक संसाधनों की प्रतिस्पर्धा में नई सीमा स्थापित करने के लिए समुद्र तल की तरफ देख रहा है.

समंदर की गहराइयों में नई जंग: अमेरिका बनाम चीन, खनिजों की होड़ तेज़!

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देर से ही सही लेकिन अमेरिका को ये एहसास हो गया है कि चीन कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में काफी आगे निकल गया है जिसकी वजह से महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा में उसकी स्थिति मज़बूत हो गई है. इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाला दूसरा प्रशासन निर्णय लेने की लंबी-चौड़ी प्रक्रिया को दरकिनार करके चीन से अंतर को कम करने के लिए कार्यकारी कदमों पर भरोसा कर रहा है. चिंता वाले ऐसे विषयों में गहरे समुद्र में खनन भी शामिल है. ट्रंप प्रशासन के कार्यकारी आदेश (EO) ने गहरे समुद्र में खनन और महत्वपूर्ण खनिजों (क्रिटिकल मिनरल्स) के साथ इसके संबंध पर ध्यान केंद्रित कर दिया है. ये आदेश समुद्र तल के खनिज संसाधनों को विकसित करने, निकालने एवं प्रसंस्करण की तकनीकों और प्रमुख उद्योगों के लिए सप्लाई चेन सुरक्षित करने पर ध्यान देता है. ये आदेश उस समय आया है जब महत्वपूर्ण खनिजों के लिए भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है. चीन मौजूदा समय में इस क्षेत्र में वर्चस्व रखता है क्योंकि उसके पास इस खेल में नियमों को बदलने और वैश्विक सप्लाई चेन को बाधित करने की काफी ताकत है. अमेरिका इस कमज़ोरी को जानता है. यही वजह है कि उसका लक्ष्य इस क्षेत्र में तेज़ विकास के लिए वैकल्पिक रास्ता तलाश करना है और गहरे समुद्र में खनन को लेकर EO समय पर उठाया गया कदम है.

ट्रंप प्रशासन के कार्यकारी आदेश (EO) ने गहरे समुद्र में खनन और महत्वपूर्ण खनिजों (क्रिटिकल मिनरल्स) के साथ इसके संबंध पर ध्यान केंद्रित कर दिया है. ये आदेश समुद्र तल के खनिज संसाधनों को विकसित करने, निकालने एवं प्रसंस्करण की तकनीकों और प्रमुख उद्योगों के लिए सप्लाई चेन सुरक्षित करने पर ध्यान देता है.

वैसे तो अमेरिका पिछले कुछ समय से इस मुद्दे पर ध्यान दे रहा है, लेकिन महत्वपूर्ण खनिजों और दुर्लभ पृथ्वी धातुओं (रेयर अर्थ मेटल) के क्षेत्र में चीन के दबदबे को चुनौती देने की जटिलता को देखते हुए ट्रंप प्रशासन इस प्रक्रिया को तेज़ करने का इरादा रखता है. गहरे समुद्र में खनन के मामले में चुनौतियां और बढ़ जाती हैं. 2022 में अमेरिका के भूगर्भीय सर्वेक्षण विभाग (USGS) ने महत्वपूर्ण खनिजों की समीक्षा और इन खनिजों के उपयोग को प्राथमिकता देने के उद्देश्य से 50 महत्वपूर्ण खनिजों की एक सूची तैयार की थी. 2024 में USGS के खनिज वस्तु सारांश (मिनरल कमोडिटी समरी) की समीक्षा के अनुसार 50 में से 12 महत्वपूर्ण खनिजों के मामले में अमेरिका 100 प्रतिशत आयात पर निर्भर है और 29 महत्वपूर्ण खनिजों के मामले में 50 प्रतिशत से ज़्यादा आयात पर निर्भर है. इसकी तुलना में 2023 में चीन 50 में से 29 महत्वपूर्ण खनिजों का अग्रणी उत्पादक था.

चीन वाला सवाल

गहरे समुद्र में खनन एक विवादित मुद्दा है जिस पर संदेह रखने वालों और उत्साही दोनों का ध्यान है. मौजूदा समय में संयुक्त राष्ट्र के द्वारा समर्थित अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (ISA), जिसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) 1982 के तहत की गई थी, समुद्र तल में उत्खनन की गतिविधियों को नियंत्रित करता है. अभी तक इस संगठन ने 31 लाइसेंस जारी किए हैं. तालिका 1 में प्रमुख देशों के पास लाइसेंस की संख्या के बारे में बताया गया है. 

तालिका 1: लाइसेंस रखने वालों की सूची 

देश

लाइसेंस की संख्या

चीन

5

रूस

4

दक्षिण कोरिया

3

जापान

2

जर्मनी

2

भारत

2

स्रोत: अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण

अमेरिका एक महत्वपूर्ण देश है जिसके पास गहरे समुद्र में खनन के लिए लाइसेंस नहीं है. चूंकि ये लाइसेंस ISA के द्वारा प्रदान किए जाते हैं और अमेरिका इस संगठन में वोट देने वाला सदस्य नहीं है, इसलिए वो लाइसेंस नहीं रख सकता है. इसके बावजूद द मेटल्स कंपनी (TMC)- कनाडा की एक कंपनी जिसकी अमेरिका में भी सहायक कंपनी है- ने दूसरे द्वीपीय देशों, जो ISA के वोट देने वाले सदस्य हैं, के साथ साझेदारी करके आंतरिक समुद्र में खनिज के वाणिज्यिक उपयोग के उद्देश्य से लाइसेंस के लिए आवेदन सौंपा है. TMC की अमेरिकी सहायक कंपनी ने गहरे समुद्र तल कठोर खनिज संसाधन अधिनियम (डीप सीबेड हार्ड मिनरल रिसोर्सेज़ एक्ट) के तहत वाणिज्यिक रिकवरी और खोज के लिए आवेदन सौंपा है. 1980 में पारित डीप सीबेड हार्ड मिनरल रिसोर्सेज़ एक्ट अमेरिका में गहरे समुद्र में गतिविधियों को नियंत्रित रखता है. ये कानून अमेरिका के नागरिकों को राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे इलाकों (ABNI) में समुद्र तल से खनिजों की खोज और उन्हें निकालने का अधिकार देता है. राष्ट्रीय समुद्री और वायुमंडलीय प्रशासन (NOAA), जो ABNI के लिए जांच-पड़ताल और वाणिज्यिक परमिट जारी करता है, ने 1984 में चार जगहों के लिए अन्वेषण का लाइसेंस जारी किया था.

समुद्र के तल तक रेस इस मान्यता से बढ़ रही है कि वर्तमान में ज़मीन आधारित महत्वपूर्ण खनिजों की सप्लाई चेन में चीन का दबदबा है. इस क्षेत्र में चीन का वैश्विक उत्पादन पर 60 प्रतिशत, प्रसंस्करण पर 90 प्रतिशत और मैन्युफैक्चरिंग पर 75 प्रतिशत नियंत्रण है. सप्लाई चेन पर इसकी पकड़ और ये एहसास कि वो अपनी शर्तों पर वैश्विक आपूर्ति को बाधित कर सकता है, इसने अलग-अलग देशों को विविधता लाने के लिए प्रेरित किया है. गहरे समुद्र में खनन इसका विकल्प पेश करता है. लेकिन इस क्षेत्र में भी चीन सबसे आगे है. अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल प्राधिकरण (ISA) की तरफ से जारी 31 लाइसेंस में से पांच चीन के पास है जो किसी भी देश से ज़्यादा है. अमेरिका से हटकर चीन ISA का स्थायी सदस्य है. इसकी वजह से गहरे समुद्र में खोजबीन की नीति तय करने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. रिसर्च से जुड़ी गतिविधियों के लिए चीन ISA को पर्याप्त वित्तीय समर्थन भी मुहैया कराता है. समुद्र तल से खनिज के मामले में दबदबा कायम करने की चीन की महत्वाकांक्षा पैसिफिक आइलैंड के देशों के साथ तालमेल से भी स्पष्ट होती है. गहरे समुद्र के खनिजों की खोजबीन के लिए चीन ने पिछले दिनों कुक आइलैंड्स के साथ पांच साल के समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसमें तकनीक का हस्तांतरण, साजो-सामान की मदद और गहरे समुद्र के इकोसिस्टम पर रिसर्च शामिल हैं. गहरे समुद्र में खनन की रेस में दूसरे देशों को पीछे छोड़ने के लिए वो तेज़ गति से आगे बढ़ रहा है. इसलिए ट्रंप प्रशासन इस क्षेत्र में चीन से आगे निकलने के लिए दीर्घकालिक रणनीति की दिशा में आगे बढ़ रहा है. इसके लिए वो घरेलू प्रयास तेज़ कर रहा है और साझेदारों एवं सहयोगियों के साथ मिलकर काम कर रहा है. 

समुद्र के तल तक रेस इस मान्यता से बढ़ रही है कि वर्तमान में ज़मीन आधारित महत्वपूर्ण खनिजों की सप्लाई चेन में चीन का दबदबा है. इस क्षेत्र में चीन का वैश्विक उत्पादन पर 60 प्रतिशत, प्रसंस्करण पर 90 प्रतिशत और मैन्युफैक्चरिंग पर 75 प्रतिशत नियंत्रण है.

इसके अलावा, अमेरिका का फैसला घरेलू निष्कर्षन और प्रसंस्करण केंद्र स्थापित करके वर्तमान और भविष्य की मांग को विनियमित करने की आवश्यकता से प्रेरित है. पिछले दिनों चीन के संबंध में अमेरिका की कमज़ोरी उस समय उजागर हुई जब चीन ने मध्यम और भारी दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (महत्वपूर्ण खनिजों का एक हिस्सा) की सात श्रेणियों पर प्रतिबंध लगा दिया. चीन ने ये फैसला ट्रंप के बढ़ते टैरिफ के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई के रूप में लिया और इस तरह महत्वपूर्ण खनिजों के खनन और प्रसंस्करण पर अपनी पकड़ को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की अपनी क्षमता दिखाई.  

ट्रंप के EO पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आई हैं. चीन ने जहां इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया है, वहीं निजी कंपनियों ने इसका स्वागत किया है जिसका पता TMC की घोषणा से चलता है. हाल के घटनाक्रम के बाद अमेरिका ने यूक्रेन के साथ महत्वपूर्ण खनिजों को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. अमेरिका ने ज़मीन पर भी आक्रामक रवैये के साथ महत्वपूर्ण खनिजों को लेकर अपना दृष्टिकोण बढ़ाया है. अमेरिका-यूक्रेन खनिज समझौते के आधार पर ये उम्मीद की जा रही है कि यूक्रेन अपने भंडार तक अमेरिका को पहुंच देने में प्राथमिकता देगा. 

भारत-अमेरिका तालमेल की आवश्यकता? 

भारत समेत समान विचार वाले दूसरे देश भी गहरे समुद्र में खनन की अपनी क्षमता को विकसित करने की दिशा में काम कर रहे हैं. 2021 में भारत ने गहरे समुद्र में मिशन की शुरुआत की. इसका एक प्रमुख घटक गहरे समुद्र में खनन के लिए तकनीक का विकास और मानवयुक्त पनडुब्बियां एवं अंडरवॉटर रोबोटिक्स है. इस मिशन ने स्पष्ट रूप से प्रगति दिखाई है और पहली मानवयुक्त जलमग्न पनडुब्बी (डीप-सी मैन्ड व्हीकल) इस साल लॉन्च होने वाली है. ये पनडुब्बी शुरुआत में 500 मीटर की गहराई में संचालित होगी और अगले साल 6,000 मीटर की गहराई तक पहुंच जाएगी. 18 जनवरी 2025 को भारत सरकार ने हिंद महासागर में समुद्र तल की खोजबीन के उद्देश्य से काम-काज की योजनाओं को मंज़ूरी के लिए ISA के पास दो आवेदन सौंपे हैं. 

अमेरिका ने ज़मीन पर भी आक्रामक रवैये के साथ महत्वपूर्ण खनिजों को लेकर अपना दृष्टिकोण बढ़ाया है. अमेरिका-यूक्रेन खनिज समझौते के आधार पर ये उम्मीद की जा रही है कि यूक्रेन अपने भंडार तक अमेरिका को पहुंच देने में प्राथमिकता देगा. 

इसके अलावा, भारत ने महत्वपूर्ण खनिजों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से एक ढांचे की स्थापना के लिए राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन की शुरुआत की है. मिशन ने भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण को 2024-25 से 2030-31 तक 1,200 खोजबीन की परियोजनाओं को पूरा करने का ज़िम्मा सौंपा है. इस समय-सीमा से लंबी रणनीति का पता चलता है. अक्टूबर 2024 में भारत और अमेरिका ने महत्वपूर्ण खनिजों की सप्लाई चेन को मज़बूत करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. समझौते में “परस्पर लाभ के उद्देश्य से अमेरिका और भारत के महत्वपूर्ण खनिजों के वाणिज्यिक विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए उपकरण, सेवाओं, नीतियों और सर्वश्रेष्ठ पद्धतियों की पहचान करने” पर ध्यान केंद्रित किया गया है. 

हिंद महासागर क्षेत्र से परे भारत और अमेरिका ने क्लैरियन-क्लिपर्टन ज़ोन (CCZ) के निकट के क्षेत्र की खोजबीन में दिलचस्पी दिखाई है. ये हवाई और मेक्सिको के बीच 3,100 मील इलाके में फैला एक विशाल मैदान है. माना जाता है कि यहां बड़ी मात्रा में पॉलीमेटालिक नॉड्यूल्स हैं जिसमें अन्य धातुओं के अलावा तांबा, निकल, कोबाल्ट और लोहा मिलता है जिनका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक गाड़ियों, सोलर पैनल, रक्षा उपकरणों, इत्यादि में किया जाता है. ISA की तरफ से जारी अन्वेषण के ज़्यादातर लाइसेंस में CCZ शामिल है. इस तरह के तालमेल से भारत और अमेरिका को समान विचार वाले देशों के साथ काम करने का अवसर मिल सकता है. साथ ही कुशलता एवं तेज़ी के बावजूद स्थायी रूप से अज्ञात समुद्र में खनन के लिए निष्कर्षण और प्रसंस्करण के बुनियादी ढांचे के साथ-साथ अनुसंधान एवं विकास केंद्रों की स्थापना का मार्ग भी प्रशस्त हो सकता है. 

गहरे समुद्र में खनन के लिए प्रतिस्पर्धा तेज़ हो रही है क्योंकि इस दौड़ में आगे रहने के लिए कई देश दिलचस्पी दिखा रहे हैं और तालमेल कर रहे हैं. वैसे तो गहरे समुद्र में खनन की आर्थिक और पर्यावरण से जुड़ी संभावना अभी तक अप्रमाणित और बेहद विवादित बनी हुई है लेकिन इसे व्यावसायिक पैमाने पर वास्तविकता में बदलने के प्रयास चल रहे हैं. इस क्षेत्र में अधिकतम लाभ के लिए मिलकर कोशिश करने से भारत और अमेरिका को फायदा होगा. दोनों देश गहरे समुद्र में खनन की अपनी क्षमताओं को विकसित करने की दिशा में शुरुआती चरण में हैं. इसकी वजह से एक दीर्घकालिक रणनीति के लिए संसाधनों, वित्त और मानव पूंजी को इकट्ठा करना आवश्यक हो जाता है. ये रणनीति तेज़ी से आगे बढ़ रहे चीन को संतुलित करेगी. 


विवेक मिश्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में डिप्टी डायरेक्टर हैं. 

अक्षत सिंह ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में रिसर्च इंटर्न हैं. 

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Authors

Vivek Mishra

Vivek Mishra

Vivek Mishra is Deputy Director – Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation. His work focuses on US foreign policy, domestic politics in the US, ...

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Akshat Singh

Akshat Singh

Akshat Singh is a Research Intern with the Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation. ...

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