Image Source: Getty
पिछले कुछ साल से चीन की समुद्री ताकत को लेकर बहस चल रही है. चीन के बारे में कहा जा रहा है कि उसके पास दुनिया की सबसे बडी नौसेना, सबसे ज़्यादा कोस्टगार्ड और सबसे बड़ी मैरीटाइम मिलिशिया है. लेकिन यहां पर एक और बात गौर करने वाली है. चीन के पास सबसे बड़ी नौसेना ही नहीं बल्कि समुद्री अनुसंधान से जुड़ा सबसे विशाल बेड़ा भी है. इस फ्लीट में 64 एक्टिव वेसेल्स हैं, जबकि 2012 में उसके पास ऐसे महज 12 जहाज थे. इनमें से कुछ बेड़ों को इस खास तरह डिज़ाइन किया गया है कि वो भूकंप से जुड़ी जानकारियां, बाथमेट्री, टोपोग्राफी, जलवायु विज्ञान, गहरे समुद्र के अंदर के जीवन जैसे क्षेत्रों पर शोध कर सकें. इसके अलावा समुद्र के पानी में लवणता, थर्मोकलाइन, समुद्री तल में पाए जाने वाले अलग-अलग तत्वों के नमूनों के संग्रह करने वाले जहाज भी इस बेड़े में शामिल हैं. इतना ही नहीं मानवयुक्त और मानव रहित पनडुब्बियों के संचालन और समुद्र के भीतर निगरानी प्रणालियों में सक्षम जहाज भी इन 64 फ्लीट्स में शामिल हैं. चीन ने कुछ जहाजों को ऐसे डिज़ाइन किया है कि वो बैलिस्टिक मिसाइलों का पता लगाने और ट्रैक करने में कामयाब हुए हैं. चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना में विज्ञान और तकनीकी के तहत गहरे समुद्र में खोज को काफ़ी प्राथमिकता दी गई है. चीन की सेना और सरकार में उच्च स्तर के अधिकारी इस काम पर नज़र रखते हैं और लगातार इसकी समीक्षा करते हैं. चीन के बाकी दूसरे क्षेत्रों की तरह नौसेना और समुद्री अनुसंधान के कार्यक्रमों में रणनीतिक, आर्थिक और सामरिक तालमेल उच्च स्तर का होता है, जिससे ये एक व्यापक उद्देश्य को पूरा कर सकें.
चीन के पास सबसे बड़ी नौसेना ही नहीं बल्कि समुद्री अनुसंधान से जुड़ा सबसे विशाल बेड़ा भी है. इस फ्लीट में 64 एक्टिव वेसेल्स हैं, जबकि 2012 में उसके पास ऐसे महज 12 जहाज थे. इनमें से कुछ बेड़ों को इस खास तरह डिज़ाइन किया गया है कि वो भूकंप से जुड़ी जानकारियां, बाथमेट्री, टोपोग्राफी, जलवायु विज्ञान, गहरे समुद्र के अंदर के जीवन जैसे क्षेत्रों पर शोध कर सकें.
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीनी नौसेना की तैनाती
खास बात ये है कि चीन इनकी तैनाती भी एक खास रणनीति के तहत कर रहा है. समुद्री अनुसंधान में सक्षम चीन के जहाजों को फिलहाल "सुदूर समुद्रों" में तैनात किया जा रहा है. इसके ज़रिए चीन ये संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि उसका ये काम वैश्विक भलाई के लिए है लेकिन इनमें से कई तैनाती इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भी हैं, खासकर पश्चिमी प्रशांत, दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर पर फोकस किया गया है. यहां ये बात याद रखनी ज़रूरी है कि दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में आक्रामक रुख़ दिखाने से पहले चीन ने 1980 और 1990 के दशक में इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रिसर्च वेसेल्स की तैनाती की थी. हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) पर भी चीन ने खास ज़ोर दिया है. चीन ने इनकी तैनाती दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर, अंडमान सागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के आसपास की है. साल 2018 में चीनी रिसर्च शिप जियांग यांग होंग-3 250 दिन तक हिंद महासागर क्षेत्र में तैनात रहा था. इसी साल अगस्त और सितंबर 2024 में तीन समुद्री अनुसंधान वाले तीन जहाज (जियांग होंग-3, हाई यांग शी यू-718 और बेई डियाओ-996) को बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में तैनात किया गया था. हिंद महासागर क्षेत्र में आने के लिए ये शिप अलग रास्ता चुनते हैं. इस आधार पर ये आशंका भी जताई जा सकती है कि हो सकता है पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की पनडुब्बियों के लिए नए रूट का पता लगाने के लिए ये ऐसा करते हैं. कई बार इस तरह की ख़बरें भी आई हैं कि हिंद महासागर आने के दौरान ये रिसर्च शिप कभी-कभी अपने ऑटोमेटिक आईडेंटिफिकेशन सिस्टम (एआईएस) को बंद कर देती हैं या एआईएस स्पूफिंग का इस्तेमाल करती हैं.
गहरे समुद्र में खनन
गहरे समुद्र में खनन का ठेका देने का काम इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) करती है. इसका गठन समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS) के तहत 1994 में किया गया. अपनी स्थापना के बाद से इसने चार क्षेत्रों, यानी दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर, उत्तर पश्चिमी प्रशांत महासागर, क्लेरियन क्लिपर्टन ज़ोन (मध्य दक्षिण प्रशांत में), और मध्य अटलांटिक रेंज में समुद्र में खोज के 31 ठेके दिए हैं. इन 31 कॉन्ट्रैक्ट्स में से पांच चीन को मिले. किसी और देश को इतने ठेके नहीं मिले हैं. चीन ने भी इस दिशा में तेज़ी से काम करते हुए 2016 में समुद्री क्षेत्रों में संसाधनों की खोज और विकास के लिए एक कानून पारित किया. इसके तहत जो क्षेत्र चीन को आवंटित हुए हैं, वहां समुद्री अनुसंधान में सक्षम जहाजों को तैनात किया गया. चीन की मॉडर्न पनडुब्बियां गहरे समुद्र में जाकर नमूने इकट्ठा करती हैं. गहरे समुद्र में खनन के लिए अनुसंधान करने के मामले में चीन इस वक्त दुनिया में सबसे आगे है. चीन चाहता है कि भविष्य में जब इन खोजों को लेकर व्यावसायिक काम हो तो वो उसमें भी सबसे आगे रहे. अमेरिका इंटरनेशनल सीबेड (ISA) अथॉरिटी का सदस्य नहीं है. उसने UNCLOS पर दस्तख़त नहीं किए हैं. दक्षिण-पश्चिम हिन्द महासागर में समुद्र में खोज के ठेके भारत, चीन, दक्षिण कोरिया और जर्मनी को दिए गए हैं.
ISA में समुद्री खनन कोड का बेहतर नियामक ढांचा बनाने पर बहस चल रही है. इस बात की कोशिश की जा रही है कि कमर्शियल तौर गहरे समुद्र में दोहन राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे जाए, ये सिर्फ खनिजों की खोज तक ही सीमित ना रहे.
ISA में समुद्री खनन कोड का बेहतर नियामक ढांचा बनाने पर बहस चल रही है. इस बात की कोशिश की जा रही है कि कमर्शियल तौर गहरे समुद्र में दोहन राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे जाए, ये सिर्फ खनिजों की खोज तक ही सीमित ना रहे. हालांकि इस दिशा में अभी तक ज़्यादा कामयाबी नहीं मिली है, क्योंकि पर्यावरण और समुद्री जीवों की सुरक्षा संबंधी चिंताएं सामने आ रही हैं. (UNCLOS के अनुच्छेद 82 के प्रावधानों के तहत समुद्र की मामले में साझी विरासत के सिद्धांत का पालन किया जाता है). लेकिन जहां तक बात समुद्री अनुसंधान, सुरक्षित खनन और निगरानी प्रणाली की है, तो इस मामले में खास प्रगति नहीं हो पाई है. 24 अगस्त 2024 को के प्रति वचनबद्धता, सुरक्षित खनन सुनिश्चित करने के लिए अब तक अनुसंधान में अंतराल, और निरीक्षण तंत्र की आवश्यकता के कारण इनमें अधिक प्रगति नहीं हुई है. 24 अगस्त को ISA की बैठक हुई थी. इस मीटिंग में ये फैसला किया गया कि जब तक इस बारे में एक व्यापक नीति पर सहमति नहीं बन जाती, तब तक एक एहतियाती ठहराव लिया जाए.
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (नेवी) से संबंध
चीन ने समुद्र में अपने जो रिसर्च शिप तैनात किए हैं, उनमें से ज़्यादातर का स्वामित्व चीन के प्राकृतिक संसाधन मंत्रालय (पहले इसका नाम स्टेट ओसेनिक एडमिनिस्ट्रेशन था) के पास है. इसके अलावा चीन विज्ञान अकादमी, चाइना ओशिन मिनरल्स के रिसर्च और डेवलपमेंट एसोसिएशन, दूसरी सरकारी कंपनियों और यूनिवर्सिटीज़ के पास भी कुछ समुद्री अनुसंधान वाले जहाज हैं. लेकिन ये एजेंसियां पीएलए (नौसेना) के उन पनडुब्बी केंद्रों/अकादमियों के साथ मिलकर काम करती हैं, जो समुद्र के अंदर की चीजों का अध्य्यन करते हैं. इन जहाजों को ज़ियामेन, झोउशान, शंघाई और क़िंगदाओ में होमपोर्ट किया जाता है. ऐसा करने पर नौसेना के साथ बेहतर तालमेल में मदद मिलती है और ये जहाज नौसेना की सुविधाओं की फायदा भी उठा सकते हैं. हालांकि ज्यादातर मामलों में, नियंत्रण एजेंसियों और पीएलए (नौसेना) के बीच औपचारिक सहयोग समझौते होते हैं. जो बड़े रिसर्च शिप होते हैं, उनमें से कुछ जहाज मानवयुक्त और मानवरहित पनडुब्बियों के लिए मदर शिप के रूप में भी काम करते हैं. साल 2000 में मानवयुक्त पनडुब्बी फेंडोज़े तीन शोधकर्ताओं के साथ समुद्र के 10 हज़ार मीटर तक अंदर गई, इसमें जियालोंग I और II, और शेनहाई योंगशी शामिल हैं. 2022 में दो मानवयुक्त पनडुब्बियों ने दक्षिण चीन सागर में साझा तौर पर काम किया. कई मानव रहित पनडुब्बियां भी इन बड़े शोध जहाजों से संचालित होती हैं. हाइलोंग और कियानलॉन्ग सीरीज़ की सबमरीन इसमें शामिल हैं. दूर समुद्रों में संचालित सीहोर्स जैसे वाहन और सी विंग जैसे पानी के नीचे ग्लाइडर भी इस बेड़े में शामिल हैं. ये रिसर्च शिप चीन की नेवी के ऑटोनोमस अंडरवाटर और अनमैंड अंडरवाटर व्हीकल के साथ मिलकर काम करते हैं. दोनों ही तरह के जहाज एक-दूसरे की टेक्नॉलोजी और अनुभव का फायदा उठाते हैं.
ये रिसर्च शिप चीनी नौसेना के सर्वेक्षण करने वाले जहाजों के साथ सूचना साझा करते हैं. सिविल-मिलिट्री फ्यूज़न स्ट्रैटजी के तहत इस व्यवस्था का एक उद्देश्य समुद्र के नीचे युद्ध क्षमताओं में सुधार करना भी है. अपने इसी मिशन के तहत समुद्र में शोध के साथ-साथ चीन परमाणु पनडुब्बियों (एसएसएन और एसएसबीएन) की तैनाती के लिए उपयुक्त क्षेत्रों का आकलन भी कर रहा है. इसके अलावा सेंसर और पानी के भीतर उपकरणों के लिए डेटा, ऑनबोर्ड पनडुब्बियों में इस्तेमाल के लिए या एंटी सबमरीन वॉरफेयर के लिए विकसित किए जा रहे सिस्टम का परीक्षण शामिल है. दूर-दूर के समुद्रों में रिसर्च शिप की तैनाती इस बात के भी संकेत देती है कि भविष्य में चीनी नौसेना भी वहां अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकती है.
दूसरे देशों के साथ सहयोग बढ़ाना
गहरे समुद्र में खोज और खनन के लिए कई दूसरे देशों के राष्ट्रीय कार्यक्रम भी चल रहे हैं. चीन ने उनमें से कुछ देशों के साथ साझेदारी की पेशकश की है. चीन ने अपने कुछ अभियानों में इन देशो के वैज्ञानिकों और पर्यवेक्षकों को रिसर्च शिप में शामिल भी किया है. हालांकि, चीन और इन देशों के बीच सहयोग में उतनी प्रगति नहीं हुई है, क्योंकि हर देश की चुनौतियां अलग हैं.
भारत भी समुद्रयान नाम से डीप ओशिन मिशन में चला रहा है. 'मत्स्य' नाम से उसका मानवयुक्त पनडुब्बी का परीक्षण जल्द शुरू होने की संभावना है. इस मिशन के तहत समुद्र के तल पर खोज की जाएगी. गहरे समुद्र में खनन के लिए 'वारहा' वाहन का विकास किया जा रहा है. भारत सरकार ने ओशिन रिसर्च वेसेल्स और अकाउस्टिक रिसर्च वेसेल्स का ऑर्डर दिया है. इससे ये संकेत मिलते हैं कि गहरे समुद्र में खोज के मिशन को प्राथमिकता दी जा रही है. हाल ही में भारत ने इस बात के संकेत दिए हैं कि वो सात सीबेड खनिज ब्लॉकों की खोज और दोहन के लिए नीलामी की योजना ला सकता है. ये इस तरह की पहली नीलामी होगी. ये सभी सीबेड ग्रेट निकोबार द्वीप में विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के पास हैं. गहरे समुद्र में खनन के क्षेत्र में सबसे उन्नत तकनीकी अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के पास है. ऐसे में इन देशों को चाहिए कि वो समुद्र अनुसंधान के क्षेत्र में भारत के साथ भी सहयोग करें. ये द्विपक्षीय आधार पर भी हो सकता है, या फिर QUAD (क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग) के तहत भी ऐसा किया जा सकता है. ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका इस समूह के सदस्य हैं.
गहरे समुद्र में खनन के क्षेत्र में सबसे उन्नत तकनीकी अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के पास है. ऐसे में इन देशों को चाहिए कि वो समुद्र अनुसंधान के क्षेत्र में भारत के साथ भी सहयोग करें. ये द्विपक्षीय आधार पर भी हो सकता है, या फिर QUAD के तहत भी ऐसा किया जा सकता है. ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका इस समूह के सदस्य हैं.
भारत ने अपने इंडो-पैसिफिक ओशंस इनिशिएटिव (आईपीओआई) में सात आधार या स्तंभ तय किए हैं. इनमें से चार पिलर सीधे तौर पर गहरे समुद्र में खोज और खनन से जुड़े हैं. पिलर 2 समुद्री पारिस्थितिकी के लिए है. पिलर 3 समुद्री संसाधनों के लिए है. पिलर 4 क्षमता का निर्माण करने और संसाधन को साझा करने के बारे में है, जबकि पिलर 6 विज्ञान, तकनीकी और अकादमिक सहयोग के लिए है. जो भी देश इनके आधार पर काम करने को तैयार हैं वो भविष्य में गहरे समुद्र में अनुसंधान और खनन के लिए एक साझा ढांचा विकसित कर सकते हैं. गहरे समुद्र के बारे में हमारी समझ को मज़बूत करने के लिए आपसी सहयोग बढ़ाना ज़रूरी है. इसी से हम साझा हित के क्षेत्रों की पहचान कर सकेंगे और समुद्री क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा मिल सकता है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.