Published on Jul 12, 2022 Updated 29 Days ago

म्यांमार की जलविद्युत परियोजनाएं चुनौतियों से जूझ रही हैं. इसलिए एक ऐसा समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है जिसमें सभी हिस्सेदारों को साथ लिया जाना सुनिश्चित किया जा सके.

बांध जो घरों को उजाड़ने का काम कर रहे हैं: विकास के लिये चुकाई जाने वाली ‘सामाजिक’ क़ीमत!

हिमालय के नदी क्षेत्र में जलविद्युत परंपरागत रूप से एक विवादित मुद्दा रही है. इसकी बड़ी वजह ये है कि जलविद्युत की व्यावसायिक अर्थव्यवस्था, पानी के प्रवाह की व्यवस्था पर ग्लोबल वॉर्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन का असर, बनावट और भूकंपीय विज्ञान, पारिस्थितिकी तंत्र और आजीविका में महत्वपूर्ण संबंध और सबसे बढ़कर विस्थापन के साथ जुड़ी सामाजिक क़ीमत, अपर्याप्त या अधूरा पुनर्वास एवं आजीविका का नुक़सान और अंत में संघर्ष में बढ़ोतरी के संदर्भ में जानकारी को लेकर काफ़ी ज़्यादा अंतर है. म्यांमार की सालवीन नदी प्रणाली में जलविद्युत का विकास इन सभी बातों पर लागू होता है. तिब्बत के पठार में उद्गम और युन्नान में तीन समानांतर नदियों की विश्व धरोहर के इलाक़े से गुज़रने वाली सालवीन नदी दक्षिण की तरफ़ बढ़ती है और म्यांमार के शान, कायाह (करेन्नी), करने और मोन प्रांतों से बहती है. इसके बाद वो मर्तबान की खाड़ी में बहती है और अंडमान के समुद्र में इसका विलय हो जाता है. 

सालवीन नदी में जलविद्युत की संभावना ने चीन और थाईलैंड की सरकार को सालवीन की मुख्य धारा पर प्रस्तावित बांधों को बनाने के लिए प्रेरित किया. शान प्रांत में कुनलोंग, नौंग फांद तसांग/मोंग तोन बांध, कायाह प्रांत में वाथित बांध और कायिन प्रांत में हैतगी बांध बनाने की शुरुआत हुई. 

सालवीन नदी में जलविद्युत की संभावना ने चीन और थाईलैंड की सरकार को सालवीन की मुख्य धारा पर प्रस्तावित बांधों को बनाने के लिए प्रेरित किया. शान प्रांत में कुनलोंग, नौंग फांद तसांग/मोंग तोन बांध, कायाह प्रांत में वाथित बांध और कायिन प्रांत में हैतगी बांध बनाने की शुरुआत हुई. बांध निर्माण की वजह से प्रभावति होने वाले परिवारों को इन परियोजनाओं को लेकर अंधेरे में रखा गया. साथ ही प्रभावित जातीय समुदायों के हितों का ध्यान रखे बिना ज़मीन के अधिग्रहण का नतीजा इस क्षेत्र में संघर्ष के रूप में सामने आया. 

इस बिंदु पर ये महत्वपूर्ण है कि बांध से विस्थापित होने वाले लोगों की भारी-भरकम संख्या पर नज़र डाली जाए जिसे पहली सारिणी में दिखाया गया है. 

जैसा कि पहले भी कहा गया है, हिमालय में ऐसी कई परियोजनाएं हैं जिनमें इस तरह के संघर्ष की सामाजिक क़ीमत का ध्यान नहीं रखा गया है. हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र में दूसरी अन्य जलविद्युत परियोजनाओं की तरह सालवीन की जलविद्युत परियोजना को लेकर क़ीमत और फ़ायदों के विश्लेषण में इसकी सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय क़ीमत का ध्यान नहीं रखा गया है. इस लेख में परिप्रेक्ष्य में उन विश्लेषणों को उजागर किया गया है जिनकी वजह से संघर्ष की स्थिति बनी है. इन विश्लेषणों को कई शीर्षकों के तहत वर्गीकृत किया जा सकता है. 

वाथित बांध का सर्वे करने के लिए आए चीन के कुछ इंजीनियर की मौत के बाद बांध के क्षेत्र में सैन्य तैनाती की वजह से पर्यावरण कार्यकर्ताओं को भी कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है. मोंग तोन बांध के पर्यावरण पर असर की रिपोर्ट की वैद्यता पर शान प्रांत के सिविल सोसायटी संगठनों ने सवाल उठाए हैं.

अपर्याप्त मुआवज़ा 

अपर्याप्त मुआवज़ा की स्थिति उस वक़्त आती है जब समुदाय की परेशानियों की क़ीमत का पता लगाने में आधे मन, टूटे हुए और आंशिक दृष्टिकोण से काम किया जाए. ये विश्लेषण का सार है. उदाहरण के तौर पर, कायाह प्रांत में लॉपिता जलविद्युत परियोजना की वजह से 12,558 स्थानीय निवासियों के विस्थापन को लेकर ‘मामूली’ नुक़सान होने का जवाब मिला. यहां तक कि मोबाई बांध की वजह से 12,000 से ज़्यादा विस्थापित लोगों के मामले में भी लगभग नहीं के बराबर पुनर्वास की योजना बनी. पर्यावरण पर बांध के नकारात्मक असर को कम करने के लिए नाम मात्र की कोशिश की गई. इन बांध परियोजनाओं की वजह से अतीत में नुक़सान झेल चुका करेन्नी समुदाय सालवीन की मुख्य धारा पर प्रस्तावित वाथित बांध के निर्माण को लेकर अनिच्छुक बना हुआ है

पर्यावरण पर असर का अधूरा आकलन

नौंग फा परियोजना तक पहुंच एक चुनौती बनी हुई है. इस बांध को लेकर सीमित जानकारी उपलब्ध है. ख़बरों के मुताबिक़ गुप्त रूप से कुनलोंग बांध का निर्माण पहले ही शुरू हो चुका है. वैसे तो कुनलोंग बांध की वजह से पर्यावरण पर असर का आकलन किया जा चुका है लेकिन इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है. वाथित बांध का सर्वे करने के लिए आए चीन के कुछ इंजीनियर की मौत के बाद बांध के क्षेत्र में सैन्य तैनाती की वजह से पर्यावरण कार्यकर्ताओं को भी कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है. मोंग तोन बांध के पर्यावरण पर असर की रिपोर्ट की वैद्यता पर शान प्रांत के सिविल सोसायटी संगठनों ने सवाल उठाए हैं. इसी तरह हैतगी बांध को लेकर इलेक्ट्रिसिटी जेनरेटिंग अथॉरिटी ऑफ थाईलैंड (ईजीएटी) के द्वारा तैयार पर्यावरण पर असर के आकलन की रिपोर्ट का बाहर की एजेंसियों ने खंडन किया है. ये ध्यान रखना चाहिए कि चूंकि इन परियोजनाओं की वजह से पर्यावरण पर पड़ने वाले असर के विश्लेषण में गड़बड़ी है, इसलिए पारिस्थितिकी तंत्र को संभावित नुक़सान के संबंध में स्पष्ट तस्वीर अभी भी उभर कर नहीं आई है. 

म्यांमार की सेना के द्वारा निर्माण स्थल को खाली कराए जाने के दौरान यौन हिंसा का मुद्दा भी खड़ा हो गया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक़ शान प्रांत में बलात्कार की ज़्यादातर घटनाएं उन क्षेत्रों में घटी हैं जहां 1996 से 3,00,000 से ज़्यादा गांव वालों को ज़बरन दूसरी जगह भेजा गया है.

नदी के प्रवाह की व्यवस्था में बदलाव

इस तरह की जलविद्युत परियोजनाओं का सालवीन नदी की मौजूदा प्रवाह व्यवस्था पर असर पड़ना तय है. इन परियोजनाओं की वजह से पानी के भीतर के जीवन और मत्स्य पालन पर नकारात्मक असर भी पड़ेगा. नदी के पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना और उसके कामकाज में बदलाव की वजह से स्थानीय समुदायों की आजीविका प्रभावित होगी. नदी के क्षेत्र की व्यवस्था में ये बदलता एकीकृत परिप्रेक्ष्य इन क़ीमतों को परियोजना के असर के विश्लेषण में शामिल करने की बात करता है. लेकिन फ़ायदा उठाने वालों की तरफ़ से ऐसा कोई संकेत नहीं दिया जा रहा है कि जब बांध के निर्माण में प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र भी एक हिस्सेदार है तो प्रभावित लोगों को मुआवज़ा देने की ज़रूरत है. 

संघर्ष की सामाजिक क़ीमत 

म्यांमार की सेना के द्वारा निर्माण की जगह में बदलाव करने से हज़ारों स्थानीय निवासियों का आशियाना उजड़ेगा. कई लोग संघर्ष से प्रभावित क्षेत्र छोड़कर चले गए हैं और अब म्यांमार-थाईलैंड की सीमा पर आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति (आईडीपी) के रूप में रह रहे हैं. म्यांमार की सेना के द्वारा निर्माण का काम शुरू करने के लिए वाथित बांध के निर्माण स्थल को सुरक्षित करने की कोशिश का नतीजा सेना और जातीय सशस्त्र संगठनों के बीच हिंसक संघर्ष के रूप में निकला. इसकी वजह से आस-पास के गांवों में रहने वाले हज़ारों स्थानीय लोगों को सुरक्षित ठिकाने की तलाश में थाई सीमा तक भागना पड़ा. निर्माण स्थल को खाली कराने के परिणामस्वरूप सामाजिक संघर्षों में नाटकीय बढ़ोतरी ने इन जलविद्युत परियोजनाओं की सामाजिक क़ीमत में बढ़ोतरी की है. उत्पादन में देरी की वजह से राजस्व का संभावित नुक़सान इन जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण की अनुमानित निवेश लागत में बढ़ोतरी करेगा. म्यांमार की सेना के द्वारा निर्माण स्थल को खाली कराए जाने के दौरान यौन हिंसा का मुद्दा भी खड़ा हो गया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक़ शान प्रांत में बलात्कार की ज़्यादातर घटनाएं उन क्षेत्रों में घटी हैं जहां 1996 से 3,00,000 से ज़्यादा गांव वालों को ज़बरन दूसरी जगह भेजा गया है. 

वास्तविकता: स्थानीय परेशानियों में मदद नहीं 

ठीक ढंग से कहें तो प्रस्तावित परियोजनाएं घरेलू ऊर्जा सुरक्षा के उद्देश्यों को पूरा करने में मदद नहीं करती हैं. मोंग तोन बांध और हैतगी बांध के द्वारा उत्पन्न 90 प्रतिशत बिजली को निर्यात के रूप में बेचा जाना है जबकि बाक़ी बची 10 प्रतिशत बिजली को घरेलू उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जाना है. इसी तरह शान प्रांत में कुनलोंग बांध परियोजना से उत्पन्न होने वाली 90 प्रतिशत बिजली को चीन को निर्यात किया जाएगा. अक्सर म्यांमार और उसके पड़ोसियों जैसे कि थाईलैंड और चीन के बीच होने वाले समझौतों में असंयमित मोलभाव देखा जाता है और इस मामले में बांध परियोजनाएं भी अपवाद नहीं हैं.

आगे का रास्ता

सालवीन नदी के क्षेत्र की व्यवस्था में जिस तरह सालवीन नदी पर बांध का निर्माण एक महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में खड़ा हुआ है, उसे देखते हुए एक सहयोगपूर्ण शासन प्रणाली वाले संस्थान की आवश्यकता है. ये संस्थान ऐसा हो जिसमें एक स्वतंत्र वैज्ञानिक समुदाय, सैन्य सरकार के अधिकारी, जातीय सशस्त्र संगठन, सिविल सोसायटी संगठन और प्रमुख आर्थिक किरदार हों जो देश में जलविद्युत के विकास पर निगरानी रखें. म्यांमार में जलविद्युत विकास के मामले में जानकारी का जो अंतर दिखता है, उसका समाधान होना चाहिए. इसके लिए सरकारी संरचना के एक से ज़्यादा स्तर और हिस्सेदारों के बीच बातचीत को सुनिश्चित करना होगा. इस तरह निर्णय लेने की प्रक्रिया में ऊपर से लेकर नीचे तक एक जैसी राय होगी. ऐसा होने के बाद देश के किसी भी क्षेत्र में जलविद्युत विकास को लेकर बेहतर जानकारी पर आधारित निर्णय लेना संभव हो सकेगा. 

जलविद्युत परियोजनाओं का समग्र मूल्यांकन एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन की प्रक्रिया के द्वारा निर्देशित होना चाहिए ताकि इसकी सभी अल्पकालीन और दीर्घकालीन सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क़ीमत का लेखा-जोखा किया जा सके.

मेकॉन्ग नदी आयोग (एमआरसी) का संस्थागत तंत्र इस पर सबक़ मुहैया करा सकता है. एमआरसी अपने तीन हिस्सेदारों- निजी क्षेत्र, सरकार (सार्वजनिक क्षेत्र के लिए) और सिविल सोसायटी संगठनों- के बीच सहयोगपूर्ण व्यवहार में शामिल है. ये नदी क्षेत्र के लिए एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (आईडब्ल्यूआरएम) के आधार पर योजना की प्रक्रिया का पालन करता है जो पारिस्थितिकी तंत्र की निरंतरता से समझौता किए बिना आर्थिक और सामाजिक कल्याण का अधिकतम लाभ उठाकर जल संसाधनों को विकसित और प्रबंधित करना चाहता है. एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन की प्रक्रिया तीन सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों को अपनाती है: आर्थिक कार्यकुशलता, सामाजिक समानता और पर्यावरणीय निरंतरता. जलविद्युत परियोजनाओं का समग्र मूल्यांकन एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन की प्रक्रिया के द्वारा निर्देशित होना चाहिए ताकि इसकी सभी अल्पकालीन और दीर्घकालीन सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क़ीमत का लेखा-जोखा किया जा सके. इस तरह का मूल्यांकन एक से ज़्यादा विषयों पर होने की आवश्यकता को देखते हुए विशेष जानकारी पर आधारित एक संकलन और इसके परिणाम स्वरूप एकीकृत जानकारी की रचना, जो कि एकीकृत जानकारी की प्रणाली की रूप-रेखा के द्वारा सक्षम हो, जल संसाधन प्रबंधन को देश में काम-काज की आदत के नज़दीक ला सकती है. इससे अदूरदर्शी अर्थव्यवस्था, बांटने वाली इंजीनयरिंग और जानकारी की अनिश्चितता की विशेषता वाली जलविद्युत परियोजनाओं को लेकर आगे बढ़ने की मौजूदा पद्धति को नाकाम बनाने में मदद मिलेगी. 

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